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Saturday, March 1, 2025

भारत का प्रधान गुण धर्मपरायणता


शिवरात्रि के साथ ही प्रयागराज महाकुंभ का समापन हो गया। प्रयागराज में डेढ़ महीने तक चले महाकुंभ के दौरान करोड़ों आस्थावान हिंदुओं ने पवित्र संगम में डुबकी लगाई। तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करके भी देश के कोने कोने से श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचे। प्रयागराज और दिल्ली में भगदड़ से हुई मौत ने भी आस्था के इस समागम पर कोई प्रभाव डाला हो ऐसा प्रतीत नहीं होता। दो दुर्घटनाओं में जो मौत हुईं वो बेहद तकलीफदेह है। बावजूद इसके अगर महाकुंभ में शिवरात्रि के दिन तक गंगा में स्नान करनेवालों की संख्या में कमी नहीं आई तो इसके पीछे कुछ न कुछ कारण तो होगा। कई विरोधी दल के नेताओं ने कुंभ को लेकर जिस तरह की टिप्पणियां कीं उसने भी जनता के मनोबल पर कोई विपरीत असर नहीं डाला। 

कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने तो यहां तक कह दिया कि कुंभ में डुबकी लगाने से नौकरी नहीं मिलती, पेट नहीं भरता आदि आदि। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव निरंतर कुंभ को लेकर टीका टिप्पणी करते रहे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने तो महाकुंभ को मृत्युकंभ तक कह दिया। विपक्षी नेताओं के इतना सब कहने के बाद भी महाकुंभ के दौरान पवित्र स्नान करनेवाले श्रद्धालुओं की संख्या का कीर्तिमान बना। एक अनुमान के मुताबिक इस महाकुंभ में बड़ी संख्या में युवाओं ने भी आस्था की डुबकी लगाई। इसको युवाओं के सनातन की ओर बढ़ते झुकाव या फिर अपनी जड़ों की ओर लौटने की तरह देखा जा रहा है। विपक्षी नेता भले ही वोटबैंक के लोभ-लालच में सनातन के इस विशेष आयोजन को लेकर उलजलूल टिप्पणियां कर रहे थे लेकिन भारत के जन का मन कहीं और रमा था। 

इस वातावरण को देखकर प्रेमचंद के एक लेख का स्मरण हो रहा है। प्रेमचंद का एक निबंध है, स्वराज्य के फायदे। इस निबंध में प्रेमचंद ने स्वाधीनता के फायदे गिनाए हैं। लेकिन जो सबसे बड़ा फायदा बताया है वो इस प्रकार है। प्रेमचंद कहते हैं, स्वराज्य से देश को सबसे बड़ा फायदा जो होगा वह भारतीय जीवन का पुनरुद्धार है। प्रत्येक जाति के जीवन में कोई प्रधान गुण होता है। अंग्रेज जाति का प्रधान गुण पराक्रम है, फ्रांसिसियों का प्रधान गुण स्वतंत्र प्रेम है, उसी भांति भारत का प्रधान गुण धर्मपरायणता है। हमारे जीवन का मुख्य आधार धर्म था। हमारा जीवन धर्म के सूत्र में बंधा हुआ था। लेकिन पश्चिमी विचारों के असर से हमारे धर्म का सर्वनाश हुआ जाता है, हमारा वर्तमान धर्म मिटता जाता है, हम अपनी विद्या को भूलते जाते हैं। अपने रहन-सहन, रीति-रिवाज से विमुख होते जाते हैं। हमारा अद्वितीय सामाजिक संगठन छिन्न-भिन्न हुआ जाता है। पश्चिम की देखादेखी हम धनोपार्जन को ही जीवन का लक्ष्य मानने लगे हैं। संपत्ति को ही सर्वापरि समझने लगे हैं। यही हमारा धर्म हो गया है। 

ज्ञान का, संतोष का, कर्तव्यपालन का , त्याग का महत्व हमारी निगाहों में उठता जाता है। हम विद्या को धर्म समझ कर सीखते और सिखाते थे, चाहे वो गान विद्या हो, धनुर्विद्या हो या कोई अन्य विद्या हो। अब हम उसे धनोपार्जन के लिए सीखते और सिखाते हैं। हममें परस्पर प्रेम नहीं रहा, सहानुभूति नहीं रही। हमारी मैत्री, हमारा प्रेम, हमारी सदिच्छाएं, हमारे ह्रदय की उच्च वृत्तियां, सभी धन इच्छा के नीचे दबती जाती हैं। सारांश यह है कि हम अपनी आत्मा को भूलते जाते हैं। स्वराज्य पाकर हम अपनी आत्मा को पा जाएंगे। हमारे धर्म का उत्थान हो जाएगा। अधर्म का अंधकार मिट जाएगा और ज्ञान भास्कर का उदय होगा।...हम किसी जाति के पिछलग्गू न बनकर संसार सभा में उचित स्थान पर बैठेंगे। हमारी गणना दीन हीन परवश जातियों में न होकर उन जातियों में होने लगेगी जिनके हाथों में संसार की बागडोर है।...हम उन्नत और बलवान जातियों के सम्मुख बैठने के अधिकारी हो जाएंगे। 

