जयपुर के दिग्गी पैसेल होटल परिसर में पांच दिनों तक चलनेवाले
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की शुरुआत हो चुकी है । जनवरी की हा़ड़ कंपा देनेवाली सर्द
सुबह में राज्यपाल मारग्रेट अल्वा और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन ने इसकी
औपचारिक शुरुआत की । सात सालों से हर साल आयोजित होनेवाला ये लिटरेचर फेस्टिवल अब साहित्यक
विमर्श के मंच से बहुत आगे जा चुका है । अब ये मेला पूरी तरह से कमर्शियल हो गया है
। दिग्गी पैलेस के परिसर में अब एक पूरा मीना बाजार सजने लगा है । एक एख इंच खाली जमीन
पर तरह तरह के समानों की दुकानें खड़ी हो गई हैं । राजस्थानी कपड़ों से लेकर हस्तशिल्प
तक और सोने के गहनों से लेकर जूतियों और थैलों तक की दुकानें वहां लगने लगी हैं । किताबों
की दुकानें कम अन्य चीजों की दुकानें ज्यादा हो गई हैं । मैं इस साहित्यक महफिल को इस वजह से मीना बाजार कहता
हूं कि यहां वो पूरा माहौल है जो कि किसी भी मजमे को मीना बाजार बनाने के लिए काफी
होता है । चाय और कॉफी के अलग अलग स्टॉल के अलावा बर्गर से लेकर लजीज व्यंजन तक अब
वहां मौजूद हैं । इन सबसे आयोजकों को अच्छी खासी आय होती है । हस्तशिल्प और गहने तो
विदेशी मेहमानों को ध्यान में रखकर लगाए गए हैं । कीमत भी उसी हिसाब से रखी गई हैं
।जयपुर के इस साहित्योत्सव में अब विमर्श कम भीड़ ज्यादा होती है । मुझे याद है कि
छह साल पहले जब दिग्गी पैलेस के फ्रंट लॉन में साहित्यक विमर्श होता था तो साहित्य
के गंभीर श्रोता और साहित्यप्रेमी ही वहां उपस्थित होते थे । ना कोई भीड़ भाड़ ना कोई
तामझाम । अब तो कुल्हड़ की चाय का भी व्यावसायीकरण हो गया है । राजस्थानी साफा बांधे
कुल्हड़ में चाय पीने के लिए कूपन लेनेवालों की लंबी कतार फ्रंट लॉन में लगती है ।
साहित्यप्रेमियों के अलावा बच्चे भी अच्छी खासी संख्या में
इस मेले को देखने आते हैं । अब तो हालात यह है कि जिस तरह से किसी भी स्कूल से बच्चों
को अप्पू घर ले जाया जाता है उसी तरह स्कूली बच्चे लाइन लगाकर स्कूल की यूनिफॉर्म में
इस मीना बाजार में घूमने आते हैं । उनके साथ उनके शिक्षक भी होते हैं जो बच्चों को
लाइनलगवाकर मेला दिखाते हैं और फिर बाहर ले जाते हैं । साहित्य प्रेमियों से ज्यादा
भीड़ तमाशा और सेलिब्रिटीज को देखने और उनके साथ फोटो खिंचवानेवालों की होती है । आयोजकों
ने भी इस आयोजन को लोकप्रिय बनाने और भीड़ के आकर्षण का केंद्र बनाने में कोई कोर कसर
नहीं छोड़ी है । हर बार साहित्यक सुपरस्टार के साथ साथ लोकप्रिय फिल्मों के कलाकारों
को भी यहां बुलाया जाता है ताकि आम जनता को आकर्षित किया जा सके । जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल
को मशहूर करने में विवादों की भी बड़ी भूमिका है । जावेद शबाना से लेकर गुलजार और शर्मिला
टैगोर तक यहां टहलते नजर आते रहे हैं । मुझे याद है कि पिछली बार जब राहुल द्रविड़
और राजदीप सरदेसाई का सेशन हुआ था तो फ्रंट लॉन को सेशन शुरू होने के पहले ही बंद कर
देना पड़ा था । इतनी भीड़ थी कि सुरक्षाकर्मियों को उन्हें काबू में करने में दिक्कत
हो रही थी । दिग्गी पैलेस के सामने सड़क तक लंबी कतार लगी हुई थी । ट्रैफिक पुलिस को
गाड़ियों की भीड़ को काबू में करने के लिए खासी मशकक्त करनी पड़ी थी ।
पिछले दो सालों से जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल विवादों की वजह
से चर्चा में रहा है । पिछले साल समाजशास्त्री आशीष नंदी ने के पिछड़ों पर दिए गए बयान
और आशुतोष के प्रतिवाद ने पूरे देश में एक विवाद खड़ा कर दिया था । आशीष नंदी ने कहा
था कि – इट इज अ फैक्ट दैट मोस्ट ऑफ द करप्ट कमन फ्राम दे ओबीसी एंड शेड्यूल कास्ट एंड
नाऊ इंक्रीजिंगली शेड्यूल ट्राइब्स । आशीष नंदी के उस बयान का उस वक्त पत्रकार रहे
और अब आम आदमी पार्टी के नेता आशुतोष ने जमकर प्रतिवाद किया था । दोनों तरफ के बयानों
पर जमकर तालियां भी बजी थी और बाद में राजनीतिक रोटियां भी सेंकी गई थी । उस विवाद
पर हफ्तों तक न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर लंबी बहसें चली थी । कुछ नेता भी इस विवाद
में कूद पड़े थे और आयोजकों और आशीष नंदी पर केस मुकदमे भी हुए थे, वारंट जारी हुआ
था । बाद में जब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और सुलझा तबतक लिटरेचर फेस्टिवल हर
