Saturday, December 2, 2023

विखंडनवादियों का नया राजनीतिक पैंतरा


ऐसा बताया गया कि केरल के मुख्यमंत्री कामरेड पिनयारी विजयन ने केरल में आयोजित कटिंग साउथ नाम से आयोजित कार्यक्रम का न केवल शुभारंभ किया बल्कि इसमें भाषण भी दिया। ये कहना था प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे नंदकुमार का । प्रज्ञा प्रवाह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित सांस्कृतिक संगठन है। वे लखनऊ में आयोजित दैनिक जागरण संवादी के पहले दिन के एक सत्र में शामिल हो रहे थे। उन्होंने प्रश्न उठाया कि किस साउथ को कहां से काटना चाहते हैं कटिंग साऊथ वाले ? क्या दक्षिण भारत को उत्तर भारत से काटना चाहते हैं? कटिंग साउथ के नाम से जो आयोजन हुआ उसको ग्लोबल साउथ से जोड़ने का प्रयास अवश्य किया गया लेकिन उसकी प्रासंगिकता स्थापित नहीं हो पाई। जे नंदकुमार ने अपनी टिप्पणी में इसको विखंडनवादी कदम करार दिया और जोर देकर कहा कि इस तरह के नाम और काम से राष्ट्र में विखंडनवादी प्रवृतियों को बल मिलता है। उन्होंने इसको वामपंथी सोच से जोड़कर भी देखा और कहा कि वामपंथी विचारधारा राष्ट्र में विश्वास नहीं करती है इसलिए इसको मानने वाले इस तरह के कार्य करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के सोच का निषेध करने के लिए और राष्ट्रवादी ताकतों को बल प्रदान के लिए दिल्ली और दक्षिण भारत के कई शहरों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ब्रिजिंग साउथ के नाम से आयोजन करेगी। ब्रिजिंग साउथ के नाम से आयोजित होने वाले इन कार्यक्रमों में केंद्रीय मंत्रियों के शामिल होने के संकेत भी दिए गए। 

कटिंग साउथ मीडिया के नाम पर मंथन का एक कार्यक्रम है लेकिन अगर सूक्ष्मता से विचार करें तो इसके पीछे का जो सोच परिलक्षित होता है वो विभाजनकारी है। कहा भी जाता है कि कोई कार्य या कार्यक्रम अपने नाम से अपने जनता के बीच एक संदेश देने का प्रयत्न करती है। एक ऐसा संदेश जिससे जनमानस प्रभावित हो सके। ये दोनों कार्यक्रमों के नाम से ही स्पष्ट है। दोनों के संदेश भी स्पष्ट हैं। आज जब भारत में उत्तर और दक्षिण का भेद लगभग मिट सा गया है तो कुछ राजनीति दल और कई सांस्कृतिक संगठन इस भेद की रेखा को फिर से उभारना चाहते हैं। कभी भाषा के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर कभी जाति के नाम पर तो कभी किसी अन्य बहाने से। कभी सनातन के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करके तो कभी हिंदू देवी देवताओं के नाम पर अनर्गल प्रलाप करके। वैचारिक मतभेद अपनी जगह हो सकते हैं, होने भी चाहिए लेकिन जब बात देश की हो, देश की एकता और अखंडता की हो, देश की प्रगति की हो या फिर देश को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजबूती प्रदान करने की हो तो राजनीति को और व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर देश के लिए सोचने और एकमत रखने की अपेक्षा की जाती है। देश की एकता और अखंडता के प्रश्न पर राजनीति करना या उसको सत्ता हासिल करने का हथियार बनाना अनुचित है। यह इस कारण कह रहा हूं क्योंकि अभी पांच राज्यों के विधानसभा के चुनाव हुए हैं और आगामी छह महीने में लोकसभा के चुनाव होने हैं। जब जब कोई महत्वपूर्ण चुनाव आते हैं तो इस तरह की विखडंनवादी ताकतें सक्रिय हो जाती हैं। 