प्रेमचंद की उपर्युक्त टिप्पणी में दो महत्वपूर्ण बात है। एक तो जब वो कहते हैं कि भारत का प्रधान गुण धर्मपरायणता है और हमारा पूरा जीवन धर्म के सूत्र में बंधा हुआ है। उनके इस वाक्य से समझा जा सकता है कि भारतीय समाज जीवन में धर्म का कितना महत्वपूर्ण स्थान रहा होगा। जब वो पश्चिमी विचार की बात करते हैं तो उनके दिमाग में क्या रहा होगा ये कहना कठिन है। अनुमान लगाया जा सकता है कि वो उन विचारों की चर्चा कर रहे होंगे जिसने भारत के मूल विचार पर प्रहार किया। प्रश्न उठ सकता है कि क्या वो मार्क्स और उनके विचारों की ओर इशारा कर रहे थे? प्रेमचंद ने इस निबंध के आरंभ में भी स्वराज्य के फायदे को गिनने को ईश्वर के गुणों को गिनने जैसा बताया है। सिर्फ इस निबंध में ही नहीं बल्कि प्रेमचंद ने अपने लेखन में अन्यत्र भी ईश्वर और भगवान का स्मरण किया है। प्रेमचंद सनातनी थे। सनातन और भारत में उनकी पूर्ण आस्था थी। बावजूद इसके अकादमिक जगत के वामपंथी विचार के शिक्षकों ने उनको जबरदस्ती वामपंथी घोषित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। दूसरी बात ये देखी जानी चाहिए कि प्रेमचंद ने जाति शब्द का उपयोग किन अर्थों में किया है। वो अंग्रेजों को फ्रांसीसियों को भारतीयों को एक जाति के तौर पर देखते हैं। उनके लिए जाति का मतलब एक तरीके से राष्ट्रीयता है। बाद में पता नहीं किन परिस्थियों में जाति को समूह विशेष के साथ जोड़ दिया गया। यह पूरा मसला एक अलग अध्ययन की मांग करता है। 

प्रेमचंद भारत में जिस धर्मपरायणता की बात कर रहे हैं वो भारतीयों का मूल जीवन दर्शन है। प्रगतिशीलता के दावे करनेवालों के मन में कहीं न कहीं धर्म और उसकी परायणता को लेकर एक लगाव दिखता है। कुछ लोग ये तर्क देते हैं कि धर्म और आस्था बहुत ही व्यक्तिगत चीज है, ऐसे लोग भी धर्म को लेकर भ्रमित होते हैं। वो धर्म को कर्मकांड समझ लेते हैं और उसके ही आधार पर धर्म की व्याख्या कर उसके फायदे और नुकसान गिनाने लगते हैं। धर्म ना तो फायदा देखता है और ना ही नुकसान। उसका उद्देश्य तो मानव कल्याण है। धर्म को अफीम बतानेवाली विचारधारा के अनुयायी इस बात को समझ नहीं पाते हैं। अपने एजेंडे के अनुसार समाज में शोर मचाते हैं। धर्म के विरोध में वातावरण बनाने का प्रयास करते हैं। प्रेमचंद ने पराधीनता के कालखंड में ही इस बात का अनुमान लगा लिया था कि अगर भारत की जनता धर्म की ओर उन्मुख होती है तो संसार सभा में हमारे देश को उचित स्थान मिल सकेगा। आज वैश्विक स्तर पर भारत की जो स्थिति है उसको प्रेमचंद के इस अनुमान के साथ मिलाकर देखने के स्पष्ट तस्वीर बनती है। वैश्विक परिदृष्य में आज भारत ना तो किसी जाति का पिछलग्गू है और ना ही कोई अन्य देश हमारी उपेक्षा करने के बारे में सोच भी सकता है। आज भारत को दीन-हीन परवश जाति बताने का साहस दुनिया का शक्तिशाली और विकसित देश भी नहीं कर सकते हैं। आज कोई भी इतिहासकार भारत के बारे में लिखते हुए इसको संपेरों का देश कहने का साहस नहीं कर पाएगा। यह भारतीय जनता की धर्मपरायणता का ही प्रतिफल है। सनातन का जितना उत्थान होगा भारत उतना सबल और शक्तिशाली होगा। धर्मो रक्षति रक्षित:। 


Tuesday, February 25, 2025

आनलाइन कंटेंट की अराजकता और समाज


आपके दिमाग में गंदगी भरी हुई है और इस गंदगी को आप सार्वजनिक कर रहे हैं। आपने और आपके गैंग ने जिस विकृत मानसिकता का परिचय दिया उससे अभिभावक शर्मसार होंगे, माता बहनों का सर शर्म से झुक जाएगा। इस तरह की बातें सुप्रीम कोर्ट ने अल्लाबदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कही।  यूट्यूब पर एक कार्यक्रम इंडियाज गाट लैटेन्ट में पांच लोग बैठे थे। बातचीत हो रही थी। बातचीत इतनी अश्लील और अभद्र थी जिसका सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है। कार्यक्रम में सामने दर्शक भी बैठेते हैं। मंच पर बैठे लोग आपस में हंसी मजाक करते हैं। टिप्पणियां भद्दी और गंदी होती हैं। कई बार जुगुप्साजनक भी। पारिवारिक रिश्तों से लेकर महिलाओं के शरीर और उनकी बनावट पर फूहड़ बातें होती हैं और इसको नाम दिया जाता है स्टैंड अप कामेडी  रोस्ट किया जाता है। सामने बैठी भीड़, जिनमें महिलाएं भी होती हैं, द्विअर्थी संवादों के मजे लेती है। उसको संपादित करके यूट्यूब पर चलाया जाता है। इस बार के कार्यक्रम में बोले गए शब्द इतने घटिया थे कि पूरे देश में उसके विरोध में स्वर उठे। रणवीर अल्लाबदिया और समय रैना भी वहां बैठे थे। ये लोग यूट्यूब पर खासे लोकप्रिय हैं। इनकी आभासी लोकप्रियता के पीछे वहां बोले गए द्विअर्थी संवाद होते हैं। इन लोगों के खिलाफ केस मुकदमा हुआ। रणवीर अल्लाबदिया फरार बताए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल उनकी गिरफ्तारी पर तो रोक लगा दी है लेकिन कार्यक्रम करने पर पाबंदी लगा दी है। 

