हाल ही में दो ऐसी खबरें सामने आईं जो कि किसी भी सभ्य समाज के मुंह पर तमाचे की तरह है । पहली खबर थी बेंगलोर के एक स्कूल में छह साल की मासूम के साथ स्कूल परिसर में वहीं के दो कर्मचारियों ने बलात्कार किया । दूसरी खबर रेप की वारदात की कोशिश और कत्ल की है । ये वारदात लखनऊ के पास मोहनलालगंज हुई जहां दो बच्चों की मां की साथ रेप की कोशिश और नाकाम रहने पर बहशियाना तरीके से पीट पीट कर हत्या करने के बाद एक स्कूल के पास बगैर कपड़ों के फेंक दिया गया । एक शख्स ने इस महिला के साथ दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी । पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से जो सच सामने आया वो दिल दहलानेवाला है । आरोपी ने महिला के गुप्तांग समेत पूरे शरीर पर गहरे जख्म किए। पुलिस के मुताबिक जिस अस्पताल में महिला काम करती थी उसके पास की इमारत के गार्ड ने इस वारदात का अंजाम दिया । इन दोनों खबरों का सरोकार देश के हर सूबे से है। हर घर से है । हर माता पिता से है । बेंगलोर में छह साल की मासूम बच्ची के साथ स्कूल में बलात्कार की खबर के सामने आने के बाद वहां के अभिभावकों में यह चिंता बढ़ गई है कि पता नहीं स्कूल के वो कर्मचारी कब से और कितनी बच्चियों का यौन शोषण या फिर छेड़छाड़ कर रहे थे । क्या कुछ अन्य अभिभावकों को अपनी बच्चियों के साथ छेड़छाड़ की नापाक हरकतों की जानकारी थी और वो बदनामी के डर से मामले को छोटा मानकर भुला चुके थे । स्कूलों में बच्चों के साथ यौन शोषण के मामलों में बहुधा यह देखने में आता है कि जब माता पिता स्कूल में शिकायत लेकर जाते भी हैं तो स्कूल प्रशासन जांच की बात कहकर मामले को दबा देता है । परोक्ष रूप से अभिभावकों को भी स्कूल का नाम खराब होने की दुहाई या धमकी देकर मुंह बंद रखने की हिदायत दी जाती है । बच्चों के खिलाफ यौन शोषण को रोकने के लिए लागू हुए प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड अगेंस्ट सेक्सुअल ओफेंस एक्ट (पॉक्सो ) में आरोपियों को बचाने वालों या केस को दबाने की कोशिश करने या फिर केस बिगाड़नेवालों के लिए महज छह महीने की सजा का प्रावधान है लेकिन स्कूल या संस्थान के खिलाफ किसी कार्रवाई का प्रावधान नहीं है । इस वजह से स्कूल प्रशासन ज्यादातर ऐसे मामलों को आपसी समझौतों से दबा देने में ही बेखौफ होकर जुटा रहता है । समान्यतया अभिभावक भी बच्चों को स्कूल में आगे दिक्कत ना हो, यह सोचकर हालात से समझौता कर लेते हैं । इसी समझौते से अपराधियों को ताकत मिलती है । उसे लगता है कि स्कूल परिसर में अपराध करने से प्रशासन उसको दबाने में जुट जाएगा । लिहाजा वो इस तरह के अपराध के लिए स्कूल के कोने अंतरे को ही चुनता है । बैंगलोर के स्कूल में हुई इस वारदात में इस बात की भी पड़ताल होनी होनी चाहिए । क्या वहां बच्चियों के यौन शोषण या छेड़छाड़ की कोई शिकायत पहले आई थी और स्कूल प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की थी । अगर ऐसी बात सामने आती है तो स्कूल के कर्ताधर्ताओं के खिलाफ भी पॉक्सो की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए । इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि आरोपी ने स्कूल में बच्ची के साथ रेप किया तो स्कूल प्रशासन को इस बात की भनक लगी थी या नहीं और उसकी क्या भूमिका थी ।
