पिछले एक दशक में देश में तकनीक
का फैलाव काफी तेजी से हुआ है । हर हाथ को काम मिले ना मिले हर हाथ को मोबाइल फोन जरूर
मिल गया है । घर में काम करनेवाली मेड से लेकर रिक्शा चलानेवाले तक अब मोबाइल पर उपलब्ध
हैं । किसी भी देश के लिए यह एक बेहतर स्थिति है जहां समाज के सबसे निचले पायदान पर
रहनेवालों को भी तकनीक का फायदा मिल रहा है । तकनीक के इस विस्तार से उनकी हालात में
भी सुधार हुआ । कुछ दिनों पहले एक कार्यक्रम के दौरान हिंदी की वरिष्ठ लेखिका और महिला
अधिकारों को लेकर अपने लेखन में बेहद सजग मैत्रेयी पुष्पा ने तकनीक की ताकत पर प्रकाश
डाला था । मैत्रेयी ने कहा था कि आज गांव घर की बहुओं की ज्यादातर समस्याएं मोबाइल
फोन ने हल कर दी हैं । बहुएं घूंघट के नीचे से फोन पर अपनी समस्याओं के बारे में अपने
मां बाप को या फिर शुभचिंतकों को अपनी व्यथा बता सकती हैं । मैत्रेयी ने इसे स्त्री
सशक्तीकरण की दिशा में लगभग क्रांति करार दिया । मैत्रेयी पुष्पा की बातों में दम है
। हो सकता है कि कुछ लोगों को ये समस्या का सरलीकरण लगे लेकिन महिलाओं की हालात को
मोबाइल फोन ने बेहतर बनाया है साथ ही उनके हाथ में ताकत भी मिली है । खैर यह एक अवांतर
प्रसंग है ।
मोबाइल फोन की क्रांति के बाद जो विकास हुआ वह था इंटरनेट का फैलाव । तकनीक के विकास ने आज लोगों के हाथ में इंटरनेट का एक ऐसा अस्त्र पकड़ा दिया जो उनको अपने आपको अभिव्यक्त करने के लिए एक बड़ा प्लेटफॉर्म प्रदान करता है, बगैर किसी रोक टोक के । स्मार्ट फोन के बाजार में आने और उसकी कीमत मध्यवर्ग के दायरे में आने से यह और फैला । थ्री जी सेवा ने इसे और फैलाया । हाथ में इंटरनेट के इस औजार ने सोशल मीडिया पर लोगों की सक्रियता बेहद बढ़ा दी है । पहले तो ऑरकुट हुआ करता था जो नेट यूजर्स के बीच खासा लोकप्रिय था । बाद में सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने जोर पकड़ा और हर वर्ग के लोगों के बीच फेसबुक पर होने की होड़ लग गई । सोशल नेटवर्किंग साइट सोशल स्टेटस साइट में तब्दील हो गया । महानगरों के अलावा छोटे शहरों में फेसबुक पर होना अनिवार्य माना जाने लगा । जो लोग यह कहकर फेसबुक की खिल्ली उड़ाते थे कि फोन पर बात नहीं कर सकते वो वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर बात करेंगे वो लोग भी अब फेसबुक पर घंटों गुजारते हैं । दरअसल किसी भी नई तकनीक को पहले इस तरह की विरोध का सामना करना ही होता है और बाद में लोगों की आदतों में शुमार हो जाता है । जब अस्सी के दशक में कंप्यूटर आया था तो पहले उसका जमकर विरोध हुआ था । वामपंथियों और समाजवादियों ने इस बात को लेकर खासा बवाल मचाया था कि कंप्यूटर से बेरोजगारी बढ़ेगी । लोगों के हाथों से काम छिन जाएगा आदि आदि ।
हम बात कर रहे थे सोशल मीडिया साइट्स की । सोशल मीडिया साइट् फेसबुक ने लोगों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की आजादी दी । वहां किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं थी लिहाजा वह हुआ जिसका अंदाजा फेसबुक की कल्पना करनेवालों को नहीं रहा होगा । अभिव्यक्ति की जो आजादी मिली उसका कई लोगों ने, जिसकी संख्या भारत में बहुत ज्यादा थी, बेजा फायदा उठाया और राजनीतिक से लेकर व्यक्तिगत तक कई तरह की आपत्तिजनक बातें और फोटोग्राफ्स फेसबुक पर पोस्ट होने लगे । फेसबुक पर ऐसी भाषा भी लिखी जाने लगी जिसको पढ़ा नहीं जा सकता था । देश की राजनीतिक शख्सियतों के बारे में भद्दी और अनर्गल पोस्ट शुकु हो गए । फेक आईडी बनाकर लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़कानें की कोशिशें भी खूब हुई । दोस्ती और सामाजिक मेल मिलाप के लिए बनाई गई साइट का इस्तेमाल अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने और अपमानित करने के लिए किया जाने लगा । अराजकता इस हद तक बढ़ गई कि सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा । सरकार के हस्तक्षेप के इरादे का पता चलते ही अभिव्यक्ति के आजादी के पैरोकार खड़े हो गए नतीजे में सरकार को अपने पैर वापस खींचने पड़े । कुछ कानून बने हैं जो इस तरह की बातों को रोकने में सक्षम हैं लेकिन जिसके बारे में कुछ कहा जा रहा हो वो अगर शिकायत ही नहीं करेगा तो कार्रवाई लगभग मुमकिन नहीं है । फेसबुक से निकलकर यह वायरस अब ट्विटर पर पहुंच गया है ।
ट्विटर पर अब राजनीकित विरोधी एक दूसरे को निबटाने में जुट गए हैं । इसका बेहतरीन नमूना दिखा था पिछले महीने जब राहुल गांधी एक उद्योग संगठन के कार्यक्रम में बोल रहे थे तो ट्विटर पर पप्पू नाम से उनके विरोधियों ने हैस टैग लगाकर लिखना शुरू कर दिया । इसका नतीजा यह हुआ कि ट्विटर पर पप्पू ट्रेंड करने लग गया । कांग्रेस से जुड़े लोगों ने आरोप लगाया कि यह भारतीय जनता पार्टी से जुड़े लोगों की करतूत है । चंद दिनों बाद ही गुजरात के मुख्यमंत्री भी भाषण देने दिल्ली पहुंचे । तब अचानक से ट्विटर पर फेंकू ट्रेंड करने लगा । इस बार आरोप लगाने की बारी भारतीय जनता पार्टी की थी । उन्होंने कांग्रेस पर आरोप जड़ा कि फेंकू के पीछे उनकी पार्टी के लोग हैं । लेकिन तबतक तो सोशल नेटवर्किंग साइट पर राहुल गांधी पप्पू और नरेन्द्र मोदी फेंकू हो चुके थे । यह लड़ाई इतने पर ही नहीं रुकी । अभिव्यक्ति की आजादी अराजकता में बदल गई । दोनों पार्टियों से जुड़े उत्साही कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने ट्विटर पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, नरेन्द्र मोदी और उनके संगठनों के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखनी शुरू कर दी । उत्साह इतना बढ़ता चला गया कि बात गाली गलौच तक पहुंच गई । कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि बीजेपी ने सोशल मीडिया पर काम करने के लिए एक पूरा सेल बना रखा है जो इस तरह की आपत्तिजनक बातें लिखता है । लेकिन बीजेपी इस बात से इंकार करती रही है । इस बीच इस तरह की खबरें भी आई कि कांग्रेस पार्टी ने भी सोशल मीडिया को लेकर एक भारी भरकर ग्रुप बनाया । यहां तक तो ठीक है लेकिन खुद को कांग्रेस का समर्थक होने का दावा करनेवाले एक इतिहासकार इन दिनों ट्विटर पर बेहद गंदी और बेहूदी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं । महिलाओं के लिए बेहद आपत्तिजनक बातें लिख रहे हैं जिसकी सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है । इतिहासकार महोदय का तर्क है कि फासीवाद से निबटने के लिए गाली गलौच की आक्रामकता जरूरी है । अपने इस तर्क के समर्थन में वो मोजार्ट का नाम भी लेते हैं । उधर संघ और मोदी समर्थक भी कम नहीं है वो भी उसी अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करते हैं । इस सबके बीच कुछ संवेदनशील लोग हैं जो ट्विटर पर इस तरह की गाली गलौच के बीच अपनी संवेदना बचाए हुए हैं ।
इस बीच एक सर्वे आया कि सोशल मीडिया इस बार दो सौ से ज्यादा लोकसभा क्षेत्रों पर प्रभाव डालेगी । इस खबर ने भी राजनीतिक दलों के कान खड़े कर दिए । आज हालात यह है कि ट्विटर पर आने और ट्विटरबाज बनने की होड़ लगी है चाहे वो नेता हो या अभिनेता । लेकिन साथ ही अब इस बात का भी वक्त आ गया है कि इन सोशल मीडिया बेवसाइट्स को लेकर कोई नीति बने जहां अराजकता की कोई जगह ना हो । अभिव्यक्ति की आजादी बहुत अच्छी बात है, सबको होनी चाहिए लेकिन जब यह आजादी अराजकता में बदलती है तो उसपर रोक भी लगाई जानी चाहिए । आज फेसबुक और ट्विटर एक ऐसे दौर में प्रवेश कर चुके हैं कि उनके लिए किसी तरह की गाइडलाइंस की सख्त जरूरत महसूस होने लगी है । इन साइट्स के लिए गाइडलाइंस जितनी जल्दी बन जाएं उतना अच्छा है वर्ना वर्चुअल की दुनिया की जंग एक दिन हकीकत बन जाएगी और अभिव्यक्ति की यह आजादी अराजकता के गणतंत्र में तब्दील हो जाएगा और तब हम फिर सरकार के हाथों में पाबंदी लगाने का हक दे देंगे जो कि लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा ।