प्रश्न ये है कि इनको इस तरह की बातें करने की हिम्मत कहां से मिलती है। इसका एक पूरा अर्थतंत्र है। यूट्यूब पर इस तरह के कंटेंट की भरमार है और लोग इस तरह के कंटेंट को देख भी रहे हैं। लोगों के देखने से शो को हिट्स मिलते हैं और जितने अधिक हिट्स उतना अधिक पैसा। पैसे के लिए यूट्यूब पर कुछ भी परोसा जा रहा है। अश्लील सामग्र के अलावा जो पारिवारिक रिश्ते हैं उनको भी यौनिकता में लपेट कर पेश किया जा रहरा है। इसपर एक बहुत ही श्रेष्ठ टिप्पणी सुनने को मिली थी कि शेर मांस खाएगा, हिरण घास खाएगा और सूअर बिष्टा खाता है। तो यूट्यूब पर मांस खाने वाले भी हैं, घास खानेवाले भी हैं और स्टैंडअप कामेडी के नाम पर परोसा जानेवाला बिष्टा खानेवाले लोग भी हैं। यूट्यूब तो अराजक मंच है ही वहां किसी प्रकार का कोई चेक प्वाइंट नहीं है। पत्रकारिता के नाम पर भी यूट्यूब पर जो होता है उसमें भी अराजकता साफ तौर पर देखी जा सकती है। अधिकतर यूट्यूबर्स को अपनी साख की चिंता नहीं होती है। उलजलूल जो मन में आता है वो कहते रहते हैं। अगर आप ध्यान से देखें तो कई पूर्व पत्रकार जो अब यूट्यूबर बनकर लाखो कमा रहे हैं उनकी कोई साख नहीं है। प्रत्येक चुनाव के पहले वो मोदी को हरा देते हैं, जब उनकी कल्पना शक्ति कुलांचे भरती है तो वो संघ और भाजपा में तनातनी की बातें कहकर वीडियो यूट्यूब पर अपलोड कर देते हैं। उनको मालूम है कि अगर वो भाजपा और संघ की आलोचना करेंगे तो समाज  का एक वर्ग उनको देखेगा। वो चाहे गल्प ही कह रहे हों लेकिन हिट्स मिल जाते हैं और उनकी जेब भर जाती है। 

सिर्फ यूट्यूब की ही बात क्यों करें कई कामेडी शो में भी द्विअर्थी संवाद बोले जाते हैं। चाहे वो कपिल शर्मा का शो ही क्यों न हो। पहले ये टीवी पर चला करते थे लेकिन अब इनको और अधिक अराजकता चाहिए तो अब इस तरह के शो या तो ओटीटी प्लेटफार्म्स पर आ गए हैं या यूट्यूब पर अपना चैनल बना लिया है। फेसबुक और एक्स पर तो पोर्नोग्राफी भी उपलब्ध है। एक्स पर महिला के नाम से हैंडल बनाकर अर्धनग्न तस्वीरें लगाई जाती हैं और फि प्रश्न पूछा जाता है कि मेरे शरीर का कौन सा अंग आपको पसंद है? उस पोस्ट का इंगेजमेंट काफी बढ़ जाता है। ओटीटी के कंटेंट के बारे में कुछ कहना ही व्यर्थ है। वहां हिंसा, यौनिकता और जुगुप्साजनक दृश्यों की भरमार है। कई बार इसपर देशव्यापी बहस हो चुकी है कि ओटीटी के कंटेंट को सरकार को रेगुलेट करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट कहा है कि वो सरकार से इस बारे में जानना चाहती है कि नियमन के लिए क्या किया जा रहा है। कोर्ट इस मसले को यूं नहीं छोड़ सकती है। इस माध्यम को विनियमन के अंतर्गत लाने के लिए एक बड़ा तंत्र चाहिए । संभव है कि सरकार में इतने बड़े तंत्र पर आनेवाले खर्च को लेकर अभी एकराय नहीं बन पा रही हो। अगर विनियमन होता है तो ऐसा करनेवाला भरत पहला देश नहीं होगा। अभिव्यक्ति की स्वाधीनता का शोर मचानेवालों को ये जानना चाहिए कि सिंगापुर में एक नियमन आथिरिटी है जिसका नाम इंफोकाम मीडिया डेवलपमेंट अथारिटी है जिसकी स्थापना ब्राडकास्टिंग एक्ट के अंतर्गत की गई है। सर्विस प्रोवाइडर को इस कानून के अंतर्गत अथारिटी से लाइसेंस लेना होता है। वहां ओटीटी, वीडियो आन डिमांड और विशेष सेवाओं के लिए एक कंटेंट कोड है। सिंगापुर में कंटेंट का वर्गीकरण भी किया जाता है। इंफोकाम मीडिया डेवलपमेंट अथारिटी को ये अधिकार है कि वो किसी भी कंटेंट को रोक सके या कंटेट कोड के विरुद्ध होने पर निर्माताओं पर जुर्माना लगा सके। आस्ट्रेलिया में भी डिजीटल मीडिया पर नजर रखने के लिए ईसेफ्टी कमिश्नर होता है।  जो ये देखता है कि वर्जित कटेंट के नियमों का पालन हो रहा है कि नहीं। अगर कंटेंट का वर्गीकरण नहीं किया जाता है तो ईसेफ्टी कमिश्नर को कंटेंट को प्रतिबंधित करने का अधिकार है। वहां भी कंटेंट को लेकर खास तरह के मानक और कोड तय किए गए हैं। अमेरिका में भी कम्युनिकेशन डिसेंसी एक्ट है जिसके अंतर्गत आनलाइन कंटेंट पर परोसी जानेवाली सामग्री को लेकर एक लीगल फ्रेमवर्क है। कम्युनिकेशन डिसेंसी एक्ट में समय समय पर संशोधन किया जाता है और अभिव्यक्ति की स्वाधीनता और कंटेंट को लेकर एक संतुलन कायम किया जाता है। इसी तरह से यूरोपियन यूनियन ने भी कुछ वर्षों पहले अपने सदस्य देशों के लिए एक गाइडलाइ जारी किया था। 


