Translate

Sunday, March 29, 2009

नन की आत्मकथा से उठा बवंडर

हाल के दिनों में हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श के नाम पर जो खेल खेला जा रहा है और देह मुक्ति के नाम पर श्रद्धेय के प्रति समर्पण का जो रूप सतह के नीचे दिखाई देता है उसे विमर्श के अलावा कोई और नाम दिया जा सकता है । आप चाहें तो व्यभिचार का विमर्श कह सकते हैं । ये व्यभिचार सिर्फ विमर्श के नाम पर नहीं हो रहा है । धर्म, आस्था, विश्वास, कर्म के नाम पर भी ये खेल खेला जा रहा है । चाहे वो बाल विधवा आश्रम हो या वो नारी निकेतन हो या जैन आश्रम हो या फिर चर्च या इससे जुड़ी संस्थाएं, हर जगह पर धर्म के आवरण में चकलाघर चलता है । हर जगह नारी मुक्ति के नाम पर, धर्म की आड़ लेकर यौन शोषण की खबरें बाहर निकलती रहती हैं । तमाम कानूनी बंदिशों के बावजूद दक्षिण भारत में देवदासी प्रथा अब भी बदस्तूर जारी है, जहां लड़कियों को मंदिर को समर्पित कर दिया जाता है, जहां भगवान के नाम पर उन लड़कियों का जमकर यौन शोषण किया जाता है । देश के कई इलाकों में आजादी के बाद वर्षों तक यह परंपरा रही कि जब लड़की का विवाह होता था तो उसे पहली रात विवाह करवाने वाले पंडित के साथ गुजारना होता था । पूजनीय पंडित जी धर्म और भगवान के नाम पर पहले उस कुंवारी कन्या को 'शुद्ध' कर आशीर्वाद देते थे । हद तो तब हो जाती थी जब एक पंडित एक साथ कई लड़कियों की शादी करवाता था, तो वह अलग अलग लड़कियों की शुद्धिकरण के लिए अपने कुनबे को इकट्ठा करता था और धर्म के नाम पर सब लोग मिलकर लड़कियों के अस्मत से खेलते थे ।
ऐसा नहीं है कि ये सब कुरीतियां सिर्फ हिंदू धर्म में ही मौजूद हैं । कुछ दिनों पहले कोलकाता की लेखिका मधु कांकरिया के उपन्यास- सेज पर संस्कृत- में जैन धर्म में संस्था और आस्था के नाम पर महलाओं के शोषण को साहसपूर्वक सामने लाया गया है । और अब मलयालम में प्रकाशित सिस्टर जेसमी की आत्मकथा ने चर्च और उससे जुड़ी संस्थाओं की पोल पट्टी खोलकर रख दी है । मलयाली भाषा में प्रकाशित इस उपन्यास के दो महीनों में ही तीन संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और अब ये आत्मकथा हिंदी समेत कई भाषाओं में प्रकाशित होने की प्रक्रिया में है । लगभग पैंतीस साल कांग्रेगेशन में गुजारने के बाद सिस्टर जेसमी 2007 में वहां से बाहर निकलती है, गौरतलब है कि इन पैंतीस सालों में जेसमी ने 26 साल बतौर नन गुजारे । इस आत्मकथा के प्रकाशन के बाद कैथोलिक चर्च और उससे जुड़ी संस्थाओं में हड़कंप है ।
दरअसल ये आत्मकथा एक ऐसी लड़की की कहानी है जो एक ऐसे परिवार से आती है जहां बेटी की स्कूल फीस भरने के लिए उसकी मां को जबरदस्त संघर्ष करना पड़ता है । ये वो दौर होता है जब जेसमी बारहवीं की छात्रा थी । उस वक्त त्रिसूर के बिशप जोसेफ कुंडुकुलम, जेसमी की सहायता के लिए आगे आते हैं । जब भी फीस के लिए के लिए जेसमी को पैसे की जरूरत होती है तो वह बिशप हाउस जाती है । सेंट थॉमस कॉलेज के पास की तंग गलियों से बिशप हाउस तक जाने का भी बेहद दिलचस्प वर्णन है । किस तरह से कॉलेज के लड़के उसपर कागज की हवाई जहाज रूपी मिसाइल फेंका करते थे और किस तरह से चर्च के प्रीस्ट उसको खा जानेवाली नजरों से घूरा करते थे । इन घबराहट के बीच वो बिशप से पैसे तो ले लेती थी लेकिन बगैर धन्यवाद दिए भाग आती थी । तमाम घटनाओं के बीच जेसमी परिवार को सन्न कर देनेवाला फैसला लेती है और बारहवीं की परीक्षा के बाद यीशू को खुद को समर्पित कर देती है ।
लेकिन ईसा मसीह को समर्पित होने के बाद जब वो कंफेशन के लिए जाती है तो उसको अपने चारों ओर एक रहस्यमय चुप्पी नजर आती है । आसपास चल रही खुसफुसाहट को जब वो ध्यान से सुनती है तो उसके होश फाख्ता हो जाते हैं । उसकी साथी कुसुमम और मारिया ने बताया कि जो भी लड़की कंफेशन के वक्त अंदर कमरे में जाती है उसको वहां मौजूद प्रीस्ट किस करता है । जब जेसमी कंफेशन के लिए जाती है तो फादर उससे भी किस करने की इजाजत मांगता है, जिससे जेसफी साफ इंकार कर देती है। दूसरी बार जब उसे दबाव डालकर उसी प्रीस्ट के पास भेजा जाता है तो अंदर जाकर जेसमी फादर को आगाह करती है कंफेशन रूम में किस करने को लेकर कांग्रेगेशन की लड़कियों में बहुत रोष है । लेकिन डर से विरोध नहीं