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Sunday, June 7, 2009

नहीं रहे हबीब तनवीर

सुप्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर भोपाल में लंबी बीमारी के बाद भोपाल में निधन हो गया । कुछ दिनों पहले उन्हें सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद निजी अस्पताल दाखिल कराया गया था जहां वो वेंटिलेटर पर थे । असपताल के डॉक्टरों के मुताबिक तनवीर को अस्थमा का दौरा पड़ा था, जिसके चलते उन्हें साँस लेने में तकलीफ हो रही थी। उनके फेफड़ों में पानी भर गया था और सीने एवं खून में संक्रमण की वजह से तबीयत बिगड़ गई थी ।
किसी भी विधा में ये देखने को कम ही मिलता है कि अपने जीवन काल में ही उसमें काम करनेवाला लीजेंड बन जाता है । लेकिन हबीब के साथ यही हुआ और वो रंगमकर्म की दुनिया के लीविंग लीजेंड बन गए थे . बावजूद इसके हबीब तनवीर का लोगों से जुड़ाव कम नहीं हुआ और वो लोक के कलाकार के तौर पर मशहूर हुए । हबीब ने जब रंगकर्म की दुनिया में कदम रखा तो उस वक्त रंगमंच की दुनिया में लोक की बात कम होती थी । लेकिन इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ के साथ बहीह के जुड़ाव ने उन्हें लोक से जुड़ने के लिए ना केवल प्रेरित किया बल्कि उनके विचारों को भी गहरे तक प्रभावित किया । एक सितंबर 1923 को रायपुर में जन्मे हबीब तनवीर को पद्म भूषण, पद्म श्री और संगीत नाटक अकादमी जैसे पुरस्कार मिले थे. रायपुर में हुआ और स्कूली शिक्षा वहां से पूरी करने के बाद वो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पहुंचे जहां से उन्होंने ग्रेजुएशन किया और फिर 1945 में वो मुंबई चले गए जहां उनकता जुड़ा इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ से हुआ । लेकिन हबीब ने नाटक की दुनिया में कदम दिल्ली में आने के बाद ही रखा- सन 1954 में जहां पहली बार उन्होंने आगरा बाजार का मंचन किया, लिखा भी । दिल्ली में ये वो दौर था जब रंगमंच की दुनिया यूरोपियन मॉडल से प्रभावित थी और यहां अंग्रेजी वालों का बोलबाला था । लेकिन अपने इस नाटक से तनबीर ने ना केवल अंग्रेजी का आधिपत्य तोड़ा बल्कि रंगमंच की दुनिया के लिए एक नया आकाश उद्धाटित किया । ये नाटक अटारहवीं शताब्दी के मशहूर उर्दू शायद अकबर नजीराबादी पर केंद्रित था । इस नाटक में हबीब तनवीर ने ओखला गांव के कलाकारों को लेकर रंगमंच के आभिजात्य को चुनौती देते हुए एक नई भाषा भी गढ़ी । इसके बाद हबीब इंगलैंड चले गए जहां तीन साल तक रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स में रंगमंच और उसकी बारीकियों को समझा . फिर 1959 में तनबीन ने अपनी रंगकर्मी पत्नी मोनिका मश्रा के साथ मिलकर नया थिएटर नास से एक ग्रुप बनाया जिसने भारतीय और यूरोपियन क्लासिक का मंचन किया । रंगमंच की दुनिया को तनबीर ने अंग्रेजी आभिजात्य से तो आजादी दिलाई साथ ही उन्होंने लोक कलाकारो को स्थानीय बोली बानी में नाटक करने के लिए प्रोत्साहित किया ।
1975 में हबीब तनबीर ने अपना मशहूर नाटक चरणदास चोर का मंचन किया जो आजतक इतना लोकप्रिय है कि जहां भी, जब भी इसका मंचन होता है, लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है । इसके बाद तनबीर ने कई विश्व क्लासिक का मंचन किया जिसमें – गोर्की की एनेमीज पर आधारित दुश्मन, असगर वजाहत की जिन लाहौर नहीं बेख्या के अलावा कामदेव का अपना, बसंत ऋतु का सपना, शाजापुर की शांतिबाई आदि ने रंगमंच को एक नई उंचाई दी । हबीब तनवीर ने थिएटर के साथ बालीवुड की फिल्मों में भी अपने अभिनय की छाप छोड़ी। उन्होंने नाना पाटेकर अभिनीत चर्चित फिल्म 'प्रहार' और निर्देशक सुभाष घई की 'ब्लैक एंड ह्वाइट' में भी काम किया।
हबीब तनबीर के प्रगतिशील विचारों को जब नाटकों में जगह मिलने लगी तो भगवा ब्रिगेड के कान खड़े हुए और जब मध्य प्रदेश में सन दो हजार तीन में पोंगा पंडित और लाहौर का मंचन शुरु हुआ तो भगवा ब्रगेड के कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध प्रदर्शन कर इन दोनों नाटको के मंचन को रुकवाने की कोशिश की । लेकिन हबीब की जिजीविषा पर कोई असर नहीं हुआ और अपने नाटकों के माध्यम से वो अलख जगाते रहे, बगैर डरे, बगैर घबराए । रंगमंच की इस महान विभूति को हमारी श्रद्धांजलि ।

1 comment:

संजय बेंगाणी said...

सद्गत की आत्मा की शांति की कामना करता हूँ.