भारत कथावाचकों का देश रहा है, इस बात की लंबे समय से चर्चा होती रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पिछले कार्यकाल में मन की बात कार्यक्रम में इस बात को रेखांकित भी किया था। मनोरंजन के विभिन्न प्लेटफार्म्स पर इस बात को कहा जाता रहा है। इस स्तंभ में भी इसकी चर्चा होती रही है। मुंबई के नीता मुकेश अंबानी कल्चरल सेंटर में 1 से 4 मई तक विश्व दृश्य श्रव्य और मनोरंजन शिखर सम्मेलन- वेव्स का आयोजन हुआ। इसके शुभारंभ के अवसर भी प्रधानमंत्री ने इस बात को दोहराया कि भारत कथावाचकों की भूमि रही है। उन्होंने कहा कि भारत न केवल एक अरब से अधिक आबादी का घर है, बल्कि एक अरब से अधिक कहानियों का भी घर है। देश के समृद्ध कलात्मक इतिहास का संदर्भ देते हुए उन्होंने याद दिलाया कि दो हज़ार साल पहले, भरत मुनि के नाट्य शास्त्र ने भावनाओं और मानवीय अनुभवों को आकार देने में कला की शक्ति पर बल दिया था। उन्होंने कहा कि सदियों पहले, कालिदास के अभिज्ञान-शाकुंतलम ने शास्त्रीय नाटक में एक नई दिशा प्रस्तुत की। प्रधानमंत्री ने भारत की गहरी सांस्कृतिक जड़ों को रेखांकित करते हुए कहा कि हर गली की एक कहानी है, हर पहाड़ का एक गीत है और हर नदी एक धुन गुनगुनाती है। उन्होंने कहा कि भारत के छह लाख गांवों में से प्रत्येक की अपनी लोक परंपराएं और अनूठी कहानी कहने की शैली है, जहां समुदाय लोकगीतों के माध्यम से अपने इतिहास को संरक्षित करते हैं। उन्होंने भारतीय संगीत के आध्यात्मिक महत्व का भी उल्लेख करते हुए कहा कि चाहे वह भजन हो, ग़ज़ल हो, शास्त्रीय रचनाएं हों या समकालीन धुनें हों, हर धुन में एक कहानी होती है और हर लय में एक आत्मा होती है। इस शिखर सम्मेलन में चार दिनों तक कई सत्रों में देश विदेश के फिल्मों, ब्राडिंग, मार्केटिंग,गेमिंग और एनिमेशन से जुड़े लोगों ने इन क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर उफलब्ध संभावनाओं पर चर्चा की। कई देशों के मंत्री भी इसमें शामिल हुए।
इस सम्मेलन के दौरान काफी बड़ी संख्या में लोग जुटे। इससे ये पता चलता है कि मनोरंजन जगत में लोगों की बहुत रुचि है। यहां गेमिंग और एनिमेशन से जुड़े युवाओं को प्रोत्साहित किया गया। मंच पर पुरस्कृत होनेवाले कटेंट क्रिएटर्स की औसत उम्र 25 वर्ष के आसपास लग रही थी। लगभग सभी युवा थे जिन्होंने बेहतर कटेंट क्रिएट किया। भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है तो सिर्फ पारपंरिक तरीके से विकास के रास्ते पर चलकर इस लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता है। इसके लिए गैर पारंपरिक क्षेत्रों से देश की आर्थिकी को मजबूती प्रदान करनेवाले और आय बढ़ाने के रास्ते खोजने होंगे। भारत में जिस तरह की कहानियों का भंडार है और उन कहानियों पर बेहतर कटेंट क्रिएट करने की प्रतिभा है उसका वैश्विक स्तर पर उपयोग करके देश की आय बढ़ाई जा सकती है। भारत में हर क्षेत्र में कितनी प्रतिभा है इसका आकलन सिलिकान वैली में कंप्यूटर साफ्टवेयर के क्षेत्र में कार्य कर रहे भारतीयों और उनकी उपल्बधियों को देखकर सहज ही किया जा सकता है। गेमिंग के बढ़ते हुए बाजार को ध्यान में रखते हुए उस दिशा में कार्य करना होगा। गेमिंग का वैश्विक बाजार बहुत बड़ा हो गया है। बड़ी बड़ी कंपनियां इसमें हजारों करोड़ रुपए का निवेश कर रही हैं। इस शिखर सम्मेलन के दौरान होने वाली चर्चाओं में ये बात स्पष्ट रूप से निकलकर आई कि भारत को इस क्षेत्र में मजबूती से स्थापित होने की आवश्यकता है। सरकार ने इस दिशा में पहल की है। इसका स्वागत अभिनेता आमिर खान जैसे लोगों ने भी किया। आमिर खान ने माना कि पहली बार किसी सरकार ने मनोरंजन जगत के लोगों से संवाद करने की पहल की है। उनके साथ बैठकर इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने की योजनों और संभावनों पर विचार किया है। वेव्स में दुनिया भर के क्रिएटर्स, स्टार्टअप्स, उद्योग प्रमुखों और नीति निर्माताओं को एक मंच पर लाकर मीडिया, मनोरंजन और डिजिटल नवाचार का वैश्विक केंद्र बनाना लक्ष्य है।