भारत में आनलाइन कंटेंट को लेकर बीच बीच में सरकार इसको रेगुलेट करने की आवश्यकता पर बल देती रहती है लेकिन किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाती है। अल्लाबदिया और उसके साथियों के कार्यक्रम के बाद एक बार फिर पूरे देश में आनलाइन कंटेंट को लेकर एक कोड बनाने या इसको विनयमित करने की चर्चा आरंभ हो गई है। आज आवश्यकता इस बात की है कि आनलाइन पर जिस प्रकार के भ्रामक, अश्लील, अंधविश्वास फैलानेवाले, महिलाओं और उनके शरीर पर जिस प्रकार की टिप्पणियां की जाती हैं उसको लेकर एक गाइडलाइन या कंटेंट कोड बने। भारत में जो लोग इन माध्यमों से धन अर्जित करते हैं उनको भारतीय कानून और कंटेंट कोड के हिसाब से ही सामग्री तैयार करने की बाध्यता होनी चाहिए। यूट्यूब की अराजकता को कम करने या खत्म करने के लिए ये आवश्यक है कि जो लोग इस प्लेटफार्म से पैसे कमा रहे हैं वो अपना रजिस्ट्रेशन करवाएं। कंटेंट को लेकर एक शपथ पत्र दें कि वो यौनिकता, महिलाओं को लेकर द्विअर्थी संवाद और भद्दे कंटेंट नहीं बनाएंगे। जाहिर सी बात है कि उस शपथ पत्र में भारत विरोधी कंटेंट को भी जगह नहीं मिलनी चाहिए। 

Saturday, February 22, 2025

भारत और हिंदुत्व के विरुद्ध आर्थिक मदद


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक बयान ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया है। ट्रंप ने कहा कि भारत में लोकसभा चुनाव 2024 के समय मतदाताओं की संख्या बढ़ाने के लिए अमेरिका की तरफ से करोड़ों डालर दिए गए। उन्होंने ये भी प्रश्न उठाया कि क्या ये धन भारत में सत्ता परिवर्तन के लिए भेजा गया था। राष्ट्रपति ट्रंप के बयान के बाद इस बात की फैक्ट चेकिंग भी आरंभ हो गई है कि अमेरिका से धन भारत भेजा गया या नहीं। दरअसल अमेरिका की एक एजेंसी है यूनाइटेड स्टेटस एजेंसी फार इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) जो दुनिया के देशों को अलग अलग कारणों से आर्थिक मदद करता है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, लोकतंत्र को मजबूत करने आदि के नाम पर धन दिया जाता है। अधिकतर मामलों में ये आर्थिक मदद स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से की जाती है। कई बार सरकारों को भी धन दिया जाता है कि ताकि वो किसी विशेष कार्यक्रम को चला सकें। प्रश्न ये नहीं है कि अमेरिका से लोकसभा चुनाव के समय धन आया कि नहीं प्रश्न तो ये है कि भारत की जिन संस्थाओं को पूर्व में अमेरिका की एजेंसी यूएसएआईडी के माध्यम से धन मिला उनका इतिहास कैसा है। क्या वो भारत में किसी खास विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए काम करते रहे हैं। क्या वो किसी धर्म विशेष के प्रचार प्रसार में लगी संस्थाएं हैं। जिन गैर सरकारी संगठनों को अमेरिका से पूर्व में धन मिला था क्या उन संगठनों के कर्ताधर्ता किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए हैं। जब भारत में चुनाव के पहले मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा था और ये नैरेटिव गढा जा रहा था कि मोदी सरकार फासिस्ट है तो इस पूरी व्यवस्था के साथ जो लोग थे उनसे जुड़ी संस्थाओं को यूएसएआईडी से कितना धन मिला था। अगर इन बातों की पड़ताल करेंगे तो पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी। 

