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Saturday, January 11, 2025

पांडुलिपि मिशन को मिले जीवनदान


महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने पांच भारतीय भाषाओं को क्लासिकल भाषा की श्रेणी में लाने का निर्णय लिया था। ये पांच भाषाएं हैं मराठी, बंगाली, पालि, प्राकृत और असमिया। इन भाषाओं में हमारे देश में प्रचुर मात्रा में ज्ञान संपदा उपलब्ध है। पालि और प्राकृत में तो हमारे इतिहास की अनेक अलक्षित अध्याय भी हैं जिनका सामने आना शेष है। हमारे देश की ऐतिहासिक ज्ञान संपदा कई मठों और बौद्ध विहारों के अलावा जैन मतावलंबियों के मंदिरों में रखी हैं। इनमें से अधिकतर पांडुलिपियां पालि और प्राकृत में हैं। प्रधानमंत्री मोदी इन भाषाओं को क्लासिकल भाषा की घोषणा से आगे जाकर पांडुलिपियों में दर्ज ज्ञान संपदा को आम जनता तक पहुंचाना चाहते हैं। बुद्ध के बारे में तो प्रधानमंत्री राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय मंचों पर निरंतर बोलते रहते हैं। हाल ही में प्रवासी भारतीय दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुद्ध और उनके सिद्धातों के बारे में चर्चा की थी। भगवान बुद्ध ने जो ज्ञान दिया है उसको वैश्विक स्तर पर पहुंचाने का कार्य होना शेष है। प्रधानमंत्री के निर्णय के बाद पालि को लेकर थिंक टैंक श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन ने सक्रियता दिखाई और देश के कई हिस्से में गोष्ठियां आदि करके उसको मुख्यधारा में लाने की पहल आरंभ की है। इन गोष्ठियों में भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं की भागीदारी ये स्पष्ट है कि इस कार्य में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की सहमति और स्वीकृति दोनों है।  प्रधानमंत्री की अपने देश की ज्ञान संपदा को आमजन तक पहुंचाने के लिए सबसे कारगर तरीका तो यही लगता है कि राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन को फिर से सक्रिय किया जाए।

राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन का आरंभ अटल बिहारी वाजपेयी जी के प्रधानमंत्रित्व काल में 2003 में किया गया। मिशन के गठन के करीब सालभर बाद अटल जी की सरकार चली गई। केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बनी। मिशन की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, ‘इस परियोजना के माध्यम से मिशन का उद्देश्य भारत की विशाल पाण्डुलिपीय सम्पदा को अनावृत करना और उसको संरक्षित करना है। भारत लगभग पचास लाख पाण्डुलिपियों से समृद्ध है जो संभवत: विश्व का सबसे बड़ा संकलन है| इसमें सम्मिलित हैं अनेक विषय, पाठ संरचनाएं और कलात्मक बोध, लिपियां, भाषाएं, हस्तलिपियां, प्रकाशन और उद्बोधन| संयुक्त रूप से ये भारत के इतिहास, विरासत और विचार की ‘स्मृति’ हैं। ये पाण्डुलिपियां अनेक संस्थानों तथा निजी संकलनों में प्राय: उपेक्षित और अप्रलेखित स्थिति में देशभर में और उसके बाहर भी बिखरी हुई हैं| राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन का उद्देश्य अतीत को भविष्य से जोड़ने तथा इस देश की स्मृति को उसकी आकांक्षाओं से मिलाने के लिए इन पाण्डुलिपियों का पता लगाना, उनका प्रलेखन करना, उनका संरक्षण करना और उन्हें उपलब्ध कराना है|’  इस मिशन की वेबसाइट पर ही इसके कार्यों का लेखाजोखा भी उपलब्ध है। उसको देखकर सहज ही ये अनुमान लगाया जा सकता है कि मिशन बस चलता रहा है। कोई उल्लेखनीय कार्य हुआ हो ये ज्ञात नहीं हो सका है। अभी कुछ वर्षों पहले तो सांस्कृतिक जगत में ये चर्चा थी संस्कृति मंत्रालय इस मिशन को बंद करना चाहती है। पता नहीं किन कारणों से इस मिशन को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र से जोड़ने का निर्णय हुआ। जब मिशन को कला केंद्र से जोड़ा गया तो माना गया था कि वहां इसके उद्देश्यों को पूरा करने को गति मिलेगी। कला केंद्र के पुस्तकालय में भी पांडुलिपियों का खजाना है। देशभर के 52 पुस्तकालयों से इन पांडुलिपियों की माइक्रो फिल्म बनाकर यहां रखा गया है। इन पांडुलिपियों में गणित, अंतरिक्ष विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र शामिल हैं। इसके अलावा कला केंद्र की लाइब्रेरी में एक लाख के करीब स्लाइड्स हैं जिसपर देश की विविध परंपराओं की झलक देखी जा सकती हैं। देश भर के स्मारकों या ऐतिहासिक इमारतों की तस्वीरें भी यहां हैं। कलानिधि संदर्भ पुस्तकालय अपने आप में अनोखा है। यहां किताबें तो हैं ही एक सांस्कृतिक आर्काइव भी है। पर यहां से जुड़ने के बाद भी मिशन गतिमान नहीं हो सका। बताया जाता है कि संस्कृति मंत्रालय ने मिशन को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र से जोड़ तो दिया पर उसको गतिमान करने के लिए जो आर्थिक संसाधन नहीं दिए। परिणाम वही हुआ जो बिना अर्थ के किसी संस्था का होता है। 

