किसी भी फिल्म फेस्टिवल के आयोजन का उद्देश्य देश में फिल्म संस्कृति का निर्माण करना होता है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने भी फिल्म फेस्टिवल की कल्पना की थी। आगामी 20 नवंबर से गोवा में अंतराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिव का आरंभ हो रहा है। उसके बाद 5 दिसंबर से विश्व के सबसे बड़े घुमंतू फिल्म फेस्टिवल जागरण फिल्म फेस्टिवल की दिल्ली से शुरुआत हो रही है। भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के आयोजन अंतराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल का आयोजन गोवा में होने जा रहा है। इस बार गोवा में आयोजित इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल आफ इंडिया (ईफी) में भारतीय सिनेमा के चार दिग्गजों को भी याद किया जा रहा है। महान शोमैन राज कपूर, गायक मुहम्मद रफी, फिल्मकार तपन सिन्हा और अभिनेता ए नागेश्वर राव की जन्मशती मनाई जा रही है। इन चारों के फिल्मों का प्रदर्शन, उनके कार्यों और समाज पर उसके प्रभाव पर बात होगी। उनके जीवन और फिल्मों के आधार पर प्रदर्शनी लगाई जा रही है। जब हम फिल्म फेस्टिवल पर बात करते हैं और ये मानते हैं कि इससे देश में फिल्म संस्कृति का विकास होगा तो हमारे मानस में एक प्रश्न खड़ा होता है कि इसमें युवाओं की कितनी भागीदारी होगी। ईफी ने एक सराहनीय पहल की है। इस बार फिल्म फेस्टिवल की थीम ही युवा फिल्मकार है। इसमें युवा फिल्मकारों को मंच देने का प्रयास किया जा रहा है। देशभर के फिल्म स्कूलों से जुड़े चुनिंदा छात्रों को ना केवल ईफी में आमंत्रित किया गया है बल्कि उनके कार्यों को रेखांकित कर अंतराष्ट्रीय दर्शकों तक पहुंचाने का उपक्रम भी किया गया है। पहली बार किसी फिल्म का निर्देशन करनेवाले युवा निर्देशक को सम्मानित करने के लिए जूरी ने मेहनत की है। कुछ वर्षों पूर्व 75 क्रिएटिव माइंड्स नाम से युवा फिल्मकारों को प्रोत्साहित करने का एक कार्यक्रम आरंभ किया गया था। इस अभियान के आरंभ में जुड़ने का अवसर मिला था। यह एक बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट था। ईफी के इस 55वें संस्करण में 75 क्रिएटिव माइंड्स की संख्या बढ़ाकर 100 क्रिएटिव माइंड्स कर दी गई है।
अब बात कर लेते हैं उन महान फिल्मी हस्तियों की जिनकी जन्म शताब्दी वर्ष में उनपर विशेष आयोजन हो रहा है। ए नागेश्वर राव तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री को पहचान और नाम देने वाले कलाकार थे। करीब सात दशकों तक उन्होंने फिल्मों में जितना काम किया उसने तेलुगू सिनेमा की पहचान को गाढ़ा किया। उन्होंने एन टी रामाराव के साथ मिलकर तेलुगु फिल्मों को खड़ा किया। कहा जाता है कि तेलुगु फिल्मों के ये दो स्तंभ हैं। नागेश्वर राव का संघर्ष बहुत बड़ा है। वो एक बेहद गरीब परिवार में पैदा हुए थे। वो बचपन से ही फिल्मों में अभिनय करने का स्वप्न देखते थे। वो जब आठ नौ वर्ष के थे तभी से आइने के सामने खड़े होकर अभिनय किया करते थे। उनकी मां जब इसको देखती तो अपने बेटे को प्रोत्साहित करती। नागेश्वर राव की मां ने ही उनको अभिनय के लिए ना केवल प्रेरित किया बल्कि अपनी गरीबी के बावजूद उनको थिएटर में भेजने लगीं। इस बात को नागेश्वर राव स्वीकार भी करते थे कि अगर उनकी मां ना होती तो वो फिल्मों में नहीं आ पाते। रंगमंच पर नागेश्वर राव के काम की प्रशंसा होने लगी थी। 1941 में उनको फिल्मों में पहला काम मिला जब पुलैया ने अपनी फिल्म धर्मपत्नी में कैमियो रोल दिया। उनके इस काम पर प्रलिद्ध फिल्मकार जी बालारमैया की नजर पड़ी और उन्होंने अपनी फिल्म सीतारामम जन्मम में केंद्रीय भूमिका के लिए चयनित कर लिया। स्वाधीनता के पूर्व 1944 में जब ये फिल्म रिलीज हुई तो नागेश्वर राव के काम की चर्चा हुई। पहचान मिली। 1948 में जब उनकी फिल्म बालाराजू आई तो उसको दर्शकों का भरपूर प्यार मिला। उसके बाद तो वो तेलुगु सिनेमा के सुपरस्टार बन गए। ए नागेश्वर राव ने ढाई सौ से अधिक तेलुगु, तमिल और हिंदी फिल्मों में काम किया। एएनआर के नाम से मशहूर इस कलाकार को भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया।
