हिंदी फिल्मों के जानेमाने अभिनेता शाह रुख खान के पुत्र इन दिनों नशाखोरी के आरोप में जेल में हैं। उनकी जमानत याचिका पर कई बार सुनवाई होने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित कर लिया है। यह एक व्यस्थागत प्रक्रिया है जिसका संवैधानिक अधिकार अदालत को है। अदालत ने उसी प्रक्रिया और अधिकार के अंतर्गत ऐसा किया है। इस घटना से कई प्रश्न खड़े हो रहे हैं। हिंदी फिल्मों की दुनिया, जिसको बालीवुड भी कहा जाता है, से पिछले दिनों नशे को लेकर कई सनसनीखेज खबरें आती रही हैं। सुशांत सिंह राजपूत के असामयिक निधन और उसके बाद की घटनाओं की याद अभी देश के मानस में ताजा हैं। उस दौर में ही प्रख्यात अभिनेत्री दीपिका पादुकोण, श्रद्धा कपूर जैसी कई अन्य अभिनेत्रियों से ड्रग्स के मामले में पूछताछ हुई थीं। ये ऐसी घटनाएँ हैं जो इस ओर संकेत करती हैं कि बालीवुड की चमकीली दुनिया का यथार्थ कितना काला है या ड्रग्स के दलदल में फिल्मी दुनिया कितनी गहरे धंस चुकी है। फिल्मी दुनिया से जुड़े कई लोग पहले भी ड्रग्स के मकड़जाल में फंसे हैं। संजय दत्त का केस तो बहुचर्चित रहा है। अभिनेता फरदीन खान और विजय राज के नाम ड्रग्स मामले में न केवल सार्वजनिक हुए बल्कि उनको तो जेल भी जाना पड़ा था। इसके अलावा भी कई ऐसे नाम हैं जिनके बारे में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लोग जानते हैं लेकिन कभी सामने नहीं आए । 2012 में जुहू में एक रेव पार्टी पर पुलिस ने छापा मारा था तो टेलीविजन के कई कलाकार और कई फिल्मी सितारों के बच्चे पकड़े गए थे। उस रेव पार्टी की खूब चर्चा हुई थी। शाह रुख खान के पुत्र की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर से फिल्मी दुनिया और ड्रग्स कनेक्शन पर बात हो रही है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के बाद भोजपुरी अभिनेता और भारतीय जनता पार्टी के सांसद रवि किशन ने संसद में फिल्म इंडस्ट्री में नशाखोरी पर चिंता जताते हुए अपना बयान दिया था। उस वक्त समाजवादी पार्टी की सांसद और अभिनेत्री जया बच्चन ने उनपर पलटवार किया था। जया बच्चन ने तो रवि किशन पर इशारों इशारों में जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं, जैसा आरोप लगाया था। बहस रवि किशन की बात से हटकर जया बच्चन के बयान पर केंद्रित हो गई थी। बालीवुड में ड्रग्स का मामला दब गया था।
आज जब शाह रुख खान का बेटा ड्रग मामले में फंसा है तो बालीवुड की तमाम हस्तियां खामोश हैं। अभिनेता ऋतिक रोशन ने जरूर एक बयान दिया लेकिन बाकी सभी बड़े स्टार चुप्पी साधे हुए हैं। बालीवुड के ट्वीटरवीर अभिनेता और निर्देशक भी इस मसले पर कुछ नहीं बोल रहे हैं। कुछ लोग बोल रहे हैं तो आर्यन खान की जमानत में हो रही देरी पर आवाज उठा रहे हैं। एक ने तो यहां तक कह दिया कि चूंकि शाह रुख खान ‘मुस्लिम सुपरस्टार’ हैं इसलिए उनको परेशान किया जा रहा है। शाह रुख खान को मुसलमान सुपरस्टार के तौर पर देखने वालों की मानसिकता किस स्तर की हो सकती है, उनकी सोच कितनी सांप्रदायिक है या फिर वो जिन्ना का सोच को अपनाते हुए फिर से समाज को बांटने का उपक्रम कर रहे हैं। इसपर विचार करना चाहिए। आपको याद होगा जब क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान अजहरुद्दीन पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगा था तब उन्होंने कहा था कि उनको मुसलमान होने की वजह से परेशान किया जा रहा है। ऊल-जलूल लिखकर अपनी बौद्धिक पहचान के लिए लगातार संघर्ष कर रही एक अभिनेत्री ने शाह रुख को परेशान करने का आरोप लगाया। अब उनको कौन समझाए कि अदालतें आर्यन के