असम में सर्बानंद सोनोवाल के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने असमिया में चंद पंक्ति कहकर बीजेपी के पूर्वोत्तर
राज्यों में पार्टी के मंसूबों को साफ कर दिया । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने
कहा कि पूरे पूर्वोत्तर के चौतरफा विकास के लिए असम बेहद अहम केंद्र बिंदु होने
वाला है । मोदी के मुताबिक असम से होकर ही इस पूरे क्षेत्र में विकास की गंगा
बहेगी और पूरा नार्थ ईस्ट एक शक्तिशाली विकसित क्षेत्र के रूप में भारत के मानचित्र
पर स्थापित होगा । उन्होंने इस मौके पर केंद्र सरकार के एक्ट ईस्ट पॉलीसी की भी
याद दिलाई । एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत जिस तरह से पिछले दो साल में केंद्र सरकार और
उसके विभागों ने पूर्वोत्तर में काम किया वो इसी रणनीति का हिस्सा था । अब नरेन्द्र
मोदी के इस बयान को बीजेपी की नार्थ ईस्ट के अन्य राज्यों में पार्टी के विस्तार की
योजना से जोड़कर देखा जाना चाहिए । अगर हम थोड़ा और पीछे जाएं और दो हजार चौदह के
लोकसभा चुनाव के दौर को याद करें तो बीजेपी की पूर्वोत्तर राज्य में विस्तार की
आकांक्षा ज्यादा साफ नजर आती है । दो हजार चौदह के चुनाव प्रचार के वक्त नरेन्द्र
मोदी ने पूर्वोत्तर के राज्यों को सेवन सिसटर्स कहे जाने के औपनिवेशिक मानसिकता पर
भी प्रहार किया था । मोदी ने तब सेवन सिसटर्स की बजाए पौराणिक कथाओं में वर्णित अष्ठ
लक्ष्मी की पहचान को उभारा था । बीजेपी का ये मानना है कि सेवन सिसटर्स औपनिवेशिक
मानसिकता से लबरेज संज्ञा है जो उसको अखंड भारत की पहचान से दूर ही नहीं बल्कि अलग
भी करता है । पूर्वोत्तर के राज्यों की इस पौराणिक पहचान को उभारकर बीजेपी ने वहां
की जनता की स्थानीय आकांक्षा को उभारा । स्थानीयता और स्थानीय अस्मिता का मुद्दा
उन चुनावों में हमेशा फायदा पहुंचाता है जहां ले लोग खुद को मुख्यधारा से अलग
मानते हैं । बीजेपी ने असम का चुनाव तो जीता ही अब उसके मंसूबे नार्थ ईस्ट के अन्य
राज्यों में पार्टी का परचम लहराना है । आरएसएस उत्तर पूर्व के राज्यों में दशकों
से काम करता रहा है और संगठन के शक्तिशाली सहसरकार्यवाह में से एक को उत्तर पूर्व
के राज्यों की जिम्मेदारी दी जाती रही है । संघ बेहद खामोशी के साथ लंबे समय से
कार्यकर्ताओं को इलस बदलाव के लिए तैयार कर रहा था । आरएसएस की बेवसाइट पर मौजूद
जानकारी के मुताबिक इस वक्त भी डॉ कृष्ण गोपाल के जिम्मे उत्तर पूर्व के राज्य है
। गोपाल कृष्ण इस वक्त संघ के शक्तिशाली पदाधिकारी हैं और संघ और सरकार के बीच के
समन्वय का काम भी देखते हैं । राम माधव भले ही बीजेपी में आकर पार्टी महासचिव हों
लेकिन वो संघ के ही नुमाइंदे हैं । माना जाता है कि इस वजह से भी राम माधव को वहां
की जिम्मेदारी दी गई थी ताकि पार्टी और संघ के बीच बेहतर तालमेल बना रहे । इस तरह
से कृष्ण गोपाल, राम माधव के केंद्र में होने से पार्टी और सरकार दोनों के साथ
तालमेल बेहतर रहा । इस बेहतर तालमेल का नतीजा भी सबके सामने है । राम माधव ने कैडर
को संगठित करने में अहम भूमिका निभाई । उन्होंने नए वोटरों को पार्टी से जोड़ने पर
सफलतापूर्वक काम किया । बीजेपी को मुस्लिम बहुल इलाकों में भी वोट मिले और उसका एक
