देवानंद, भारतीय फिल्म जगत का एक ऐसा सितारा जिसने अपनी कला से, रूपहले पर्द पर अपनी उपस्थिति से और अपनी अदाओं से दशकों तक दर्शकों को अपना दीवाना बना कर रखा। देवानंद का नाम लेते ही जिस एक फिल्म का स्मरण होता है वो है गाइड। ये फिल्म क्लासिक और कल्ट फिल्म है। देवानंद का अभिनय, इसके गीत, इसका फिल्मांकन और कहानी में परोक्ष रूप से चलनेवाला दर्शन फिल्म को ऊंचाई पर स्थापित करता है। इस फिल्म को वैश्विक स्तर पर मान सम्मान मिला, लेकिन इसके बनने और प्रर्दर्शित होने तक संघर्ष की लंबी और दिलचस्प कहानी है। 1962 में बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में देवानंद की फिल्म हम दोनों का प्रदर्शन हुआ। वहीं एक पार्टी मं उनकी भेंट अमेरिकी फिल्म निर्देशक टैड डेनियलेव्स्की से हुई। डेनियलेव्स्की और नोबेल पुरस्कार विजेता लेखिका पर्ल एस बक देवानंद से मुंबई (तब बांबे) में मिल चुके थे। उस भेंट में डेनियलेव्स्की और पर्ल ने देवानंद को अपनी फिल्म में लेने का प्रस्ताव दिया था। तब देवानंद ने कहानी सुनकर मना कर दिया था। पर उनके मन के किसी कोने अंतरे में अमेरिकी निर्देशक के साथ काम करने की इच्छा शेष रह गई थी। बर्लिन की भेंट में फिर से बात उठी। देवानंद को आर के नारायण के उपन्यास गाइड के बारे पता चला। वो उसको लेकर अमेरिका पहुंचे। पर्ल एस बक से मिले। चर्चा हुई। इस उपन्यास पर फिल्म बनने का तय हुआ। टैड डेनियलेव्स्की और पर्ल की कंपनी और देवानंद की फिल्म कंपनी नवकेतन में हिंदी और अंग्रेजी में एक साथ फिल्म बनाने का करार हुआ। अंग्रेजी फिल्म को डेनियलेव्स्की निर्देशित कर रहे थे जिसकी स्क्रिप्ट पर्ल एस बक ने लिखी। देवानंद बेहद खुश थे।
फिल्म पर काम आरंभ हुआ। डेनियलेव्स्की अपनी टीम के साथ भारत आए । कास्टिंग और हिंदी फिल्म के निर्देशक को तय करना था। टैड ने नायिका के तौर पर लीला नायडू को पसंद किया क्योंकि वो अच्छी अंग्रेजी बोलती थी। देवानंद वैजयंतीमाला को चाहते थे क्योंकि फिल्म की नायिका डांसर थीं। टैड का तर्क था कि वैजयंतीमाला मोटी हैं और अमेरिकी दर्शक उसको पसंद नहीं करेंगे। वो इसके लिए भी तैयार थे कि फिल्म में कोई डांस ना हो और पेपर में छपी खबरों से नायिका को डांसर बता दिया जाए। देवानंद ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो फिल्म डूब जाएगी। टैड किसी तरह माने। देवानंद ने वहीदा रहमान का नाम सुझाया। वो टैड को पसंद नहीं थी। देवानंद के अनुरोध पर तैयार हुए। इस बीच किसान की भूमिका के लिए टैड ने के एन सिंह को चुन लिया। उसको लेकर भी विवाद हुआ। हिंदी के निर्देशक की खोज जारी थी। विजय आनंद उर्फ गोल्डी ने पर्ल एस बक की स्क्रिप्ट को खारिज कर दिया था और फिल्म करने से मना कर दिया। उसने साफ तौर पर कहा कि वो ऐसे निर्देशके साथ काम नहीं कर सकता जिसको के एन सिंह में भारतीय किसान दिखता है। दोनों भाइयों में बातचीत बंद हो गई। देवानंद ने चेतन आनंद को तैयार किया। कुछ ही समय में वो अपनी फिल्म हकीकत में व्यस्त हो गए और फिल्म छोड़ दी। राज खोसला को डेनियलेव्स्की के सहायक के तौर पर रखा गया तो वहीदा ने ये कहकर फिल्म करने से मना कर दिया कि राज खोसला ने पिछली फिल्म में उनका अपमान किया था। समझौते कि कोशिश बेकार गई। राज खोसला को फिल्म छोड़नी पड़ी। अब देवानंद के सामने कोई विकल्प नहीं बचा तो वो फिर गोल्डी के पास पहुंचे। गोल्डी अपनी शर्तों पर राजी हुए।
देवानंद के संघर्ष का दौर खत्म नहीं हुआ था। एस डी बर्मन को म्यूजिक देना था लेकिन काम आरंभ हो इसके पहले उनको ह्रदयाघात हो गया। जब वो ठीक हुए तो गीत के कुछ शब्दों को लेकर आपत्ति की तो हसरत भड़क गए और बोल गए कि दलाल करैक्टर के लिए कैसे शब्द लिखे जाएंगे। गोल्डी और सचिन बर्मन बहुत आहत हुए। देवानंद ने हसरत जयपुरी को 25 हजार रुपए देकर फिल्म से विदा कर दिया। फिर शैलेन्द्र आए और उन्होंने अमर गीत कांटो से खींच के ये आंचल लिखा। संकट जारी था। देवानंद को बदसूरत दिखाने के गोल्डी की मंशा पर देव साहब भड़क गए और गोल्डी पर करियर बर्बाद करने का आरोप जड़ गए। फिल्म के कैमरापर्सन ने गोल्डी को समझाने का प्रयास किया लेकिन अड़े रहे। आखिरकार देवानंद झुके। याद करिए गाइड फिल्म का आखिरी सीन जब राजू की बढ़ी हुई दाढ़ी और तपस्वी टाइप लुक। राम राम करके फिल्म पूरी हुई।
अब दूसरी आफत खड़ी थी। फिल्म इंडस्ट्री में देवानंद के विरोधियों ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय में सैकड़ों पत्र भिजवाए कि ये फिल्म समाज में अनैतिकता को बढ़ावा देनेवाली है। इसमें शादी शुदा स्त्री परपुरुष से प्रेम करती है आदि। सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट रुक गया। देवानंद निराश होकर तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी के पास पहुंचे। उन्होंने फिल्म देखी। उसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया। तब जाकर फिल्म को सर्चचिफिकेट मिल पाया और फिल्म रिलीज हुई। जबरदस्त सफल हुई। ये बात सही साबित हुई कि इतिहास बिना संघर्ष के नहीं बनता है।