राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई। कोरोना महामारी के चलते राष्ट्रीय फिस्म पुरस्कार देर से घोषित हो रहे हैं। शुक्रवार को घोषित पुरस्कार 2023 के लिए है। पुरस्कारों में कई प्रकार की विविधता देखने को मिली। शाह रुख खान को पहली बार किसी फिल्म में उनके अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार देने की घोषणा की गई। उनको फिल्म जवान के लिए और विक्रांत मैसी को 12वीं फेल के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का साझा पुरस्कार दिया जाएगा। अभिनेत्री रानी मुखर्जी को भी पहली बार उनकी फिल्म मिसेज चटर्जी वर्सेस नार्वे के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया जाएगा। रानी मुखर्जी ने इसके पहले भी कई बेहतरीन फिल्में की हैं, जिनपर उनको राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिया जा सकता था। ब्लैक और हिचकी में उनका अभिनय शानदार रहा था। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार कई मानदंडों पर आधारित होता है। संभव है कि जिस वर्ष रानी की ये फिल्में आई हों उस वर्ष किसी और फिल्म में किसी और अभिनेत्री ने बेहतर अभिनय किया हो। ब्लैक और हिचकी दो ऐसी फिल्में हैं जो रानी मुखर्जी की अभिनय प्रतिभा के लिए और फिल्म की विषयवस्तु और ट्रीटमेंट के लिए याद किया जाता है। फिल्म मिसेज चटर्जी वर्सेस नार्वे एक तरह से रानी मुखर्जी की दूसरी पारी की बेहतरीन फिल्म है। हिचकी में भी रानी मुखर्जी ने जिस विषय पर काम किया था वो लगभग अनजाना था। ये ब्रैड कोहेन की आत्मकथा ‘फ्रंट आफ द क्लास, हाउ टौरेट सिंड्रोम मेड मी टीचर आई नेवर हैड’ पर आधारित है। कहा जाता है कि इस फिल्म में अभिनय के पहले रानी घंटों तक इस सिंड्रोम को समझने का प्रयास करती थी। इस सिंड्रोम से ग्रस्त लोग कैसे व्यवहार करते हैं उसको जानने में लंबा समय बिताया था। पर्दे पर ये मेहनत दिखी भी थी। कहना ना होगा कि फिल्म की जूरी के सदस्यों का चयन रेखांकित करने योग्य है।
शाह रुख खान को फिल्म जवान के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार अवश्य कई प्रश्न खड़े करता है। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के चयन के समय अभिनय तो आधार होता ही है, फिल्म की कहानी और समाज पर उसके प्रभाव पर भी चर्चा की जाती है। जवान एक ऐसी फिल्म है जो सिस्टम को चुनौती देती है। संवैधानिक व्यवस्थाओं पर भी चोट करती है। फिल्म में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था बेहतर करने के लिए मंत्री का अपहरण करना जैसी घटनाएं हैं। ये फिल्म एक्शन थ्रिलर है। जनता ने इस फिल्म को खूब पसंद किया था। बताया गया था कि इस फिल्म ने एक हजार करोड़ से अधिक का कारोबार किया था। उन चर्चाओं के दौरान शाह रुख खान के अभिनय की बहुत प्रशंसा हुई हो ऐसा याद नहीं पड़ता। पर जूरी के अध्यक्ष आशुतोष गोवारिकर और अन्य सदस्यों को शाह रुख खान के अभिनय में वो तत्त्व अवश्य दिखे होंगे जो अन्य समीक्षक भांप नहीं पाए। शाह रुख शानदार अभिनेता हैं, उन्होंने वर्षों तक अपने अभिनय से इसको साबित भी किया था। 2004 में जब उनकी फिल्म स्वदेश आई थी तो उनके अभिनय की जमकर सराहना हुई थी। उस वर्ष के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार सैफ अली खान को दिया गया था। एक अवसर पर शाह रुख का दर्द झलका भी था। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा भी था कि स्वदेश के लिए उनको राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना चाहिए था। फिल्म स्वदेश और फिल्म हम तुम या यों कहें कि शाह रुख और सैफ के साथ दो संयोग हैं। जब सैफ को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला था तब उनकी मां शर्मिला टैगोर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की अध्यक्ष थीं। शाह रुख को नेशनल अवार्ड मिला है तो जूरी के चेयरमैन आशुतोष गोवारिकर हैं जो स्वदेश के निर्देशक थे। इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर इन दो संयोगों की खूब चर्चा हो रही है। पर स्वदेश के लिए शाह रुख को अवार्ड नहीं मिलने का कारण अलग था। स्वदेश रिलीज हुई थी तब निर्देशक टी एस नागबर्ना ने आरोप लगाया था कि स्वदेश उनकी फिल्म चिगुरिदा कनासू की नकल है। 2004 के राष्ट्रीय अवार्ड की जूरी के चेयरमैन सुधीर मिश्रा थे। अन्य सदस्यों के साथ टी एस नागवर्ना भी उस समिति में थे। जूरी के सामने स्वदेश का प्रदर्शन हुआ तो नागबर्ना ने वहां बताया था कि स्वदेश उनकी फिल्म की नकल है। उसके बाद जूरी के सदस्यों को चिगुरिदा कनासू दिखाई गई। सर्वसम्मति से निर्णय हुआ कि स्वदेश के लिए शाह रुख खान को पुरस्कार नहीं दिया जा सकता है। पहली बार ऐसा नहीं हुआ था। पहले भी और 2004 के बाद भी इस आधार पर कई फिल्मों और अभिनेताओं को पुरस्कार के योग्य नहीं माना गया। इसलिए सैफ अली खान के राष्ट्रीय पुरस्कार को शर्मिला टैगोर से जोड़ना गलत है। चर्चा तो उन बातों की भी हो जाती है जिसका होना ही संदिग्ध होता है।
12वीं फेल के लिए विक्रांत मैसी का चयन अच्छा है। विक्रांत मैसी ने अपने अभिनय कौशल से ध्यान खींचा है। हाल ही में आई उनकी फिल्म साबरमती रिपोर्ट में भी उनका अभिनय शानदार है। द केरल स्टोरी के निर्देशक सुदीप्तो सेन ने भी धारा के विपरीत जाकर फिल्म बनाई। द केरल स्टोरी को लेकर काफी विवाद हुए। मामला कोर्ट में भी गया। कई राज्यों में उसको अघोषित प्रतिबंधित भी झेलना पड़ा। पर इस फिल्म ने भारतीय समाज में धीरे-धीरे जगह बनाते लव जिहाद के खतरों से दर्शकों को अवगत करवाया था। निर्देशक के तौर पर सुदीप्तो सेन ने इस फिल्म से अपनी पहचान स्थापित की। उनको पुरस्कार देना वैकल्पिक धारा की फिल्मों का स्वीकार है। एक और फिल्म ने ध्यान खींचा वो है हिंदी फिल्म कटहल। छोटे बजट की इस फिल्म की खूब चर्चा रही थी। कहानी और उसके ट्रीटमेंट को लेकर। सिनेमा पर सर्वश्रेष्ठ लेखन का पुरस्कार असम के उत्पल दत्ता को मिला। वो काफी लंबे समय से फिल्मों पर असमी और अंग्रेजी में लिख रहे हैं। इस श्रेणी में किसी पुस्तक का चयन नहीं होना चौंकाता है। चयन समिति के सामने अंबरीश रायचौधरी की श्रीदेवी पर लिखी अंग्रजी की पुस्तक, अमिताव नाग की सौमित्र चटर्जी पर लिखी पुस्तक, यतीन्द्र मिश्र की गुलजार पर लिखी पुस्तक के अलावा अन्य भाषाओं की दो दर्जन से अधिक पुस्तकें थीं। घोषणा के समय अन्यत्र व्यस्तता के कारण रायटिंग जूरी के चेयरमैन गोपालकृष्ण पई उपस्थित नहीं थे। मंत्री को जूरी की अनुशंसा के समय की जो तस्वीरें जारी हुई हैं उसमं भी रायटिंग जूरी के चेयरमैन या सदस्य दिख नहीं रहे। ऐसा कम ही होता है कि किसी श्रेणी की जूरी के चेयरमैन या उसके सदस्य मंत्री को अपनी अनुशंसा देने और पुरस्कार की घोषणा के समय अनुपस्थित रहें। जूरी चेयरमैन या उनके प्रतिनिधि को ये बताना चाहिए था कि किन कारणों से किसी पुस्तक का चयन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए नहीं किया गया।कोरोना महामारी के बाद भी एक वर्ष ब्रेस्ट क्रिटिक का अवार्ड घोषित नहीं किया गया। तब उसका कारण ये बताया गया था कि जूरी ने किसी भी प्रविष्टि को पुरस्कार के योग्य नहीं माना। उस वर्ष वैध एंट्री की संख्या बहुत ही कम थी। अब पुरस्कारों की घोषणा हो गई है। 2024 के पुरस्कारों का चयन भी जल्द हो ताकि 2025 के पुरस्कारों की घोषणा समय से हो सके।
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