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Friday, October 5, 2012

राजनीति के चर्निंग प्वाइंट्स

आजाद भारत के इतिहास में ए पी जे अब्दुल कलाम को जनता का राष्ट्रपति कहा गया । हो सकता है कलाम पर ये टिप्पणी करते वक्त विशेषज्ञों को गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद का स्मरण नहीं रहा हो । लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं कि ए पी जे अब्दुल कलाम को सक्रिय राष्ट्रपति माना जा सकता है । उनके कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन के बड़े बड़े लोहे के गेट आम जनता और महामहिम के बीच बाधा नहीं बने । राष्ट्रपति भवन बच्चों, युवाओं और वैज्ञानिकों के लिए हमेशा खुला रहता था । अपने कार्यकाल के दौरान कलाम ने राष्ट्रपति भवन को देश के विकास का ब्लू प्रिंट तैयार करने का केंद्र बना दिया था । एक राष्ट्रपति के रूप में कलाम का उद्देश्य जनता के दिमाग को उस स्तर पर ले जाना था ताकि एक महान भारत का निर्माण हो सके । राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने अपना एक विजन- पी यू आर ए (प्रोविज्न ऑफ अरबन एमिनिटीज इन रूरल एरियाज) देश के सामने पेश किया  जिसके मुताबिक 2020 तक भारत को एक पूर्ण विकसित राष्ट्र हो जाना है। इन वजहों से उस दौर में लोग राष्ट्रपति भवन को समाज में बदलाव की प्रयोगशाला तक कहने लगे थे ।
इनमें से कई बातों का खुलासा भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम की नई किताब- टर्निंग प्वाइंटस, ए जर्नी थ्रू चैलेंजेस में हुआ है । कलाम की इस किताब को उनकी पहले लिखी किताब विंग्स ऑफ फायर का सीक्वल बताया गया है । भारतीय प्रकाशन जगत में कलाम की आत्मकथा विंग्स ऑफ फायर एक सुखद घटना की तरह है । 1999 में कलाम की आत्कथा छपकर आई थी जिसमें कलाम ने अपनी जिंदगी के कहे ,अनकहे पहलुओं पर लिखा था और उसमें 1992 तक की उनकी जिंदगी दर्ज थी । पहले अंग्रेजी में छपी उस किताब को पाठकों ने हाथों हाथ लिया । फिर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में उसका अनुवाद किया गया । एक अनुमान के मुताबिक विंग्स ऑफ फायर की अबतक दस लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं । विंगस ऑफ फायर के प्रकाशन के तेरह साल बाद उसका सीक्वल टर्निंग प्वाइंट बाजार में आया है और उसकी भी बिक्री अच्छी हो रही है । इस बार बिक्री के पीछे प्रकाशक की रणनीति भी काम कर रही है । पुस्तक प्रकाशन के पहले प्रकाशक ने उसके चुनिंदा मगर विवादास्पद हिस्सों को जानबूझकर लीक किया ताकि किताब के प्रति पाठकों के बीच एक जिज्ञासा पैदा हो सके ।
इस किताब में 2004 में कांग्रेस को सरकार बनाने के न्योता का जिक्र है । जनता पार्टी के मैवेरिक नेता सुब्रह्म्ण्यम स्वामी ने इस बात को कई बार और कई मंचों से उठाया कि कलाम ने 17 मई 2004 को दोपहर साढे तीन बजे सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा था । उस पत्र में इस बात का संकेत दिया था कि भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाने में सोनिया के विदेशी मूल का होना आड़े आ सकता है । स्वामी ने इस बात का पुरजोर प्रचार किया कि उसके बाद ही सोनिया गांधी ने मजबूरी में मनमोहन सिंह का नाम प्रधानमंत्री के तौर पर प्रस्तावित किया । लेकिन कलाम ने अपनी इस किताब में उस घटना का कुछ और ही वर्णन किया है । कलाम ने हलांकि इस पूरी घटना को अपनी किताब में कोई