tag:blogger.com,1999:blog-9085022637942949290.post3568891563064952771..comments2024-03-26T08:08:47.284-07:00Comments on हाहाकार: इवेंट मैनेजमेंट कंपनी बनती सांस्कृतिक संस्थाएंअनंत विजयhttp://www.blogger.com/profile/04532945027526708213noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-9085022637942949290.post-86534440467859563992017-08-04T20:51:14.146-07:002017-08-04T20:51:14.146-07:00चिंता वाजिब है।वामपंथ का आतंक तो कभी भी हमारी संस्...चिंता वाजिब है।वामपंथ का आतंक तो कभी भी हमारी संस्कृति से हमें जुड़ने नहीं देगा लेकिन मुझे ऐसा लगता है संस्कृति के तथ्यों को यदि सच्चाई से प्रस्तुत किया जाए तो व्यापक समर्थन मिलेगा और ऐसे संस्थानों की साख भी बढ़ेगी। बहुतेरे लोग ये मानते हैं कि वामपंथ में खोट है। इस ज़रूरी लेख के लिए बधाई।प्रज्ञा पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/03650185899194059577noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9085022637942949290.post-2436348335466957972017-07-29T20:27:44.623-07:002017-07-29T20:27:44.623-07:00इन संस्थाओं को न तो शासन का कोई भय होना चाहिए और न...इन संस्थाओं को न तो शासन का कोई भय होना चाहिए और न किसी दूसरे विचारधारा वालों से । यह खुले विमर्श का मंच होना चाहिए । किसी आयातित विचारधारा से अपने वांग्मय को हीन समझने की भी जरुरत नहीं है । हमारे उपनिषदों में ऐसी शाश्वत वैचारिक ऊर्जा है जो सिर्फ बाह्य ही नहीं आन्तरिक क्रान्ति का सूत्रधार बन सकता है । जरुरत है कि इसकी टीका तो सही ढंग से हो ही प्रस्तुति भी सही हो । हमारे प्रकाशन ( खासकर धर्मग्रन्थों के ) गीताप्रेस शैली से ऊपर नहीं उठ सके हैं । पीपुल्स पब्लिशिंग हाऊस , मास्को के प्रकाशन इसलिए भी इतने लोगों तक पहुँचे कि उनकी प्रस्तुति पहुँचने लायक थी । हमारे देश में सबसे बड़ी विडम्बना है कि बिन पढ़े-समझे हम वेद , उपनिषद आदि ग्रन्थों की आलोचना करने लगते हैं । Ramdeo Singhhttps://www.blogger.com/profile/00189418822330653727noreply@blogger.com