जिस तरह से एएनआर ने तेलुगू फिल्मों को संवारा, कह सकते हैं कि राज कपूर ने भी हिंदी फिल्मों को एक दिशा दी। उनकी फिल्म आवारा का प्रदर्शन ईफी के दौरान किया जा रहा है। कौन जानता था कि जो बालक कोलकाता के स्टूडियो में केदार शर्मा से रील का रहस्य जानना चाहता था, जो किशोरावस्था में कॉलेज में पढ़ाई न करके अन्य सभी बदमाशियां किया करता था, जिसके पिता उसके करियर की चिंता में सेट पर उदास बैठा करते थे, वो रील की इस दुनिया में इतना डूब जाएगा, उसकी बारीकियों को इस कदर समझ लेगा या फिर रील में चलने फिरनेवाले इंसान के व्याकरण को इतना आत्मसात कर लेगा कि पहले अभिनेता राज कपूर के तौर पर और बाद में शोमैन राज कपूर के रूप में उनकी ख्याति पूरे विश्व में फैल जाएगी। राज कपूर ने ना केवल कालजयी फिल्में बनाईं बल्कि उन्होंने नई प्रतिभाओं को भी अवसर दिया। उनकी संगीत की समझ इतनी व्यापक थी कि अक्सर वो संगीतकारों के साथ होनेवाली संगत में फीडबैक दिया करते थे जिससे संगीत बेहद लोकप्रिय हो जाया करता था। कई गीतकारों और संगीतकारों ने इसको स्वीकार किया है। राज कपूर के सहायक रहे और फिर कई हिट फिल्मों का निर्देशन करनेवाले राहुल रवैल ईफी दौरान रणबीर कपूर के साथ संवाद करेंगे।
तपन सिन्हा एक ऐसे निर्देशक थे जिन्होंने बेहतरीन फिल्में बनाईं। काबुलीवाला एक ऐसी फिल्म जिसको अंतराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली। तपन सिन्हा की समाज और समकालीन राजनीति पर पैनी नजर रहती थी। वो अपनी फिल्मों के माध्यम से मनोरंजन तो करते ही थे फिल्मों के जरिए राजनीति की विसंगतियों पर प्रहार भी करते थे। तपन सिन्हा ने बंगाली, हिंदी और ओडिया में फिल्में बनाई। तपन सिन्हा ने बिहार के भागलपुर में अपनी स्कूली पढ़ाई की फिर पटना विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा। तपन सिन्हा ने अपना करियर साउंड इंजीनियर के तौर पर आरंभ किया था लेकिन उनके दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था। वो फिल्म बनाना चाहते थे। जब उन्होंने फिल्मों का निर्देशन आरंभ किया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनको डेढ़ दर्जन से अधिक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले। सत्यजित राय और तपन सिन्हा ने मिलकर बांग्ला फिल्मों को एक नई ऊंचाई दी। वो एक बेहद अनुशासित निर्देशक थे और सुबह दस बजे फिल्मों की शूटिंग आरंभ करते थे और शाम पांच बजे समाप्त। उसके बाद गोल्फ खेलना उनकी दिनचर्या में शामिल था।
मोहम्मद रफी के बारे में क्या ही कहना। वो भारत के ऐसे पार्श्व गायक थे जिनके गीतों को आज भी गुनगुनाया जाता है। ये देखना दिलचस्प होगा कि मोहम्मद रफी को ईफी में कैसे याद किया जाता है। ईफी की ओपनिंग फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर है। इस फिल्म को रणदीप हुडा ने निर्देशित किया है। गैर फीचर फिल्म श्रेणी में ओपनिंग फिल्म घर जैसा कुछ है जो लद्दाखी फिल्म है। इसके अलावा गीतकार प्रसून जोशी, संगीतकार ए आर रहमान और निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा फिल्मों की बारीकियों पर बात करेंगे। गोवा में आयोजित होनेवाले इस फिल्म फेस्टिवल को लेकर अंतराष्ट्रीय फिल्म जगत में भी एक उत्सकुता रहती है। इसमें कई बेहतरीन अंतराष्ट्रीय फिल्मों का भी प्रदर्शन होगा। चार भारतीय फिल्मी दिग्गजों को समर्पित ये फेस्टिवल लंबी लकीर खींच सकता है।
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