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Saturday, November 2, 2024

हिंदुओं की वैश्विक व्याप्ति और समाज


महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा के लिए चुनाव में प्रचार चरम पर है। इन दोनों राज्यों में चुनाव प्रचार के बीच उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर होनेवाले उपचुनाव को लेकर भी राजनीतिक सरगर्मी तेज है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे वाले बयान की काट ढूंढने में विपक्ष परेशान प्रतीत हो रहा है। कभी जीतेंगे तो पिटेंगे जैसा बयान आते हैं तो कभी जुड़ेंगे तो जीतेंगे जैसे नारे होर्डिंग पर लगते हैं। पूरे चुनाव प्रचार में हिंदू और सनातन की ही चर्चा हो रही है। योगी आदित्यनाथ ने तो रामभक्त ही राष्ट्रभक्त का नारा भी दे दिया है। इसपर पलटवार करते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि उनका नारा निराशा और नाकामी का प्रतीक है। अखिलेश यादव ने आदर्श राज्य की कल्पना की बात की। यहां वो राम राज्य कहने से बच गए, लेकिन पूरे पोस्ट से भाव यही निकल रहा है। उनके दल के प्रवक्ता भी श्रीरामचरितमानस की चौपाइयां सुना रहे हैं। हिंदू विमर्श और पौराणिक चरित्र विधानसभा चुनाव प्रचार का केंद्रीय विमर्श है। कुछ लोगों को हिंदू और श्रीराम नाम लेने में कष्ट होता है। वो इशारों में अपनी बात कहते हैं। हिंदुओं की एकजुटता और हिंदू वोटरों को अपने पाले में करने के लिए सभी राजनीतिक दल बेचैन हैं। कोई जाति कार्ड खेल रहा है तो कोई जाति जनगणना की बात को हवा दे रहा है। 

हिंदुओं की चिंता सिर्फ विधानसभा चुनावों में नहीं हो रही है बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसको लेकर चर्चा हो रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव प्रचार में भी हिंदुओं को लेकर दोनों दल सतर्क हैं। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने तो हिंदुओं पर बंगलादेश में हो रहे अत्याचार पर एक लंबी पोस्ट ही लिख डाली। ट्रंप ने लिखा कि वो बंगलादेश में हिंदुओं, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यों पर होने वाले बर्बर हिंसा की निंदा करते हैं। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी कमला हैरिस और अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन पर आरोप लगाया कि दोनों ने मिलकर अमेरिका और पूरे विश्व में हिंदुओं की अनदेखी की। ट्रंप ने स्पष्ट रूप से ये घोषणा की है कि धर्म के विरुद्ध रैडिकल लेफ्ट के एजेंडा से अमेरिकन हिंदुओं के अधिकारों की रक्षा के लिए वो प्रतिबद्ध हैं। हिंदुओं की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करेंगे। भारत और अपने मित्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बेहतर समन्वय बनाकर चलेंगे। इसके बाद उन्होंने हिंदुओं को दीवाली की शुभकामनाएं दी और कहा कि ये ये पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। उधर डेमोक्रैट पार्टी की उम्मीदवार और अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी दीवाली मनाई। दीवाली मनाते हुए उनका वीडियो उनकी टीम ने इंटरनेट मीडिया पर साझा किया। जो बाइडेन ने भी व्हाइट हाउस में अपने परिवार के साथ दीवाली मनाई। जिस तरह से अमेरिका के चुनाव में हिंदुओं की बात हो रही है उतना खुलकर तो यहां भी हिंदुओं और हिंदू धर्म की चर्चा नहीं होती है। पिछले दिनों जब ब्रिटेन में चुनाव हुआ था तो वहां भी प्रधानमंत्री पद के दोनों उम्मीदवारों ने मंदिरों में जाकर पूजा आदि की थी। ऋषि सुनक ने तो खुलकर हिंदू देवी देवताओं के बारे में श्रद्धापूर्वक बात की थी। 