खास तवज्जो नहीं दी है और तकरीबन डेढ़ पन्नों में उसे निबटा दिया है । बेहद साफगोई से कलाम ने लिखा है कि सोनिया गांधी पहली बार उनसे मनमोहन सिंह के साथ 18 मई की दोपहर सवा बारह बजे मिली और सहयोगी पार्टियों के समर्थन का खत इकट्ठा करने के लिए एक दिन का वक्त मांगा । जब कलाम ने उनसे कहा कि देर नहीं होनी चाहिए तो फिर उसी दिन रात के सवा आठ बजे सोनिया गांधी और मनमोहन उनके दफ्तर पहुंचे और सहयोगी दलों के समर्थन की चिट्ठियां सौंप दी । जिसके बाद कलाम ने सोनिया को सरकार बनाने का न्योता दिया । कलाम ने सोनिया से कहा कि राष्ट्रपति भवन को उनके दिए वक्त के मुताबिक शपथ ग्रहण समारोह के लिए तैयार रहेगा। कलाम के इस न्योते के बाद सोनिया गांधी ने उनको बताया कि उन्होंने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के तौर पर नामित किया है । कलाम ने लिखा है कि सोनिया के उस फैसले से वो निश्चित रूप से चकित रह गए थे और राष्ट्रपति भवन को मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नियुक्त करने और प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के न्योते का खत फिर से बनाना पड़ा था । कलाम की इन बातों से साफ है कि सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त नहीं करने के बारे में जो बातें फैलाई गई थी वो तथ्यहीन थी । लेकिन टी जे  एस जॉर्ज जैसे लोग कलाम के इस खुलासे की टाइमिंग पर सवाल खड़े करने लगे हैं । जॉर्ज ने देश में के नए राष्ट्रपति के चुनाव के वक्त कलाम की किताब के छपने और उसमें सोनिया प्रसंग पर सफाई होने को एक साथ जोड़कर देखा है । जॉर्ज का तर्क है कि जब ममता और मुलायम कलाम का नाम चला रहे थे तो उस बीच इस सफाई के गहरे नितितार्थ हैं । जॉर्ज शायद ह भूल गए कि किताबें एक दिन में तैयार नहीं होती है । इसके अलावा जॉर्ज ने विवादित विकीलीक्स केबल्स का भी हवाला देते हुए कलाम के खुलासे को कठघरे में खड़ा किया है ।
इसके अलावा इस किताब में एक और विवादित प्रसंग का जिक्र है । 2002 में कलाम जब राष्ट्रपति बने तो उन्होंने सबसे पहले गुजरात जाने का फैसला लिया जो उस वक्त दंगों की आग में झुलस रहा था । किताब प्रकाशित होने के पहले इस बात को प्रचारित किया गया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कलाम को गुजरात नहीं जाने की सलाह दी थी । उस सलाह के हवाले से दिल्ली के सियासी गलियारे में और भी बातें-अफवाहें फैली थी । लेकिन कलाम ने अपनी नई किताब में इस विवाद को भी बेवजह का करार दिया है । कलाम ने स्थिति साफ करते हुए लिखा है कि - प्रधानमंत्री वाजपेयी ने गुजरात जाने पर आपत्ति् नहीं उठाई थी बल्कि ये जानना चाहा था कि क्या ऐसे वक्त में उनका गुजरात जाना जरूरी है । कलाम ने उस वक्त वहां जाने का फैसला लिया और अपनी किताब में आह्लादित होकर इस बात का भी जिक्र किया है कि जब वो गुजरात पहुंचे तो हवाई अड्डे पर अगवानी करने के लिए वहां के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ मौजूद थे । कलाम ने इस बात पर भी संतोष जताया कि वो जिस भी दंगा प्रभावित इलाके में गए मोदी हमेशा साए की तरह उनके साथ रहे । कलाम ने अपने इस दौरे को दंगा पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने वाला दौरा करार दिया है । कलाम के मुताबिक उनके दौरे से पीड़ितों के मन में ये विश्वास जगा कि दुख की उस घड़ी में पूरा देश उनलोगों के लिए चिंतित है ।
