बेहद चर्चित और सफल फिल्म निर्देशक सुभाष घई का एक दिन मैसेज आया। उसमें दिलचस्प सूचना थी। घई साहब ने लिखा था कि 1999 में रिलीज हुई उनकी फिल्म ताल देशभर में रिलीज की जा रही है। उनके इस मैसेज को पढ़कर पहले तो चौंका लेकिन फिर याद आया कि हाल के दिनों में कई पुरानी लेकिन हिट फिल्मों को फिर से प्रदर्शित किया गया। शोले, हम आपके हैं कौन, रहना है तेरे दिल में जैसी फिल्मों को फिर से प्रदर्शित किया गया। दर्शकों ने पसंद भी किया। अमिताभ बच्चन के 80 वर्ष पूरे होने पर भी उनकी कई फिल्मों का प्रदर्शन हुआ था। हिंदी फिल्मों के व्यवसाय को नजदीक से जानने वालों का मानना है कि फिल्मों का पुनर्प्रदर्शन दो कारणों से किया जाता है। एक तो क्लासिक फिल्मों के बारे में नई पीढ़ी को जानने समझने का अवसर मिलता है। कई बार जब फिल्मों पर चर्चा होती है तो क्लासिक फिल्मों के बारे में बातें होती हैं तो युवाओं में इनको देखने की ललक पैदा होती है। दूसरा कारण ये कि जब नई फिल्में नहीं चलती हैं तो उनको सिनेमा हाल से हटाना पड़ता है। जल्दी जल्दी नई फिल्में आती नहीं हैं। ऐसे में सिनेमा हाल को अपना कारोबार चलाने के लिए क्लासिक्स का सहारा लेना पड़ता है। हाल के दिनों में ये चलन बढ़ा है। हिंदी फिल्मों से जुड़े लोग ये नहीं चाहते हैं कि फिल्मों के नए दर्शक सिनेमा हाल पहुंचें और उनको निराशा हाथ लगे। विकल्प देकर वो दर्शकों को बांधे रखना चाहते हैं।
फिल्मों के अलावा एक दूसरी बात पता चली जो साहित्य जगत से जुड़ी हुई है। हिंदी के एक प्रकाशन गृह सर्वभाषा ट्रस्ट के केशव मोहन पांडे और कवि आलोचक ओम निश्चल से भेंट हुई। चर्चा के क्रम में केशव जी ने एक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि उनके प्रकाशन गृह से लाला लाजपत राय की 1928 में प्रकाशित पुस्तक दुखी भारत का पुनर्प्रकाशन हो रहा है। ये पुस्तक काफी चर्चित रही है। 1928 में इसका प्रकाशन इंडियन प्रेस, प्रयाग से हुआ था। अधिक चर्चा इस कारण भी हुई थी कि लाला लाजपत राय की ये पुस्तक कैथरीन मेयो की पुस्तक मदर इंडिया के उत्तर में लिखी गई थी। लाला लाजपत राय की पुस्तक के कवर पर ही इस बात का प्रमुखता से उल्लेख था। दुखी भारत के नीचे लिखा था, मिस कैथरीन मेयो की पुस्तक ‘मदर इंडिया’ का उत्तर। लाला लाजपत राय की इस पुस्तक की कहानी बेहद दिलचस्प है। अमेरिका की पत्रकार कैथरीन मेयो ने 1927 में मदर इंडिया के नाम से एक पुस्तक लिखी थी। उस पुस्तक में कथित तौर पर भारत के तत्कालीन समाज में स्त्रियों की स्थितियों के बारे में लिखा गया था। इनकी स्थिति को हिंदू समाज से जोड़कर आपत्तिजनक तरीके से व्याख्यायित किया गया था। पश्चिमी देशों में कैथरीन मेयो की ये पुस्तक काफी चर्चित हुई थी। यूरोप की कई भाषाओ में इसका अनुवाद हुआ था। पुस्तक के कई संस्करण प्रकाशित हुए थे। पराधीन भारत में कैथरीन मेयो की पुस्तक का काफी विरोध हुआ था। माना गया था कि अमेरिकी पत्रकार ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद वो उचित ठहराने के लिए ये पुस्तक लिखी थी। उसके लिए उनको विशेष रूप से भारत भेजा गया था। इस पुस्तक में कैथरीन मेयो ने ना केवल हिंदू समाज और संस्कृति की तीखी आलोचना की थी बल्कि स्वाधीनता आंदोलन के नायकों और उनके सोच पर भी प्रश्न उठाए थे।