भारतीय चुनव के फंडिंग के पहले हमें जरा वैश्विक राजनीति के विभिन्न कोणों को समझना होगा। 2024 में पूरी दुनिया के 60 देशों में चुनाव होनेवाले थे लेकिन मतदाताओं की संख्या के हिसाब से भारत में सबसे बड़ा चुनाव होने जा रहा था। वैश्विक मंच पर भारत एक शक्ति के रूप में उभर रहा है और भूरणनीति और भूराजनीति की परिधि से केंद्र की ओर बढ़ रहा है। रूस यूक्रेन युद्ध या इजरायल हमास संघर्ष के दौरान भारत ने जिस प्रकार का स्टैंड लिया उससे पूरी दुनिया की निगाहें भारत पर टिकीं। राजनीति में भारत के महत्व बढ़ने और आर्थिक रूप से संपन्न होने से वैश्विक समीकरणों पर असर पड़ा। भारत के लोकसभा चुनाव को लेकर दुनिया के देशों में उत्सुकता थी। भी जानना चाहते थे कि सरकार किसकी बनेगी। मोदी सरकार की विदेश नीति कई विकसित देशों को असहज कर रही थी। भारत ने अपने हितों को आगे रखना आरंभ कर दिया था। चुनाव में अगर जनता किसी अन्य दल को चुनती तो इसका असर वैश्विक भूरणनीति और भूराजनीति पर पड़ता। जी 20 सम्मेलन के दौरान जिस प्रकार से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को मदर आप डेमोक्रेसी कहा और उसको वैश्विक मंच पर मजबूती से रखा उसने भी लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करनेवाले अमेरिका को असहज किया था। अमेरिका के कुछ धनकुबेर भारत में मोदी सरकार को हटाना चाहते थे। उन्होंने सार्वजनिक रूप से भी इस तरह का बयान भी दिया था। कई संस्थाएं इस कार्य में लग गई थीं। वैश्विक स्तर पर मोदी सरकार के खिलाफ नैरेटिव बनाने में जुटी । आपको याद दिलाते चलें कि 2021 के सितंबर में अमेरिका में एक आनलाइन सम्मेलन हुआ था जिसको डिसमैंटलिंग हिदुत्व का नाम दिया गया था। इस सम्मेलन में भारत से जिन वक्ताओं का नाम था उनमें से अधिकतर 2015 में असहिष्णुता के मुद्दे पर पुरस्कार वापसी का षडयंत्र भी रचा था। इनमें से जुड़े कई लोगों की संस्थाओं या वो जिन संस्थाओं से जुड़े हैं उसको अमेरिका से फंडिंग मिलने की बात सामने आ रही है। इस तरह के कई कार्यक्रम वैश्विक स्तर पर चलाए जिसके उद्देश्य मोदी सरकार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाने पर लेना था। 

यूएसएआईडी ने उन संस्थाओं को भी मदद की जो भारत में मतांतरण के कार्य में लगे हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़ और यहां तक कि मणिपुर में भी सक्रिय हैं। मणिपुर में जिस तरह हिंसा हुई और जिस तरह से वैश्विक स्तर पर भारत को बदनाम करने के लिए एक नैरेटिव बनाया गया उसके पीछे की मंशा को भी समझना चाहिए। ये सब लोकसभा चुनाव के आसपास हो रहा था। कांग्रेस से जुड़ी रहीं एक महिला ने महिलाओं के विकास के नाम पर संस्था बनाई। उनको पद्मभूषण से सम्मानित भी किया गया और कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा की सदस्यता भी दी गई। उस संस्था को यूएसएआईडी ने आर्थिक मदद की थी। बाद में उनको मैगासेसे सम्मान भी मिला। उस फाउंडेशन को भी मदद दी गई जो कश्मीर को विवादित क्षेत्र बताता रहा है। इस नैरेटिव को वैश्विक मंच प्रदान करता रहा है। एशिया में काम करने के नाम पर इस फाउंडेशन को करोडो डालर की मदद दी गई। तरह तरह की संस्थाएं भी बनाई गईं। कोई भारत में चुनाव सुधार के नाम पर तो कोई मतदाताओं को बढ़ाने के नाम पर आर्थिक मदद लेते रहे। जार्जजटाउन विश्वविदयालय को भी मदद दी गई। ये विश्वविद्यालय भारत और हिंदुत्व के खिलाफ नैरेटिव बनाने में लगा रहा है। इस विश्वविद्यालय का ब्रिज इनेशिएटिव नाम से चलनेवाले कार्यक्रम को अगर ध्यान से देखा जाए तो आपको उस नैरेटिव की सचाई नजर आ जाएगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अर्धसैनिक संगठन बताने का नैरेटिव यहीं गढ़ा गया। इसको अमेरिकी थिंक टैंक और खुफिया एजेंसियों का समर्थन भी बताया जाता है। अब यहीं से संयोगों का आरंभ भी होता है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी अमेरिका जाते हैं तो इस विश्वविद्यालय से संबद्ध संस्था ना सिर्फ उनका कार्यक्रम करवाती है बल्कि भारत में लोकतंत्र को लेकर विवादित बयान भी वहीं से आता है। ये विश्वविद्यालय घोषणा करता है कि उसके यहां से ग्रेजुएट करनेवाले छात्र अमेरिकी खुफिया एजेंसी के लिए काम करते हैं। अमेरिका में इसको स्पाई फैक्ट्री के नाम भी जाना जाता है। धर्मिक स्वतंत्रता के नाम पर इस विश्वविद्यालय से जुड़े प्रो नुरुद्दीन ने चुनाव के पहले मणिपुर और भारत में इस्लामोफोबिया के नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी। इसके अलावा मोदी मिराज, न्यू स्टडी इंडीकेट्स डिक्लाइन इन इंडियाज ग्लोबल रेपुटशन अंडर बीजेपी नाम से एक रिपोर्ट का सहलेखन भी नुरुद्दीन ने किया। इस रिपोर्ट को लोकसभा चुनाव को प्रभावित करनेवाली रिपोर्ट के तौर पर देखा गया था। बताया जाता है कि इस रिपोर्ट को फ्रेंड्स आफ डेमोक्रेसी ने स्पांसर किया था। इस संस्था को भी यूएसएआईडी से आर्थिक मदद मिलती है। यूएसएआईडी की फंडिंग का ऐसा मकड़जाल है जिसको समझने और समझाने के लिए पूरी किताब लिखी जा सकती है। अब समय आ गया है कि भारत सरकार इस तरह के प्रकल्पों पर नजर रखे और समय समय पर उसको उजागर भी करते रहे। जिन व्यक्तियों या संस्थाओं को लोकतंत्र या धार्मिक सहिष्णुता के नाम पर मदद मिलती है उनपर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।    