स्कूलों में बच्चों के यौन शोषण की वारदात को अंजाम देनेवाले अपराधी दरअसल सेक्स कुंठा के शिकार होते हैं और मनानसिक रूप से विकृत भी । मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे अपराधी सेक्सुअल प्लेजर के लिए बच्चों को अपना शिकार बनाता है । यह एक ऐसी मानसिकता जो अपराधी को वारदात अंजाम देने के बाद एक खास किस्म का रोमांच देता है । इस तरह के अपराधी ,आम अपराधियों से ज्यादा शातिर होते हैं । उन्हें इस बात का अंदाज होता है कि स्कूल उसके अपराध को तूल नहीं देगा । लिहाजा वो अपराध को स्कूल परिसर में अंजाम देने से नहीं हिचकता है । चंद महीने पहले दक्षिण दिल्ली के एक स्कूल के स्टाफरूम में कई बच्चियों के यौन शोषण की खबर आई थी। दिल्ली में ही एक कैब ड्राइवर महीनों तक एक बच्ची का यौन शोषण करता रहा था । सवाल यह है कि स्कूल की क्या जिम्मेदारी है । क्या कोई भी स्कूल यह कहकर पल्ला झाड़ सकता है कि अमुक शख्स ने वारदात को अंजाम दिया और कानून के हिसाब से उसको सजा मिलेगी । स्कूल की यह जिम्मेदारी भी है कि उसके परिसर में या फिर स्कूल आने और जाने के वक्त बस में बच्चे सुरक्षित रहें । बच्चों की समय समय पर काउंसलिंग भी होनी चाहिए ताकि उनके खिलाफ हो रहे इस तरह के अपराध उजागर हो सकें । बच्चों को इस तरह के अपराध के बारे में जागरूक करने के लिए स्कूल के साथ साथ अभिभावकों की भी जिम्मेदारी लेनी होगी । अभिभावकों को तो अपराध के बाद साहस के साथ सामने आना होगा । इस तरह के अपराध को रोकने के लिए कानून से ज्यादा जरूरी है जागरूकता । स्कूलों में एक नियमित अंतराल पर शिक्षकों के लिए भी काउंसलिंग की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वो भी जागरूक हो सकें । कानून का भय और समाज में जागरूकता को बढ़ाकर ही हम बच्चों के खिलाफ इस तरह के घिनौने कृत्यों को रोक सकते हैं । इस काम में देश के हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वो अपनी भूमिका निभाए । अगर हम ऐसा कर पाएं तो देश के भविष्य के बेहतर बना सकते हैं । बच्चों को देश में सुरक्षित माहौल देना हमारा दायित्व ही नहीं कर्तव्य भी है ।
मलेशियाई विमान हादसे में करीब तीन सौ लोगों के मारे जाने की खबर और अंतराष्ट्रीय स्तर पर मचे कोलाहल और शोरगुल के बीच दो दिनों तक राष्ट्रीय मीडिया इन दो खबरों को उस आवेग से नहीं उठा पाया जिसकी ये हकदार हैं । देर से ही सही मीडिया ने इस ओर ध्यान दिया। लखनऊ का हत्याकांड दिल्ली के निर्भया कांड जैसा ही जघन्य है । दिल्ली में निर्भया बलात्कार के वक्त इस घिनौनी वारदात के खिलाफ माहौल बनाने में मीडिया ने अहम भूमिका निभाई थी और लगातार कवरेज की वजह से सरकार बलात्कार के खिलाफ कडे कानून बनाने को मजबूर हुई थी । सोनिया गांधी से लेकर उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक को सामने आकर बयान देना पड़ा था । बलात्कारियों को सख्त से सख्त सजा के लिए जस्टिस जे एस वर्मा के सुझावों पर कानून में बदलाव किए गए थे पर चिंता का सबब तो कड़े बलात्कार के कानून के बावजूद ऐसे अपराधों पर अंकुश नहीं लग पाना भी है। दरअसल अगर हम गहराई में विचार करें तो बलात्कार हमारे समाज का एक ऐसा नासूर है जिसका इलाज कड़े कानून के अलावा हमारे रहनुमाओं की इससे निबटने की प्रबल इच्छा शक्ति का होना भी है।