इसके अलावा इस किताब में कलाम ने अपनी जिंदगी के कई टर्निंग प्वाइंट्स गिनाए हैं । कलाम ने ऑफिस ऑफ प्राफिट बिल को संसद को पुनर्विचार करने के लिए लौटा दिया था । आजाद भारत के इतिहास में ये पहली बार हुआ था जब किसी राष्ट्रपति ने संसद को कोई बिल पुनर्विचार के लिए लौटा दिया हो । इसके अलावा कलाम ने इस किताब में एक प्रसंग में ये भी लिखा है कि वो खिन्न होकर इस्तीफे का मन बना चुके थे लेकिन मनमोहन सिंह के अनुरोध पर उन्होंने इस्तीफा देने का विचार त्याग दिया । प्रसंग था बिहार में 2005 के विधानसभा चुनाव के बाद बनी नीतीश सरकार को बर्खास्त करने के अध्यादेश पर दस्तखत करने के बाद का । जब बर्खास्तगी का ये मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो कलाम ने ये इच्छा जाहिर की थी कि सरकारी वकील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में उनका भी पक्ष रखा जाए । सरकार ने उनकी उस इच्छा का सम्मान नहीं किया । खिन्न राष्ट्रपति ने अंतर्रआत्मा की आवाज पर इस्तीफा तैयार कर लिया था । उनका तर्क था कि राष्ट्रपति सिर्फ सरकार का रबर स्टांप नहीं हो सकता है । वो अपना इस्तीफा उस वक्त के उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत को सौंपना चाहते थे । लेकिन वो दिल्ली से बाहर थे । उसी दौर में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनसे मिलने आए और कलाम ने उनको अपने इस्तीफा दिखाकर पद छोड़ने की इच्छा जताई । कलाम के मुताबिक उस वक्त माहौल इतना संवेदनशील हो गया था जिसका वर्णन नहीं हो सकता है । मनमोहन सिंह ने उनसे इस्तीफा नहीं देने की गुजारिश की और कहा कि अगर आप इस्तीफा दे देंगे तो हो सकता है सरकार गिर जाए । अगली सुबह की नमाज के बाद कलाम चिंतन में बैठे और इस्तीफा नहीं देने का फैसला हो गया ।
इस किताब में इन विवादित प्रसंगों के अलावा कलाम ने विस्तार से उन बातों को रखा है कि उस दौर में किस तरह से राष्ट्रपति भवन ने कई मामलों में सार्थक कदम उठाए थे । किस तरह से सांसदों और विधायकों के अलावा देश के नीति नियंताओं के साथ मुलाकात कर विकास की दिशा में आगे बढ़ने की योजनाएं बनाई जाती थी । कलाम ने अपने पांच साल के कार्यकाल में दस बार राष्ट्र को संबोधित किया । उनके भाषण लेखन को लेकर एक दिलचस्प प्रसंग इस किताब में है । उन्होंने बताया है कि उनका भाषण कई कई बार लिखा जाता था । दो हजार पांच के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिए गए उनके भाषण को 15 बार लिखा गया । इलके अलावा 25 अप्रैल 2007 को कलाम को यूरोपियन पार्लियामेंट में भाषण देना था । उस भाषण के 31 ड्राफ्ट हुए जिसके बाद वो फाइनल हो पाया । इससे पता लगता है कि कलाम हर मामले में परफेक्शनिस्ट थे । कलाम ने अपनी इस किताब में विकास की अनेक संभावनाओं के संकेत भी किए हैं । कलाम वैज्ञानिक सहायक के पद से देश के राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे । अपने उन अपने जीवन के अहम मोड़ को इस किताब में रेखांकित किया है । लेकिन अगर हम इस किताब को साहित्य और आत्मकथा की कसौटी पर रखेंगे तो निराशा होगी क्योंकि यहां घटनाओं का सिर्फ सपाट वर्णन है । कलाम सार्वजनिक जीवन में उच्च सिद्धांतों और सादगी के प्रतीक हैं और उनका जीवन बहुतों के लिए प्रेरणादायी । इसलिए आश्चर्य नहीं होगा कि अगर ये किताब भी विंग्स ऑफ फायर की तर्ज पर खासी लोकप्रिय होगी ।

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