मोबाइल फोन की क्रांति के बाद जो विकास हुआ वह था इंटरनेट का फैलाव । तकनीक के विकास ने आज लोगों के हाथ में इंटरनेट का एक ऐसा अस्त्र पकड़ा दिया जो उनको अपने आपको अभिव्यक्त करने के लिए एक बड़ा प्लेटफॉर्म प्रदान करता है, बगैर किसी रोक टोक के । स्मार्ट फोन के बाजार में आने और उसकी कीमत मध्यवर्ग के दायरे में आने से यह और फैला । थ्री जी सेवा ने इसे और फैलाया । हाथ में इंटरनेट के इस औजार ने सोशल मीडिया पर लोगों की सक्रियता बेहद बढ़ा दी है । पहले तो ऑरकुट हुआ करता था जो नेट यूजर्स के बीच खासा लोकप्रिय था । बाद में सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने जोर पकड़ा और हर वर्ग के लोगों के बीच फेसबुक पर होने की होड़ लग गई । सोशल नेटवर्किंग साइट सोशल स्टेटस साइट में तब्दील हो गया । महानगरों के अलावा छोटे शहरों में फेसबुक पर होना अनिवार्य माना जाने लगा । जो लोग यह कहकर फेसबुक की खिल्ली उड़ाते थे कि फोन पर बात नहीं कर सकते वो वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर बात करेंगे वो लोग भी अब फेसबुक पर घंटों गुजारते हैं । दरअसल किसी भी नई तकनीक को पहले इस तरह की विरोध का सामना करना ही होता है और बाद में लोगों की आदतों में शुमार हो जाता है । जब अस्सी के दशक में कंप्यूटर आया था तो पहले उसका जमकर विरोध हुआ था । वामपंथियों और समाजवादियों ने इस बात को लेकर खासा बवाल मचाया था कि कंप्यूटर से बेरोजगारी बढ़ेगी । लोगों के हाथों से काम छिन जाएगा आदि आदि ।
हम बात कर रहे थे सोशल मीडिया साइट्स की । सोशल मीडिया साइट् फेसबुक ने लोगों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की आजादी दी । वहां किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं थी लिहाजा वह हुआ जिसका अंदाजा फेसबुक की कल्पना करनेवालों को नहीं रहा होगा । अभिव्यक्ति की जो आजादी मिली उसका कई लोगों ने, जिसकी संख्या भारत में बहुत ज्यादा थी, बेजा फायदा उठाया और राजनीतिक से लेकर व्यक्तिगत तक कई तरह की आपत्तिजनक बातें और फोटोग्राफ्स फेसबुक पर पोस्ट होने लगे । फेसबुक पर ऐसी भाषा भी लिखी जाने लगी जिसको पढ़ा नहीं जा सकता था । देश की राजनीतिक शख्सियतों के बारे में भद्दी और अनर्गल पोस्ट शुकु हो गए । फेक आईडी बनाकर लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़कानें की कोशिशें भी खूब हुई । दोस्ती और सामाजिक मेल मिलाप के लिए बनाई गई साइट का इस्तेमाल अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने और अपमानित करने के लिए किया जाने लगा । अराजकता इस हद तक बढ़ गई कि सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा । सरकार के हस्तक्षेप के इरादे का पता चलते ही अभिव्यक्ति के आजादी के पैरोकार खड़े हो गए नतीजे में सरकार को अपने पैर वापस खींचने पड़े । कुछ कानून बने हैं जो इस तरह की बातों को रोकने में सक्षम हैं लेकिन जिसके बारे में कुछ कहा जा रहा हो वो अगर शिकायत ही नहीं करेगा तो कार्रवाई लगभग मुमकिन नहीं है । फेसबुक से निकलकर यह वायरस अब ट्विटर पर पहुंच गया है ।
