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Saturday, April 23, 2022

समृद्ध बने प्रधानमंत्री संग्रहालय


हाल ही में दिल्ली के तीन मूर्ति भवन परिसर में प्रधानमंत्री संग्रहालय का शुभारंभ किया गया ।  स्वाधीनता के अमृत महोत्सव वर्ष में देश के सभी प्रधानमंत्रियों को याद किया गया। इस संग्रहालय में उन सभी के योगदान को एक स्थान पर देखने समझने का अवसर उपलब्ध करवाया गया। देश की राजधानी दिल्ली में पहले से तीन प्रधानमंत्रियों की स्मृति को सहेज कर रखा गया था। जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद उनके निवास स्थान तीन मूर्ति भवन को ही नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय बना दिया गया था । नई दिल्ली के ही 1, सफदरजंग रोड को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की स्मृति में समर्पित कर दिया गया। ये वही स्थान है जहां इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी। नेहरू स्मारक संग्रहालय में नेहरू जी से जुड़ी रखी गई हैं और इंदिरा गांधी स्मृति में उनसे जुड़ी सामग्रियों के अलावा महत्वपूर्ण अवसरों के चित्र आदि हैं। इस भवन में इंदिरा गांधी के पारिवारिक अवसरों के चित्र भी सहेज कर रखे गए हैं। इसके अलावा नई दिल्ली क्षेत्र में ही पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की स्मृति में भी एक भवन है। इस भवन मे शास्त्री जी से जुड़ी चीजों को रखा गया है। ये भवन नई दिल्ली के 1 मोतीलाल नेहरू पैलेस, मान सिंह रोड के पास स्थित है। ये तीनों भवन बहुत बड़े भूखंड में फैले हैं। इंटरनेट मीडिया पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक इंदिरा गांधी स्मृति की जिम्मेदारी एक निजी ट्रस्ट के पास है जिसकी प्रमुख सोनिया गांधी हैं। लाल बहादुर शास्त्री स्मृति की देखभाल भी एक निजी ट्रस्ट ही करता है।

तीन मूर्ति भवन में प्रधानमंत्री संग्रहालय के शुभारंभ के आसपास इस तरह के समाचार आए कि इंदिरा गांधी और राजीव गांधी से जुड़ी चीजें नेहरू-गांधी परिवार से मांगी गई थी, ताकि उनको संग्रहालय में संजा जा सके। नए बने संग्रहालय को गांधी परिवार की ओर से कोई सहयोग नहीं मिल पाया। खबरें तो इस तरह की भी आई थीं कि जिस परिवार ने देश को तीन प्रधानमंत्री दिए उस परिवार का कोई सदस्य प्रधानमंत्रियों के संग्रहालय के शुभारंभ के अवसर पर उपस्थित नहीं हो सका था। संस्कृति मंत्रालय के मुताबिक गांधी परिवार को इस समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। सोनिया गांधी परिवार का प्रधानमंत्री संग्रहालय को लेकर उदासीनता के कारण स्पष्ट नजर आते हैं। गांधी-नेहरू परिवार के दो प्रधानमंत्रियों की स्मृति में बड़े-बड़े संग्रहालय बनाए गए लेकिन अन्य प्रधानमंत्रियों को लेकर उपेक्षा भाव बना रहा। यह अकारण नहीं है कि मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, आई के गुजराल और अन्य प्रधानमंत्रियों की स्मृतियों को सहेजने और उनकी उपलब्धियों को प्रदर्शित करने का कोई संस्थागत प्रयास नहीं दिखाई देता है। जबकि इन सभी प्रधानमंत्रियों का किसी न किसी रूप में देश के विकास में योगदान रहा है। नरसिम्हा राव की याद में भी कोई संग्रहालय दिल्ली में हो, ऐसा ज्ञात तो नहीं है। जबकि नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री के तौर पर देश के आर्थिक विकास को एक नई दिशा दी थी। प्रकांड विद्वान थे। कई भाषाओं के ज्ञाता थे। उनकी समृद्ध लाइब्रेरी भी थी। प्रधानमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल स्वाधीन भारत के इतिहास में कई अहम घटनाओं का गवाह रहा है। 

