हिंदी के साहित्याकारों में आमतौर पर नई तकनीक के इस्तेमाल में एक खास किस्म
की उदासीनता देखने को मिलती है । फेसबुक के अस्तित्व में आने के कई सालों बाद अब
हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार इस मंच पर आने शुरू हुए हैं । शुरुआत में तो फेसबुक को
लेकर हिंदी के साहित्यकार मजाक उडाया करते थे । उनके तर्क होते थे कि जब साथी लेखक
आपस में फोन पर बात नहीं कर सकते तो आभासी दुनिया में क्या खाक कर पाएंगे । बदलते
वक्त के साथ और युवा पीढ़ी के साथ चलने के लिए कई वरिष्ठ साहित्यकार इस आभासी मंच
पर आए । अब भी कई वरिष्ठ साहित्यकार यहां नहीं है । कई वरिष्ठ साहित्यकारों का तो
हाल और भी बुरा है वो अब भी हाथ से लिखकर अखबारों और पत्रिकाओं में अपनी रचनाएं भेजते
हैं । फेसबुक ने धीरे-धीरे कॉफी हाउस की जगह ले ली है और यहां गंभीर विमर्श होने
लगे हैं । फेसबुक पर अराजकता भी है लेकिन हमें इसके सकारात्मक पहलू को देखना चाहिए
। फेसबुक के अलावा हिंदी के साहित्यकार तकनीक के मामले में अब भी पिछड़े हुए हैं ।
ज्यादातर लेखक अब भी ट्विटर और गूगल प्लस की तकनीक और उसकी पहुंच से अनभिज्ञ हैं ।
इसका नुकसान साहित्य को हो रहा है । किताबों की दुकानों के कम होते जाने से नई नई
कृतियों के बारे में लेखक अपने पाठकों को सूचित नहीं कर पा रहे हैं । इन दिनों एक
नई पहल शुरू हुई है । स्मार्टफोन की बढ़ती लोकप्रियता और इंटरनेट के फैलाव ने
लेखकों को एक नया मंच दिया है । यह मंच है व्हाट्स ऐप । इसपर कई साहित्यक ग्रुप
सक्रिय हैं । व्हाट्स ऐप पर मौजूद दो समूहों से मेरा परिचय है । एक का नाम है
कथाकार और दूसरा है रचनाकार । और भी ऐसे समूह व्हाट्स ऐप पर चल रहे होंगे । ‘कथाकार’ समूह को इंदौर के कहानीकार सत्य नारायण पटेल चलाते हैं । इस
समूह के हर सदस्य की जिम्मेदारी है कि वो किसी खास दिन एक रचना पोस्ट करें और अन्य
साथी उसपर अपनी राय दें और फिर बहस की शुरुआत हो । ‘रचनाकार’ समूह को दिल्ली की कथाकार और पत्रकार गीताश्री चलाती हैं । रचनाकार समूह में
लंदन और जापान के साहित्यकार जुडे हैं । ‘कथाकार’ और ‘रचनाकार’ समूह में बुनियादी फर्क यह है कि कथाकार जहां
सिर्फ कृतियों पर चर्चा को प्रोत्साहित करता है वहीं रचनाकार समूह में कहानी कविता
के अलावा कला, संस्कृति और संगीत पर भी बात होती है । इस ग्रुप में बहुत ही सार्थक
चर्चा होती है । हिंदी में क्या नया लिखा पढ़ा जा रहा है वह साझा किया जाता है ।
साथी रचनाकारों की कृतियों पर बातचीत होती है । व्हाट्स ऐप पर बने समूह की एक खूबी
यह है कि यहां फेसबुक वाली अराजकता नहीं है । मसेजिंग सर्विस पर चलनेवाले इन
समूहों के एडमिनिस्ट्रेटर ही सदस्यों को जोड़ते हैं और वो चाहें तो सदस्यों को हटा
सकते हैं । सदस्यों के पास भी विकल्प होता है कि वो जब चाहें समूह से अपने आप को
अलग कर लें ।
हिंदी साहित्य से जुड़े लोगों के लिए यह एक बिल्कुल नई घटना है और तकनीक का
साहित्य के फैलाव में इस्तेमाल करने की एक छोटी सी पहल है । मेरा मानना है कि साहित्य
के विस्तार के लिए तकनीक क जमकर इस्तेमाल करना वक्त की मांग है । अंग्रेजी के तमाम
लेखक अपनी रचनाओं का इंटरनेट के माध्यम से जमकर प्रचार करते हैं । इससे उन्हें
फायदा भी होता है । इसका बेहतरीन उदाहरण ई एल जेम्स हैं । उनकी फिफ्टी शेड्स
ट्रायोलॉजी पिछले छियासठ हफ्ते से न्यूयॉर्क टाइम्स की बेस्टसेलर की सूची में है ।
रचनाकार के माध्यम से गीताश्री और कथाकार के माध्यम से सत्यनाराय़ण पटेल ने अच्छी
शुरुआत की है लेकिन अभी काफी लंबा रास्ता तय करना शेष है ।