हर साल जब भी नेशनल क्राइम
रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ें आते हैं तो महिलाओं के खिलाफ होनेवाले वारदातों में खतरनाक
तरीके की बढ़ोतरी दिखाई देती है । महिलाओं के लिए सुरक्षित मानी जानेवाली जगहों में
भी बलात्कार, यौन उत्पीड़न और तेजाब हमले जैसी घटनाएं होने लगी है । दिल्ली में मेडिकल
की छात्रा से गैंगरेप की वारदात के बाद राजपथ से लेकर जनपथ तक जनउबाल दिखता है । मुंबई
में महिला पत्रकार के साथ गैंगरेप से हमारा पूरा समाज उद्वेलित हो जाता है । न्यूज
चैनलों और अखबारों में बलात्कार जैसे घिनौने वारदात के लिए सख्त से सख्त कानून की मांग
की आवाज बुलंद होती है । लेकिन बलात्कारियों के लिए सख्त सजा की मांग के कोलाहल के
बीच समाज में फैल रहे इस कैंसर के मूल में नहीं जा पाते हैं । हमें इस बात पर विचार
करना होगा कि हमारे समाज में बलात्कार जैसी घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं । क्यों बलात्कार
के बढ़ते मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट नियमित अंतराल पर चिंता जाहिर करता है । अभी
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताते हुए पूछा था – हमारे समाज और सिस्टम में क्या खामी आ गई है कि पूरे देश में बलात्कार के मामले
लगातार बढ़ रहे हैं । सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि क्या ये सामाजिक मूल्यों में गिरावट
का नतीजा है या पर्याप्त कानून नहीं होने की वजह से हो रहा है या फिर कानून को लागू
करनेवाले इसको ठीक तरह से लागू नहीं कर पा रहे हैं । सुप्रीम कोर्ट के इन तीन सवालों
का अगर हम जवाब ढूंढते हैं तो हमें लगता है कि इन तीन वजहों के अलावा भी एक दो वजहें
हैं जो महिलाओं के प्रति इस जघन्य अपराध को बढ़ावा देती हैं ।
हमारा समाज सदियों से नैतिक
मूल्यों के लिए शासक वर्ग और धर्म गुरुओं को अपना नायक मानता रहा है । लेकिन सत्तर
के दशक के बाद से राजनेताओं और धर्मगुरुओं के नौतिक मूल्यों में जिस तरह का ह्रसा हुआ है वह
सभ्य समाज के लिए चिंता की बात हैं । महिलाओं को लेकर समाज के रहनुमाओं के मन में जो
विचार रहते हैं वो बहुधा उनकी जुबान पर आते ही रहते हैं । अगर हम इन चार बयानों को
देखें तो महिलाओं को लेकर हमारे समाज के रहनुमाओं की राय साफ हो जाएगी । शिया धर्म
गुरु कल्बे जब्बाद कहते हैं – लीडर बनना औरतों का काम नहीं
है, उनका काम लीडर पैदा करना है । कुदरत ने अल्लाह ने उन्हें इसलिए बनाया है कि वो
घर संभालें, अच्छी नस्ल के बच्चे पैदा करें । रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष नृत्यगोपाल
दास के मुताबिक- महिलाओं को अकेले मंदिर, मठ, देवालय में नहीं जाना चाहिए । अगर वो
मंदिर, मठ या देवालय जाती हैं तो उन्हें पिता, पुत्र या भाई के साथ ही जाना चाहिए नहीं
तो उनकी सुरक्षा को खतरा है । गोवा के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेसी नेता दिगंबर कामत
ने कहा था- महिलाओं को राजनीति में नहीं आना चाहिए क्योंकि इससे समाज पर नकारात्मक
प्रभाव पड़ता है । राजनीति महिलाओं को क्रेजी बना देती है । समाज के बदलाव में महिलाओं
की महती भूमिका है और उन्हें आनेवाली पीढ़ी का ध्यान रखना चाहिए । इससे भी आगे जाकर
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश के रक्षा मंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव कहते
हैं – अगर संसद में महिलाओं को आरक्षण मिला और वो संसद में आईं
तो वहां जमकर सीटियां बजेंगी । और इस वक्त के कोयला मंत्री बयानवीर श्रीप्रकाश जायसवाल
ने तो सारी हदें तोड़ दी थी और कहा था कि बीबी जब पुरानी हो जाती है तो मजा नहीं देती
है । ये बयान अलग अलग धर्म और विचारधारा के मानने वालों के हैं जो अपने अपने समुदाय
