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Thursday, February 16, 2017

लिटरेचर के साथ लिटरेसी

इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि कोई लिटरेचर फेस्टिवल गंभीरता से गांव की ओर जाएगा । अभी तक हमारे देश में लिटरेचर फेस्टिवल का जो स्वरूप बना है या बनता दिख रहा है उसमें पैनल डिस्कशन के अलावा फिल्म और संगीत पर बात होती रही है । एक अनुमान के मुताबिक इस वक्त पूरे देश में छोटे-बड़े करीब साढे तीन सौ लिटरेचर फेस्टिवल होते हैं और कमोबेश सभी एक जैसे ही होते हैं । देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में साहित्य, कला और संगीत का प्रतिष्ठित संगम, लिट-ओ-फेस्ट ने अपने तीसरे संस्करण में एक अनूठी पहल की है जो उसको अन्य लिट फेस्ट से अलग बनाती है । पिछले दो संस्करणों में लिट-ओ-फेस्ट ने साहित्य, कला और संगीत की दुनिया में अपना एक मुकाम हासिल किया था जहां हिंदी और अंग्रेजी साहित्य के दिग्गजों के अलावा संगीत और कला के क्षेत्र की मशहूर हस्तियों ने इस उत्सव में शिरकत की थी । लेकिन अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझते हुए और उसके निर्वहन के लिए लिट-ओ-फेस्ट ने इस बार साहित्य, कला और संगीत को गांव तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है । इस सिलसिले में मुंबई के पास के शाहपुरा जिले के दहीगांव को लिट ओ फेस्ट ने गोद लिया है । लिट ओ फेस्ट इस गांव में शिक्षा को बढ़ावा देने, कौशल विकास, स्वच्छता अभियान आदि के बारे में वहां के लोगों को जागरूक बना रही है । फेस्टिवल शुरू होने के पहले उस गांव में एक स्कूल का जीर्णोद्धार करवा दिया गया है औरर वहां लड़कों और लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाए गए हैं । लिट ओ फेस्ट की योजना है कि वहां के स्कूल में ई एडुकेशन को बढ़ावा दिया जाए । नोटबंदी के पहले शुरू हुई इस पहल के बाद अब मुंबई के इस साहित्य महोत्सव ने तय किया कि लोगों को ई बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग सिखाया जाएगा । लिठ ओ फेस्ट की फेस्टिवल डायरेक्टर स्मिता पारिख के मुताबिक लिटरेचर के साथ-साथ लिटरेसी भी आवश्यक है । हमारे देश में इतनी खूबसूरत साहित्य सृजन हुआ है उसके पाठक बनाना भी हमारा फर्ज हैं । अपनी इसी जिम्मेदारी को समझते हुए लिट ओ फेस्ट ने महानगर के पास के गांव में पाठक तैयार करने का बीड़ा उठाया है । इस योजना को पंख लगाने के लिए दहीगांव में एक पुस्तकालय की स्थापना की जा रही है । लिट ओ फेस्ट से जुड़े प्रकाशकों ने इस पुस्तकालय के लिए किताबें देने का एलान भी किया है । इस मायने में अगर देखा जाए तो मायानगरी मुंबई में तेइस और 24 फरवरी को आयोजित होनेवाला यह साहित्योत्सव अपनी तरह का एक अलग उत्सव है ।
इस पहल के अलावा इस वर्ष के सत्र भी साहित्य, संगीत और कला के अलावा शिक्षा और सुरक्षा पर मंथन करने का अवसर भी प्रदान करता है । हिंदी के मशहूर कवि केदारनाथ सिंह के अलावा लता मंगेशकर पर बेहद गंभीर किताब लिखनेवाले यतीन्द्र मिश्र, कहानीकार गीताश्री, वाणी प्रकाशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी और सीएसडीएस में प्रोफेसर अभय कुमार दुबे खोई हुई दास्तां पर बात करेंगे । गीत संगीत पर अंकित तिवारी से लेकर अनु मलिक, अनूप जलोटा, सोनू निगम, हरिहरन और अमृता फड़णबीस की महफिल जमने वाली है । एक और दिलचस्प सत्र बायोग्राफी बनाम आटोबॉयोग्राफी का है जिसमें सीमा सोनिक, शाहिद रफीक और यतीन्द्र अपने अनुभवों को साझा करेंगे । इसके अलावा सौरभ दफ्तरी, मेघना पंत, अंजलि कृपलानी, अश्विन सांघी जैसे लेखक भी इस लिटरेचर फेस्टिवल में शिरकत कर रहे हैं । दो साल पहले मुंबई के मशहूर जे जे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स से जो सफर शुरू हुआ था वो सेंट जेवियर्स क़लेज से होते हुए अब मेडिकल जिमखाना तक पहुंचा है । मुंबई में आयोजित इस लिट ओ फेस्ट में सत्रों का कैनवस बहुत बड़ा है । गैर हिंदी प्रदेश मुंबई में आयोजित लिट ओ फेस्ट में हिंदी को लेकर कई सत्र होते हैं । यह बात खौस तौर पर रेखांकित की जानी चाहिए कि चाहे वो हिंदी कविता पाठ का सत्र हो या फिर लखनऊ शहर और उसके मिजाज पर सत्र । गुरू शिष्य परंपरा पर सोनम मानसिंह से बातचीत का भी एक सत्र रखा गया है ।

इस लिटरेचर फेस्टिवल की खास बात यह है कि इसके पहले आयोजक नवोदित लेखकों की पांडुलिपियां मंगवाते हैं और फिर उनकी जरी उनमें से चुनाव कर उसको प्रकाशित भी करवाते हैं । उदाहरण के तौर पर पिछले वर्ष चुनी गई पांडुलिपियों का प्रकाशन हो चुका है और इस साल आयोजित लिट ओ फेस्ट में उसको जारी किया जाएगा इसमें बिंदू चेरुन्गात का उपन्यास मेरी अनन्या, करण बजाज की जिंदगी तुमसे है और वैशाख राठौड़ का सरनेम प्रमुख है । इस साल भी आमंत्रित पांडुलिपियों में से जूरी ने चुनाव कर लिया है और कश्मीर की कहानियों को प्रमुखता से चुना गया है । अगर हम समग्रता में विचार करें तो मुंबई में आयोजजित होनेवाले इस लिटरेचर फेस्टिवल ने तीन साल में ही अपनी एक अलग पहचान बनाई है । और लिटरेचर फेस्टिवल को गांवों से जोड़ने की अवनूठी पहले करके इसके आयोजकों ने अन्य लिटरेचर फेस्टिवल्स के सामने एक मिसाल तो पेश की है, चुनौती भी दी है । क्योंकि अगर शब्द के कद्रदान बचेंगें तभी तो सृजन भी बचेगा और सृजन का उत्सव भी  ।