बलात्कार से निबटने के लिए समाज के रहनुमाओं की इच्छा शक्ति तो दूर की बात है जरा महिलाओं को लेकर उनके विचार देखिए । शिया धर्म गुरु कल्बे जव्वाद कहते हैं – लीडर बनना औरतों का काम नहीं है, उनका काम लीडर पैदा करना है । कुदरत ने अल्लाह ने उन्हें इसलिए बनाया है कि वो घर संभाले और अच्छी नस्ल के बच्चे पैदा करें । रामजन्मभूमि न्यास के महंथ नृत्यगोपाल दास की बात सुनिए- महिलाओं को अकेले मठ, मंदिर और देवालय में नहीं जाना चाहिए । अगर वो मंदिर, मठ या देवालय जाती हैं तो उन्हें पति, पुत्र या भाई के साथ ही जाना चाहिए नहीं तो उनकी सुरक्षा को खतरा है । ये तो थी धर्म गुरुओं की बात । जरा महिलाओं को लेकर राजनेताओं के विचार जान लेते हैं- लंबे समय तक गोवा के मुख्यमंत्री रह चुके कांग्रेस नेता दिगंबर कामत ने कहा था- महिलाओं को राजनीति में नहीं आना चाहिए क्योंकि इससे समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । राजनीति महिलाओं को क्रेजी बना देती है । समाज के बदलाव में महिलाओं की महती भूमिका है और उन्हें आनेवाली पीढ़ी का ध्यान रखना चाहिए । समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का बयान- अगर संसद में महिलाओं को आरक्षण मिला और वो संसद में आईं तो वहां सीटियां बजेंगी । पूर्व कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने तो सारी हदें तोड़ते हुए कहा था कि – बीबी जब पुरानी हो जाती है तो मजा नहीं देती है । इन बयानों को देखकर ऐसा लगता है कि महिलाओं के प्रति हमारे समाज की जो सोच है वो धर्म, जाति, संप्रदाय से उपर उठकर तकरीबन एक है और ही सोच महिलाओं के प्रति होनेवाले अपराध की जड़ में है । धर्मगुरुओं और नेताओं के इस तरह के बयान से समाज के कम जागरूक लोगों में यह बात घर कर जाती है कि महिलाएं तो मजा देने के लिए हैं या मजा की वस्तु हैं । इस तरह के कुत्सित विचार जब मन में बढ़ते हैं तो वो महिलाओं के प्रति अपराध की ओर प्रवृत्त करते हैं । उन्हें इस बात से बल मिलता है कि उनके नेता या गुरु तो महिलाओं को बराबरी का दर्जा देते ही नहीं हैं ।
सुप्रीम कोर्ट भी समय समय पर बलात्कार के खिलाफ अपनी चिंता जता चुका है । कुछ वक्त पहले ही सर्वोच्च अदालत ने ये जानना चाहा था कि क्या समाज और सिस्टम में कोई खामी आ गई है या सामाजिक मूल्यों में गिरावट आती जा रही है या पर्याप्त कानून नहीं होने की वजह से ऐसा हो रहा है या फिर कानून को लागू करनेवाले इसे ठीक से लागू नहीं कर पा रहे हैं । कानून लागू करनेवालों की बलात्कार को लेकर क्या राय है वो मुलायम सिंह यादव बता चुके हैं । मुलायम सिंह यादव बलात्कार के बारे में बहुत ही कैजुअल तरीके से कहते हैं कि लड़कों से गलतियां हो जाती हैं । उत्तर प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार हो और उसके मुखिया कहें कि लड़कों से गलतियां हो जाती हैं तो फिर तो इस तरह की ‘गलतियों’ को पुलिस भी उसी आलोक में देखेगी और तफ्तीश करेगी । बलात्कार के खिलाफ कानून लागू करनेवालों के बारे में सुप्रीम कोर्ट का सवाल उचित है । इसके बारे में पूरे समाज को गंभीरता से विचार करना होगा । समाज के हर तबके के लोगों को बलात्कार के इस नासूर के खिलाफ एक जंग छेड़नी होगी ताकि हमारी बेटियां और बहनें महफूज रह सकें । राजनीतिक बिरादरी को संवेदनशीलता दिखाते हुए इस बारे में आगे आकर लीड लेनी होगी ।