प्रिय अरविंद जी
दिसंबर की सर्दी की शुरुआत हो रही थी और दिल्ली का सियासी पारा अपने उबाल पर था । पिछले साल आठ दिसंबर को विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे । साफ हो गया था कि दिल्ली की जनता ने कांग्रेस के पंद्रह साल के विकास के दावों को नकार दिया था, भारतीय जनता पार्टी में अपना पूरा भरोसा नहीं जाहिर किया था । दिल्ली की जनता ने यह साफ कर दिया था कि आप की पार्टी में उनको भरोसा है, हलांकि सरकार चलाने का जनादेश आपको भी नहीं मिला था । कांग्रेस ने बिन मांगे आपको समर्थन दे दिया और उनकी सियासी चाल को भांपते हुए आपने चुनौती स्वीकार कर दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली । शपथग्रहण समारोह के बाद आपने किसी परंपरा की परवाह नहीं करते हुए वहां से जनता को संबोधित भी किया और तमाम वादे किए और अपने इरादे भी जाहिर किए । आपको और आपकी सरकार को लेकर दिल्लीवासियों का एक सपना था,अपेक्षा सातवें आसमान पर थी। पंद्रह साल से सूबे में और दस साल से केंद्र में कांग्रेस का राज देख चुका दिल्ली का आम आदमी, जिसकी नुमाइंदगी का आप दावा करते हैं और जिसने आपको दिल्ली की मुख्यमंत्री की गद्दी तक पहुंचाया, त्रस्त था । भ्रष्टाचार और महंगाई से विद्रोह की हद तक ऊब चुकी जनता के आक्रोश को आपने आवेग दी । जनता ने उसी आवेग से आपको वोट दिया । जनता की बेहतर जिंदगी के लिए आजाद भारत के नेताओं ने अबतक सब्जबाग दिखाए थे लेकिन आपने सपना दिखाया और जनता ने आप के दिखाए उन सपनों पर यकीन कर लिया । चुनाव से पहले आपने दिल्ली के आम आदमी को पानी और बिजली के बिलों में राहत देने का वादा किया था । मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही आपने इन दोनों वादों को पूरा किया । हर सफल राजनेता से जनता की अपेक्षा होती है कि वो अपना वादा पूरा करे । दिल्ली में हर घर को आपने तकरीबन सात सौ लीटर पानी मुफ्त देने का अपना पहला वादा पूरा किया । अरविंद जी, जब मैंने दिल्ली में पानी वितरण की स्थिति का आकलन किया तो मेरे मन में कई सवाल खड़े होने लगे । पहला सवाल तो यही उठा कि क्या आपको सिर्फ उन्हीं लोगों ने वोट दिया था जिनके घर में पानी के मीटर लगे हैं या आपने मुफ्त पानी का वादा सिर्फ उन्हीं लोगों से किया था जिनके घर में मीटर लगे थे । माननीय मुख्यमंत्री जी जिस तत्परता से आपने मुफ्त पानी का अपना वादा पूरा किया उतनी ही तत्परता उन इलाकों में पानी पहुंचाने की भी होनी चाहिए जहां पीने का क्या नहाने का पानी भी उपलब्ध नहीं है । सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि दिल्ली के उन इलाकों में पानी कब पहुंचेगा जहां पानी उपलब्ध नहीं है । कब तक दिल्ली पानी के मामले में आत्मनिर्भर हो पाएगा और बार बार इसके लिए हरियाणा आदि का मुंह नहीं देखना पड़ेगा । पानी वितरण के विशेषज्ञों के मुताबिक दिल्ली में वितरण के दौरान बहुत पानी बरबाद होता है । लीकेज एक बड़ी समस्या है । पानी के पाइपलाइन कई इलाकों में इतने टूट फूट चुके हैं कि कई बार उनसे सीवर का पानी आने लगता है । पानी की पाइपलाइन बदलना बहुत ही मुश्किल कार्य है लेकिन आपकी प्राथमिकता में ये होना चाहिए । आपने दिल्ली में टैंकर माफिया को खत्म करने का वादा भी किया था । लोकलुभावन वादों को पूरा करने के चक्कर में