Saturday, February 15, 2025

तिरुपति मंदिर जैसी हो दर्शन व्यवस्था


प्रयागराज में जारी महाकुंभ में लगभग 50 करोड़ श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान किया। महाकुंभ में स्नान के साथ बड़ी संख्या में श्रद्धालु अयोध्या और काशी में पहुंच रहे हैं। अयोध्या में इतनी संख्या में श्रद्धालु पहुंच गए कि कई दिनों तक स्कूल बंद करना पड़ा। रामपथ को वाहनों के लिए बंद करना पड़ा। अयोध्या के निवासियों को रामपथ पर स्थित चिकित्सालय तक पहुंचने में संघर्ष करना पड़ा। आसपास के जिलों से आनेवाले रास्तों पर वाहनों पर सख्ती की गई। अयोध्या में प्रभु श्रीराम के नव्य और भव्य मंदिर का निर्माण कार्य जैसे जैसे आगे बढ़ रहा है वैसे वैसे वहां श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ रही है। पिछले वर्ष श्रीराम मंदिर को दर्शन के लिए खोला गया था। मंदिर परिसर में अब भी कई तरह के निर्माण कार्य चल रहे हैं। परकोटा से लेकर अन्य स्थानों पर मंदिर के भव्य स्वरूप को अंतिम रूप दिया जा रहा है। जानकारों के मुताबिक मंदिर में एक लाख व्यक्ति प्रतिदिन दर्शन का अनुमान लगाकर तदनुसार व्यवस्था की गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि श्रद्धालुओं की संख्या अनुमानित संख्या से अधिक हो जा रही है। दर्शकों को व्यवस्थित करने के लिए स्कूल बंद करने पड़ते हैं, अयोध्या शहर के लोगों को घरों से निकलने में परेशानी होती है। रामपथ के आसपास वाहनों पर प्रतिबंध को लेकर मुश्किल होती है। व्यवस्था संभालने में पुलिस को भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। अभी मंदिर का कार्य चल रहा है तो इसके पूर्ण होने के साथ सुचारू रूप से प्रभु के दर्शन की व्यवस्था पर विचार करना चाहिए। 

अयोध्या में दो तरह से श्रद्धालु दर्शन करते हैं, एक तो आम दर्शन जिसमें श्रद्धालु पंक्तिबद्ध हो जाते हैं और धीरे धीरे चलते हुए दर्शन करके मंदिर परिसर से बाहर आ जाते हैं। इसके अलावा एक सुगम दर्शन होता है। इसकी लेन अलग है। इसमें पासधारक ही प्रवेश कर सकते हैं। इस लेन में जाने के लिए पास प्रशासन, पुलिस और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट से जारी होता है। तीसरा अतिविशिष्ट पास जारी होता है जिसके धारक रंगमंहल बैरियर के पास से मंदिर में प्रवेश करते हैं। दर्शन के लिए किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पिछले वर्ष तो काफी इंताजम किए गए थे, लेकिन धीरे धीरे ये सुविधाएं कम होती चली गईं। अयोध्या पहुंचनेवाले श्रद्धालुओं को धर्मशालाओं और आश्रमों का आसरा रह गया। कई नए होटल खुले जरूर हैं लेकिन वो श्रद्धालुओं की संख्या के आधार पर अपने कमरों की दर तय करते हैं। जो कई बार बहुत अधिक हो जाता है। ऐसा लगता है कि अभी ट्रस्ट की प्राथमिकता में मंदिर परिसर का निर्माण है, इस कारण श्रद्धालुओं की सुविधाओं की ओर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया जा रहा है। किंतु यही उचित समय है कि श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र श्रद्धालुओं की सुविधाओं और अयोध्या पहुंचनेवाले भक्तों की संख्या को ध्यान में रखते हुए योजनाबद्ध तरीके से निर्माण कार्य करे। दर्शन के लिए जिस प्रकार के लेन आदि की व्यवस्था करनी है या राम मंदिर के आसपास के क्षेत्र में वैकल्पिक मार्ग की व्यवस्था करनी है उसपर गंभीरता से विशेषज्ञों के साथ विचार करके निर्णय लिया जाना चाहिए। अगर ऐसा हो पाता है तो दीर्घकाल तक श्रद्धालुओं की संख्या से ना तो अयोध्यावासियों को कोई तकलीफ होगी और ना ही प्रभु श्रीराम के दर्शन के लिए पहुंचनेवाले भक्तों को। 