नरसिम्हाराव के निधन के बाद की घटनाओं को अगर याद किया जाए तो परिवार से बाहर के प्रधानमंत्रियों को लेकर उपेक्षा भाव का कारण साफ समझ आता है। 23 दिसंबर 2004 को नरसिम्हा राव का दिल्ली में निधन हुआ। उसके बाद क्या क्या घटा उसके बारे में विनय सीतापति ने अपनी पुस्तक ‘हाफ लायन, हाऊ पी वी नरसिम्हा राव ट्रासफार्म्ड इंडिया’ में लिखा है। नरसिम्हा राव का पार्थिव शरीर उनके मोतीलाल नेहरू वाले सरकारी घर में लाया गया तो उस समय के गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने  उनके पुत्र प्रभाकर को सलाह दी कि अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया जाना चाहिए। प्रभाकर ने जब दिल्ली में अंतिम सस्कार की बात की तो शिवराज पाचिल ने बेहद रूखे अंदाज में उनसे कहा कि कोई आएगा नहीं। बाद में उस वक्त के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी ने भी प्रभाकर को फोन करके हैदराबाद में राव के अंतिम संस्कार की बात की थी और इसके लिए उनको तैयार करने के लिए दिल्ली भी आए थे। ये प्रसंग यहीं खत्म नहीं हुआ था। उस शाम को सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी के साथ राव के अंतिम दर्शन के लिए पहुंची थीं। तब मनमोहन सिंह ने भी प्रभाकर राव से जानना चाहा था कि परिवार का राव के अंतिम संस्कार के बारे में क्या विचार है। प्रभाकर ने सोनिया गांधी की उपस्थिति में मनमोहन सिंह को दिल्ली में अपने पिता के अंतिम संस्कार करने की इच्छा जताई थी। बाद में अहमद पटेल ने भी परिवार को हैदराबाद में राव का अंतिम संस्कार करने के लिए के लिए राजी करने की कोशिश की थी। राव के परिवारवालों पर जब हैदराबाद के लिए दबाव बनने लगा तो उन्होंने दिल्ली में राव का एक भव्य स्मारक बनाने की शर्त रखी थी। राव का पार्थिव शरीर घर में रखा हुआ था और उनके अंतिम संस्कार को लेकर राजनीति हो रही थी। उसी रात को राव के परिवारवालों की तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात करवाई गई। शिवराज पाटिल ने राव के परिवार वालों की मौजूदगी में मनमोहन सिंह को दिल्ली में राव के स्मारक की बात बताई। मनमोहन सिंह ने सुनते ही स्वीकृति दे दी और परिवारवालों को भरोसा दिया कि राव का स्मारक दिल्ली में बनेगा उसमें कोई दिक्कत नहीं है। पूरे प्रकरण के दौरान प्रभाकर राव को महसूस हुआ था कि सोनिया गांधी राव का दिल्ली में अंतिम संस्कार नहीं होने देना चाहती थीं। वो दिल्ली में राव का स्मारक बनाने के पक्ष में भी नहीं थीं। इसका दबाव परिवार पर था। आखिरकार परिवार हैदराबाद में अंतिम संस्कार के लिए तैयार हो गया। लेकिन महत्वपूर्ण बात ये कि सोनिया गांधी दिल्ली में राव के स्मारक को लेकर अनिच्छुक बनी रहीं। राव के प्रति उपेक्षा भाव का असर रहा कि उनका कोई स्मारक दिल्ली में नहीं बन पाया।

यही अनिच्छा और उपेक्षा भाव दिल्ली में अन्य प्रधानमंत्रियों के संग्रहालय बनने की राह में बाधा हो सकती है। नरेन्द्र मोदी ने पार्टी और मत से ऊपर उठकर इस कार्य को किया। अब जब कि दिल्ली में सभी प्रधानमंत्रियों का संग्रहालय एक स्थान पर निर्मित हो गया है तो केंद्र सरकार को एक काम और करना चाहिए। दिल्ली में इंदिरा गांधी स्मृति और लालबहादुर शास्त्री स्मारक का भी प्रधानमंत्री संग्रहालय में विलय करने के बारे में गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। सभी लोगों से सलाह मशविरा करके इसको अंतिम रूप दिया जा सकता है। इंदिरा जी को जिस स्थान पर गोली मारी गई थी उसको एक स्वरूप दिया जा सकता है और उस भवन का अन्य उपयोग किया जा सकता है। बाबरी विध्वंस के बाद श्रीरामजन्मभूमि  पर जो लोग अस्पताल और स्कूल खोलने का तर्क दे रहे थे उनको भी इन भवनों के खाली होने से अच्छा लगेगा। संभव है कि वो स्कूल और अस्पताल वाला तर्क फिर से दोहरा दें। लेकिन अगर ऐसा हो पाता है तो इसके दो लाभ होगें। एक तो देश विदेश के पर्यटकों को इंदिरा जी और लालबहादुर शास्त्री से जुड़ी सभी जानकारियां एक जगह पर उपलब्ध होंगी और उनको एक स्थान पर देखने की सहूलियत भी होगी।  तीन मूर्ति भवन में जिस भव्यता के साथ संग्रहालय का निर्माण हुआ है उसमें तकनीक का बेहतरीन उपयोग हुआ है। एक कनमी खटकती है कि सभी प्रधानमंत्रियों से जुड़ी चीजें वहां उपलब्ध नहीं है। अगर इंदिरा स्मृति और शास्त्री स्मारक को वहां शिफ्ट कर दिया जाता है तो ये कमी भी पूरी हो सकती है। 

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