कर पा रही हैं । फादर का उत्तर बेहद दिलचस्प ही नहीं हैरान करनेवाला भी है - मैंने हर किसी से किस करने की इजाजत ली है और जिसने मना किया है उसको मैंने किस नहीं किया । और ये सब तो जीजस और बाइबिल की आत्मा के अनुरूप है ।" लेकिन इस घटना से फादर बेहद विचलित हो जाते हैं और एडोरेशन-कम हीलिंग सेशन को जल्द से खत्म करने का हुक्म सुना देते हैं वो भी एक हल्के से बहाने से । इस सेशन के बाद फादर के हुक्म से जेसमी को उनके कमरे में भेजा जाता है । वहां फादर बाइबिल के पन्ने खोलकर होली किस के कोट्स पढ़कर सुनाते हैं । आप भी एक देखिए - सेंट पॉल ने कहा कि - एक दूसरे का अभिवादन पवित्र चुंबन से करें । पीटर कहते हैं - एक दूसरो को प्यार के चुंबन से विश करो, आदि आदि ।
चर्च के शुरआती दिनों में जेसमी को सिर्फ फादर के किस का ही सामना नहीं करना पड़ता है, उसका वास्ता मलयालम पढानेवाली टीचर से भी पड़ता है, जो समलैंगिक है । उसने जैसे ही जेसमी को देखा उसका दिल बल्लियों उछलने लगा और हालात पहली नजर में प्यार वाला पैदा हो गया । विम्मी ने जेसमी को लंबे-लंबे प्रेम पत्र लिखकर अपने प्यार का इजहार किया । हैरान और परेशान जेसमी को तब तो करंट सा झटका लगा जब एक पत्र में विम्मी ने उसके साथ समलैंगिक रिश्ते बनाने की बात का इजहार किया । जब विम्मी को जेसफी की तरफ से सकारात्मक जबाव नहीं मिलता है तो वह जेसमी के खिलाफ षड़यंत्र रचने में जुट जाती है । जेसमी पर जब चौतरफा दबाव बढ़ा तो उसने विम्मी के आगे समर्पण कर दिया । रात में विम्मी उसके बिस्तर में घुस आती थी और उसके साथ लेस्बियन रिश्ता कायम करती थी । जब वो ये संबंध बना रही होती तो हमेशा जोसमी के कान में कहती गर्भ के झंझट से बचने का सबसे सुरक्षित तरीका यही संबंध है ।
जोसमी लंबे समय तक इस संबंध को झेलती रहती है लेकिन जब इंतहां होने लगती है तो वो मदर प्रोवेंशियल से दया की भीख मांगती है और किसी तरह वहां से अपना तबादला करवा लेती है । जब उसका ट्रांसफर ऑर्डर आता है तो विम्मी उसे बुरी तरह से धमकाती और प्रताड़ित करती है और कहती है कि वो उसे चैन से रहने नहीं रहने देगी । जो कालांतर में सच भी साबित होती है ।
नन के लिए सबसे बड़ी सजा ये होती है कि उसे कोई काम नहीं दिया जाए । तबादले के बाद ये खेल जोसफी के साथ शुरु होता है, पहले उसका सामाजिक बहिष्कार किया जाता है और फिर उसे मानसिक तौर पर बीमार साबित करने के लिए तमाम दंद-फंद रचे जाते हैं । मदर प्रोवेंशियल क्लोडिया उसे पागल करार देना चाहती है । ये तमाम षडयंत्र चीख-चीखकर इस बात की गवाही देते हैं कि किस तरह से ननरी में कुछ लोग मिलकर एक सिंडिकेट की तरह ऑपरेट करते हैं और यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठानेवाले को पागल करार देकर नर्क में धकेल देते हैं ।
इस आत्मकथा में जीसस और बाइबिल के नाम पर दैहिक शोषण और फादर और नन के बीच अवैध देह संबंध बनाने की कोशिशों का भी पर्दाफाश किया गया है । सिस्टर जेसमी की शीघ्र प्रकाश्य इस आत्मकथा ने कैथोलिक समुदाय के बीच एक सन्नाटे जैसी स्थिति पैदा दी है और चर्च को इसपर आधिकारिक प्रतिक्रिया देते नहीं बन रहा । शायद बाइबिल से कोई उद्धरण खोजा जा रहा होगा ताकि उसके आधार पर सिस्टर को माफ किया जा सके । वैसे क्रिश्चियनिटी में कई बिडंबनाएं हैं और सबसे बड़ी बिडंबना तो ये है कि अगर कोई कुंवारी लड़की मां बनती है और बच्चा पैदा करती है और उसके बाद शादी करना चाहती है तो उसकी शादी चर्च में नहीं हो सकती । यहां ये बताते चलें कि ईसा मसीह का जन्म मेरी नाम की कुंवारी कन्या से हुआ था ।
इन सबसे इतर अगर हम इस आत्मकथा को हिंदी में प्रकाशित और चर्चित आत्मकथाओं के बरक्स रखकर देखें तो एक बुनियादी फर्क नजर आता है । इसमें जो सेक्स प्रसंग है वो कथा के साथ सहजता से आते हैं और वास्तविकता का एहसास कराते हैं जबकि हिंदी की आत्मकताओं में जबरदस्ती ठूंसे गए प्रतीत होते हैं ।
-------------------------------------
समीक्ष्य पुस्तक- अमीन, द स्टोरी ऑफ ए नन
लेखिका- सिस्टर dजेसमी

2 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारें

डॉ .अनुराग said...

जी हाँ ओर मीडिया की खामोशी मुझे ज्यादा विचलित कर रही है खास तौर से इलेक्ट्रोनिक मीडिया की ...निसंदेह ये विषय बहस का है