मामले की लंबी-लंबी सुनवाई कर रही हैं। हर पक्ष को पूरा समय दिया जा रहा है। अदालत अपने विवेक का उपयोग कर रही हैं। क्या किसी अन्य साधारण नागरिक के ड्रग्स केस में फंसने पर ऐसा होता। पता तो ये भी लगाया जाना चाहिए कि आर्यन की जमानत पर सुनवाई की वजह से क्या अन्य केस की सुनवाई स्थगित हुई या उनको कोई दूसरी तारीख मिली। समग्रता में विचार किए बगैर व्यवस्था पर प्रश्न उठाना उचित नहीं है। कुछ उत्साही लोग लखीमपुर खीरी में गृह राज्य मंत्री के बेटे और शाह रुख खान के बेटे की तुलना करते हुए न्यायिक प्रक्रिया पर प्रश्न खड़े कर रहे हैं। अच्छी बात है, लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है लेकिन जब तुलनात्मक आधार पर कोई तर्क प्रस्तुत किया जाता है तो तुलना का आधार एक होना चाहिए या कम से कम एक जैसा होना चाहिए। लखीमपुर खीरी के मामले में भी कानून अपना काम कर रही है और आर्यन खान के मामले में भी कानून अपने हिसाब से काम कर रही है। ये सब लोग वही काम कर रहे हैं जो जया बच्चन ने पिछले साल किया था, जब बालीवुड में ड्रग्स के मामले को अपने बयान से भटका दिया था।
शाह रुख खान के पुत्र इस वक्त जेल में हैं। एक पिता के साथ सबकी संवेदना होनी चाहिए। हर उस पिता को सोचना चाहिए जिसका बच्चा आर्यन की उम्र का है। बजाए इसके कई लोग इस घटना को अपनी राजनीति का औजार बनाकर प्रसिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं। शाह रुख खान के बेटे की आड़ में कुछ लोग नरेन्द्र मोदी पर भी हमले कर रहे हैं। कल्पना की उड़ान ऐसी कि वो इस पूरे प्रकरण को शाह रुख को चुप कराने की साजिश करार दे रहे हैं। ऐसे चतुर सुजान ये भूल जाते हैं कि आर्यन खान का केस महाराष्ट्र में चल रहा है। जहां भारतीय जनता पार्टी का शासन नहीं है। वहां तो कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस के गठबंधन की सरकार है। दूसरे वो ये भूल रहे हैं कि पिछले दिनों जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लोग प्रधानमंत्री मोदी से मिलने आए थे तो उसमें शाह रुख खान भी शामिल थे और दोनों बेहद गर्मजोशी से मिले थे। दूसरे इन दिनों शाह रुख खान की कोई फिल्म भी हिट नहीं हो रही है। उनका फोकस राजनीति पर है भी नहीं। वो तो अपने कारोबार में ही व्यस्त रहते हैं। इसलिए इस मामले में इस तरह की बातें अर्थहीन ही नहीं बल्कि मूल समस्या से देश का ध्यान भटकाने वाली भी हैं।
यह एक ऐसा मसला है जिसके बारे में पूरे देश को एकजुट होकर सोचना पड़ेगा। नशे का चक्रव्यूह ऐसा है कि आज शाह रुख खान का बेटा उसमें फंसा है कल किसी और का बेटा या बेटी उसमें फंस सकती है।जरूरत इस बात की है कि बालीवुड के तमाम दिग्गज सामने आकर इस खतरे के खिलाफ आवाज बुलंद करें, इसको रोकने के उपाय पर बात करें नहीं तो ये नशे का ये राक्षस पूरी पीढ़ी को बर्बाद कर सकता है। अपने आसपास जब हिंदी फिल्मों से जुड़े बच्चे पार्टी का माहौल देखते हैं जहां किसी एक कोने में ‘विशेष’ व्यवस्था रहती है तो वो उस ओर आकर्षित होते हैं। हिंदी फिल्मों की दुनिया में अथाह पैसा है, ग्लैमर है लेकिन अकेलापन भी है। माता-पिता अपने करियर में डूबे रहते हैं, बच्चों के पास समय होता है, पैसे होते हैं लेकिन माता पिता के साथ के लिए वो तरसते हैं। इसी अकेलेपन के दंश में वो नशे की ओर जाते हैं। उन लोगों को भी सोचना चाहिए जो संस्कार या संस्कारी शब्द का हैशटैग बनाकर इंटरनेट मीडिया पर उसका उपहास करते हैं। संस्कारी शब्द तो हिंदी फिल्मों की दुनिया में मजाक बन गया है जबकि परवरिश और संस्कार ही बच्चों को नशे के इस खतरे से बचाने के लिए कवच का काम कर सकता है।