आपको याद होगा कि जब 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव होनेवाले थे तो उसके पहले इस तरह का ही एक आयोजन किया गया था जिसका नाम था डिसमैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व। 2021 के उत्तरार्ध में अचानक तीन दिनों के आनलाइन सम्मेलन की घोषणा की गई थी। वेबसाइट बन गया था, ट्विटर (अब एक्स) अकाउंट पर पोस्ट होने लगे थे। उस कार्यक्रम में तब असहिष्णुता और पुरस्कार वापसी के प्रपंच में शामिल लोगों के नाम भी सामने आए थे। तब भी डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व का उद्देश्य भारतीय जनता पार्टी को नुकसान पहुंचाना था। कटिंग साउथ से भी कुछ इसी तरह की मंशा नजर आती है। वही लोग जिन्होंने देश में फर्जी तरीके से असहिष्णुता की बहस चलाई थी, पुरस्कार वापसी का प्रपंच रचा था, डिस्मैंटलिंग हिंदुत्व के साथ जुड़कर अपनी प्रासंगिकता तलाशी थी लगभग वही लोग कटिंग साउथ के साथ प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े हैं। डिसमैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व के आयोजकों को न तो हिंदुत्व का ज्ञान था और न ही इसकी व्याप्ति और उदारता का अनुमान। महात्मा गांधी ने काल्पनिक स्थिति पर लिखा है कि ‘यदि सारे उपनिषद् और हमारे सारे धर्मग्रंथ अचानक नष्ट हो जाएं और ईशोपवनिषद् का पहला श्लोक हिंदुओं की स्मृति मे रहे तो भी हिंदू धर्म सदा जीवित रहेगा।‘ गांधी ने संस्कृत में उस श्लोक को उद्धृत करते हुए उसका अर्थ भी बताया है। श्लोक के पहले हिस्से का अर्थ ये है कि ‘विश्व में हम जो कुछ देखते हैं, सबमें ईश्वर की सत्ता व्याप्त है।‘ दूसरे हिस्से के बारे में गांधी कहते हैं कि ‘इसका त्याग करो और इसका भोग करो।‘ और अंतिम हिस्से का अनुवाद इस तरह से है कि ‘किसी की संपत्ति को लोभ की दृष्टि से मत देखो।‘ गांधी के अनुसार ‘इस उपनिषद के शेष सभी मंत्र इस पहले मंत्र के भाष्य हैं या ये भी कहा जा सकता है कि उनमें इसी का पूरा अर्थ उद्घाटित करने का प्रयत्न किया है।‘ गांधी यहीं नहीं रुकते हैं और उससे आगे जाकर कहते हैं कि ‘जब मैं इस मंत्र को ध्यान में रखककर गीता का पाठ करता हूं तो मुझे लगता है कि गीता भी इसका ही भाष्य है।‘ और अंत में वो एक बेहद महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि ‘यह मंत्र समाजवादियों, साम्यवादियों, तत्वचिंतकों और अर्थशास्त्रियों सबका समाधान कर देता है। जो लोग हिंदू धर्म के अनुयायी नहीं हैं उनसे मैं ये कहने की धृष्टता करता हूं कि यह उन सबका भी समाधान करता है।‘  डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व के समय भी अपने लेख में गांधी को उद्धृत किया था। 

भारत चाहे उत्तर हो या दक्षिण कोई भूमि का टुकड़ा नहीं है कि उसके किसी हिस्से को किसी अन्य हिस्से से काटा जा सके। भारत एक अवधारणा है। एक ऐसी अवधारणा जिसमें अपने धर्म से, धर्मगुरुओं से, भगवान तक से प्रश्न पूछने की स्वतंत्रता है। अज्ञान में कुछ विदेशी विद्वान या वामपंथी सोच के लोग महाभारत की व्याख्या करते हुए कृष्ण को हिंसा के लिए उकसाने का दोषी करार देते हैं और कहते हैं कि अगर वो न होते तो महाभारत का युद्ध टल सकता था। अब अगर इस सोच को धारण करने वालों को कौन समझाए कि महाभारत को और कृष्ण को समझने के लिए समग्र दृष्टि का होना आवश्यक है। अगर अर्जुन युद्ध के लिए तैयार नहीं होते और कौरवों का शासन कायम होता तब क्या होता। कृष्ण को हिंसा के जिम्मेदार ठहरानेवालों को महाभारत के युद्ध का परिणाम भी देखना चाहिए था। लेकिन अच्छी अंग्रेजी में आधे अधूरे ज्ञान के आधार पर भारतीय पौराणिक ग्रंथों की व्याख्या करने से न तो भारताय ज्ञान परंपरा की व्याप्ति कम होगी और न ही उसका चरित्र बदलेगा। भारतीय समाज के अंदर ही खुद को सुधार करने की व्यवस्था है। यहां जब भी कुरीतियां बढ़ती हैं तो समाज और देश के अंदर से कोई न कोई सुधारक सामने आता है।

कटिंग साउथ की परिकल्पना करनेवालों और उसके माध्यम से परोक्ष रूप से राजनीति करने वालों को, भारतीय समाज को भारतीय लोकतंत्र को समझना होगा। वो अब इतना परिपक्व हो चुका है कि विखडंनवादी ताकतों की तत्काल पहचान करके उनके मंसूबों को नाकाम करता है। 2021 के बाद भी यही हुआ और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि 2024 के चुनाव में भी भारतीय जनता देशहित को समझेगी और उसके अनुसार ही अपने मतपत्र के जरिए उनका निषेध भी करेगी। 


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