इस बात का पता नहीं चल पा रहा है कि कब तक दिल्ली टैंकर माफिया से मुक्त हो पाएगी । आपने आते ही दिल्ली जल बोर्ड में बड़े पैमाने पर तबादले किए । उनके नतीजे दिखने शेष हैं । हलांकि महीने भर से शासन की बागडो़र संभालने वाली सरकार से इतनी अपेक्षाएं उचित नहीं है लेकिन अगर आप इन बुनियादी समस्याओं पर ध्यान देकर उनको दूर करने में अपना ध्यान लगाएंगे तो इतिहास पुरुष हो जाएंगे । अरविंद जी, आपसे इस तरह की अपेक्षाएं इस वजह से हैं कि आपने हमें एक अलग तरह की राजनीति की राह दिखाई जो राजनीति पारंपरिकता से अलहदा है ।
आपने दूसरा वादा किया था बिजली के बिलों को आधा करने का । चूंकि चुनावी वादा था और पूरा नहीं करने पर विरोधी आपको घेरते लिहाजा आपने सब्सिडी का शॉर्टकट चुना । यह संतोष की बात है कि आपने ये व्यवस्था सिर्फ तीन महीने के लिए लागू की है । बिजली पर सब्सिडी देने या जनता का मुफ्त बिजली देने का स्टंट काफी पुराना है । अंतत: इसका फायदा जनता को होता नहीं है और सब्सिडी का बोझ घूम फिरकर टैक्स के रूप में आम आदमी पर ही पड़ता है । सब्सिडी का दूसरा नुकसान यह है कि जिस पैसे से सड़क, स्कूल या अस्पताल जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जा सकता था वो उन्हीं कंपनियों के खातों में जा रहा है जिसके आप खिलाफ हैं । सर्दियों के मौसम में तो बिजली नहीं आने से जनता नाराज नहीं होती लेकिन गर्मी में अगर सप्लाई में कटौती होती है तो जनता सड़कों पर उतर आएगी । दिल्ली में बिजली चोरी और वितरण के दौरान जेनरेशन लॉस की बात कहकर बिजली कंपनियां लगातार सरकार से वित्तीय सहायता लेती रहती हैं या लेने की जुगत में रहती हैं । इन बातों के मद्देनजर आपकी सरकार की तरफ से कोई योजना दिखाई नहीं दे रही है । बिजली के दोषपूर्ण मीटरों को लेकर आप जिस तरह से चुनाव अभियान के वक्त आक्रामक थे वैसी आक्रामकता बतौर मुख्यमंत्री नहीं दिखाई दे रही है । आपको जिस तरह की कार्रवाई करनी चाहिए थी वो भी नहीं हो पा रहा है । हो सकता है कि आप इन मुद्दों पर काम कर रहे हों लेकिन जब तक इजहार-ए-मोहब्बत नहीं होता है तो इश्क परवान नहीं चढ़ पाता है । तो केजरीवाल साहब आप तो जनता की सहभागिता और स्वराज की बात करते हैं तो अपनी जनता को इन फैसलों और योजनाओं, अगर बन रही हैं तो, में भागीदार बनाइए ।
अरविंद जी, एक बात और आपसे कहना चाहता हूं । आपमें और आपकी सरकार के मंत्रियों में पद संभालने के बाद एक खास किस्म की आक्रामकता आ गई है, जो विनम्रता और सहनशीलता आपकी ताकत और पहचान हुआ करती थी उसका सिरा आपलोगों के हाथों से छूटता नजर आ रहा है । अब आपमें अपनी आलोचना बर्दाश्त करने की क्षमता का भी क्षय होने लगा है । आपने अपने हालिया धरने के दौरान जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल देश के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के लिए किया उससे अच्छा संदेश नहीं गया । आप तो भारत माता की जयकार के साथ अपने भाषणों की शुरुआत करते हैं । देश की सभ्यता और संस्कृति का एहसास भी आपको है । हमारे देश में बड़ों से गाली गलौज की भाषा में बात करनेवालों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता है । आपका यह बयान या तो किसी हताशा का प्रतीक था या फिर सत्ता के नशे का । दिल इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है कि अरविंद केजरीवाल पर सत्ता का नशा इतना हावी हो जाएगा कि वो सामाजिक और सार्वजनिक मर्यादा का पालन करना भूल जाएंगे । हो सकता है कि धरने के दौरान अपेक्षित भीड़ नहीं जुटने की हताशा में आप मर्यादा भूल गए हों । इस बीच आपके कानून मंत्री ने देश के एक बड़े वकील और भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता के मुंह पर थूकने वाला बयान दे दिया । यह बयान अवांछित और बेहद आपत्तिजनक था । दोनों ही शख्स की देशभर में प्रतिष्ठा है । लिहाजा चौतरफा दबाव की वजह से आम आदमी पार्टी को माफी मांगनी पड़ी लेकिन तबतक पार्टी और उसकी जितनी भद पिटनी थी वो पिट चुकी थी । पार्टी के माफी मांगने के बाद भी आपके कानून मंत्री को अक्ल नहीं आई है और उन्होंने सार्वजिनक रूप से एक पत्रकार से ही जानना चाहा कि उसे सवाल पूछने के लिए मोदी से कितने पैसे मिले हैं । ये किस तरह की मानसिकता है, कौन सा मनोविज्ञान है जो आपलोगों को आलोचना बर्दाश्त नहीं करने दे रहा है । जानकारों का मानना है कि ऐसे बयान सिर्फ हताशा में ही दिए जा सकते हैं । आपके मंत्री सोमनाथ भारती की हताशा तो समझ में आती है पर केजरीवाल जी आपकी विनम्रता और सहनशीलता तो आपकी ताकत थी, आपको क्या हुआ है । सोचिएगा ।
पत्र थोड़ा लंबा हो रहा है लेकिन केजरीवाल जी आपने सपने भी तो बड़े लंबे लंबे दिखाए हैं । आप दिल्ली की जनता की समस्याओं को देखने समझने के बजाए अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षा के चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रहे हैं । दिल्ली में अपने को मजबूत करने के बजाए आप देशभर में अपनी पार्टी को छितराने में लगे हैं । कई राजनीतिक पंडितों का मानना है कि आप ऐसा करके कांग्रेस के बुने जाल में फंस रहे हैं । कांग्रेस आपके कंधे पर बंदूक रखकर मोदी का शिकार करना चाहती है । आप खुशी खुशी वो कंधा मुहैया करवा रहे हैं । कांग्रेस की रणनीति है कि वो मोदी के विजयरथ के पहिए में आम आदमी पार्टी का फच्चर फंसा दे । आप फच्चर बनने के लिए तैयार हैं । लोकसभा का चुनाव दिल्ली विधानसभा चुनाव से अलहदा होता है । यह बात आपको और आपके अनुभवी साथी अवश्य जानते हैं, बावजूद इसके देशभर में अपने उम्मीदवार खड़े करने की लालसा कहीं आपको तथाकथित रूप से सांप्रदायिकता के खिलाफ बने समूह में तो शामिल नहीं कर देगी । आपकी पार्टी के आला नेताओं के बयान से लग भी यही रहा है कि आम आदमी पार्टी का सियासी दुश्मन भारतीय जनता पार्टी ही है । अगर ऐसा होता है तो आप कांग्रेस को परोक्ष रूप से मदद करेंगे । अभी तो आपके विरोधी शीला सरकार के भ्रष्टाचार पर आपके धीमे चलने पर ही सवाल खड़े करने लगे हैं । लेकिन अगर आप सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई में कांग्रेस का दामन थामते हैं या फिर उसके हाथ को मजबूत करते हैं तो जनता को भी यही लगेगा । केजरीवाल साहब 77 में जब जनता का भरोसा टूटा तो 12 साल लगे थे वी पी सिंह के आंदोलन को खड़ा होने में, वी पी सिंह से भरोसा टूटा तो करीब पच्चीस साल बाद जनता ने आपमें अपना नायक देखा और अगर इस बार भरोसा टूटता है तो हमारी जिंदगी में तो ऐसा अवसर नहीं मिलेगा । इसलिए आप इस ऐतिहासिक मौके को अपनी महात्वाकांक्षा और कांग्रेस की सियासत का शिकार ना होने दें ।
