कई बार फिल्मों पर उठ रहे विवादों को देखने के
बाद लगता है कि ये विवाद आखिरकार हुआ क्यों? इसके पीछे कहीं
प्रचार पाने की मंशा तो नहीं है। फिल्म से जब अनुराग कश्यप का नाम जुड़ा हो तो
किसी भी तरह के विवाद की उम्मीद की जा सकती है क्योंकि अनुराग इस फन में माहिर
हैं। वो किसी भी मसले पर विवाद खड़ा कर सकते हैं। ऐसा ही एक विवाद दीवाली पर रिलीज
होनेवाली फिल्म ‘सांड की आंख’ को लेकर उठा है। इस
फिल्म में तापसी पन्नू और भूमि पेडणेकर ने बड़ी उम्र की शूटर दादी के नाम से मशहूर
चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की भूमिका की है। विवाद इस बात को लेकर उठा है कि
तापसी और भूमि अपने से अधिक उम्र की महिलाओं के रोल क्यों कर रही हैं। आश्चर्यजनक
किंतु सत्य कि इसके पक्ष और विपक्ष में फिल्म इंडस्ट्री के कुछ गंभीर और अगंभीर
दोनों तरह के लोगों ने भी अपनी राय और प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी। दरअसल ये
बेवजह का विवाद है क्योंकि यह एक कलाकार और फिल्मकार के बीच का मसला है कि वो कौन
सी भूमिका करना या करवाना चाहता या चाहती है। एक कलाकार के लिए यह तो बेहद
चुनौतीपूर्ण है कि वो अपने से अधिक उम्र के व्यक्ति का किरदार कैसे निभाए। युवा
होकर अपने से दोगुने उम्र के चरित्र के हिसाब से अभिनय करना और उस चरित्र को जीवंत
कर देना चुनौती भरा हो सकता है। हिंदी फिल्मों में जिस तरह से नायिकाएं अपनी छवि
और ग्लैमर को लेकर सजग रहती हैं उसमें तो अनी से बड़ी उम्र के किरदार को पर्दे पर
उतारना जोखिम भरा भी माना जा सकता है। लेकिन बेहतर कलाकार तो वही जो खतरा और जोखिम
दोनों उठाने के लिए तैयार रहे। वैसे भी हिंदी फिल्मों में तो कई बार ऐसा हुआ है कि
अभिनेताओं ने अपने से अधिक उम्र के किरदार को अभिनीत किया है और वो किरदार अमर हो
गया है। फिल्म ‘मदर इंडिया’ में नरगिस का
किरदार कौन भूल सकता है। जब नर्गिस ने फिल्म ‘मदर इंडिया’ किया था तो वो तीस साल की भी नहीं हुई थीं। हिंदी
फिल्म का अमर किरदार है वो। इसी तरह से ‘सारांश’ फिल्म में अनुपम खेर ने बुजुर्ग का रोल किया था
और उसी रोल ने ना केवल अनुपम को पहचान दी थी बल्कि उनको स्थापित भी किया था। शबाना
आजमी और स्मिता पाटिल ने भी बुजुर्ग महिलाओं का रोल किया है।
इस विवाद को देखते हुए एक सवाल मन में उठता है कि
इस तरह का बेवजह का विवाद कभी अभिनेताओं को लेकर क्यों नहीं उठता है। राजू हीरानी
की फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ में आमिर खान ने
छात्र की भूमिका निभाई थी तब तो किसी ने नहीं कहा कि उस दौर में कम उम्र के
अभिनेताओं को वो रोल करना चाहिए था। सैकड़ों ऐसी फिल्में बनी हैं जिसमें पचास के
आसपास के अभिनेताओं ने कमउम्र के नायक का रोल किया है। सवाल यह उठता है कि इस तरह
के विवाद अभिनेत्रियों को लेकर ही क्यों उठते हैं?क्या
इसके पीछे भी हमारे समाज में हावी पितृसत्तात्मक सोच है जो महिलाओं को लेकर अब भी
सहज नहीं हो पाई है और जब भी इस तरह का कोई चुनौतीपूर्ण कार्य सामने आता है तो
किसी ना किसी बहाने से उकी आलोचना शुरू हो जाती है या उसको विवादों के घेरे में ले
लिया जाता है। इन प्रश्नों के उत्तर तलाशने की कोशिश करनी चाहिए।
जहाँ तक मेरा मानना है कि ज्यादा उम्र के मर्द कलाकारों के पास रोल की कमी नहीं होती वही यह बात ज्यादा उम्र की महिला कलाकारों के विषय में नहीं कह सकते। ऐसे में अगर कोई रोल हो जिसमें ज्यदा उम्र की महिलायें मुख्य किरदारों में हों तो तार्किक रूप से उन्हें ही इस कार्य को करने के लिए चुना जाना चाहिए था। शायद ऐसे रोल्स की कमी का होना ही विवाद पैदा कर रहा है। वैसे मेरा भी यही मानना है कि किसे किस रोल के लिए लेना है इसका फैसला आखिर में फिल्मकार ही होता है।
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