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Saturday, June 20, 2020

चमकीली दुनिया का काला यथार्थ


फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने हिंदी फिल्मों की दुनिया की चमकीली छवि के पीछे की कालिख को सामने ला दिया है। कंगना रनौत जिस तरह से हर दिन सामने आकर एक के बाद एक खुलासे कर रही है उससे ये संदेश तो जा ही रहा है कि हिंदी फिल्मों की दुनिया में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। ताजा खुलासे में कंगना ने पटकथा लेखक जावेद अख्तर के साथ के अपने अनुभवों को साझा किया है। ऐसी खबरें हैं कि एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि जावेद अख्तर ने उनको अपने घर बुलाकर कहा था कि रोशन परिवार से समझौता कर लो नहीं तो तुम कहीं की नहीं रहोगी, वो तुमको जेल भिजवा देंगे या तुम आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाओगी। इस बात में अगर सचाई है तो जावेद अख्तर जैसे व्यक्ति से इस तरह के व्यवहार की अपेक्षा तो नहीं ही की जा सकती है। उनसे तो अपेक्षा ये की जाती है कि अगर दो कलाकारों के बीच किसी तरह की कोई गलतफहमी है तो बड़े होने के नाते वो उसको दूर करें ना कि एक का पक्ष लेकर दूसरे को ये कहें कि समझौता कर लो या जेल जाने के लिए तैयार रहो।  

