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Saturday, May 15, 2021

कमल हासन की हार से निकलते संदेश


इस महीने के आरंभ में कई राज्यों के विधानसभाओं के चुनाव नतीजे आए और इसके साथ ही उन राज्यों के चुनाव संपन्न हो गए। पश्चिम बंगाल चुनाव के परिणामों के शोरगुल में तमिलनाडु विधासभा चुनाव  की एक महत्वपूर्ण खबर की अपेक्षित चर्चा नहीं हो पाई। तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में मशहूर अभिनेता कमल हासन और उनकी पार्टी दोनों हार गई। कमल हासन ने दो हजार अठारह में मक्कल निधि मायय्म नाम से एक पार्टी बनाई थी और उसके बैनर तले दो हजार उन्नीस का लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। उस चुनाव में भी उनकी पार्टी का खाता नहीं खुल पाया था। कुछ चुनावी विशेषज्ञों और वामपंथी उदारवादी राजनीतिज्ञों को इसकी उम्मीद थी कि कमल हासन और उनकी पार्टी विधानसभा चुनाव में बेहतर करेगी। कम से कम इस बात का अंदाज तो था ही कि कमल हासन की पार्टी तमिलनाडु विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय कर देगी। पर ऐसा हो नहीं सका। जब तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के परिणाम आए तो कमल हासन कोयंबटूर दक्षिण सीट से भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा की अध्यक्षा वनाथी श्रीनिवासन से पराजित हो गए। चुनाव प्रचार के दौरान कमल हासन ने वनाथी को छोटा राजनेता कहकर उनका मजाक भी उड़ाया था। तब वनाथी ने पलटवार करते हुए उनको ‘लिप सर्विस’ करनेवाला राजनेता बताया था। इस चुनाव के दौरान एक और दिलचस्प घटना घटी थी। प्रचार के दौरान कमल हासन के पैर में चोट लग गई थी, जब वनाथी को पता चला तो उन्होंने कमल हासन को फलों की एक टोकी भेजी और साथ में जल्द स्वस्थ होने की कामना का एक कार्ड भी। जब पत्रकारों ने उनसे इस बारे में सवाल किया था तब वनाथी ने कहा था कि कोयंबटूर वाले अपने मेहमानों का खास ख्याल रखते हैं और उन्होंने इस परंपरा को निभाया है। कहना न होगा कि कमल हासन को ‘मेहमान’ बताकर वनाथी ने मतदाताओं को ये संदेश दे दिया था कि हासन कोयंबटूर में बाहरी हैं। परिणाम सबके सामने है। 

कमल हासन की हार को इस वजह से भी रेखांकित किया जाना आवश्यक है कि वो भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी से हारे, उनको कांग्रेस के प्रत्याशी से हार नहीं मिली। कांग्रेस का तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) से चुनावी गठबंधन था और इस बार पूरे राज्य में डीएमके की लोकप्रियता अन्य दलों से अधिक थी। चुनाव परिणामों में ये दिखा भी। कमल हासन का पराजित होना एक विधानसभा चुनाव का परिणाम नहीं है बल्कि इसके गहरे निहितार्थ हैं, खासकर तमिलनाडु की राजनीति में। कमल हासन तमिलनाडु के बेहद लोकप्रिय अभिनेता रहे हैं और पिछले करीब पांच दशक से वो फिल्मों में काम रहे हैं। उनको कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। वो अपनी फिल्मों में जिस तरह से प्रयोग करते रहे हैं उससे भी एक कलाकार के तौर पर उनकी काफी प्रतिष्ठा है। दक्षिण के राज्यों में फिल्मों के जो भी सुपरस्टार राजनीति में आए उन्होंने यहां भी सफलता प्राप्त की। ये सूची काफी लंबी है लेकिन अगर सिर्फ तमिलनाडु का ही संदर्भ लें तो एम जी रामचंद्रन, करुणानिधि और जयललिता के उदाहरण अभिनेताओं की चुनावी सफलता की कहानी कहते हैं। इन अभिनेताओं की चुनावी सफलता और राज्य में राजनीति के शिखर पर पहुंचने की परंपरा से प्रभावित होकर कमल हासन भी राजनीति में उतरे थे। कमल हासन अपने पूर्वज अभिनेताओं से प्रभावित होकर राजनीति में उतर तो गए लेकिन वर्तमान हालात का आकलन करने में चूक गए। इन नतीजों को देखने के बाद लगता है कि तमिल फिल्मों के सुपरस्टार रजनीकांत इस वजह से ही राजनीति के मैदान में उतरने से हिचकते रहे । ऐसा लगता है कि उन्हें इस बात का अंदाज हो गया था कि अब वो समय नहीं रहा कि फिल्मों का लोकप्रिय अभिनेता, राजनीतिक दल बनाकर उतरे और जनता के भारी समर्थन से सत्ता पर काबिज हो सके। इस बात की कई बार चर्चा होती थी कि रजनीकांत राजनीति में आने वाले हैं लेकिन अबतक तो वो राजनीति में आए नहीं हैं। कमल हासन और उनकी पार्टी की हार से ऐसा प्रतीत होता है कि रजनीकांत का फैसला सही रहा।  

