कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो काल से होड़ लेती
हुई कालजयी हो जाती हैं । ऐसी ही एक फिल्म है ‘पाकीज़ा’ । आज से करीब साठ साल पहले यानि सत्रह जनवरी
1957 में एक फिल्म का मुहूरत हुआ था और मुहूरत के पंद्रह साल बाद 4 फरवरी 1972 में
ये फिल्म रिलीज हो पाई । यह एक ऐसी ऐतिहासिक फिल्म थी जिसको लेकर फिल्मी दुनिया
में कई किवदंतियां अब भी मौजूद हैं । कहा जाता है कि जब फिल्म ‘पाकीज़ा’ बनकर तैयार हो गई तो कमाल अमरोही ने फिल्म के
जानकारों और समीक्षकों को यह फिल्म दिखाई । फिल्म के बाद जिस तरह की प्रतिक्रिया
उनको मिली उससे उनका दिल टूट गया । उन्होंने जमकर शराब पी और घर लौटकर फिर शराब
पीने लगे । उस दिन कमाल अमरोही ने जितनी शराब पी थी उतनी कभी नहीं पी थी । शराब के
नशे में उन्होंने अपने बच्चों को पास बुलाया और कहा कि उनके मरने के बाद वो
स्टूडियो और कामकाज को अच्छी तरह से संभालें । कमाल के परिवारवाले उनकी यह हालत
देखकर बेहद परेशान हो गए । उन्होंने मीना कुमारी के पास जाकर कमाल की हालत बतलाई,
तब मीना कुमारी उनसे अलग रहने लगी थी । जब 1964 में मीना कुमारी कमाल का घर छोड़कर
बाहर निकली थीं तो उन्होंने कसम खाई थी कि उस घर में कभी नहीं जाएंगीं । लेकिन
कमाल की हालत में वो उनके घर तक आई और बाहर ही गाड़ी में बैठी रहीं । उनके बच्चों
से कहा कि सब ठीक हो जाएगा । जब रात ढलने लगी तो कमाल के बच्चों ने गाड़ी में बैठी
मीना कुमारी को बताया कि वो सो गए हैं तो मीना कुमारी अपने घर लौट आईं । इस तरह के
कई किस्से इस फिल्म से जुड़े हैं ।
दरअसल फिल्म ‘दायरा’ के फ्लॉप होने के बाद कमाल अमरोही के दिमाग में ‘पाकीज़ा’ का आइडिया आकार लेने लगा था । वो दस्तों से कहते
थे कि मीना कुमारी को लेकर ऐक ऐसी फिल्म बनाना चाहते हैं जो ना केवल ऐतिहासिक हो
बल्कि अपनी महबूब पत्नी की प्रतिभा को सर्वोत्तम तरीके से उभार सके । उनके करीबी
बताते हैं कि कमाल साहब हमेशा कहते थे कि शाहजहां ने अपनी मोहब्बत के लिए ताजमहल
बनवाया और वो अपनी मोहब्बत के लिए ‘पाकीज़ा’ बनाना
चाहते हैं । ‘पाकीज़ा’ फिल्म के संवाद की हर पंक्ति इस बात की
गवाही देती है कि वो मीना कुमारी को ध्यान में रखकर लिखी गई थी । फिल्म ‘पाकीजा’ को बनाते वक्त कमाल अमरोही के दिमाग में के आसिफ
की फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ थी और वो चाहते थे कि भव्यता और विजुअल
ट्रीटमेंट में ‘पाकीज़ा’ उससे आगे निकल जाए । ‘पाकीज़ा’ पहले व्लैक एंड व्हाइट में शूट होनी शुरू हुई,
तकनीक बदली तो फिर से कलर फिल्म पर शूट होने लगी उसके बाद सिनेमास्कोप का जमाना
आया तो उसमें शूटिंग हुई । पहले के सारे शूट रद्दी में डाल दिए गए ।
सिनेमास्कोप को लेकर भी एक दिलचस्प प्रसंग इस
फिल्म से जुडा़ हुआ है । कमाल अमरोही को परफैक्शनिस्ट के तौर पर जाना जाता है । वो
