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Saturday, February 26, 2022

अराजकता का रंगमंच,अव्यवस्था का खेला


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इन दिनों अपने चुनावी भाषणों में एक शब्द का प्रयोग कई बार करते हैं वो है ईकोसिस्टम। जब वो ईकोसिस्टम की बात करते हैं तो उनका निशाना उस संगठित समूह की ओर होता है जो उनकी पार्टी और उनके कार्यों को विफल करना चाहती है, लक्ष्य तक पहुंचने की राह में रोड़े अटकाती है। इस ईकोसिस्टम का प्रभाव राजनीति के बाद सबसे अधिक संस्कृति से जुड़ी संस्थाओं में देखा जा सकता है। इस ईकोसिस्टम का प्रभाव देखना हो तो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में पिछले पांच छह साल में घटने वाली घटनाओं को देखा जा सकता है।  ईकोसिट्म के सदस्य वहां इस कदर हावी हैं कि संस्थान  के हर तरह के काम में रोड़े अटकाए जाते हैं। पिछले दिनों राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की दीवार पर प्रधानमंत्री का एक बेहद ही आपत्तिजनक चित्र बना दिया गया। बड़े आकार के चित्र को दीवार पर उकेरने में घंटों लगे होंगे लेकिन विद्यालय प्रशासन को इसकी भनक नहीं लगी । चित्र जब व्हाट्सएप पर साझा किया जाने लगा तो प्रशासन हरकत में आया। चित्र मिटाया गया। उस शिक्षक पर कोई कार्रवाई नहीं हुई जिसकी देखरेख में आपत्तिजनक चित्र बना। यहां भी ईकोसिस्टम सक्रिय हुआ और पहले इसको अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ा गया लेकिन जब कार्यकारी निदेशक के कार्यालय से दबाव बना तो इसको छात्रों की उत्साह में की गई गलती बताकर मामले को रफा दफा करने की कोशिशें हुईं। किसी पर भी कोई कार्रवाई हुई हो ये पता नहीं चल पाया। 

नई दिल्ली के बहावलपुर हाउस में चलनेवाला राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नाट्य प्रशिक्षण देता है। नाट्य प्रशिक्षण के क्षेत्र में इस संस्था की देश-विदेश में बहुत प्रतिष्ठा है। इन दिनों ये संस्था अपनी इस प्रतिष्ठा को बचाने के लिए संघर्षरत है। आए दिन इसके कैंपस में हाय-हाय के नारे गूंजते हैं। इस संस्था के अध्यक्ष प्रख्यात अभिनेता और पूर्व सांसद परेश रावल हैं। परेश रावल को 2020 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की कमान सौंपी गई थी। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि संस्थान के अध्यक्ष का पद करीब तीन साल तक खाली रहा था। परेश रावल के पहले रतन थिएम 2017 में पदमुक्त हो चुके थे। संस्थान में सितंबर, 2018 के बाद से कोई नियमित निदेशक भी नहीं है। ज्यादतर प्रशासनिक कार्य तदर्थ आधार पर हो रहे हैं। इस संस्थान में सरकार ने दो बार निदेशक नियुक्त करने की प्रक्रिया आरंभ की लेकिन अब तक सफलता नहीं मिल पाई है। पहली बार जब निदेशक नियुक्ति की प्रक्रिया आरंभ तो अज्ञात कारणों से नियुक्ति अटक गई। जब परेश रावल अध्यक्ष बने तो उन्होंने दुबारा प्रक्रिया आरंभ की, साक्षात्कार आदि संपन्न हुआ और सफल अभ्यार्थियों का पैनल बनाकर संस्कृति मंत्रालय भेज दिया गया। इस बीच पहली सूची में चयनित पैनल का एक व्यक्ति अदालत चला गया और मामला लंबा उलझ गया। अदालत से केस के निस्तारण के भी कुछ महीने बीत चुके हैं लेकिन निदेशक की नियुक्ति नहीं हो पा रही है।  