दिसंबर की सर्दी की शुरुआत हो रही थी और दिल्ली का सियासी पारा अपने उबाल पर था । पिछले साल आठ दिसंबर को विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे । साफ हो गया था कि दिल्ली की जनता ने कांग्रेस के पंद्रह साल के विकास के दावों को नकार दिया था, भारतीय जनता पार्टी में अपना पूरा भरोसा नहीं जाहिर किया था । दिल्ली की जनता ने यह साफ कर दिया था कि आप की पार्टी में उनको भरोसा है, हलांकि सरकार चलाने का जनादेश आपको भी नहीं मिला था । कांग्रेस ने बिन मांगे आपको समर्थन दे दिया और उनकी सियासी चाल को भांपते हुए आपने चुनौती स्वीकार कर दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली । शपथग्रहण समारोह के बाद आपने किसी परंपरा की परवाह नहीं करते हुए वहां से जनता को संबोधित भी किया और तमाम वादे किए और अपने इरादे भी जाहिर किए । आपको और आपकी सरकार को लेकर दिल्लीवासियों का एक सपना था,अपेक्षा सातवें आसमान पर थी। पंद्रह साल से सूबे में और दस साल से केंद्र में कांग्रेस का राज देख चुका दिल्ली का आम आदमी, जिसकी नुमाइंदगी का आप दावा करते हैं और जिसने आपको दिल्ली की मुख्यमंत्री की गद्दी तक पहुंचाया, त्रस्त था । भ्रष्टाचार और महंगाई से विद्रोह की हद तक ऊब चुकी जनता के आक्रोश को आपने आवेग दी । जनता ने उसी आवेग से आपको वोट दिया । जनता की बेहतर जिंदगी के लिए आजाद भारत के नेताओं ने अबतक सब्जबाग दिखाए थे लेकिन आपने सपना दिखाया और जनता ने आप के दिखाए उन सपनों पर यकीन कर लिया । चुनाव से पहले आपने दिल्ली के आम आदमी को पानी और बिजली के बिलों में राहत देने का वादा किया था । मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही आपने इन दोनों वादों को पूरा किया । हर सफल राजनेता से जनता की अपेक्षा होती है कि वो अपना वादा पूरा करे । दिल्ली में हर घर को आपने तकरीबन सात सौ लीटर पानी मुफ्त देने का अपना पहला वादा पूरा किया । अरविंद जी, जब मैंने दिल्ली में पानी वितरण की स्थिति का आकलन किया तो मेरे मन में कई सवाल खड़े होने लगे । पहला सवाल तो यही उठा कि क्या आपको सिर्फ उन्हीं लोगों ने वोट दिया था जिनके घर में पानी के मीटर लगे हैं या आपने मुफ्त पानी का वादा सिर्फ उन्हीं लोगों से किया था जिनके घर में मीटर लगे थे । माननीय मुख्यमंत्री जी जिस तत्परता से आपने मुफ्त पानी का अपना वादा पूरा किया उतनी ही तत्परता उन इलाकों में पानी पहुंचाने की भी होनी चाहिए जहां पीने का क्या नहाने का पानी भी उपलब्ध नहीं है । सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि दिल्ली के उन इलाकों में पानी कब पहुंचेगा जहां पानी उपलब्ध नहीं है । कब तक दिल्ली पानी के मामले में आत्मनिर्भर हो पाएगा और बार बार इसके लिए हरियाणा आदि का मुंह नहीं देखना पड़ेगा । पानी वितरण के विशेषज्ञों के मुताबिक दिल्ली में वितरण के दौरान बहुत पानी बरबाद होता है । लीकेज एक बड़ी समस्या है । पानी के पाइपलाइन कई इलाकों में इतने टूट फूट चुके हैं कि कई बार उनसे सीवर का पानी आने लगता है । पानी की पाइपलाइन बदलना बहुत ही मुश्किल कार्य है लेकिन आपकी प्राथमिकता में ये होना चाहिए । आपने दिल्ली में टैंकर माफिया को खत्म करने का वादा भी किया था । लोकलुभावन वादों को पूरा करने के चक्कर में इस बात