मुस्लिम उम्मीदवार विधायक भी बना । बीजेपी ने स्थानीय मुद्दों को तो उठाकर वोटरों
को एकजुट किया ही स्थानीय अस्मिता को उभारकर वोटरों के बीच गहरी पैठ भी बनाई । बीजेपी
और संघ दशकों से असम में बांग्लादेशी मुसलमानों के घुसपैठ और उससे आसन्न खतरों के
मुद्दे उठाते रही है । अब पार्टी इसी लाइन पर चलते हुए पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों
में भी मजबूती से काम कर रही है । सर्वानंद सोनोवाल ने तो बांग्लादेश सीमा पर
कंटीले तार लगाने के वादा भी कर दिया है ।
सर्बानंद सोनोवाल के शपथ गर्हण समारोह के कोलाहल और तमाम दिग्गज
नेताओं की उपस्थिति के बीच बीजेपी ने एक ऐसा फैसला लिया जो खबरों में उभर कर नहीं
आ पाया । बीजेपी ने नार्थ ईस्ट के लिए एक
अलग फ्रंट का एलान किया और उसके संयोजक की भूमिका पूर्व कांग्रेस नेता और अब
सर्बानंद सोनोवाल सरकार में नंबर दो के मंत्री हेमंता सरमा बिस्वा को सौंपा है । इस
फ्रंट को बनाने के पीछे पूर्वोत्तर के अन्य छोटे राज्यों में पार्टी को मजबूत करना
है । बीजेपी ने असम में एक रणनीति के तहत बीपीएफ और एजीपी के साथ चुनाव पूर्व
गठबंधन किया और सफलता का स्वाद चखा । नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिंक फ्रंट के नाम से
बनाए गए इस गठबंधन में सिक्किम और नागालैंड की सत्तारूढ पार्टियों को भी शामिल
किया गया है और योजना के मुताबिक अन्य विपक्षी छोटी पार्टियों को भी एक मंच पर
इकट्ठा किया जाएगा। इस तरह से अगर हम देखें तो नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिंक फ्रंट यानि
एनईडीए में उत्तर पूर्व के चार राज्यों के सत्ताधारी दल शामिल हो चुके हैं । सिक्किम
डेमोक्रेटिक फ्रंट और नगा पीपल्स फ्रंट के साथ असम और अरुणाचल प्रदेश के एनडीए
सीएम इसके सदस्य हैं । पूर्वोत्तर के चंद राज्यों में ही कांग्रेस की सरकार बच पाई
है । कह सकते हैं कि अगर कर्नाटक को छोड़ दें तो कांग्रेस तो हिमालय की गोद में
सिमट कर रह गई है चाहे वो उत्तराखंड हो, हिमाचल हो या फिर मेघालय, मणिपुर और
मिजोरम हो । बीजेपी ने जिस तरह से नगा पीपल्स फ्रंट और इंफाल के अन्य छोटे दलों से
गठबंधन कप नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिंक फ्रंट बनाया है उसका असर अगले साल होनेवाले
मणिपुर विधानसभा चुनाव पर दिखाई दे सकता है । पूर्व कांग्रेसी नेता हेमंता बिस्बा
को नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिंक फ्रंट का क्नवीनर बनाकर बीजेपी नेमाल्टर स्ट्रोक खेला
है । बिस्बा को ना केवल कांग्रेस की उत्तर पूर्व की रणनीति का इल्म है बल्कि अन्य
राज्यों के पुराने कांग्रेसियों से उनके बेहतर संबंध भी हैं जो चुनाव ते वक्त
बीजेपी के काम आ सकते हैं । असम चुनाव के वक्त मेघालय की तुरा लोकसभा सीट से जिस
तरह से वहां से कांग्रेसी मुख्यमंत्री की पत्नी को हार मिली है उसको देखते हुए भी
बीजेपी को संभावनाएं नजर आ रही हैं । बीजेपी ने हेमंता बिस्वा को इस काम में लगाकर
कांग्रेस को दबाव में लेने का कार्ड खेल दिया है । इस तरह से अगर गम देखें तो
बीजेपी रणनीतिक तौर पर पूर्वोत्तर में कांग्रेस से मजबूत दिखाई दे रही है और
कांग्रेस मुक्त पूर्वोत्तर के नए नारे को साकार करने में लगी है ।