एक तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बंगलादेश में हिंदुओं पर होनेवाले अत्याचार पर खुलकर बोल और लिख रहे हैं वहीं दूसरी तरफ हमारे देश में कई दलों के नेता इस मुद्दे पर खामोशी ओढे हुए हैं। जब भी बंगलादेश में हिंदुओं पर होनेवाले अत्याचार की चर्चा होती है और इन दलों के नेताओं या प्रवक्ताओं से इस बाबत प्रश्न पूछा जाता है तो वो अपने उत्तर के साथ साथ फिलस्तीन का मुद्दा भी उठा देते हैं। वो ये भूल जाते हैं कि फिलिस्तीनी आतंकवादियों ने इजरायल में घुसकर ना केवल नरसंहार किया बल्कि सैकड़ों बच्चों और महिलाओं को बंधक भी बना लिया था। इस क्रिया की प्रतिक्रिया में फिलस्तीन पर इजरायल हमले कर रहा है। इससे उलट बंगलादेश में तो हिंदुओं ने किसी प्रकार की कोई हिंसा नहीं की। उनपर तो वहां के बहुसंख्यकों ने अकारण हमले किए। हिंदुओं की हत्या की गई। मंदिरों को तोड़ा गया। जब भारत के सभी राजनीतिक दलों को इस हमले के खिलाफ एक स्वर में बोलना चाहिए था उस वक्त ये किंतु परंतु में अटके रहे। अब भी हैं। इसका कारण क्या हो सकता है। एक वजह है वोटबैंक की राजनीति। जो दल अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों की राजनीति करते हैं उनको लगता है कि बंगलादेश में हिदुओं पर हो रहे हमलों का विरोध करने से उनका वोटबैंक दरक सकता है। इस कारण वो हिंदुओं पर होनेवाले हमले को लेकर तटस्थ हो जाते हैं। धर्म और राजनीति के घालमेल की आड़ लेते हैं। तर्क होता है कि धर्म को राजनीति से अलग रखना चाहिए। इस तर्क को इकोचैंबर में बैठे तथाकथित बुद्धिजीवी हवा देते हैं। ऐसा माहौल बनाते हैं कि राजनीति से धर्म को अलग रखना चाहिए। दरअसल इकोचैंबर वाले बुद्धिजीवी ये नहीं समझ पाते कि मार्क्स ने जिस धर्म की बात की थी और जो भारत का धर्म है वो दोनों बिल्कुल अलग हैं। 

आज पूरी दुनिया हिंदुओं की ओर देख रही है। वो सनातन धर्म को समझना चाहती है। हिंदुओं की उस जीवन शैली को समझना चाहती है जिसकी इकाई परिवार है। एकल परिवार से ऊब चुकी दुनिया भारतीय परिवारों और उनके बीच के लगाव को समझना चाहती है। संस्कारों के बारे में जानने को उत्सुक है। हिंदू धर्म और अध्यात्म को लेकर वैश्विक स्तर पर एक रुझान देखा जा रहा है। ऐसे में अपने देश में हिंदुओं और उनके ग्रंथों को लेकर और सनातन पर अपमानजनक टिप्पणियां करनेवालों को पुनर्विचार करना चाहिए। जब पूरी दुनिया हिंदुओं की ओर देख रही है ऐसे में अपने ही देश में हिंदुओं को लेकर घृणा भाव बहुत दिनों तक चलनेवाला नहीं है। हिंदू धर्म में जो भी कुरीतियां हों उसको दूर करने का सामूहिक प्रयास किया जाना चाहिए। ऐसा पहले होता भी रहा है। हिंदू समाज के अंदर से ही कोई ना कोई सुधारक आता है जो कुरीतियों पर प्रहार करता है और वृहत्तर हिंदू समाज उसको स्वीकार करता है। कुरीतियों और रूढ़ियों के आधार पर हिंदू समाज को बांटने का जो षडयंत्र चल रहा है उसका निषेध हिंदू समाज ही करेगा। अगर कोई सोचता है कि हिंदू समाज को अपमानित करके अपने वोटबैंक को मजबूत कर लेगा तो वो गलतफहमी में है। हिंदू एकता पर पहले भी बातें होती रही हैं, साहित्य में भी इसके उदाहरण मिलते हैं और इतिहास में भी। रामचंद्र शुक्ल से लेकर शिवपूजन सहाय और रामवृक्ष बेनीपुरी के लेखन में हिंदुओं को संगठित होने की अपेक्षा की गई है। यह अकारण नहीं है कि आज प्रबुद्ध हिंदू समाज भी इस ओर सोचने लगा है। सहिष्णुता हिंदुओं का एक दुर्लभ गुण है लेकिन सहिष्णुता को अगर निरंतर छेड़ा या कोंचा जाएगा तो एक दिन उसकी प्रतिक्रिया तो होगी ही। स्वाधीनता के बाद से ही विचारधारा विशेष के लोगों ने हिंदुओं को अपमानित करने का योजनाबद्ध तरीके से लेकिन परोक्ष रूप से उपक्रम चलाया। ऐसा करनेवाले अब परिधि पर हैं और हिंदू केंद्र में।