का पता नहीं चल पा रहा है कि कब तक दिल्ली टैंकर माफिया से मुक्त हो पाएगी । आपने आते ही दिल्ली जल बोर्ड में बड़े पैमाने पर तबादले किए । उनके नतीजे दिखने शेष हैं । हलांकि महीने भर से शासन की बागडो़र संभालने वाली सरकार से इतनी अपेक्षाएं उचित नहीं है लेकिन अगर आप इन बुनियादी समस्याओं पर ध्यान देकर उनको दूर करने में अपना ध्यान लगाएंगे तो इतिहास पुरुष हो जाएंगे । अरविंद जी, आपसे इस तरह की अपेक्षाएं इस वजह से हैं कि आपने हमें एक अलग तरह की राजनीति की राह दिखाई जो राजनीति पारंपरिकता से अलहदा है ।
आपने दूसरा वादा किया था बिजली के बिलों को आधा करने का । चूंकि चुनावी वादा था और पूरा नहीं करने पर विरोधी आपको घेरते लिहाजा आपने सब्सिडी का शॉर्टकट चुना । यह संतोष की बात है कि आपने ये व्यवस्था सिर्फ तीन महीने के लिए लागू की है । बिजली पर सब्सिडी देने या जनता का मुफ्त बिजली देने का स्टंट काफी पुराना है । अंतत: इसका फायदा जनता को होता नहीं है और सब्सिडी का बोझ घूम फिरकर टैक्स के रूप में आम आदमी पर ही पड़ता है । सब्सिडी का दूसरा नुकसान यह है कि जिस पैसे से सड़क, स्कूल या अस्पताल जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जा सकता था वो उन्हीं कंपनियों के खातों में जा रहा है जिसके आप खिलाफ हैं । सर्दियों के मौसम में तो बिजली नहीं आने से जनता नाराज नहीं होती लेकिन गर्मी में अगर सप्लाई में कटौती होती है तो जनता सड़कों पर उतर आएगी । दिल्ली में बिजली चोरी और वितरण के दौरान जेनरेशन लॉस की बात कहकर बिजली कंपनियां लगातार सरकार से वित्तीय सहायता लेती रहती हैं या लेने की जुगत में रहती हैं । इन बातों के मद्देनजर आपकी सरकार की तरफ से कोई योजना दिखाई नहीं दे रही है । बिजली के दोषपूर्ण मीटरों को लेकर आप जिस तरह से चुनाव अभियान के वक्त आक्रामक थे वैसी आक्रामकता बतौर मुख्यमंत्री नहीं दिखाई दे रही है । आपको जिस तरह की कार्रवाई करनी चाहिए थी वो भी नहीं हो पा रहा है । हो सकता है कि आप इन मुद्दों पर काम कर रहे हों लेकिन जब तक इजहार-ए-मोहब्बत नहीं होता है तो इश्क परवान नहीं चढ़ पाता है । तो केजरीवाल साहब आप तो जनता की सहभागिता और स्वराज की बात करते हैं तो अपनी जनता को इन फैसलों और योजनाओं, अगर बन रही हैं तो, में भागीदार बनाइए ।
अरविंद जी, एक बात और आपसे कहना चाहता हूं । आपमें और आपकी सरकार के मंत्रियों में पद संभालने के बाद एक खास किस्म की आक्रामकता आ गई है, जो विनम्रता और सहनशीलता आपकी ताकत और पहचान हुआ करती थी उसका सिरा आपलोगों के हाथों से छूटता नजर आ रहा है । अब आपमें अपनी आलोचना बर्दाश्त करने की क्षमता का भी क्षय होने लगा है । आपने अपने हालिया धरने के दौरान जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल देश के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के लिए किया उससे अच्छा संदेश नहीं गया । आप तो भारत माता की जयकार के साथ अपने भाषणों की शुरुआत करते हैं । देश की सभ्यता और संस्कृति का एहसास भी आपको है । हमारे देश में बड़ों से गाली गलौज की भाषा में बात करनेवालों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता है । आपका यह बयान या तो किसी हताशा का प्रतीक था या फिर सत्ता के नशे का । दिल इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है