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Saturday, December 11, 2010

टोनी ब्लेयर की जर्नी

टोनी ब्लेयर ब्रिटेन के पहले ऐसे राजनेता थे जो बगैर किसी सरकारी अनुभव के सीधे प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए थे । वह ब्रिटेन के लंबे लोकतांत्रिक इतिहास के दूसरे प्रधानमंत्री थे जिनके नेतृत्व में पार्टी ने आमचुनाव में लगातार तीसरी बार जीत हासिल की थी । इसके पहले ये गौरव सिर्फ मारग्रेट थैचर को मिला था । विश्व युद्ध के बाद लेबर पार्टी के नौ नेताओं में सिर्फ तीन ने आमचुनाव में जीत हासिल की उसमें से भी टोनी ब्लेयर एक हैं । ब्रिटेन के राजनीतिक पंडित लेबर पार्टी में आमूलचूल बदलाव और सुधारों का श्रेय भी युवा टोनी ब्लेयर को ही देते हैं । उनके मुताबिक एक ऐसी पार्टी जिसी साख लगातार गिरती जा रही थी और जो मार्क्सवाद के हैंगओवर से जूझ रही थी, उसमें ब्लेयर ने नई जान फूंकी और उसे आधुनिक यूरोपीय विचारधाऱा के अनुरूप ढालने की ना केवल कोशिश की बल्कि उसमें सफलता भी पाई । टोनी के इस प्रयास को लोगों के समर्थन से बल भी मिला । इसके अलावा टोनी ने ब्रिटेन की अंतराष्ट्रीय नीतियों में भी काफी बदलाव किए । इराक पर अमेरिका का साथ देने से लेकर अंतराष्ट्रीय निशस्त्रीकरण के ब्रिटेन के भावुकता भरे पुराने स्टैंड को बदलकर एक ऐसा स्वरूप दिया जो ज्यादा देशों को स्वीकार्य हो सकता था । टोनी ब्लेयर ने 1994 में लेबर पार्टी की कमान संभाली और तीन साल के अंदर पार्टी में जो बदलाव किया उसको लेकर वहां की जनता में एक उम्मीद जगी और 1997 में ब्लेयर को अपार जनसमर्थन मिला जो ब्रिटेन के इतिहास में अभूतपू्र्व था । इसने वहां 18 साल के कंजरवेटिव पार्टी के शासन का अंत कर दिया ।
इसलिए जब टोनी ब्लेयर ने अपनी आत्मकथा लिखने का ऐलान किया तो बताया जाता है कि प्रकाशक ने उन्हें बतौर अग्रिम राशि पांच मिलियन पौंड की राशि दी । इतनी बड़ी अग्रिम राशि इस वर्ष के प्रकाशन जगत की प्रमुख घटना थी । इसके बाद जब टोनी ब्लेयर की आत्मकथा - अ जर्नी -प्रकाशित हुई तो पाठकों ने उसे हाथों हाथ लिया और प्रकाशन के चार हफ्तों के अंदर उसके छह रिप्रिंट करने पड़े और देखते देखते एक लाख से ज्यादा प्रतियां बिक गई । लेकिन यहां एक बात गौर करने की है कि इस किताब के छपने से पहले उत्सुकता का एक वातावरण तैयार किया गया और प्रकाशक या फिर लेखक के रणनीतिकारों ने इस आत्मकथा के रसभरे प्रसंगों के चुनिंदा अंश लीक किए वह भी जोरदार बिक्री का आधार बना । टोनी ब्लेयर को केंद्र में रखकर पहले भी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं । टोनी की पत्नी चेरी ब्लेयर की आत्मकथा तो पूरे तौर पर टोनी के इर्द-गिर्द ही घूमती है और उनकी जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं को उद्गाटित करती है । इसके अलावा उनके सहयोगी एल्सटर कैंपबेल की भी किताब आई । उनके दूसरे सहयोगी पीटर मैंडलसन की किताब - द थर्ड मैन, लाइफ एट द हर्ट ऑफ न्यू लेबर - तो कई हफ्तों तक ब्रिटेन के बेस्ट सेलर की सूची में शीर्ष पर रहकर लोकप्रियता और चर्चा दोनों हासिल कर चुका था । सिर्फ राजनीतिक ही नहीं बल्कि टोनी और चेरी के वयक्तिगत और अंतरंग संबंधों का भी पहले खुलासा हो चुका है । जब चेरी और टोनी क्वीन के स्कॉटिश कैसल, बालमोर में छुट्टियां बिताने जा रहे थे तो चेरी वहां गर्भ निरोधक नहीं ले जा सकी क्योंकि उसे इस बात की शर्मिंदगी थी नौकर-चाकर इस तरह की चीजें उसके सामान में कैसे रखेंगे । नतीजा यह हुआ कि बालमोर में चेरी के गर्भ में उनकी चौथी संतान आ गई । इस तरह के कई और प्रसंग पहले से ज्ञात हैं लेकिन टोनी के रणनीतिकारों ने इस किताब को इस तरह से प्रचारित किया कि बाजार ने उसे हाथों-हाथ लिया । हिंदी के लेखकों और प्रकाशकों को इससे सीख लेनी चाहिए ।
