Translate

Showing posts with label पृथ्वीराज कपूर. Show all posts
Showing posts with label पृथ्वीराज कपूर. Show all posts

Monday, June 1, 2020

न वो राज रहे, न वो राजघाराना

1942 में केदार शर्मा मुंबई के रंजीत स्टूडियोज के लिए एक फिल्म बना रहे थे, विषकन्या, जिसमें पृथ्वीराज कपूर, साधना बोस और सुरेन्द्र नाथ प्रमुख भूमिका में थे। केदार शर्मा और पृथ्वीराज कपूर में कलकत्ता (अब कोलकाता) के दिनों से बहुत दोस्ती थी और दोनों एक दूसरे के सुख-दुख के साथी थे। बाद में दोनों कोलकाता से मुबई आ गए थे। फिल्म विषकन्या की शूटिंग के दौरान केदार शर्मा ने इस बात को नोटिस किया कि पृथ्वीराज कपूर जब भी शूटिंग के लिए सेट पर पहुंचते हैं तो वो बहुत उदास रहते हैं। शूटिंग के पहले और बाद में भी गुमसुम रहते हैं और सेट पर किसी से बातचीत नहीं करते हैं। केदार शर्मा लगातार इस बात को नोट कर रहे थे लेकिन पृथ्वीराज कपूर से पूछ नहीं पा रहे थे। एक दिन अवसर मिल ही गया, पृथ्वीराज कपूर एक शॉट देने के बाद सेट पर एक कोने में जाकर बैठ गए। ये देखकर केदार शर्मा उनके पास पहुंचे उनका हाथ पकड़कर बोले कि अगर इसमें बहुत व्यक्तिगत कुछ नहीं हो तो मैं आपकी उदासी का कारण जानना चाहता हूं। मुझे लगता है कि आप किसी खास वजह से बेहद परेशान हैं। आप मुझपर भरोसा रखकर उदासी की वजह बताइए मैं उसको दूर करने की कोशिश करूंगा। इतना सुनकर पृथ्वीराज कपूर अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सके और जोर से केदार का हाथ पकड़कर बोले, केदार! मैं अपने बेटे राजू को लेकर बहुत चिंतित हूं। किशोरावस्था की उलझनों में वो मुझे भटकता हुआ लग रहा है, मैंने उसको पढ़ने के लिए कॉलेज भेजा लेकिन पर वहां पढ़ाई से ज्यादा वो लड़कियों में खो गया है। इतना बोलकर पृथ्वीराज कपूर चुप हो गए। केदार शर्मा ने पृथ्वीराज कपूर के कंधे पर अपना हाथ रखकर कहा कि अपने बेटे को मुझे सौंप दो लेकिन एक वादा करो कि मेरे और उसके बीच आप दखलअंदाजी नहीं करोगे। मैं उसको रास्ते पर लाऊंगा ठीक उसी तरह जिस तरह से कोई गुरू अपने चेले को लेकर आता है। मैं उसको अपना असिस्टेंट डायरेक्टर बनाने के लिए तैयार हूं। पृथ्वीराज कपूर का दुख कुछ कम हुआ। 
अगले दिन वो अपने बेटे राजू को लेकर केदार शर्मा के पास पहुंचे। कपूर खानदान की परंपरा के मुताबिक राजू ने केदार शर्मा के पांव छूकर आशीर्वाद लिया। केदार शर्मा ने राजू को उनके बचपन के दिनों की याद दिलाई जब वो कोलकाता में रहते थे और अपने पिता के साथ स्टूडियो आया करते थे। एक दिन जब केदार शर्मा रील देख रहे थे तो राजू ने उनसे जानना चाहा था कि रील में कैद चित्र पर्दे पर चलने कैसे लगते हैं। तब केदार शर्मा ने राजू को कहा था कि एक दिन मैं तुम्हें इसका रहस्य बताऊंगा। अब केदार शर्मा ने राजू से कहा कि रील का रहस्य जानने का समय आ गया है। तुम अब मेरे साथ काम करो आज से तुम मेरे असिस्टेंट डायरेक्टर हो। इसके बाद की कहानी बहुचर्चित है कि कैसे केदार शर्मा ने राजू को एक जोरदार थप्पड़ जड़ा था और फिर उसके बाद अपनी फिल्म में काम करने का ऑफर दिया था। जब राजू को केदार शर्मा ने फिल्म का ऑफर दिया था तब राजू ने उनसे कहा था कि हां अंकल! मैं कैमरे के आगे काम करना चाहता हूं और दुनिया को अपनी अभिनय की प्रतिभा दिखाना चाहता हूं। इतना सुनते ही केदार शर्मा ने राजू को गले लगा लिया था। गले लगते ही राजू ने उनकी कान में कहा था, प्लीज अंकल प्लीज मेरे साथ हीरोइन के तौर पर बेबी मुमताज तो रख लेना, वो बेहद खूबसूरत है। इसी बेबी मुमताज को लोगों ने बाद में मधुबाला के नाम से जाना। केदार शर्मा ने वादा तो कर दिया लेकिन बाद में बेबी मुमताज को फिल्म में लेने के लिए उनको अपने पार्टनर की नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी। खैर ये अलहदा प्रसंग है जिसकी विस्तार से चर्चा केदार शर्मा ने अपनी आत्मकथा में की है।   
पर कौन जानता था कि जो बालक कोलकाता के स्टूडियो में केदार शर्मा से रील का रहस्य जानना चाहता था, जो किशोरावस्था में कॉलेज में पढ़ाई न करके अन्य सभी बदमाशियां किया करता था, जिसके पिता उसके करियर की चिंता में सेट पर उदास बैठा करते थे, वो रील की इस दुनिया में इतना डूब जाएगा, उसकी बारीकियों को इस कदर समझ लेगा या फिर रील में चलने फिरनेवाले इंसान के व्याकरण को इतना आत्मसात कर लेगा कि पहले अभिनेता राज कपूर के तौर पर और बाद में शोमैन राज कपूर के रूप में उनकी ख्याति पूरे विश्व में फैल जाएगी। आज राज कपूर हमारे बीच नहीं हैं लेकिन रील की उनकी समझ, रील के रूप में उनकी सृजनात्मकता आज भी लोगों को चमत्कृत करती है।