पिछले दिनों तिरुपति में बालाजी के मंदिर जाकर दर्शन करने का सौभाग्य मिला। वहां दर्शन की व्यवस्था देखकर मन में ये विचार आया कि श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के ट्रस्टियों को वहां जाकर श्रद्धालुओं और मंदिर परिसर की व्यवस्था को देखना चाहिए। अगर उनको उचित लगे तो उस व्यवस्था को बेहतर करके उसको राम मंदिर परिसर में लागू करने का प्रयास करना चाहिए। तिरुपति से जैसे ही आप तिरुमला की पहाड़ी स्थित मंदिर में दर्शन करने के लिए यात्रा आरंभ करते हैं तो उसके पहले आपको आनलाइन दर्शन का टिकट और मंदिर के आसपास रहने की व्यवस्था कर लेनी होगी। अन्यथा आपको नीचे तिरुपति में रुकना होगा। अगर आप विशिष्ट या सुगम दर्शन करना चाहते हैं तो तिरुमला तिरुपति देवस्थानम के कार्यालय में संपर्क करना होगा। वहां आपको अपने आधार कार्ड के साथ आवेदन करना होगा। इसके बाद से सारी व्यवस्था आनलाइन। अगर आपका आवेदन स्वीकृत हो जाता है तो आपके मोबाइल पर एक लिंक आएगा। उस लिंक से आपको पेमेंट करना होगा। पेमेंट होते ही आपके मोबाइल पर ही पास आ जाएगा। जिसमें दर्शन का समय और गैट आदि का उल्लेख होता है। वहां सर्व दर्शन, शीघ्र दर्शन और ब्रेक दर्शन की व्यवस्था है। सबके लिए अलग अलग शुल्क है।  अगर आपने तिरुमला में रात में रुकने की व्यवस्था करनी है तो आनलाइन बुकिंग करनी होगी। तिरुमला तिरुपति देवस्थानम के कार्यालय में जाकर अपने लिए कमरा आवंटित करवाना होगा। सबकुछ व्यवस्थित। आपकी फोटो ली जाएगी फिर पैसा जमा करने के लिए बगल के काउंटर पर भेजा जाएगा। आनलाइन पैसे जमा होंगे। कमरे के किराए जितना ही सेक्युरिटी जमा करवाना होता है। फिर आपके मोबाइल पर कमरा आवंटन की जानकारी और एक कोड आ जाएगा। उसको लेकर बताए हुए स्थान पर पहुंच जाइए। कमरा तैयार मिलेगा। कमरा में चेक इन करते ही एक कोड आपके मोबाइल पर आएगा। जब आप कमरा छोड़ रहे हों तो आपको ये कोड बताना होता है। फिर वापस उसी कार्यालय में जाना होता है जहां आपने पैसे जमा करवाए थे। वहां इस कोड को बताते ही आपको मोबाइल पर सेक्युरिटी मनी के रिफंड की जानकारी आ जाएगी। कहीं भी नकद से लेन देन नहीं। कहीं भी किसी प्रकार का बिचौलिया या एजेंट नहीं। 

सर्वदर्शन और शीघ्रदर्शन के श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए मंदिरर के गर्भगृह तक पहुंचने में जितना भी समय लगे उनको पंक्ति में ही बने रहना होता है। 12-13 घंटे भी लगते हैं तो मंदिर प्रशासन श्रद्धालुओं का पूरा ख्याल रखते हैं। भोजन, फल और बच्चों के लिए दूध आदि की नियमित अंतराल पर व्यवस्था होती है। दर्शन के लिए जो रास्ता बनाया गया है उस रास्ते में वाशरूम की व्यवस्था है। चौबीस घंटे वहां सफाई कर्मचारी तैनात रहते हैं। एकदम स्वच्छ व्यवस्था। किसी भी श्रद्धालु को किसी प्रकार की परेशानी न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। ब्रेकदर्शन के लिए जब सर्वदर्शन की लाइन रोकी जाती है तब भी किसी को किसी तरह की परेशानी नहीं होती है क्योंकि सब पारदर्शी तरीके से किया जाता है। बताय जाता है कि तिरुमला तिरुपति देवस्थानम के चेयरमैन बी आर नायडू सक्रिय रूप से व्यवस्था पर नजर रखते हैं। दर्शन के बाद नीचे पहुंचने के लिए 40 मिनट का समय तय है। अगर आपका वाहन 40 मिनट के पहले नीचे के बैरियर तक पहुंचता है तो आपको जुर्माना देना होगा। ये व्यवस्था वाहनों की गति सीमा को कंट्रोल करने के लिए बनाई गई है। जिस प्रकार से मंदिरों में हिंदुओं की आस्था बढ़ रही है उसको ध्यान में रखते हुए दर्शन की व्यवस्था को बहुत बेहतर करने की आवश्यकता है। जिस प्रकार से युवाओं की सनातन में आस्था बढ़ रही है तो उनकी आस्था को गाढा करने के लिए आवश्यक है कि मंदिरों की व्यवस्था तिरुमला बालाजी मंदिर जैसी हो। 