किसी की जुबां पर था । पूरे देश में लोग जान गए कि जयपुर में इस तरह का सालाना जलसा
होता है । आशीष नंदी के बयान पर उठे विवाद के पहले पहले भारतीय मूल के लेखक सलमान रश्दी
के जयपुर आने को लेकर अच्छा खासा विवाद हुआ था । कुछ कट्टरपंथी संगठनों ने सलमान के
जयपुर साहित्य महोत्सव में आने का विरोध किया था । उनकी दलील थी कि सलमान ने अपनी किताब-
सैटेनिक वर्सेस में अपमानजन बातें लिखी हैं जिनसे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुई थी
। उस वक्त उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होनेवाले थे लिहाजा सियासी दलों ने भी इस
विवाद को जमकर हवा दी और नतीजा यह हुआ कि सलमान रश्दी को आखिरकार भारत आने की मंजूरी
नहीं मिली । तीन चार दिनों तक चले उस विवाद में जयपुर साहित्य सम्मेलन खासा चर्चित
हो गया था । उस विवाद की छाया लंबे समय तक जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल को प्रसिद्धि दिलाती
रही थी। चूंकि सलमान रश्दी विवाद के केंद्र में थे इसलिए इंटरनेशनल मीडिया में उसको
खासी तवज्जो मिली । अब तो हालत यह है कि जयपुर साहित्य महोत्सव इंटरनेशनल लिटरेरी कैलेंडर
में अपना एक अहम स्थान बना चुका है । इस बार अब तक किसी विवाद के संकेत नहीं मिल रहे
हैं । हलांकि इस बार फ्रीडम जैसा उपन्यास लिखकर दुनियाभर में शोहरत पा चुके अमेरिकी
उपन्यासकार जोनाथन फ्रेंजन ने यह कहकर आयोजकों को सकते में डाल दिया कि- जयपुर लिटरेचर
फेस्टिवल जैसी जगहें सच्चे लेखकों के लिए खतरनाक है, वे ऐसी जगहों से बीमार और लाचार
होकर घर लौटते हैं । अगर अपने इस वक्तव्य को थोड़ा विस्तार देते और बेहतर होता और उसपर
विमर्श भी संभव था । जोनाथऩ का उपन्यास फ्रीडम खासा चर्चित रहा है और आलोचकों ने उसे
वॉर एंड पीस के बाद का सबसे अहम उपन्यास माना है । इस वजह से उनकी बात को हल्के में
भी नहीं लिया जा सकता है । इसके पहले नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन ने आम
आदमी पार्टी के उभार को भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती के तौर पर पेश किया । उन्होंने
आम आदमी पार्टी की तारीफ करते हुए कहा कि उन्हें अपेक्षा है कि भारत में एक ऐसी दक्षिणपंथी
पार्टी की अपेक्षा है जो धर्मनिरपेक्ष हो । इसके पहले अमर्त्य सेन का नरेन्द्र मोदी
विरोध काफी चर्चा में रह चुका है औपर अब वो आम आदमी पार्टी के बहाने से एक नया शिगूफा
छोड़ गए हैं । वहीं अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के नेत्रहीन लेखक वेद मेहता ने
मोदी पर निशाना साधा और कहा कि अगर वो देश के प्रधानमंत्री बनते हैं तो वो भारत जैसे
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए खतरनाक होगा । उनके मुताबिक मोदी के विचार हमेशा हिंदुओं
और मुसलमानों को बांटनेवाले होते हैं । अस्सी वर्षीय मेहता ने अपने विचारों और वक्तव्य
से स्पंदन पैदा करने की कोशिश की लेकिन उनके विचारों में मौजूद पूर्वग्रह साफ झलक रहा
था लिहाजा लोगों ने उनको गंभीरता से नहीं लिया । साहित्योत्सव में हर बार इस तरह की
कोशिशें होती रही हैं लेकिन मेरी समझ में नहीं आता है कि किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ
पूर्वग्रह लेकर विमर्श में वस्तुनिष्ठता कैसे आ सकती है ।
लेकिन जयपुर साहित्य महोत्सव इस मायने में अहम भी है कि इसने भारत में इस तरह के
साहित्यक उत्सवों की एक संस्कृति विकसित की है । जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की देखादेखी
आज देशभर में कई लिटरेचर फेस्टिवल आयोजित होने लगे हैं । हर संस्थान इस तरह के आयोजन
को करने के लिए लालायित नजर आ रहा है । अखबारों ने भी लिटरेचर फेस्टिवल आयोजित करने
में खासी रुचि दिखाई है । नतीजा यह हुआ है कि इस तरह के आयोजन महानगरों के अलावा सुदूर
छोटे शहरों में भी होने लगे हैं । यह एक अच्छी बात है और साहित्य के लिए शुभ संकेत
भी । इस तरह से आयोजनों और विमर्श से हमारे समाज में एक सांस्कृतिक संस्कार विकसित
हो सकता है । इसके लिए यह जरूरी है कि इस तरह के उपक्रमों का व्यावसायीकरण ना हो, पैसे
कमाने का उद्यम ना बने । इस तरह के आयोजनों में मंशा ज्यादा अहम होती है क्योंकि अगर
मंशा साफ है तो नतीजे बेहतरीन मिलते हैं ।
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