तकरीबन सात सौ पन्नों की इस आत्मकथा में टोनी ने अपनी राजनीति में प्रवेश से लेकर अपने समकालीन विश्व राजनेताओं के साथ अपने संबंधों का भी खुलासा किया है । इसके अलावा टोनी ने एक पूरा अध्याय ब्रिटेन की अपू्रव सुंदरी प्रिंसेस डायना पर भी लिखा है । डायना पर लिखे अध्याय में टोनी ने कहा है कि डायना बेहद आकर्षक थी । टोनी ने खुद को डायना का जबरदस्त प्रशंसक बताया है । इस अध्याय में टोनी और डायना की साथ की गई भारत(कोलकाता), सउदी अरब, इटली आदि की यात्रा का उल्लेख भी है । टोनी लिखते हैं- डायना एक आयकॉन थी और संभवत विश्व की सबसे ज्यादा प्रसिद्ध महिला थी जिसके सबसे ज्यादा फोटोग्राफ खींचे गए थे । वह अपने समय की एक ऐसी खूबसबरत महिला थी जो अपने संपर्क में आनेवाले लोगों पर अपने वयक्तित्व की अमिट छाप छोड़ती थी । पेरिस में सड़क हादसे में डायना की मृत्यु के बाद देश में उपजे हालात और अपनी मनस्थिति का भी विवरण पेश किया है । दरअसल टोनी ने अपनी इस आत्मकथा को कालक्रम के हिसाब से नहीं लिखा है, उन्होंने हर अध्याय को एक थीम दिया है, नतीजा यह हुआ कि पूरे किताब में एक भ्रम की स्थिति बनती नजर आती है । सांप-सीढ़ी के खेल की तरह संस्मरण भी भटकती नजर आती है । इसके अलावा टोनी की जो भाषा है वह भी आकर्षक नहीं है । सामान्य बोलचाल की भाषा को उठाकर टोनी ने लिख दिया है इसको लेकर पश्चिम के विद्वानों ने उनकी खूब लानत-मलामत की है । चार्ल्स मूर ने कहा कि यह किताब बेहद अनाकर्षक ढंग से लिखी गई है । उसमें ऐसे वाक्यों की भरमार है जिसमें अंग्रेजी के सामान्य व्याकरण का भी पालन नहीं करती है । ऐसे जुमलों का का प्रयोग किया गया है जो सुनने में तो बेहतर लगते हैं लेकिन छपकर बेहद हास्यास्पद ।
टोनी ब्लेयर और उनके सहयोगी गॉर्जन ब्राउन के बीच के संबंधों को लेकर बहुत ज्यादा लिखा और कहा जा चुका है । अपने और अपने सहयोगी के बीच के संबंधों पर टोनी ने विस्तार से प्रकाश डाला है और कहीं-कहीं दकियानूसी कहकर ब्राउन का मजाक भी उड़ाया है । टोनी के कार्यकाल में उनका सबसे विवादास्पद निर्णय रहा इराक पर हमले के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाले 34 देशों के गठबंधन को समर्थन देना । टोनी ब्लेयर के लिए इस गठबंधन से दूर रहना आसान था । उस वक्त के अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने टोनी को कहा भी था कि वो लंदन की मजबूरी समझ सकते हैं । टोनी ब्लेयर के सामने अपने पू्र्ववर्ती प्रधानमंत्री हेरॉल्ड विल्सन का उदाहरण भी था जिसने 1964 में वियतनाम युद्ध में अमेरिका को ब्रिटेन का समर्थन देने से इंकार कर दिया था । लेकिन ब्लेयर ने लिखा है कि उन्हें यह लगा कि इराक में बाथ पार्टी की ज्यादतियों का अंत होना चाहिए इस वजह से उन्होंने अमेरिका का समर्थन किया । इस किताब के बाद टोनी के कई आलोचकों ने उनपर जमकर हमले किए । उनका तर्क है कि जब ब्रिटेन के इराक पर हमले में अमेरिका का साथ देने की जांच की जा रही हो तो इस बीच उन स्थितियों के खुलासे का कोई अर्थ नहीं है ।
इस किताब के आखिरी पन्नों पर ब्लेयर ने लिखा है - मेरी हमेशा से राजनीति की तुलना में धर्म में ज्यादा रुचि रही है । इस एक वाक्य के अलावा इस पूरी किताब में धर्म या फिर धर्म के बारे में ब्रिटेन के पू्र्व प्रधानमंत्री ने ना तो कुछ लिखा है और ना ही यह बताया है कि उनके हर दिन के फैसलों और बड़े रणनीतिक निर्णयों को धर्म कैसे प्रभावित करता है । जो वयक्ति यह कह रहा हो कि उसकी धर्म में राजनीति से ज्यादा रुचि हो उसकी जीवन यात्रा में धर्म का उल्लेख ना मिलना हैरान करनेवाला है । इसी तरह से टोनी ने अपनी इस किताब में तेरह जगहों पर भारत का उल्लेख किया है लेकिन कहीं भी गंभीरता से कुछ भी नहीं लिखा है, लगता है कि टोनी के एजेंडे पर भारत था ही नहीं । लेकिन जहां लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परंपराओं की बात आती हो तो टोनी भारत का उदाहरण देते हुए कहते हैं - लोकतंत्र सबसे बेहतर शासन पद्धति है और भारत का इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है जहां सर्वोत्तम रूप से लोकतंत्र कायम है । इस तरह की टिप्पणियों से टोनी ब्लेयर की जर्नी की गंभीरता खत्म होती है । पूरी किताब को पढ़ने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि टोनी ब्लेयर की यह आत्मकथा दरअसल ब्रिटेन के उनके प्रधानमंत्रित्व काल का दस्तावेजीकरण है । लेकिन इस दस्तावेज में टोनी ब्लेयर ने अपने राजनीतिक बदमाशियों का जो जिक्र किया है उसकी वजह से इस भारी भरकम किताब में थोड़ी रोचकता और पठनीयता बनी रहती है ।

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