Wednesday, February 12, 2025

पचास वर्ष पहले आई थी एक आंधी


इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर जब फिल्म या पुस्तक आती है जिसमें सच या सच के करीब जाने की कोशिश की जाती है तो उसको लेकर खूब हो-हल्ला मचता रहा है। इंदिरा गांधी पर मथाई की पुस्तक से लेकर गुलजार के निर्देशन में बनी फिल्म आंधी से लेकर हाल ही में कंगना की फिल्म इमरजेंसी को को लेकर विवाद हुआ। पंजाब में कंगना की फिल्म रिलीज नहीं हो पाई। आज से 50 वर्ष पूर्व जब आंधी रिलीज हुई थी तो प्रचारित किया गया था कि ये फिल्म इंदिरा गांधी और उनके पति फिरोज के रिश्तों पर आधारित है। फिल्म के रिलीज के पहले दक्षिण भारत के अखबारों में इसका एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ था। विज्ञापन में फिल्म की नायिका सुचित्रा सेन की फिल्म की भूमिका से ली गई एक तस्वीर प्रकाशित हुई थी। तस्वीर के नीचे लिखा था कि अपने प्रधानमंत्री को स्क्रीन पर देखें। लेकिन उत्तर भारत और दिल्ली के समाचार पत्रों में इस फिल्म का जो विज्ञापन प्रकाशित हुआ, उसमें लिखा था स्वाधीन भारत की एक दमदार महिला राजनेता की कहानी। फोटो सुचित्रा सेन की फिल्मी गेटअप वाली ही लगी थी। फिल्म की प्रचार सामग्री और उसके फिल्मांकन को लेकर ये बात स्पष्ट थी कि फिल्म इंदिरा गांधी पर ही केंद्रित है। हलांकि फिल्म के निर्देशक गुलजार इस बात से इंकार कर रहे थे कि ये फिल्म इंदिरा गांधी पर बनी थी। उन्होंने स्वाधीन भारत की एक दमदार नेत्री तारकेश्वरी सिन्हा का नाम लेकर कहा था कि फिल्म उनके जीवन से प्रेरित है।

फिल्म से जुड़े लोग लाख इस बात की सफाई देते रहे कि ये फिल्म इंदिरा गांधी पर केंद्रित नहीं है लेकिन इंदिरा गांधी के जीवन और इस फिल्म की नायिका आरती के जीवन में कई समानताएं लक्षित की जा सकती हैं। फिरोज गांधी से इंदिरा गांधी का अलगाव हुआ और वो अपनी पिता की मर्जी से राजनीति में आईं। इंदिरा गांधी के पिता नेहरू भी अपनी बेटी को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर लंबे समय से तैयार कर रहे थे। सुचित्रा सेन के गेटअप से इंदिरा गांधी की झलक मिलती थी। एक छोटा सा अंतर ये रखा गया था कि इंदिरा जी के दो पुत्र थे जबकि फिल्म की नायिका को एक लड़की थी। इंदिरा गांधी के पुत्र अपनी मां के साथ रहते थे जबकि फिल्म में नायिका की पुत्री अपने पिता के साथ रहती थी। गुलजार ने अपने निर्देशन में नायक और नायिका के बीच के प्रेम प्रेम दृष्यों को मर्यादित ढंग से फिल्मी पर्दे पर उकेरा है। रोमांटिक दृष्यों में संजीव कुमार और सुचित्रा सेन ने अपने अभिनय से रिश्ते को जीवंत कर दिया है। फिल्म का एक गीत है, तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं में दोनों के मन की तड़प, मिलने की आकांक्षा लेकिन परिस्थितियां विपरीत। कश्मीर के अनंतनाग इलाके के मार्तंड मंदिर के खंडहरों के बीच फिल्माए इस गीत का लोकेशन, गाने के दौरान नायक नायिका की पोजिशनिंग कहानी को मजबूती प्रदान करती है। संजीव कुमार के अभिनय इतना बेहतरीन है कि उसको देखकर ही रूपहले पर्दे के किरदार की पीड़ा का अनुमान लगाया जा सकता है। बंगाली फिल्मों की जानी मानी अभिनेत्री सुचित्रा सेन ने इस फिल्म में एक बेहद महात्वाकांक्षी महिला के चरित्र को बखूबी निभाया था। इस फिल्म के गाने, इसके संवाद, संवादों का फिल्मांकन और फिर कई मूक दृष्यों में भावनाओं की अभिव्यक्ति इस फिल्म को क्लासिक बनाती है। लेकिन राजनीति ने इस फिल्म को मारने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। 

फिल्म आंधी के रिलीज होने पर ये बातें इंदिरा गांधी तक पहुंचने लगी कि उसमें उनको गलत तरीके से दिखाय गया है। कई लोगों ने जब इंदिरा गांधी के कान भरे तो उन्होंने दो लोगों को फिल्म देखकर बताने के लिए कहा कि क्या वो फिल्म सिनेमा हाल में प्रदर्शन के लिए ठीक है। दोनों ने फिल्म देखी और उसमें ऐसा कुछ भी नहीं पाया कि फिल्म को प्रतिबंधित किया जाए। उस समय के सूचना और प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल को भी फिल्म में कुछ गलत नहीं लगा था। बताया जाता है कि एक दृश्य में सुचित्रा सेन को सिगरेट पीते दिखाने की बात जब इंदिरा गांधी तक पहुंची तो उन्होंने तय कर लिया कि फिल्म को रोक दिया जाए। कुछ ही सप्ताह पहले रिलीज की गई फिल्म प्रतिबंधित। फिल्म के रील को जब्त करने का आदेश। कहा तो यहां तक जाता है कि दिल्ली पुलिस का एक दस्ता मुंबई (तब बांबे) पहुंचा था और तारदेव के एक स्टूडियो पर पुलिस ने छापेमारी कर रील के कई बक्से जब्त किए गए। उन बक्सों को लेकर दिल्ली पुलिस ट्रेन से रवाना हुई। रास्ते में उन बक्सों में आग लगने की बातें हिंदी फिल्मों से जुड़े लोग बताते हैं। सचाई चाहे जो हो लेकिन इतना तय है कि एक खूबसूरत फिल्म विवाद और एक महिला की जिंद की भेंट चढ़ गई। फिल्म को फिर से सिनेमा हाल तक पहुंचने में ढाई वर्ष की प्रतीक्षा करनी पड़ी। जब इंदिरा गांधी लोकसभा चुनाव में पराजित हुईं तो मोरारजी देसाई की सरकार ने इसको दूरदर्शन पर प्रसारित करवाया।