वेलेंटाइन डे के दिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार के दो साल पूरे
हो गए । दो साल किसी भी सरकार के काम-काज का आंकलन करने के लिए काफी होता है । वेलेंटाइन
डे वाली सरकार दो साल तक केंद्र सरकार से टकराव के रास्ते पर चलती रही और उनके कुछ
मंत्री विवादों में पड़े । संभव है कि आम आदमी पार्टी ने टकराव को ही अपनी राजनीति
का आधार बनाया हो लेकिन लोकतंत्र में जनहित के कामों को लेकर आंकलन किया जाना
चाहिए लिहाजा दो साल बाद प्रधानमंत्री को साइकौपैथ कहने की बात हम नहीं करेंगे ना
ही फर्जीवाड़े में फंसे कानून मंत्री जितेन्द्र तोमर को लेकर सवाल खड़े करेंगे और
ना ही मंत्री के भ्रष्टाचार के आरोपों में बर्खास्त होने को लेकर आम आदमी पार्टी
की सरकार पर ऊंगली उठाएंगे । हम तो चुनाव पूर्व जनता से किए वादों को परखने की
कोशिश करेंगे । दिल्ली महानगर में तीन बुनियादी सवालों से हर रोज यहां की जनता को
जूझना पड़ता है, सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य । सुरक्षा को लेकर आम आदमी पार्टी
की सरकार पल्ला झाड़ लेती है कि दिल्ली पुलिस उसके पास नहीं है लिहाजा वो कुछ नहीं
कर सकती । हलांकि चुनाव पूर्व रेडियो पर इस बात का धुंआधार प्रचार किया गया था कि राजधानी
में ब्लैक स्पॉट को चिन्हित कर वहां रोशनी का इंतजाम किया जाएगा । इसका क्या हुआ
पता नहीं । वादा तो सैंतालीस फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का भी था लेकिन जानकारी के
मुताबिक अब तक एक भी नया फास्ट ट्रैक कोर्ट नहीं बनाया जा सका है बल्कि आरोप तो यह
भी लग रहे हैं कि दो साल बीत जाने के बाद भी सरकार इस काम के लिए जरूरी धन मुहैया
नहीं करवा पाई है ।
वादा तो ये भी किया गया था कि दिल्ली में बसों में सीसीटीवी कैमरे
लगाए जाएंगे । वादे के मुताबिक महिलाओं की सुरक्षा को लेकर दिल्ली की करीब साढे
तीन हजार बसों में सीसीटीवी कैमरा लगाया जाना था । लेकिन वादे हैं वादों का क्या ।
इसी तरह से फ्री वाई फाई सुविधा का भी अता-पता नहीं है । हो सकता है व्यवस्थागत
दिक्कतें आ रही हों लेकिन अब तो ये चुटकुला चलने लगा है कि दिल्ली में फ्री
वाई-फाई का पासवर्ड पंजाब है । खैर ये अलहदा बातें हैं । सुरक्षा के बाद सबसे
जरूरी है शिक्षा । आम आदमी पार्टी ने वादा किया था कि वो दिल्ली में पांच सौ
सरकारी स्कूल और बीस नए कॉलेजों की स्थापना करेगी । यह सही है कि दिल्ली सरकार ने
पहले से बने स्कूलों में कमरों की संख्या बनाई है और सरकार के दावों के मुताबिक आठ
सौ नए कमरे बनाए गए हैं । लेकिन स्कूलों में कमरों की संख्या को बढ़ाकर नए स्कूल
खोलने के वादे को पूरा करने का तर्क समझ से परे हैं । शिक्षा के क्षेत्र में काम
हो रहा है । हाल ही में पैरेंट्स-टीचर मीट भी हुए जो सरकारी स्कूलों में नहीं हुआ
करते थे । लेकिन अगर गंभीरता से विचार करें तो ये सब कॉस्मेटिक बदलाव हैं जो
शिक्षा की सुधार की दिशा में किए गए वादों की तुलना में ऊंट के मुंह में जीरे जैसी
बात है ।
अब बात करते हैं स्वास्थ्य की । स्वास्थ्य के क्षेत्र में वादा किया
गया था कि नौ सौ नए प्राइमरी हेल्थ सेंटर खोले जाएंगे और अस्पतालों में तीस हजार
बेड बढाए जाएंगे । इस दिशा में आम आदमी पार्टी की सरकार ने एक सौ पांच मोहल्ला
क्लिनिक खोलें हैं लेकिन अस्पतालों में बेड की संख्या बढ़ाने की दिशा में कोई ठोस
काम नहीं हो पाया है । मोहल्ला क्लिनिक में भी मंत्री सतेन्द्र जैन की बेटी को
कंसलटेंट बनाए जाने को लेकर विवाद हुआ था जिसके बाद उन्होंने पद छोड़ दिया था । बिजली
बिल को आधा करने के वादे पर अमल हुआ था लेकिन उससे क्या फायदा हुआ । सरकार बिजली
कंपनियों को सब्सिडी देकर उनकी ही तिजोरी भर रही है । आम आदमी पार्टी ने वादा किया
था कि पांच साल में दिल्ली बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होगी लेकिन सिर्फ
पिछले ही साल दिल्ली ने बाहर से करीब अट्ठाइस हजार मिलियन यूनिट बिजली खरीदी । बिजली
के बाद पानी को लेकर आम आदमी पार्टी ने मुद्दा बनाया था और कहा था कि सरकार में
आते ही देश की राजधानी में पानी माफिया को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे लेकिन शुरुआती
दिनों में छापेमारी के बाद अब निर्बाध गति से पानी माफिया अपना काम कर रही है । यमुना
को लेकर भी बड़े बड़े वादे किए गए थे लेकिन दिल्ली की जनता हर रोज देखती है कि
यमुना का क्या हाल हो गया है । यमुना किनारे आरती का कार्यक्रम करने से इस मरती
हुई नदी का भला नहीं हो सकता है । इसके लिए ठोस इच्छा शक्ति और कड़े प्रशासनिक
फैसलों की दरकार है । यमुना टैक्सी तो दूर की बात है यमुना सफाई भी नहीं हो पाई।
अगर समग्रता में आम आदमी पार्टी के वादों को देखें तो कमोबेश बहुत
सारा काम अभी होना बाकी है । दिल्ली के कई इलाकों में सड़कों का बुरा हाल है । प्रदूषण
रोकने के लिए ऑड इवन का प्रयोग कितना सफल रहा यह कहा नहीं जा सकता है क्योंकि
सरकार ने इस प्रयोग की आवर्तिता बढ़ाई नहीं । आम आदमी पार्टी से दिल्ली की जनता को
बहुत उम्मीदें थीं लेकिन दो साल बीतने के बाद जिस तरह से काम हो रहा है उससे लगता
नहीं है कि ये उम्मीदों पर खरा उतर पाएगी । जिस तरह से इसके रहनुमा अन्य राज्यों
की राजनीति में उतरते जा रहे हैं उससे दिल्ली पर ध्यान देने का वक्त उनको नहीं मिल
पाता है । उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के सामने अब बड़ी चुनौती है कि बाकी बचे
तीन सालों में इन वादों में से कुछ को तो पूरा कर दिखाएं ।
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