भारत की फिल्मों को साफ्ट पावर के तौर पर उपयोग करने की बात भी लंबे समय से होती रही है। मुझे याद आ रहा है 2012 का एक किस्सा। इस वर्ष जोहानिसबर्ग में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ था। मारीशस के तत्कालीन कला और संस्कृति मंत्री चुन्नी रामप्रकाश ने कहा था कि हिंदी के प्रचार प्रसार में फिल्में और टेलीविजन पर चलनेवाले सीरियल्स का बड़ा योगदान है। उन्होंने मंच से स्वीकार किया कि हिंदी फिल्मों और टीवी सीरियल्स के कारण ही उन्होंने हिंदी सीखी। अपने वक्तव्य में उन्होंने भारत में बनने वाले टीवी सीरियल्स के नाम भी लिए और कहा उनकी लोकप्रियता की वजह से विदेश में गैर हिंदी भाषी भी उसको देखते हैं। इसी तरह 2023 में फिजी के नांदी में विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान मंच पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और फिजी के राष्ट्रपति रातू विलियामे काटोनिवेरी बैठे थे। दोनों के बीच बातचीत हो रही थी। राष्ट्रपति रातू हिंदी फिल्मों की चर्चा कर रहे थे। जयशंकर ने इनसे पूछा कि उनको सबसे अच्छी हिंदी फिल्म कौन से लगी तो राष्ट्रपति ने उनसे कहा कि शोले। इस फिल्म का कोई मुकाबला नहीं है।
वेव्स का आयोजन पहले दिल्ली में होना था लेकिन बाद में किसी कारणवश इसको मुंबई शिफ्ट किया गया। आयोजन की भव्यता और भागीदारी देखने के बाद लगा कि मुंबई ही सही जगह है। वेव्स के आयोजन के बाद अब गोवा में होनेवाले अंतराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल (ईफ्फी) के कई आयामों को लेकर संशय उत्पन्न हो गया है। ईफ्फी में फिल्म बाजार लगता है और वेव्स में भी इस प्रकार का ही एक आयोजन है। ईफ्फी में 75 क्रिएटिव माइडंस का आयोजन होता है, वेव्स में भी क्रिएटिव अवार्ड दिए गए। ईफ्फी में फिल्मकारों को कई तरह के पुरस्कार दिए जाते हैं, वेव्स के लिए भी प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि अगले संस्करणों में पुरस्कार देने की योजना है। दोनों आयोजन भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के हैं। जब वेव्स के आयोजन को सरकार प्राथमिकता देगी तो ईफ्फी पर इसका असर पड़ सकता है। वैसे भी ईफ्फी को लेकर एक कंफ्यूजन लंबे समय से है कि वो फिल्म फेस्टिवल रहे या उसको अवार्ड का मंच बने। ईफ्फी के आयोजन के दौरान ये ब्रम दिखता है। ईफ्फी को बेहतरीन फिल्म फेस्टिवल बनाने पर जोर देना चाहिए। वहां जिस तरह से प्रदर्शनियां और फूड कोर्ट आदि लगाए जाते हैं उससे बचना होगा। इसमें खर्च होनेवाले संसाधनों को फेस्टिवल में बेहतर फिल्मों को लाने और चर्चा सत्रों पर उपयोग किया जा सकता है। वेव्स के सफल आयोजन के बाद ईफ्फी को लेकर सूचना और प्रसारण मंत्रालय को पुनर्विचार करना चाहिए।
वेव्स का आयोजन मनोरंजन जगत के लिए अच्छे दिन का संकेत तो है भविष्य में इनसे जुड़कर युवाओं को रोजगार की संभावनाएं तलाशने में मदद मिलेगी। प्रधानमंत्री ने भी माना कि स्क्रीन का आकार छोटा हो सकता है, लेकिन दायरा अनंत होता जा रहा है, स्क्रीन छोटी हो रही है, लेकिन संदेश व्यापक होता जा रहा है। कहा जा सकता है कि यही समय है सही समय है।
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