बाबा
रामदेव जो हजारों भक्तों के समर्थन का दावा करते हैं । देशभर में लाखों लोगों को योग
सिखा चुके हैं । आयुर्वेद का उनका लंबा चौड़ा कारोबार है । लेकिन इस योग गुरू ने ठानी
थी काला धन के खिलाफ मुहिम चलाने की । सालभर पहले भी एक आंदोलन किया था जिसकी परिणिति
हुई थी दिल्ली के रामलीला मैदान में जहां अनशन पर दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई की थी ।
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उस कार्रवाई के लिए पुलिस के साथ साथ रामदेव को भी जिम्मेदार
माना था । बाबा रामदेव इस वक्त एक बार फिर से काले धन के खिलाफ देशव्यापी मुहिम को
लेकर यात्रा पर हैं । जनलोकपाल कीमांग को लेकर सरकार को हिला देने वाले अन्ना हजारे
एक बार फिर से महाराष्ट्र में मजबूत लोकायुक्त की मांग को लेकर पूरे सूबे का दौरा कर
रहे हैं । लेकिन दोनों के दौरे के पहले दिल्ली में एक अहम घटना हुई । अन्ना हजारे और
रामदेव ने एक साझा प्रेस कांफ्रेस कर एक बार फिर से साथ आने का ऐलान किया था । ऐलान
के फौरन बाद ही टीम अन्ना के अहम सदस्य और मास्टर स्ट्रैजिस्ट अरविंद केजरीवाल ने एक
चतुर राजनेता की तरह सफाई दी थी कि यह साथ सिर्फ मुद्दों का है और वो भ्रष्टाचार और
कालेधन के मुद्दे पर साझा आंदोलन कर रहे हैं । अरविंद की बातों को मान भी लिया जाए
कि सिर्फ मुद्दों के आधार पर अन्ना और रामदेव के बीच समझौता हुआ है तो एक बड़ा सवाल
खड़ा हो जाता है । कल को सुरेश कलमाड़ी, ए राजा, बंगारू लक्ष्मण और सुखराम भ्रष्टाचार
विरोधी मोर्चा बनाते हैं तो क्या टीम अन्ना उनके साथ भी समझौता कल लेगी और उन्हें एक
साथ भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चलाने में कोई गुरेज नहीं होगा ।
रामदेव
और उनके ट्रस्ट पर पर सैकड़ों एकड़ जमीन कब्जा करने से लेकर और भी कई संगीन इल्जाम
हैं । कुछ दिनों पहले उनकी दवाइयों को लेकर जा रहे ट्रकों की जब्ती की खबर आई थी ।उनके
बेहद करीबी सहयोगी बालकृष्ण पर फर्जी पासपोर्ट का केस चल रहा है । लेकिन टीम अन्ना
इन रामदेव और उनके सहयोगियों पर लगे इन तमाम आरोपों को अलग हटाकर रामदेव के साथ हाथ
मिला रही है । दरअसल अगर हम इसकी पड़ताल करें तो जो तस्वीर सामने आती है उस पर शक के
गर्दोगुबार मौजूद हैं।
रामलीला
मैदान में पिछले साल जून में बाबा रामदेव के अनशन के दौरान की उनकी गतिविधियों ने उनकी
विश्वसनीयता को संदिग्ध कर दिया था । एक तरफ वो भ्रष्टाचाकर के खिलाफ हुंकार भर रहे
थे तो दूसरी तरफ परदे के पीछे मनमोहन सरकार के मंत्रियों से डील कर रहे थे । अनशन के
दौरान ही सरकार ने रामदेव की पोल खोल दी थी । उसके बाद जब रामलीला मैदान में पुलिस
ने लाठीचार्ज किया था तो महिलाओं के वेष में रामदेव के भागने को लेकर भी रामदेव की
खासी फजीहत हुई थी । महिला के वेष में अनशन छोड़कर भागने का मलाल रामदेव को इतना है
कि जब भिंड की एक सभा में एक शख्स ने उनसे इस बाबत सवाल पूछा तो उनके समर्थकों ने रामदेव
के सामने उसकी जमकर पिटाई कर दी । वो शख्स पिटता रहा और सत्य अहिंसा की बात करनेवाले
बाबा खामोश रहे । इन फजीहतों के बाद भी उनपर कई संगीन इल्जाम लगे जिसने बाबा की छवि
को तार-तार कर दिया । वो हरिद्वार के अपने आश्रम में अनशन पर भी बैठे लेकिन जब कहीं
से किसी ने नोटिस नहीं लिया तो आनन-फानन में श्री श्री रविशंकर से अनशन तुड़वाया गया
। नतीजा यह हुआ कि रामदेव के सामने विश्वसनीयता का एक बडा़ संकट खड़ा हो गया और वो
इससे निकलने का रास्ता तलाशने लगे ।
उधर
अन्ना हजारे भी अपने घटते जनसमर्थन और उनकी टीम मीडिया में तवज्जो नहीं मिलने से बेहद
परेशान थी । पिछले साल दिसंबर में जब मुंबई में अन्ना हजारे ने अनशन किया तो वहां लोगों