अब प्रधानमंत्री की रुचि को देखते हुए एक बार फिर से राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन को सक्रिय करने का प्रयास संस्कृति मंत्रालय कर रहा है। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के अकाउंट्स को अस्थायी रूप से साहित्य अकादमी को दिया गया है। साहित्य अकादमी को निर्देश दिया गया है कि वो राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के खर्चों का हिसाब किताब रखे। बिलों का भुगतान आदि करे। इस निर्णय के पीछे की मंशा क्या हो सकती है पता नहीं। साहित्य अकादमी को पूरा देश सृजनात्मकता के केंद्र के रूप में जानता है, संस्कृति मंत्रालय इसको लेखा विभाग के लिए भी उपयुक्त समझता है। इन दिनों संस्कृति मंत्रालय अपने अजब-गजब फैसले के लिए भी जाना जाने लगा है। कभी अपने से संबद्ध संस्थाओं के चेयरमैन के स्तर को लेकर जारी फरमान तो कभी राजा राममोहन राय मोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन में एक अस्थायी अफसर को हटाकर दूसरे अस्थायी अफसर को दायित्व देने को लेकर । मंत्रालय को जो ठोस कार्य करने चाहिए उस ओर वहां कार्यरत अफसरों का ध्यान ही नहीं जा पा रहा है। राजा राममोहन राय मोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन में नियमित महानिदेशक की नियुक्ति, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में नियमित चेयरमैन की नियुक्ति जैसे कार्यों पर ध्यान है कि नहीं, पता नहीं। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इंडिया गेट के पास अमृत वाटिका की बात की थी। इस वाटिका में मेरी माटी, मेरा देश के दौरान जमा की गई मिट्टी को रखा जाना था। देशभर से कलश में मिट्टी लेकर लोग दिल्ली में जुटे थे। भव्य कार्यक्रम हुआ था। तब इस तरह की खबर आई थी गृहमंत्री अमित शाह ने अमृत वाटिका के लिए जगह देखने के लिए उस इलाके का दौरा भी किया था। अब पता नहीं कहां हैं वो मिट्टी भरे कलश और कहां बन रही है अमृत वाटिका। संस्कृति मंत्रालय को इस बारे में बताना चाहिए। 

राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन को अगर संस्कृति मंत्रालय के वर्तमान अधिकारियों के भरोसे छोड़ा गया तो उसका परिणाम क्या होगा इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। जो अफसर संस्कृति और संस्कृति से जुड़े मुद्दों की संवेदना को नहीं समझ सकते वो पांडुलिपियों में संचित ज्ञान को लेकर संवेदनशील होंगे इसपर संदेह है। दूसरी जो चिंता योग्य बात ये है कि जब मंत्रालय के अफसर प्रधानमंत्री की रुचि वाली योजनाओं को लेकर बेफिक्र रहते हैं तो वो किसकी सुनते होंगे, कहा नहीं जा सकता। आज आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन को मिशन की तरह चलाया जाए और उसको किसी योग्य व्यक्ति के हाथों में सौंपा जाए। संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत अपने स्तर पर इस कार्य. को पटरी पर लाने में विशेष रुचि लें ताकि भारत का जो इतिहास वर्षों से सामने नहीं आ पाया है वो सामने आ सके और लोग उसपर गर्व कर सकें। प्रधानमंत्री मोदी के पंच-प्रण की पूर्ति की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा।   


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