कंगना रनौत पिछले दो तीन दिनों से काफी आक्रामक हैं। इस बीच 'दबंग' फिल्म के निर्देशक अभिनव सिंह कश्यप ने सलमान खान परिवार पर बेहद संगीन इल्जाम लगाए हैं। जिस तरह की खबरें आ रही हैं उससे तो लगता है कि ये मसले अब अदालतों तक जाएंगें और जो अबतक दबा छुपा था वो सार्वजनिक होगा।  लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये भी है कि क्या सचमुच बॉलीवुड में भाई भतीजावाद (नेपोटिज्म) का बोलबाला है। क्या बॉलीवुड में कोई माफिया काम करता है जो सितारों को बढ़ाने या उसको मिटाने की ठेके उठाता है। जो परिस्थितिजन्य बातें सामने आ रही हैं उससे तो साफ तौर पर ये लगता है कि ऐसा कोई तंत्र वहां काम करता है और ये तंत्र काफी मजबूत भी है। कई ऐसे कलाकार हैं जिनकी फिल्में लगातार फ्लॉप होती रहती हैं लेकिन उनको फिर भी बड़े बैनर की फिल्में मिलती रहती हैं लेकिन कई ऐसे भी कलाकार हैं जो अच्छी फिल्में करते हैं, उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बेहतर करती भी हैं लेकिन उनको अपेक्षाकृत कम फिल्में और प्रचार मिलते हैं। इसमें अगर हम सुशांत सिंह राजपूत का ही उदाहरण लें तो उनकी फिल्म 'छिछोरे' ने करीब ढ़ाई सौ करोड़ रुपए का कोरोबार किया लेकिन उसका इतना शोर नहीं मचा जितना मचना चाहिए था। कहा जाता है कि बॉलीवुड में एक रिच बॉय क्लब है जिसमे बांद्रा से लेकर मालाबार हिल के बीच रहनेवाले कुछ प्रोड्यूसर्स शामिल हैं।  
दरअसल अगर हम देखें तो कैंप तो हमेशा से बॉलीवुड में रहे हैं, पहले निर्देशकों, के अपने अपने कैंप हुआ करते थे। व्ही शांताराम की अपनी पसंद के नायक नायिकाएं हुआ करते थे, अशोक कुमार का अपना खेमा था जिसमें उनकी पसंद के कलाकार होते थे, फिर हिंदी फिल्मों न राज कपूर का खेमा देखा जिसमें उनकी एक खास मंडली होती थी जिसमें गीतकार, संगीतकार से लेकर कलाकार तक हुआ करते थे। कुछ दिनों तक सुभाष घई का कैंप भी चला। बाद में ये कैंप अभिनेताओं के इर्द गिर्द सिमटते गए और अब एक बार फिर से ये निर्देशकों या प्रोड्यूसर्स के कैंपों मे बदल गए हैं। पहले दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन के अलग अलग कैंपों की खबरें आती थीं, फिर अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान के अपने अपने खेमे बने। सलमान खान का अपना एक अलग ही दल होता है। अब धर्मा प्रोडक्शंस के करण जौहर का अपना खेमा है, उनकी अपनी पसंद नापसंद हैं। इसी तरह से यशराज फिल्म्स का अपना खेमा है, अपने कलाकार हैं। यहां तक तो ठीक है कि सभी प्रोडक्शंस हाउस के अपने सितारे हैं। लेकिन जिस ओर कंगना संकेत कर रही है अगर वो बातें सही हैं तो ये बहुत ही खतरनाक है। अपने पसंदीदा कलाकार के करियर को बनाने की कोशिश करना बुरा नहीं है, बुरा तब है जब आप अपने पसंदीदा कलाकार को आगे बढ़ाने के चक्कर में आप किसी प्रतिभाशाली कलाकार को पीछे धकेलने की कोशिश करते हैं।
सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद इस तरह की बातें सामने आ रही हैं कि उनको परेशान किया जा रहा था या वो अपनी उपेक्षा से परेशान थे। इसमें कितनी सच्चाई है ये तो शायद ही कभी सामने आ सकेगा लेकिन जिस तरह से कंगना अपनी आपबीती बता रही है वो बेहद ही हैरान करनेवाला है। ये तो कंगना की हिम्मत है कि ऐसी परिस्थिति में भी वो सामने आकर बेबाकी से अपनी बातें रख रही हैं। अन्यथा जिस तरह से उसको परेशान किया गया या जिस तरह से उसको परेशान किया जा रहा है उसमें तो स्थिति बहुत ही खराब होती है। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक आत्महत्या करने की कई स्थितियां होती हैं। जब  कोई शख्स आत्महत्या करता है तो उसके लिए बहुत हद तक वो परिस्थितियां जिम्मेदार होती हैं जिनमें वो पले बढ़े और जिनमें वो रह रहे होते हैं। इन्ही परिस्थितियों में पहले वो हेल्पलेस (मजबूर) महसूस करते हैं फिर होपलेस (निराश) हो जाते हैं और उनको लगता है कि उनके सामने अब कोई विकल्प रह नहीं गया है और चरम अवस्था होती है जब व्यक्ति खुद को वर्थलेस (व्यर्थ) समझने लगता है। ये व्यर्थ समझने की स्थिति बेहद खतरनाक होती है। दुनियाभर के मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जब कोई व्यक्ति खुद को वर्थलेस समझने लगता है तो आत्महत्या के करीब पहुंच जाता है। कंगना जिस ओर संकेत कर रही है अगर स्थितियां उतनी हीं भयावह हैं तो कोई भी अपने को वर्थलेस समझने लग सकता है और फिर परिणाम की कल्पना की जा सकती है।
बॉलीवुड में किस हद तक कालिख है उसका संकेत समय समय पर मिलता भी रहा है। दो हजार सोलह में अजय देवगन की फिल्म ‘शिवाय’ और करण जौहर की फिल्म ‘ए दिल है मुश्किल’ को लेकर विवाद हुआ था। तब करण जौहर पर ये आरोप लगा था कि उन्होंने कमाल खान को फिल्म ‘शिवाय’ के खिलाफ प्रचार के काम में लगाया था। तब एक आडियो भी जारी हुआ था जिसमें कथित तौर पर पैसों के लेन देन की बात थी। विवाद इतना बढ़ा था कि करण और काजोल के बीच दोस्ती टूट गई थी। इस विवाद के बाद करण जौहर की आत्मकथा ‘एन अनसूटेबल बॉय छपी’ थी तो उसमें करण ने काजोल से अपनी दोस्ती टूटने की बात का उल्लेख किया था। उसके एक अध्याय में करण ने काजोल के साथ अपने रिश्तों पर लिखा जरूर, तमाम तरह के इशारों में बात की लेकिन साफ तौर पर सिर्फ इतना कहा कि उनका अब काजोल से कोई रिश्ता नहीं है और दोनों की राहें जुदा हो गई है । करण ने माना कि दोनों के बीच कुछ ऐसा हुआ जिसकी वजह से वो बुरी तरह से आहत हैं। करण के मुताबिक दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसको वो सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं। वो बार बार ये कहते रहे कि पच्चीस सालों का रिश्ता खत्म हो गया । इसके पहले काजोल ने भी इशारों इशारों में करण को कठघरे में खड़ा किया था। खबरें तो इस तरह की भी आई थीं कि अजय देवगन और करण जौहर के बीच फोन पर शिवाय विवाद को लेकर गर्मागर्मी हुई थी। इस तरह के कई वाकए जबतक सामने आते रहते हैं लेकिन अब जिस तरह के कथित आपराधिक गठजोड़ की बातें सामने आ रही हैं वो अच्छे संकेत नहीं हैं। 

   

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