की भीड़ नहीं आई । चैनलों पर कवरेज के तमाम इंतजाम धरे रह गए क्योंकि मैदान खाली था।
अचानक से माहौल बना कि अन्ना की तबियत खराब हो रही है और उस वजह से वो अनशन तोड़ेंगे
। कई लोगों ने अनशन खत्म करने के फैसले के पीछे अपेक्षित जनसमर्थन नहीं मिलना बताया
था । अनशन खत्म होने के बाद जब पत्रकारों से बातचीत हो रही थी तो उस वक्त बीजेपी से
रिश्तों को लेकर पूछे सवाल पर अन्ना का उठकर चले जाना और अरविंद केजरीवाल का साफ जबाव
नहीं देना भी पूरे आंदोलन को सवालों के चक्रव्यूह में फंसा गया । जिससे निकल पाना टीम
अन्ना के लिए आसान नहीं था । नतीजा यह हुआ कि हर वक्त टीवी कैमरे और पत्रकारों से से
घिरी रहनेवाली टीम अन्ना को भाव मिलना बंद हो गया । उनका कहा सुर्खियों से गायब होने
लगा । मुंबई में बीजेपी पर टीम अन्ना के लिए स्टैंड से उनकी विश्वसनीयता और साख दोनों
कम हो गई । बाद में अरविंद केजरीवाल ने प्रचार की खोई जमीन हासिल करने के लिए संसादों
के खिलाफ बयान दिया जिससे उन्हें संजीवनी मिली । अब बाबा रामदेव की तरह टीम अन्ना भी
नई जमीन की संभावना तलाशने की जुगत में लग गई । सारी संभावनाओं पर माथापच्ची और विकल्पों
पर विचार करने के बाद टीम अन्ना को बाबा रामदेव में ही फिर से समझौते की संभावना नजर
आई और तय हुआ कि बाबा रामदेव के साथ मिलकर काम किया जाए । इस पर टीम अन्ना में मतभेद
रहा । टीम अन्ना के कुछ लोग रामदेव की मह्त्वाकांक्षा को इस समझौते में बाधा मानते
थे । खैर समझौता हुआ और कहना ना होगा कि यह समझौता मजबूरी में किया गया क्योंकि दोनों
के सामने सरवाइवल का संकट था । टीम अन्ना को रामदेव के कार्यकर्ताओं की जरूरत थी और
रामदेव को टीम अन्ना की बची खुची विश्वसनीयता की । मजबूरी में दोनों एक साथ तो आ गए
लेकिन दोनों को इस समझौते से फायदा होगा यह तो भविष्य के गर्भ में हैं । मजबूरी में
किए गए समझौतों में मन नहीं मिला करते और इस तरह के आंदोलन में अगर शीर्ष नेतृत्व का
मन नहीं मिला तो दोनों पक्ष बहुत आगे नहीं जा सकते हैं । फौरी फायदा मुमकिन है लेकिन
दीर्घकालीन लक्ष्य की प्राप्ति नहीं सकती है ।
जब
यह कहा जा रहा है कि टीम अन्ना और बाबा रामदेव के बीच समझौते में मन नहीं मिले हैं
और मजबूरी की वजह से क्षणिक फायदे के लिए किया गया समझौता है तो उसके पीछे ऐतिहासिक
वजहें हैं । दो हजार दस के नवंबर में जब अरविंद केजरीवाल और कुछ अन्य आरटीआई कार्यकर्ता
सुरेश कलमाडी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने की सोच रहे थे तो किरण बेदी ने रामदेव का
नाम सुझाया था । रामदेव को इस वजह से साथ लिया गया कि आंदोलन को एक चेहरा मिले । बाद
में जब रामदेव को लगा कि अरविंद और उनकी टीम उनका इस्तेमाल कर रही है तो उन्होंने किनारा
कर लिया । बाद में अरविंद की टीम ने अन्ना हजारे को खोज निकाला । उसके बाद की घटनाएं
तो इतिहास बन गई हैं । रामदेव के मन में टीस बरकरार रही और वो अन्ना के जंतर मंतर के
पहले अनशन में शुरू में शरीक नहीं हुए । जब उन्हें लगा कि हजारे पूरा मजमा अन्ना लूट
रहे हैं तो हारे को हरिनाम की तर्ज पर वहां पहुंचे । लेकिन मन में जो टीस थी उसकी परिणति
रामलीला मैदान के जवाबी अनशन के रूप में सामने आया । लेकिन वहां एक नया लेकिन मनोरंजक
इतिहास बना । आजाद भारत के इतिहास में अनशन को छोड़कर भागने की यह अपने तरह की पहली
और अनूठी घटना थी जिसे लोगों ने टीवी पर रियलिटी शो की तरह देखा । आनेवाले दिनों में
यह देखना दिलचस्प होगा कि मजबूरी में साथ आए ये दोनों दिग्गज कहां तक और कितनी दूर
साथ चल पाते हैं ।
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