Sunday, April 19, 2015

अलविदा गुंटर ग्रास

यह साल जब शुरू हुआ था तब किसी को अंदाज नहीं था कि इसको साहित्यक क्षति के साल के तौर पर याद किया जाएगा ।  हिंदी साहित्य के साथ साथ विश्व साहित्य के कई मूर्धन्य हस्तियों के निधन से शून्य लगातार बड़ा होता जा रहा है । विजय मोहन सिंह, कैलाश वाजपेयी, अवध नारायण मुद्गल के जाने से हिंदी साहित्य में बड़ा सन्नाटा पैदा हो गया है । उसी तरह से नोबेल पुरस्कार विजेता जर्मनी के लेखक गुंटर ग्रास भी सतासी साल की उम्र में दुनिया छोड़ गए । मृत्यु और उसके बाद का दुख या शोक हर जगह समान होता है , लेकिन हिंदी साहित्य या हिंदी समाज में लंबे समय से परंपरा चली आ रही है कि मृत्यु के बाद हम लेखक को महान सिद्ध करते रहे हैं । उसकी नाकामियां या कमजोरियों पर लिखना गलत माना जाता है । लिखते भी नहीं है । इस मामले में पश्चिमी भाषाओं के साहित्य और हिंदी साहित्य में फर्क है खासकर अंग्रेजी, जर्मन और फ्रेंच में जहां साहित्यकारों के दिवगंत होने पर उनका मूल्यांकन किया जाता है । उनकी कमजोरियों और गलतियों का जिक्र भी ऑबिच्युरी में लिखा जाता है । अभी हाल ही में जर्मनी के मशहूर लेखक गुटंकर ग्रास के निधन के बाद उनपर दुनिया में उनपर कई श्रद्धांजलि लेख छपे । उनमें यह साफ तौर पर रेखांकित किया जा सकता है । गुंटर ग्रास जर्मनी के उन लेखकों में थे जिनके लेखन में नाजीवाद के दौर की ज्यादतियां लगातार उपस्थित है । माना जाता है है कि दूसरे विश्व युद्द के बाद के लेखन को गुंटर ग्रास ने अपनी लेखनी से गहरे प्रभावित किया और कांलातर में नाजियों की ज्यादतियों का पूरा इतिहास ही गुंटर ग्रास के लेखन के इर्द गिर्द घूमता रहा । अपने शोक संदेश में जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्कल ने भी यही लिखा कि युद्ध के बाद के जर्मनी के इतिहास और संस्कृति को गुंटर ग्रास ने अपनी लेखनी से आकार दिया। किसी भी लेखक के लिए ये बहुत बड़ी उपलब्धि होती है कि वो अपने समाज को अपने देश को, अपने देश के इतिहास को प्रभावित करे ।
उन्नीस सौ उनसठ में प्रकाशित अपने पहले उपन्यास - द टिन ड्रम- में उन्होंने जिस तरह से हिटलर की क्रूरता को उजागर किया, उसका जो नैरेटिव रचा या फिर जिस तरह से पाठकों को उस दौरे से रूबरू कराते हैं, वह अद्धभुत है । यह अपने कथानाक से पाठकों को शॉक देता है । यह उपन्यास उस स्थापित मान्यता का निषेध भी करता है कि नाजी कैंपों में क्रूरता चंद फासिस्टों का फितूर था । इस उपन्यास के चरित्रों में और गुटंर ग्रास के चरित्र और परिवेश में काफी समानता देखी जा सकती है । उपन्यास का केंद्रीय पात्र आस्कर, उसका पिता नाजी पार्टी का सदस्य । फिर उसके बच्चे के साथ काल का ऐसा चक्र घूमता है कि वो अकेला होता है और उसको तोहफे में एक ड्रम मिलता है । उस ड्रम को तोहफे में पाकर उसकी इच्छा होती है कि उसकी उम्र ठहर जाए और वो बड़ा ना हो । उस बच्चे की मानसिकता के आधार पर, उसके नजरिए से गुंटर ग्रास पूरा एक परिदृश्य रचते हैं । गुंटर ग्रास का ये उपन्यास काफी लोकप्रय हुआ था और उसपर वोल्कर ने उन्नीस सौ उनासी में एक फिल्म भी बनाई थी जिसको उन्नीस सौ अस्सी में ऑस्कर पुरस्कार भी मिला था । इस उपन्यास की लोक्रियता ने गुंटर ग्रास को स्थापित कर दिया । उसके बाद उन्होंने उन्नीस सौ इकसठ में - कैट एंड माउस और उन्नीस सौ तिरसठ में- डॉग इयर्स लिखा । इस उपन्यास त्रयी से गुंटर ग्रास, साहित्य के वैश्विक परिदृश्य पर लगभग छा गए । उन्नीस सौ निन्यानबे में गुंटर ग्रास को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला । जब उनको नोबेल पुरस्कार मिला तो उनकी प्रशस्ति में स्वीडिश अकादमी ने कहा था कि अपने उपन्यास द टिन ड्रम में गुंटर ग्रास ने समकालीन इतिहास को नए सिरे से देखने और परखने का साहस दिखाया । उन्होंने जर्मनी के इतिहास में हाशिए पर धकेल दिए गए शख्सियतों को, भुला दिए गए नायकों को और नाजियों के दौर में पीड़ितों को केंद्र में लाने का साहस दिखाया ।
गुंटर ग्रास तीन बार पूरे विश्व में चर्चित और विवादित हुए । उनपर लंबे लंबे लेख लिखे गए । उनके पक्ष और विपक्ष में पूरी दुनिया का साहित्य जगत बंट गया था । पहली बार उनको लेकर बवाल तब मचा जब उन्होंने दो हजार छह में लिखे अपने एक संस्मरण में यह माना था कि द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में उन्होंने हिटलर की सुरक्षा यूनिट में कुछ दिनों तक काम किया था । इस लेख के छपते ही उनपर हमले तेज हो गए थे और यह कहा जाने लगा था कि उनका लेखन गढ़ा हुआ और काल्पनिक है । आरोप तो यह भी लगे कि जिसने हिटलर के लिए काम किया उसको नाजियों की ज्यादतियों पर लिखने का हक कैसे । कुछ आलोचकों ने तो उनके लेखन तक को खोखला करार दे दिया । उन्होनें अपना यह राज अपने सीने में लगभग छह दशक तक छुपाए रखा । उनपर तो यह आरोप भी लगा कि जब उनको उन्नीस सौ निन्यानवे में नोबेल पुरस्कार मिल गया तब जाकर उन्होंने ये ऱाज खोला ताकि उनके साहित्यक करियर पर कोई असर नहीं पड़ सके । गुंटर ग्रास ने बहुत कम समय के लिए हिटलर के बदनाम सुरक्षा दस्ते में काम किया लेकिन जब उन्होंने इसका खुलासा किया तो वो जीवन पर्यंत उनके साथ चिपका रहा । अपने खुलासे में उन्होंने बताया कि उन्नीस सौ पैंतालीस में जख्मी होने के बाद अमेरिकी सेना ने उनको बंदी बना लिया था और लगभग साल भर उनको कैंप में रखा गया था । उसके बाद दूसरी बार विवाद के केंद्र में वो दो हजार बारह में आए जब उन्होंने इजरायल को केंद्र में रखकर एक कविता लिखी व्हाट मस्ट बी सेड । इस कविता में गुंटर ग्रास ने सीधे तौर पर इजरायल के परमाणु कार्यक्रम को निशाना बनाया था । उन्होंने इस कविता में इजरायल के परमाणु कार्यक्रम को विश्व शांति के लिए खतरा बताया था । उनकी यह कविता इतनी चर्चित हुई कि इजरायल ने गुंटर ग्रास के वहां आने पर पाबंदी लगा दी थी । इन दो घटनाओं के अलावा उन्नीस सौ निन्यानबे में पूरी दुनिया ने उनको तब जाना जब उनको साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला ।