ट्विटर पर अब राजनीकित विरोधी एक दूसरे को निबटाने में जुट गए हैं । इसका बेहतरीन नमूना दिखा था पिछले महीने जब राहुल गांधी एक उद्योग संगठन के कार्यक्रम में बोल रहे थे तो ट्विटर पर पप्पू नाम से उनके विरोधियों ने हैस टैग लगाकर लिखना शुरू कर दिया । इसका नतीजा यह हुआ कि ट्विटर पर पप्पू ट्रेंड करने लग गया । कांग्रेस से जुड़े लोगों ने आरोप लगाया कि यह भारतीय जनता पार्टी से जुड़े लोगों की करतूत है । चंद दिनों बाद ही गुजरात के मुख्यमंत्री भी भाषण देने दिल्ली पहुंचे । तब अचानक से ट्विटर पर फेंकू ट्रेंड करने लगा । इस बार आरोप लगाने की बारी भारतीय जनता पार्टी की थी । उन्होंने कांग्रेस पर आरोप जड़ा कि फेंकू के पीछे उनकी पार्टी के लोग हैं । लेकिन तबतक तो सोशल नेटवर्किंग साइट पर राहुल गांधी पप्पू और नरेन्द्र मोदी फेंकू हो चुके थे । यह लड़ाई इतने पर ही नहीं रुकी । अभिव्यक्ति की आजादी अराजकता में बदल गई । दोनों पार्टियों से जुड़े उत्साही कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने ट्विटर पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, नरेन्द्र मोदी और उनके संगठनों के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखनी शुरू कर दी । उत्साह इतना बढ़ता चला गया कि बात गाली गलौच तक पहुंच गई । कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि बीजेपी ने सोशल मीडिया पर काम करने के लिए एक पूरा सेल बना रखा है जो इस तरह की आपत्तिजनक बातें लिखता है । लेकिन बीजेपी इस बात से इंकार करती रही है । इस बीच इस तरह की खबरें भी आई कि कांग्रेस पार्टी ने भी सोशल मीडिया को लेकर एक भारी भरकर ग्रुप बनाया । यहां तक तो ठीक है लेकिन खुद को कांग्रेस का समर्थक होने का दावा करनेवाले एक इतिहासकार इन दिनों ट्विटर पर बेहद गंदी और बेहूदी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं । महिलाओं के लिए बेहद आपत्तिजनक बातें लिख रहे हैं जिसकी सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है । इतिहासकार महोदय का तर्क है कि फासीवाद से निबटने के लिए गाली गलौच की आक्रामकता जरूरी है । अपने इस तर्क के समर्थन में वो मोजार्ट का नाम भी लेते हैं । उधर संघ और मोदी समर्थक भी कम नहीं है वो भी उसी अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करते हैं । इस सबके बीच कुछ संवेदनशील लोग हैं जो ट्विटर पर इस तरह की गाली गलौच के बीच अपनी संवेदना बचाए हुए हैं ।
इस बीच एक सर्वे आया कि सोशल मीडिया इस बार दो सौ से ज्यादा लोकसभा क्षेत्रों पर प्रभाव डालेगी । इस खबर ने भी राजनीतिक दलों के कान खड़े कर दिए । आज हालात यह है कि ट्विटर पर आने और ट्विटरबाज बनने की होड़ लगी है चाहे वो नेता हो या अभिनेता । लेकिन साथ ही अब इस बात का भी वक्त आ गया है कि इन सोशल मीडिया बेवसाइट्स को लेकर कोई नीति बने जहां अराजकता की कोई जगह ना हो । अभिव्यक्ति की आजादी बहुत अच्छी बात है, सबको होनी चाहिए लेकिन जब यह आजादी अराजकता में बदलती है तो उसपर रोक भी लगाई जानी चाहिए । आज फेसबुक और ट्विटर एक ऐसे दौर में प्रवेश कर चुके हैं कि उनके लिए किसी तरह की गाइडलाइंस की सख्त जरूरत महसूस होने लगी है । इन साइट्स के लिए गाइडलाइंस जितनी जल्दी बन जाएं उतना अच्छा है वर्ना वर्चुअल की दुनिया की जंग एक दिन हकीकत बन जाएगी और अभिव्यक्ति की यह आजादी अराजकता के गणतंत्र में तब्दील हो जाएगा और तब हम फिर सरकार के हाथों में पाबंदी लगाने का हक दे देंगे जो कि लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा ।
1 comment:
गालियाँ वर्जित होनी चाहिए लेकिन वह बात जो एक को सही और दूसरे को बिल्कुल गलत और बेहूदा लगे तो दूसरा व्यक्ति उसे गालियाँ ही देगा । वैसे कुछ शख्सियत ऐसे भी हैं जिनकी किसी ने मानहानि नहीं की । कारण ये है कि उनके विचार सभी को पसन्द आते हैं।
Post a Comment