पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुस्तकालयों की महत्ता को रेखांकित किया था। मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा कि माना जाता है कि पुस्तकें हमारी सबसे अच्छी दोस्त होती हैं। इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए सबसे अच्छी जगह पुस्तकालय है। इस क्रम में उन्होंने चेन्नई से लेकर देश के अन्य हिस्सों में स्थापित पुस्तकालयों का ना केवल उल्लेख किया बल्कि उसको रचनात्मकता के केंद्र के रुप में विकसित करने पर बल भी दिया। इसी क्रम में प्रधानमंत्री ने बिहार के गोपालगंज के प्रयोग पुस्तकालय की भी चर्चा की। इस पुस्तकालय की चर्चा से आसपास के जिलों में उत्सुकता का वातावरण बना है। प्रयोग पुस्तकालय जिले के 12 गावों के युवाओं को पढ़ने की सुविधा उपलब्ध करवा रहा है। प्रधानमंत्री ने पुस्तकालयों को ज्ञान के केंद्र में रूप में भी रेखांकित किया और लोगों को पुस्तकों से दोस्ती करने का आह्वान भी किया। उनका मानना है कि पुस्तकों से दोस्ती करने पर आपकी जिंदगी बदल सकती है। इसके पहले अपने गुजरात के अपने लोकसभा चुनाव क्षेत्र गांधीनगर के एक कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह ने भी पुस्तकालयों को समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने पुस्तकालयों के प्रभारियों के साथ एक बैठक भी की। अमित शाह ने कहा कि देश के भविष्य को संवारने में पुस्तकालयों की बड़ी भूमिका है। गृहमंत्री ने अपने लोकसभा क्षेत्र के सभी पुस्तकालों को दो -दो लाख रुपए देने की भी घोषणा की। उन्होंने पुस्तकालयों को आधुनिक बनाने पर बल देते हुए कहा कि तकनीक के उपयोग को बढ़ाकर व्यक्तिगत रुचियों के आधार पर पुस्तकें उपलब्ध करवाई जा सकती हैं। अमित शाह ने प्राचीन ग्रंथों को आनलाइन उपलब्ध करवाने का भी आग्रह किया। इसके पहले राष्ट्रपति ने भी पुस्तकालयों को लेकर अपनी अपेक्षा जाहिर की थी।
प्रधानमंत्री ने 24 नवंबर 2024 को मन की बात कार्यक्रम में पुस्तकालयों पर अपनी राय रखी और अगले ही दिन यानि 25 नवंबर को संस्कृति मंत्रालय ने अपने एक आदेश के जरिए कोलकाता स्थित राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन में एक प्रभारी को मुक्त करके दूसरे प्रभारी की नियुक्ति का आदेश जारी कर दिया। नेशनल लाइब्रेरी के महानिदेशक ए पी सिंह को राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन का छह महीने या नियमित नियुक्ति जो भी पहले हो, तक प्रभार दे दिया गया। ये आदेश संस्कृति मंत्री के अनुमोदन के बाद जारी किया गया। 24 नवंबर को प्रधानमंत्री का लाइब्रेरी पर बोलना और 25 नवंबर को राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन के महानिदेशक के प्रबार संबंधित आदेश जारी होना एक संयोग हो सकता है, लेकिन संयोग सुखद है। फिर वही प्रश्न कि प्रभारियों के जरिए सांस्कृतिक संस्थाओं का काम कब तक चलता रहेगा। पता नहीं कब से राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन के महानिदेशक पर नियमित अधिकारी नहीं हैं। राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन देश में पुस्तकालयों की नोडल संस्था है। उसका ये हाल है तो प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की पुस्तकालयों को लेकर देखे जा रहे स्वप्न का क्या होगा इसका सहज अंदाज लगाया जा सकता है। प्रभारी तो बस संस्था को चलायमान रख सकते हैं। उनसे किसी नवाचार, किसी नए प्रकल्प की आशा व्यर्थ है। उनका प्राथमिक दायित्व तो अपनी मूल संस्था के प्रति होता है। पुस्तकालयों की नोडल संस्था में नियमित महानिदेशक का नहीं होना संस्कृति मंत्रालय के क्रियाकलापों पर बड़े प्रश्न खड़े करता है।
राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन को लेकर संस्कृति मंत्रालय कितनी गंभीर है इसको इस घटना से भी समझा जा सकता है। राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन के सदस्यों की एक बैठक करीब दो वर्ष बाद 25 सितंबर 2024 को हुई। नवनियुक्त सदस्यों की ये पहली बैठक थी। इस बैठक में पिछले वर्ष के निर्णयों का अनुमोदन होना था। फाउंडेशन पुस्तकों की खरीद भी करता है। इस बैठक में पुस्तकों की सूची अनुमोदन के लिए आई तो कुछ सदस्यों ने उसपर आपत्ति जताई। संस्कृति मंत्री इस बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने इस मसले को देखने का आश्वासन दिया। आश्वासन तो इस बात का भी दिया गया था कि पुस्तकों की सरकारी खरीद के नियमों को पारदर्शी बनाया जाए। मजे की बात ये रही कि बैठक को दो महीने से अधिक समय बीत गया लेकिन इसका मिनट्स अबतक सदस्यों के पास नहीं पहुंचा है। जब मिनट्स ही नहीं बना तो बैठक में लिए गए निर्णयों का क्या हुआ होगा, इसकी जानकारी की अपेक्षा तो व्यर्थ ही है। दरअसल फिल्म द कश्मीर फाइल्स का वो संवाद बेहद सटीक है, सरकार भले ही तुम्हारी है लेकिन सिस्टम तो हमारा ही चलता है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार भले ही 11 वर्षों से चल रही है लेकिन सिस्टम में बहुत बदलाव आ गया हो ऐसा प्रतीत नहीं होता।
सिस्टम के नहीं बदलने का ही एक और उदाहरण है। कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) के नियमों में सख्ती। बताया जा रहा है कि सख्ती के बाद कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम सीएसआर के अंतर्गत नहीं आ सकता। अगर कोई शास्त्रीय गायन या नृत्य के कार्यक्रम का आयोजन करता है तो उसको सीएसआर के अंतर्गत नहीं माना जाएगा। पहले साहित्य, कला और संस्कृति के आयोजन इस योजना के अंतर्गत आते थे। अब साहित्य को लेकर नियम इतने कड़े कर दिए गए हैं कि किसी कार्यक्रम में पुस्तकों का वितरण बेहद कठिन हो गया है। कल्पना कीजिए कि समाज के पढ़े लिखे लोगों के बीच एक पुस्तक चर्चा रखी गई। लेखक से पुस्तक पर चर्चा करने के बाद आमंत्रित सदस्यों को उनकी पुस्तक भेंट की जाती थी। पहले ये पूरा कार्यक्रम सीएसआर के अंतर्गत आता था और खर्चे की औपचारिकताएं बिल आदि जमा कर पूरी कर ली जाती थीं। अब ये कर दिया गया है कि जो भी किसी वस्तु का एंड यूजर होगा यानि कि जिसको भी आयोजक संस्था की ओर पुस्तक भेंट की जाएगी उसका नाम और फोन नंबर आयोजक को संबंधित सरकारी विभाग के पास जमा करना होगा। सायकिल वितरण में तो इस तरह का प्रविधान उचित है लेकिन साहित्यिक कार्यक्रमों में पुस्तक वितरण में ये बाधा है। स्कूलों में पुस्तक वितरण में तो ये दायित्व स्कूल उठा लेते हैं। ये सहजता के साथ संपन्न हो जाता है, लेकिन आयोजनों में एक किताब गिफ्ट देने पर फार्म भरवाना कठिन सा होता है। ये व्यावहारिक दिक्कतें हैं। पिछले 10 वर्षों में अधिक पुस्तकें तो भारतीय विचार और विचारधारा की प्रकाशित हो रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके कार्यों पर प्रकाशित हो रही हैं। प्रश्न ये उठता है कि क्या ईकोसिस्टम भारतीय विचार के पुस्तकों के पाठकों तक पहुंच में नियमों के जरिए बाधा खड़ी कर रहा है। सीएसआर के नियमों में पुस्तकों को लेकर उदारता बरतनी चाहिए। नियम बनाने वालों को इस दिशा में काम करना चाहिए ताकि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के सोच को और विजन को अमली जामा पहनाया जा सके। लोगों और पुस्तकालयों तक पुस्तकें पहुंचे इसके लिए आवश्यक है कि संस्कृति मंत्रालय पुस्तकालयों की नोडल संस्था राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन को सक्रिय करे। प्रतिवर्ष नए और उच्च स्तर की पुस्तकें खरीद कर पुस्तकालयों में भेजी जाएं। संस्थाओं को प्रभारियों से मुक्त करके नियमित नियुक्ति की जाए ताकि जो भी व्यक्ति वहां नियुक्त हो उसकी प्राथमिकता में पुस्तकालयों की बेहतरी हो।
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