सोलह अक्तूबर उन्नीस सौ सत्ताइस को पोलैंड के समुद्री शहर में एक दुकानदार के परिवार में गुंटर ग्रास पैदा हुए थे । जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तो वो बच्चे थे । जब हिटर ने पोलैंड पर हमला किया तो वो लगभग तेरह साल के थे । उन्होंने दो हजार छह में प्रकाशित अपने संस्मरण में पीलिंग द अनियन में उस दौर को याद किया है । उपन्यासों के अलावा गुंटर ग्रास ने बेहतरीन संस्मरण लिखे हैं । गुंटर ग्रास सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के सदस्य भी रहे और कई सालों तक सक्रिय राजनीति भी की । उन्होंने अपने लेखऩ से एर पूरी की पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया । माना यह जाता है कि सलमान रश्दी का उपन्यास मिडनाइट चिल्ड्रन पर गुंटर ग्रास का जबरदस्त प्रभाव है । घनी मूंछों के नीचे होठ में दबे पाइप से निकलता धुंआ बहुधा उनकी शक्ल को धुंधला कर देता था लेकिन काल के क्रूर हाथों ने उस चेहरे को ही हमसे छीन लिया । काल रचनाकार का जीवन तो ले सकता हे लेकिन उसके लिखे को छीनने की उसके पास ना तो युक्ति है और ना ही सामर्थ्य ।    

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