कमल हासन ने जब दो हजार अठारह में अपना राजनीतिक दल बनाया था तब उन्होंने मोदी विरोध का भी बिगुल भी फूंका था। राजनीतिक दल बनाने के बाद वो केरल के वामपंथी मुख्यमंत्री विजयन से लेकर दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेता और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मिले थे। खबरों के मुताबिक मुलाकात तो उन्होंने ममता बनर्जी से भी की थी। उनके इन मुलाकातों से उनके मंसूबे साफ थे कि वो भारतीय जनता पार्टी के विरोध या विपक्ष की राजनीति करना चाहते थे। यही संदेश तमिलनाडु में भी गया। कमल हासन के विचारों से ऐसा प्रतीत होता है कि वो वामपंथ के करीब हैं। वो अपने वामपंथी विचारों को अपने साक्षात्कारों में प्रकट भी करते रहे हैं। उनके इन विचारों का प्रभाव स्पष्ट रूप से उनके राजनीतिक दल पर भी दिखा। तो क्या कमल हासन की चुनाव में हार और उनकी पार्टी का तमिलनाडु में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में सूपड़ा साफ होने से इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि वाम दलों के विचारों में लोगों का भरोसा न्यूनतम रह गया है। ‘न्यूनतम भरोसे’ के तर्क को यह कहकर खारिज किया जा सकता है कि तमिलनाडु के पड़ोसी राज्य केरल के चुनाव में वामपंथी गठबंधन की सरकार बनी। ये ठीक है, लेकिन केरल की स्थितियां अलग थीं। वहां वामपंथी दलों के मोर्चे का मुख्य मुकाबला कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा से था। मतदाताओं को वहां वाम और कांग्रेस में से एक को चुनना था क्योंकि भारतीय जनता पार्टी अभी वहां संघर्ष ही कर रही है। मतदाताओं ने वाम मोर्चे को चुना। यह भी कहा जा सकता है कि कमजोर विकल्प की वजह से मतदाताओं ने वामपंथी गठबंधन को चुना। पश्चिम बंगाल में तो कांग्रेस और वामपंथी मिलकर चुनाव लड़ रहे थे और इस गठबंधन का वहां खाता भी नहीं खुला। यहां मतदाताओं के पास विकल्प थे। आज से चंद साल पहले कोई इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता था कि बंगाल की जनता लेफ्ट को इस तरह से नकार देगी कि पूरे राज्य में उसको एक भी सीट नहीं मिलेगी। कल्पना तो ये भी नहीं की जा सकती थी कि बंगाल की नक्सलबाड़ी विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर लेगा। कमल हासन को तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी पराजित कर देगी। 

दरअसल अगर अब हम इन घटनाओं को देखें और अतीत की इसी तरह की घटनाओं के आधार पर विश्लेषण करें तो सही निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाएंगे। अब भारत का लोकतंत्र अपेक्षाकृत परिपक्व हुआ है। अब चेहरे या फिल्मी पर्दे की छवि के आधार पर वोट मिलना संभव नहीं है। अब जनता काम चाहती है, जनता उस पार्टी को पसंद करती है जिसका नेता उसको भरोसा दिला सके, भरोसा उनकी बेहतरी का, भरोसा देश की बेहतरी का और भरोसा समयबद्ध डिलीवरी का। आजादी के सात दशकों के बाद जनता इतनी परिपक्व हो गई है कि उसको अब नारों या नेताओं की राजनीति से इतर छवि से बहलाया नहीं जा सकता है। अब शायद ही संभव हो कि कोई अभिनेता एन टी रामाराव का तरह अपनी पार्टी बनाकर आएं, सालभर तक राज्य में घूमें फिर चुनाव लड़ें और जनता उनको भारी बहुमत से जिताकर गद्दी सौंप दें। कई चुनावों में तो हिंदी फिल्मों के सुपरस्टार के प्रचार भी उम्मीदवारों का बेड़ा पार नहीं कर पाए। इस लिहाज से कमल हासन की हार भारतीय राजनीति को समझने का एक प्रस्थान बिंदु हो सकता है।   


2 comments:

Umashankar Verma Kolkata said...

Sahi hai Bhai Saab aapki baat

शिवम कुमार पाण्डेय said...

बिल्कुल सटीक विश्लेषण।