फिल्म के लोकेशन से लेकर हर शॉट का बेहद बारीकी से ध्यान रखते थे । जब उन्होंने
पाकीजा के कलर शूट को रद्दी में डालकर सिनेमास्कोप में शूट शुरू किया तो उन्हें
लगा कि सिनेमास्कोप के जिस लैंस से वो शूटिंग कर रहे थे उसका फोकस ठीक नहीं था ।
उस जमाने में एमजीएम नाम की विदेशी कंपनी से लैंस आता था कभी किराए पर तो कभी अन्य
शर्तों पर । कमाल अमरोही उस जमाने में इस लैंस के लिए पचास हजार रुपए महीने चुका
रहे थे । कमाल अमरोही ने लेंस के फोकस की त्रुटि के बारे में एमजीएम कंपनी को खत
लिखा । कंपनी के नुमाइंदों ने लेंस की जांच की तो अमरोही की शिकायत सही पाई गई ।
बाद में उस लेंस को कंपनी ने कमाल अमरोही को उपहार के तौर पर भेंट कर दिया ।
पाकीजा को तकनीक से आधुनिक बनाने के कमाल अमरोही
के जुनून के बीच उनका और मीना कुमारी के संबंध में खटास आनी शुरू हो गई थी । लोकेशन
को लेकर कमाल अमरोही ने इतनी यात्राएं की कि उस वक्त ये भी कहा जाने लगा था कि इस
फिल्म का नाम ‘इंडिया ट्रिप’ रख देना चाहिए । मीना कुमारी की ज्वेलरी
के लिए भी उन्होंने बनारस, जयपुर और त्रिवेन्द्रम तक की यात्रा की । फिल्म के शुरू
होने के सात वर्षों के बाद मार्च उन्नीस सौ चौंसठ में मीना कुमारी और कमाल अमरोही
अलग हो गए । जब कमाल अमरोही और मीना कुमारी अलग हो गए तो लगा था कि ये फिल्म कभी
रिलीज नहीं हो पाएगी । इस बीच इस फिल्म में काम करने वाले कई लोग इस प्रोजेक्ट से
अलग हो गए तो कइयों की मौत हो गई । मीना कुमारी भी अपना इलाज करवाने विदेश गईं,
लौट कर आईं लेकिन फिल्म की गाड़ी पटरी पर लौट नहीं रही थी । मीना कुमारी की बॉक्स
ऑफिस पर तूती बोल रही थी । आखिरकार कमाल अमरोही ने 25 अगस्त 1968 को मीना कुमारी
को एक पत्र लिखा- ‘सिर्फ
पाकीज़ा की रिलीज ही बच गई है । तुमने एक शर्त रखी है कि जबतक मैं तुमको तलाक नहीं
दूंगा तबतक तुम पाकीज़ा पूरी नहीं करोगी । मैं तुम्हें इस बंधन से आजाद कर दूंगा
अगर तुम अपनी पाकीजा को पूरा रना चाहोगी तो मुझे खुशी होगी ।‘ अब ये इस पत्र का कमाल था या फिर कुछ और मीना
कुमारी मे फिल्म में दोबारा काम करने की हामी भर दी । फिल्म पूरी हुई लेकिन बॉक्स
ऑफिस पर अच्छी शुरुआत नहीं मिली । लेकिन इस बीच मीना कुमारी अस्पताल में भर्ती हो
गईं और उनकी बीमारी की खबर फैलने लगी थी । 31 मार्च को उन्होंने अंतिम सांसे ली । उनकी
मौत के बाद ‘पाकीज़ा’ देखने दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी थी । कहा गया
कि पहले तो मीना कुमारी ने अपने पैसों से फिल्म पाकीज़ा बनाई और फिर अपनी मौत से ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "१४ फरवरी, मधुबाला और ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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