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Sunday, April 5, 2009

बिहार में नीतीश की ‘जय हो’

लगभग चार सालों के बाद कुछ दिनों पहले मुझे बिहार जाने का मौका मिला । जब ट्रेन गया रेलवे स्टेशन पर रुकी और मैं उतरा तो सबकुछ आशा के अनुरूप ही था । शोरगुल-भीडभाड़, धक्का-मुक्की । किसी तरह बाहर आया तो बेतरतीब ढंग से गाड़ियां खड़ी थी । किसी तरह पार्किंग से निकलकर अपने गंतव्य की तरफ बढ़ा तो रास्ते में एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर दिखा, बेसाख्ता मुंह से निकला, बिहार में फ्लाईओवर । लेकिन लगभग हफ्ते भर गया में रहने के दौरान समाज के हर तबके से बातचीत करने के बाद ये लगा कि कुछ बदलाव तो है । बिहार के कई शहरों में हर ओर बेहतरी के लिए काम हो रहा है । मुझे विश्वास है कि अगर आनेवाले दिनों में राजनैतिक नेतृत्व में यही इच्छा शक्ति रही तो बिहार भी किसी अन्य विकसित राज्य से कम नहीं होगी । बिहार में रहने के दौरान दौरान मेरी बातचीत समाज के कई तबके के लोगों से हुई । सब लोग कमोबेश नीतीश सरकार से संतुष्ट नजर आए । अखबारों में अपराध की खबरें बिल्कुल ही कम नजर आई । बातचीत से ये लगा राज्य में बेहतर शिक्षा का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है ।
मैं चार साल के बाद अपने गृह राज्य गया था, जाहिर है कानून व्यवस्था को लेकर मेरे मन में उसी जमाने की स्थिति चल रही थी । खबरिया चैनल में काम करते हुए बिहार के बाहुबली विधायकों के कारनामे आते ही रहते थे । जाहिर है जब बिहार में विकास की हचलच और उच्च शिक्षा में सुधार महसूस किया तो स्वाभाविक रूप से बाहुबलियों के बारे में जानने की इच्छा हुई । बातों बातों में टाल क्षेत्र के एक बड़े जमींदार से इसकी चर्चा कर दी । उन्होंने जो कहानी बताया उसे सुनकर दिल को बड़ा ही सुकून मिला । पता ये चला कि नीतीश सरकार ने चुनचुनकर बाहुबलियों के इलाके में ऐसे अफसरों की तैनाती कर दी है, जिन्होंने बाहुबलियों पर नकेल कस दी है । इस बात का समाज पर मनोवैज्ञानिक असर हुआ और छुटभैये अपराधियों और अपराध पर खुद-ब-खुद लगाम लग जाती है । इस दौरान मेरी बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के धुर विरोधियों से भी हुई । सबों से बात करके ये नतीजा निकला कि राज्य में कानून और व्यवस्था की हालात में सुधार हुआ है । ये नहीं है कि स्थिति बिल्कुल सुधर गई है । लेकिन अपहरण और दिन दहाड़े गाड़ी लूट या फिर शो रूम से गाड़ी उठा ले जाने जैसी घटना लगभग बंद हो गई है । छोटे मोटे अपराध तो अब भी हो रहे हैं लेकिन लोगों के मन में इस बात का विश्वास पैदा हुआ है कि अपराधी पकड़े भी जा सकते हैं । शासन में लोगों का विश्वास जमना लोकतंत्र की मजबूती की निशानी है और पिछले तीन वर्षों के शसान काल में नीतीश सरकार ने लोगों के मन में ये विश्वास तो पैदा कर ही दिया है । राष्ट्रकवि दिनकर ने भी संसकृति के चार अध्याय में लिखा है कि विद्रोह, क्रांति या बगावत ऐसी चीज नहीं जिसका विस्फोट अचानक होता है । घाव भी फूटने के पहले अनेक काल तक पकते रहते हैं । अगर दिनकर जी की बातों में हम बदलाव को भी जोड़ लें तो बिहार के संदर्भ में सटीक बैठेगी । किसी भी तरह के बदलाव के लिए वक्त और राजनैतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है । उसके बगैर न तो विकास हो सकता है और न ही बदलाव । मैं नीतीश कुमार की बहुत सी नीतियों का समर्थक नहीं हूं लेकिन ये देखना और सुनना अछ्छा लगता है कि मेरे राज्य का कोई मुख्यमंत्री कंप्यूटर और विदेशी निवेश की बात करता है . सन 1991 में भारत की इकॉनोमी में बदलाव शुरु हुए लेकिन बिहार में सिवाए दूरसंचार के किसी भी क्षेत्र में उस तरह से बदलाव महसूस नहीं किया जिस तरह से देश के अन्य राज्यों का विकास हुआ । बिहार में लगभग दो दशकों तक विकास की बात ही नहीं हुई । बात हुई तो भूरा बाल की, जातिवाद की, और नरसंहार और प्रतिनरसंहार की। नीतीश कुमार के पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों ने न तो राज्य में कंप्यूटरीकरण और न ही विदेशी निवेश की बात की, प्रयास तो दूर की बात । आज जब हर राज्य में जमकर विदेशी निवेश हो रहा है तो बिहार में इसके लिए प्रयास शुरु हुए हैं । लगभग दो दशक पीछे चल रहा है बिहार । राज्य में किसी तरह का कोई निवेश नहीं हुआ तो इसके लिए सिर्फ शीर्ष राजनैतिक नेतृत्व और उनकी सोच जिम्मेदार है । अगर बिहार में निवेशकों के लिए माहौल बनाया जाता और प्रयास किए जाते तो कोई वजह नहीं थी इस राज्य में निवेश नहीं होता । लेकिन अब राज्य में इस तरह की बातें भी होने लगी है तो जाहिर तौर पर काम भी शुरु हो गया है । जरूरत सिर्फ इस बात की है कि राजनैतिक इच्छा शक्ति बनी रहे और अभी नीतीश कुमार जिस तरह बिना किसी दबाव मे आए काम कर रहे हैं उसी तरह करते रहें, तो भूरा बाल साफ करने की बात करनेवाले लोग साफ हो जा सकते हैं । लोकसभा चुनाव में जनता विकास के दुश्मनों को करारा जवाब देने का मन बना चुकी है ।