इतने महत्वपूर्ण संस्थान में निदेशक के नहीं होने और करीब तीन वर्ष तक अध्यक्ष नहीं होने की वजह से वहां व्यवस्था लड़खड़ा गई। प्रशासनिक भी और अकादमिक भी। जब व्यवस्था लड़खड़ाती है तो अराजकता का जन्म होता है। वहां भी हुआ। ईकोसिस्टम मजबूत हुआ। इस तरह के नाटकों पर काम होने लगा जो अपने समाज की सही तस्वीर पेश नहीं करता है। आपत्तिजनक भी है। कोई देखनेवाला नहीं है और ईकोसिट्म मजबूत है तो इस तरह के काम निर्बाध गति से चलते भी रहते हैं। स्टूडेंट प्रोडक्शन के नाम पर जिन नाटकों को तैयार करवाया जाता है उसको लेकर कोई नियम नहीं होने की वजह से फूहड़ नाटकों के प्रदर्शन को बढ़ावा मिलता है। किसी भी संस्थान का पाठ्यक्रम निर्धारित होता है, यहां भी है लेकिन स्टूडेंट प्रोडक्शन का एक ऐसा रास्ता है जिसका कोई पाठ्यक्रम या नाटकों की कोई सूची निर्धारित नहीं है। जो भी निर्देशक या शिक्षक पढ़ाने आएगा वो अपनी मर्जी के नाटक का चयन करेगा। अगर नाटक की स्क्रिप्ट है तब तो उसका पता संस्थान के अन्य विभाग को लग सकता है लेकिन अगर नाटक इंप्रोवाइज्ड है तो उसका पता प्रोडक्शन के बहुत करीब आने पर ही चलता है। इसकी आड़ में ही मनमाने नाटकों का प्रदर्शन होता रहता है। कई बार राजनीतिक एजेंडे वाले नाटकों का भी प्रोडक्शन होता है तो कई बार यौन उनमुक्तता को विषय बनाकर समाज की भद्दी छवि पेश की जाती है। बताया जाता है कि इस महीने के आरंभ में इस तरह के एक नाटक का प्रदर्शन वहां हुआ। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री का आपत्तिजनक चित्र भी राजनीतिक एजेंडे वाले एक नाटक की तैयारी के दौरान ही बनाया गया बताते हैं। 

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय संस्कृति मंत्रालय के अधीन है और भारत सरकार से वित्त पोषित है। जब परेश रावल को वहां का अध्यक्ष बनाया गया था तो उम्मीद जगी थी कि नाट्य विद्यालय की प्रतिष्ठा वापस लौटेगी। परेश रावल ने अपने कार्यकाल के आरंभिक दिनों में इसके लिए प्रयास भी किए थे। उत्साह में देशभर में नाट्य प्रदशनों को लेकर बडी बड़ी बातें की थीं लेकिन ईकोसिस्टम ने उनके कुछ नया करने के मंसूबों पर पानी फेर दिया। अब तो वो संस्थान में यथास्थितिवाद को बनाए रखने के लिए ही संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। ईकोसिट्म ने अध्यक्ष के एक सहयोगी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और उसको हटाने का दबाव बनाया जा रहा है। अध्यक्ष के सहयोगी का दोष इतना है कि उसने पूर्व में हुई गड़बड़ियों को सामने लाने का काम आरंभ किया है। ईकोसिस्टम को ये मंजूर नहीं है। ईकोसिट्म को न तो छात्रों की परवाह है ना ही विद्यालय की प्रतिष्ठा की। ईकोसिस्टम में तो वहां ऐसे सदस्य भी हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वो कम्युनिस्ट पार्टी के भी सक्रिय सदस्य हैं और पार्टी की इंटरनेट पर चलनेवाली गतिविधियों को संचालित भी करते हैं। अर्जुन देव चारण सालों से संस्थान के उपाध्यक्ष के पद पर बने हुए हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की हालत का अंदाज इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वहां की वेबसाइटट तक अपडेट नहीं हो रही है। 

आवश्यकता इस बात की है कि संस्कृति मंत्रालय में उच्चतम स्तर पर इस संस्थान पर ध्यान दिया जाए। यहां नियमित निदेशक की नियुक्ति की जाए ताकि प्रशासनिक कार्य पटरी पर आ सके। मंत्रालय एक शार्टकट निकालता है कि निदेशक की नियुक्ति होने तक मंत्रालय के किसी अफसर को संस्थान का प्रभार दे दिया जाए। यह स्थायी समाधान नहीं है। आवश्यक नहीं कि जिस अधिकारी को नाट्य विद्यालय का प्रभार दिया जाए उसकी रुचि इस विधा या कला में हो। हमारे सामने ललित कला अकादमी और संगीत नाटक अकादमी का उदाहरण है जहां अधिकारी इन संस्थाओं को चला रहे हैं। ये दोनों संस्थाएं कैसे चल रही हैं इस बारे में कई बार इस स्तंभ में लिखा जा चुका है, उसको दोहराने का कोई लाभ नहीं। जरूरत इस बात की भी है कि इस संस्थान के पाठ्यक्रम को अद्यतन किया जाए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप पाठ्यक्रम में बदलाव किया जाना आवश्यक है। संस्थान के अध्यक्ष परेश रावल को भी सामने आकर नेतृत्व करना होगा। उनको भी ये समझना होगा कि अभिनय और इससे जुड़ी विधाओं में उनके अनुभव का विपुल लाभ किस तरह से छात्रों को और संस्थान को मिले। ईकोसिस्टम को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका है कि उसके सामने उनसे बड़ी लकीर खींच दी जाए। कोसने का वक्त निकल चुका है, अब कर दिखाने का समय है। संस्कृति मंत्रालय में इस वक्त योग्य मंत्रियों की टीम है और उम्मीद की जानी चाहिए कि ये टीम ईकोसिस्टम के दुष्प्रभावों को कम करने या खत्म करने के क्षेत्र में सक्रिय होंगे।