और विचारधारा की रहनुमाई करते हैं । समाज के रहनुमाओं के महिलाओं को लेकर इस तरह के
बयानों से कम पढ़े लिखे लोगों के मन में कुत्सित विचार पैदा होते हैं और वो महिलाओं
के प्रति अपराध की ओर प्रवृत्त होते हैं ।
लेकिन हमारे देश के राजनेताओं
को इसकी कहां चिंता है । वो तो यह जानकर संतुष्ट हो जाते हैं कि महिलाओं के प्रति अपराध
को लेकर पूरे विश्व में हम कई देशों से बहुत पीछे हैं । लेकिन आंकड़ों की ही बात करें
तो हम पाते हैं कि 1990 से लेकर 2008 के बीच हमारे देश में बलात्कार के केस दोगुने
से ज्यादा हो गए हैं। मुंबई में तो सिर्फ एक
साल में ही बलात्कर के मामलों में दोगुना इजाफा हुआ है । इन वारदातों में स्कूलों में
बच्चों के साथ दरिंदगी, धर्म गुरुओं का भगवान के नाम पर भक्तों का यौन शोषण आदि सभी
शामिल हैं । हमारे शासक वर्ग इन सबसे बेखबर सिर्फ संसद में कानून बनवाकर अपने कर्तव्यों
की इतिश्री समझ ले रहा है । तमाम मसलों पर एक दूसरे के विरोध में तांडव करनेवाले सांसद
सजायाफ्ता को संसद में पहुंचाने के लिए अपने सारे विरोध छोड़कर एक जुट हो जाते हैं
। सुप्रीम कोर्ट ने दो साल से ज्यादा की सजा पाए नेताओं और चुनाव के वक्त जेल में रहनेवालों
के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी । लेकिन पक्ष और प्रतिपक्ष अपराधियों के चुनाव लड़ने
को को लेकर इतने चिंतित हैं कि बहुत मुमकिन है कि संसद के इसी सत्र में सुप्रीम कोर्ट
के फैसले को पलटनेवाला कानून पास हो जाए । इन सबका समाज में यही संदेश जाता है कि हमारा
शासक वर्ग अपराधियों के साथ है । समाज में नैतिक मूल्यों के लिए कोई जगह ही नहीं बची
। कानून बनानेवालों को समाज से ज्यादा सिर्फ अपनी चिंता है । तभी तो वोट मांगने के
लिए जनता के सामने हाथ फैलानेवाली पार्टियां जनता को अपने आय के स्त्रोत जानने के हक
से वंचित करने के लिए भी एकजुट हैं । ये ऐसे मुद्दे हैं जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत
नहीं हैं । जिनपर लोकतंत्र को बचाने की जिम्मेदारी है वही लोकतंत्र से मिले हक का इस्तेमाल
अपने लाभ के लिए कर रहे हैं, जनता की फिक्र नहीं ।
बलात्कार के बढ़ते मामलों के लिए जटिल न्याययिक प्रक्रिया,
इंसाफ मिलने में हो रही देरी और न्यायिक प्रक्रिया के दौरान पीड़ित के साथ होनेवाला
सलूक बहुत हद तक जिम्मेदार है । दिल्ली गैंगरेप की सुनवाई को फास्ट ट्रैक कोर्ट को
सौंपे तकरीबन आठ महीने बीत चुके हैं लेकिन अभी तक उस मामले में फैसला नहीं आया है ।
आरोपियों ने अदालत को कानून दांव पेंच में उलझा दिया है । जिस पूरे मसले पर पूरे देश
में गुस्से का गुबार उठा था उसका यह हाल है तो यह अंदाजा लगाना आसान है कि सुदूर आदिवासी
क्षेत्र की महिलाओं को कितनी जल्दी और कितना न्याय मिल पाता है । बलात्कार के खिलाफ
कड़े कानून बना देने भर से इसपर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है । इसके साथ जांच की प्रक्रिया
में भी आमूल चूल बदलाव लाना होगा । इस बात को कानूनी जामा पहनाना होगा कि पीड़िता का
बलात्कार के बारे में एक ही बार बयान हो और वो भी मजिस्ट्रेट के सामने हो ताकि वो बार
बार उस घिनौनी हरकत को किसी और के सामने बताने के लिए अभिशप्त ना हो । इसका एक फायदा
यह भी होगा कि न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आएगी और आरोपियों को अलग अलग बयानों में
से लूप होल ढूढने का अवसर प्राप्त नहीं होगा । दरअसल इस मसले में सुप्रीम कोर्ट की
चिंता जायज है और उनके सवाल भी क्योंकि हमारे नायको की नैतिक आभा खत्म हो गई है । देश
को इंतजार हैं एक ऐसे नायक की जो हमारे सामाजिक ताने बाने को सहेज कर रख सके और देश
की जनता को प्रेरित भी कर सके । उम्मीद सिर्फ युवाओं से है ।
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