कि अरविंद केजरीवाल पर सत्ता का नशा इतना हावी हो जाएगा कि वो सामाजिक और सार्वजनिक मर्यादा का पालन करना भूल जाएंगे । हो सकता है कि धरने के दौरान अपेक्षित भीड़ नहीं जुटने की हताशा में आप मर्यादा भूल गए हों । इस बीच आपके कानून मंत्री ने देश के एक बड़े वकील और भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता के मुंह पर थूकने वाला बयान दे दिया । यह बयान अवांछित और बेहद आपत्तिजनक था । दोनों ही शख्स की देशभर में प्रतिष्ठा है । लिहाजा चौतरफा दबाव की वजह से आम आदमी पार्टी को माफी मांगनी पड़ी लेकिन तबतक पार्टी और उसकी जितनी भद पिटनी थी वो पिट चुकी थी । पार्टी के माफी मांगने के बाद भी आपके कानून मंत्री को अक्ल नहीं आई है और उन्होंने सार्वजिनक रूप से एक पत्रकार से ही जानना चाहा कि उसे सवाल पूछने के लिए मोदी से कितने पैसे मिले हैं । ये किस तरह की मानसिकता है, कौन सा मनोविज्ञान है जो आपलोगों को आलोचना बर्दाश्त नहीं करने दे रहा है । जानकारों का मानना है कि ऐसे बयान सिर्फ हताशा में ही दिए जा सकते हैं । आपके मंत्री सोमनाथ भारती की हताशा तो समझ में आती है पर केजरीवाल जी आपकी विनम्रता और सहनशीलता तो आपकी ताकत थी, आपको क्या हुआ है । सोचिएगा ।
पत्र थोड़ा लंबा हो रहा है लेकिन केजरीवाल जी आपने सपने भी तो बड़े लंबे लंबे दिखाए हैं । आप दिल्ली की जनता की समस्याओं को देखने समझने के बजाए अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षा के चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रहे हैं । दिल्ली में अपने को मजबूत करने के बजाए आप देशभर में अपनी पार्टी को छितराने में लगे हैं । कई राजनीतिक पंडितों का मानना है कि आप ऐसा करके कांग्रेस के बुने जाल में फंस रहे हैं । कांग्रेस आपके कंधे पर बंदूक रखकर मोदी का शिकार करना चाहती है । आप खुशी खुशी वो कंधा मुहैया करवा रहे हैं । कांग्रेस की रणनीति है कि वो मोदी के विजयरथ के पहिए में आम आदमी पार्टी का फच्चर फंसा दे । आप फच्चर बनने के लिए तैयार हैं । लोकसभा का चुनाव दिल्ली विधानसभा चुनाव से अलहदा होता है । यह बात आपको और आपके अनुभवी साथी अवश्य जानते हैं, बावजूद इसके देशभर में अपने उम्मीदवार खड़े करने की लालसा कहीं आपको तथाकथित रूप से सांप्रदायिकता के खिलाफ बने समूह में तो शामिल नहीं कर देगी । आपकी पार्टी के आला नेताओं के बयान से लग भी यही रहा है कि आम आदमी पार्टी का सियासी दुश्मन भारतीय जनता पार्टी ही है । अगर ऐसा होता है तो आप कांग्रेस को परोक्ष रूप से मदद करेंगे । अभी तो आपके विरोधी शीला सरकार के भ्रष्टाचार पर आपके धीमे चलने पर ही सवाल खड़े करने लगे हैं । लेकिन अगर आप सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई में कांग्रेस का दामन थामते हैं या फिर उसके हाथ को मजबूत करते हैं तो जनता को भी यही लगेगा । केजरीवाल साहब 77 में जब जनता का भरोसा टूटा तो 12 साल लगे थे वी पी सिंह के आंदोलन को खड़ा होने में, वी पी सिंह से भरोसा टूटा तो करीब पच्चीस साल बाद जनता ने आपमें अपना नायक देखा और अगर इस बार भरोसा टूटता है तो हमारी जिंदगी में तो ऐसा अवसर नहीं मिलेगा । इसलिए आप इस ऐतिहासिक मौके को अपनी महात्वाकांक्षा और कांग्रेस की सियासत का शिकार ना होने दें ।