लाला लाजपत राय ने इस पुस्तक का सिलसिलेवार उत्तर देते हुए दुखी भारत के नाम से पुस्तक लिखी। इसमें राय ने लिखा था कि प्रत्येक विद्यार्थी ये जानता है कि यूरोप शताब्दियों तक असभ्यता, मूर्खता और गुलामियों का शिकार रहा है। यूरोप से हमारा मतलब संसार की सब गोरी जातियों से है। अर्थात यूरोप और अमेरिका दोनों। अमेरिका तो अभी यूरोप का बच्चा ही है। इन गोरी जातियों ने एशिया से अपना धर्म पाया। मिस्त्र की कला और उद्योग का अनुसरण किया। भारत से सदाचार संबंधी आदर्श उधार लिए। संसार की आधुनिक उन्नत जातियों में इस समय जो कुछ भी वास्तविक खूबी और अच्छाई है वह अधिकांश में उनको पूर्व से मिली है।...मिस मेयो का मनोभाव एशिया की काली, भूरी और पीली सभी जातियों के विरुद्ध यूरोप की गोरी जातियों का ही मनोभाव है। पूरब को दबानेवालों के मुंह की वो पिपहरी मात्र ही है। पूर्व की जागृति ने अमेरिका और यूरोप दोनों को भयभीत कर दिया है। इसी से इतनी प्राचीन और सभ्य जाति के विरुद्ध इस पागलपने का प्रदर्शन हो रहा है और खूब अध्ययन के साथ तथा जानबूझकर यह आंदोलन खड़ा किया जा रहा है। लाला लाजपत राय इतने पर ही नहीं रुके उन्होंने कैथरीन मेयो पर और भी तीखा हमला बोला, मिस कैथरीन मेयो, जैसा कि उसके लेखों से जान पड़ता है, अमेरिका की जिंगो जाति का एक औजार है। ग्रंथकार होने का उसका दावा केवल इतना ही है कि उसकी लेखन शैली मनोरंजक है, सनसनी पैदा करनेवाले उड़ते हुए शब्दों का प्रयोग करना उसे आता है और संदेहपूर्ण कथाओं को मनोरंजक शैली में लिखने का उसे अभ्यास है। एक मामूली पाठक भी उसके इतिहास और राज-नीति-विज्ञान में उसकी अज्ञानता को दिखला सकता है। अपनी इस पुस्तक के विषय प्रवेश में ही लाला लाजपत राय ने काफी विस्तार से कैथरीन मेयो की स्थापनाओं को ध्वस्त कर दिया था।
दुखी भारत नाम की लाला लाजपत राय की ये पुस्तक खूब पढ़ी गई। इसपर काफी चर्चा हुई। लेकिन कालांतर में ये पुस्तक ना केवल चलन से बाहर हो गई या कर दी गई बल्कि नई पीढ़ी को इसके बारे में बताया भी नहीं गया। अब इसका पुनर्प्रकाशन एक सुखद घटना है। सिर्फ यही एक पुस्तक नहीं बल्कि हिंदी की कई कालजयी पुस्तकों का पुनर्प्रकाशन हो रहा है। जैसे प्रेमचंद पर पहली आलोचनात्मक पुस्तक लिखनेवाले जनार्दन झा द्विज की अनुपलब्ध पुस्तक का प्रकाशन हुआ। निराला जी ने श्रीरामचरितमानस के कुछ अंशों का अवधी से हिंदी में अनुवाद किया था जिसका फिर से प्रकाशन रामायण विनय खंड के नाम से हुआ है। श्रेष्ठ हिंदी पुस्तकों के पुनर्प्रकाशन को कई तरह से देखा जा सकता है। एक तो अगर इसको फिल्मों के पुनर्प्रदर्शन से जोड़कर देखें तो इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि जब अच्छी पुस्तकें ना आ रही हों तो पूर्व प्रकाशित अच्छी और अनुपलब्ध पुस्तकों को खोजकर उसका प्रकाशन किया जाए। इसका एक लाभ ये होगा कि पाठकों का जुड़ाव हिंदी के साथ बना रहेगा और वो निराश नहीं होंगे। दूसरी अच्छी बात ये होगी कि स्वाधीनता के बाद जिस तरह का एकतरफा नैरेटिव बनाया गया उसका भी बहुत हद तक निषेध होगा। लाला लाजपत राय ने जिस तरह से अपनी पुस्तक दुखी भारत में हिंदू समाज और संस्कृति को लेकर कैथरीन मेयो के नैरेटिव को ध्वस्त किया था उसके बारे में आज की पीढ़ी को भी जानना चाहिए। आज भी हमारे समाज में कैथरीन मेयो की अवधारणा के लेकर कई लोग घूम रहे हैं। उनके निशाने पर भारत का हिंदू समाज होता है। अगर लाला लाजपत राय की इस पुस्तक का प्रचार प्रसार होगा तो हिंदू समाज को लेकर फैलाई जानेवाली भ्रांतियां दूर होंगी।
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