शाहिद कपूर अभिनीत फिल्म ‘कबीर सिंह’ ने रिलीज के छह दिनों बाद ही 120 करोड़ का बिजनेस कर बॉलीवुड
को चौंका दिया है। जिस तरह से बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों की भीड़ उमड़ रही है उसको
देखते हुए अब इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि ये फिल्म दो सप्ताह में 200 करोड़
का बिजनेस कर लेगी। एक तरफ तो फिल्म की सफलता को लेकर जश्न हो रहा है और दूसरी तरफ
फिल्म के कंटेंट को लेकर बहस छिड़ी हुई है । ‘कबीर सिंह’ तेलुगू फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ का हिंदी रीमेक है। तेलुुगूू फिल्म भी जबरदस्त हिट रही थी। इस
फिल्म में शाहिद कपूर ने एक ऐसे शख्स की भूमिका निभाई है जिसको बहुत जल्दी गुस्सा
आता है, वो कॉलेज में मार-पीट करता है। एक लड़की से जबरदस्ती अपने प्यार का
सार्वजनिक एलान कर देता है। बाद में सर्जन बन जाता है तो भी उसकी इस तरह की हरकतें
चालू रहती हैं। वो शराब पीकर और ड्रग्स के डोज लेकर ऑपरेशन करता है, सहकर्मियों के
साथ छेड़खानी भी करता है, बहुधा सारी सीमाएं लांघ जाता है। महिलाओं के प्रति हर
तरह की हिंसा उसके अंदर भरी हुई है और अपने व्यवहार से लेकर अपने काम-काज के दौरान
इस हिंसा का सार्वजनिक प्रदर्शन भी करता है। बावजूद इसके हिंदी फिल्मों के दर्शक
टूट कर फिल्म देखने जा रहे हैं। माना जा रहा है कि फिल्म ‘उरी’ की सफलता के रिकॉर्ड को ये फिल्म तोड़
देगी।
अब जब हम हिंदी सिनेमा के दर्शकों की रुचि को देखते हैं तो एक
बेहद अजीब तस्वीर नजर आती है। एक तरफ तो ‘उरी’ और ‘केसरी’ जैसी देशभक्ति से
ओतप्रोत फिल्में बॉक्स ऑफिस पर जोरदार कमाई करती है तो दूसरी तरफ ‘कबीर सिंह’ जैसी फिल्म को भी दर्शक हाथों हाथ लेते
हैं। महिलाओं के प्रति हिंसा में आनंद की प्रवृत्ति बहुधा रेखांकित की जाती रही
है। चंद सालों पहले जब ई एल जेम्स की उपन्यास-त्रयी ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे’ आई थी तो उसकी
विश्वव्यापी रिकॉर्डतोड़ बिक्री के पीछे की वजह भी यही आनंद की प्रवृत्ति थी। स्त्रियों
के खिलाफ यौनिक हिंसा के विभिन्न रूपों के चित्रण ने उस उपन्यास-त्रयी को चर्चित
तो किया ही, लेखिका को करोड़ों डॉलर की रॉयल्टी मिली थी। उस उपन्यास के फिल्म
राइट्स को बेचकर भी लेखिका को अकूत धन मिला था। ‘कबीर सिंह’ की सफलता के कई सूत्र तो ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ
ग्रे’ की सफलता में मिलते हैं। तब भी विभिन्न प्रकार के यौनिक हिंसा
के वर्णन को पढ़ते हुए पाठकों को आनंद मिलने की बात कही गई थी। ‘कबीर सिंह’ में भी कुछ लोग उसी तरह का आनंद देखते
हैं। मनोविज्ञान में इस तरह के आनंद को ‘सैडिस्टिक प्लेजर’ कहते हैं यानि परपीड़ा से मिलने वाला आनंद। और जब समाज में सामंती
व्यवस्था के अवशेष मौजूद हों या सामंती मानसिकता गहरे तक धंसी हो तो ‘सैडिस्टिक प्लेजर’ अलग अलग रूपों में
निकलकर बाहर आता है। स्त्रियों के प्रति विद्वेष और उनको शारीरिक रूप से पीड़ित
होते हुए देखना आनंद (सैडेस्टिक प्लेजर) से भर देता है। कबीर सिंह की सफलता भी आनंद
के इन्हीं रूपों में से एक हो सकती है।