tag:blogger.com,1999:blog-9085022637942949290.post7570448911794115215..comments2024-03-26T08:08:47.284-07:00Comments on हाहाकार: चलता हूं दोस्त...देख लेनाअनंत विजयhttp://www.blogger.com/profile/04532945027526708213noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-9085022637942949290.post-14151411955786504592009-08-13T09:38:49.491-07:002009-08-13T09:38:49.491-07:00इस पूरे लेख में "धर्म के नाम पर हो रहे इस कर्...इस पूरे लेख में "धर्म के नाम पर हो रहे इस कर्मकांड ... आस्था जरा कम हो जाती है" के 172 शब्द पढ़कर विश्वास नहीं हुआ कि एक संवदनशील संस्मरण को तीखे, भद्दे और नितांत संवदनहीन रूप में हिंन्दू-विरोध के राजनीतिक फैशन की सेवा में लगा दिया जाएगा। यदि यह टिप्पणी सही न लगे तो कृपया geetashree की प्रतिक्रिया पर ध्यान दें। पूरे लेख से उन्होंने क्या लिया? शैलेंद्र जी पर कुछ नहीं, 'पाखंडियों' पर। <br />पर क्या वह पाखंड है? हम आप सभी वही करते हैं, करेंगे, जो शैलेंद्र जी के रिश्तेदारों ने किया। बच्चे को बहुत बातें सिखाई जाती हैं। सभी उसे प्रिय नहीं होतीं, पर वह सदैव अत्याचार नहीं होता। शैलेंद्र जी के रिश्तेदारों को पाखंडी, अनपढ़ कहकर जो अपमान किया गया, इस का न कोई आधार है, न कोई प्रसंग था। <br />हिन्दू परिवारों के बुद्धिजीवी हिन्दू रीति, विचार, प्रतीकों पर जिस मतिहीनता, नियमितता से कीचड़ उछालना अपनी बौद्धिकता का प्रमाण समझते हैं वह और किसी धर्म समुदाय में नहीं देखी जाती। रूसी, चीनी, जापानी, सऊदी, अमेरिकी और इजराइली - सभी से इस विंदु पर तुलना कर लीजिए। तो क्या वे सभी पिछडे, दकियानूस, जड़ हैं और हमी एक पहुँचे हुए? नहीं। यह भी हम आप जानते हैं। <br />तब यह हमारी कौन सी प्रवृत्ति है? 'धार्मिक पाखंड'वाले विषय पर हममें गंभीर विचारशीलता, सहजता, समदर्शिता और अनुपातबोध क्यों नहीं है? कभी इस पर गंभीरता से विचार कीजिए। लिखने, बोलने की अधीरता मत दिखाइए। उक्त प्रश्नों के उत्तर से मन ही मन स्वयं को संतुष्ट कीजिए।Shankar Sharanhttps://www.blogger.com/profile/05302753258206444854noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9085022637942949290.post-62187149419571636542009-06-26T05:39:35.718-07:002009-06-26T05:39:35.718-07:00आपका संस्मरण पाखंडियो की पोल खोल रहा है. आपने मार्...आपका संस्मरण पाखंडियो की पोल खोल रहा है. आपने मार्मिक प्रसंग उठाए है.आमतौर पर कोई इन बातो को देखता नहीं..एक बच्चे के साथ ये सब घटा, कैसे देखा गया. कलेजा फटा नहीं..उफ..मुझे शैलेंद्र रचना याद आ रही है..मत पूछो, इस शहर में आकर कैसा लगता है, सांसों तक पर जाने किसका पहरा लगता है.geetashreehttp://hamaranukkad.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9085022637942949290.post-44348632955786394712009-06-25T18:34:16.812-07:002009-06-25T18:34:16.812-07:00अच्छा संस्मरण!!अच्छा संस्मरण!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com