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Monday, July 5, 2021

बोलती आंखों वाले अभिनेता


अभिनेता संजीव कुमार की बात हो तो दो फिल्मों और उसके बनने के दौर की कई दिलचस्प प्रसंग याद आते हैं। एक फिल्म थी रमेश सिप्पी की ‘शोले’ और दूसरी फिल्म थी के आसिफ की ‘मुहब्बत और खुदा’। ‘शोले’ समय पर रिलीज हो गई लेकिन ‘मोहब्बत और खुदा’ कई वर्षों बाद रिलीज हो सकी। पहले तो गुरुदत्त के निधन की वजह से रुकी फिर के आसिफ की मौत की वजह से इसके पूरा होने में समय लगा। ‘शोले’ की जब शूटिंग हो रही थी उस वक्त संजीव कुमार और हेमा मालिनी के रोमांस के किस्से फिल्मी पत्रिकाओं में छाए रहते थे। ‘शोले’ की शूटिंग के दौरान इन चर्चाओं से बचने के लिए संजीव कुमार उस होटल में नहीं रुके थे जिसमें धर्मेन्द्र, अमिताभ बच्चन आदि ठहरे हुए थे। वो एक अलग होटल में रहते थे। जब शूटिंग शुरू हुई तो एक दिन धर्मेन्द्र को लगा कि इस फिल्म का असली हीरो तो गब्बर सिंह है। वो रमेश सिप्पी के पास पहुंचे और जिद करने लगे कि उनको वीरू का नहीं गब्बर सिंह का रोल करना है। रमेश सिप्पी ने काफी समझाया लेकिन धर्मेन्द्र मानने को तैयार नहीं थे। अचानक रमेश सिप्पी राजी हो गए और कहा कि ठीक है ‘गब्बर’ का रोल आप कर लो मैं ‘वीरू’ की भूमिका संजीव कुमार को देता हूं, पर सोच लो फिल्म में वीरू और बसंती की जोड़ी है और संजीव कुमार और हेमा मालिनी फिल्म में रोमांस करते नजर आएंगे। इतना सुनना था कि धर्मेन्द्र फौरन बोले नहीं-नहीं, मेरे लिए वीरू की भूमिका ही ठीक है। मिहिर बोस ने अपनी पुस्तक ‘बॉलीवुड’ में इस दिलचस्प प्रसंग का उल्लेख किया है। बाद के दिनों में जो हुआ वो सभी को पता है। जब हेमा मालिनी से संजीव कुमार और उनके रोमांस के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा था कि ‘वो बेहद व्यक्तिगत और जटिल मामला था’। 

गुरुदत्त के निधन के कई सालों बाद जब के आसिफ ने ‘मोहब्बत और खुदा’ की शूटिंग करने का फैसला लिया तो उऩके सामने अभिनेता के चयन की समस्या थी। उस समय तक संजीव कुमार थिएटर में नाम कमा रहे थे। के आसिफ के किसी दोस्त ने फिल्म की उस भूमिका के लिए संजीव कुमार का नाम सुझाया। दोनों मिले और के आसिफ ने संजीव कुमार को फिल्म के सेट पर बुलाया । अगले दिन संजीव कुमार फिल्म के सेट पर पहुंचे तो के आसिफ ने उनको तैयार होने के लिए कहा और अपने कमरे में चले गए। संजीव कुमार शूटिंग के लिए तैयार होकर सेट पर बैठ गए। के आसिफ कमरे से सेट पर बैठे संजीव कुमार को देख रहे थे जो बेचैन हो रहे थे। के आसिफ यही चाहते थे, वो संजीव कुमार के चेहरे के भावों को पढ़ रहे थे। करीब तीन घंटे के बाद के आसिफ अपने कमरे से निकले और संजीव कुमार को गले लगा लिया। उनको अपनी फिल्म का हीरो मिल गया था। दरअसल संजीव कुमार हिंदी फिल्मों के ऐसे नायक थे जिनकी आंखें भी अभिनय करती थी। उनका चेहरे के भाव और आंखों की भाषा दर्शकों से संवाद करती थीं। संजीव कुमार इकलौते ऐसे अभिनेता थे जो किसी भी रोल में खुद को ढाल लेते थे। वो छवि के गुलाम नहीं थे। ए के हंगल की शागिर्दी में थिएटर करनेवाला ये अभिनेता जब फिल्मों में आया तो वो रूपहले पर्दे के अपनी छवि के चक्कर में नहीं पड़ा। उसके लिए किरदार महत्वपूर्ण होता था। ये साहस संजीव कुमार ही कर सकते थे कि ‘परिचय’ में जया बच्चन के पिता की भूमिका निभाई तो ‘अनामिका’ में जया बच्चन के प्रेमी की। दर्शकों ने दोनों भूमिका में उनको खूब पसंद किया। ‘शोले’ में तो वो जया बच्चन के श्वसुर की भूमिका में थे। फिल्म ‘नया दिन नई रात’ में तो उन्होंने नौ अलग अलग चरित्रों को पर्दे पर साकार कर दिया था। गुजराती कारोबारी परिवार से जब ये रंगमंच पर पहुंचे तो इनका नाम हरिभाई जेठालाल जरीवाला था। थिएटर से फिल्म में पहुंचे तो हरिभाई संजीव कुमार हो गए। संजीव कुमार को कम उम्र मिली लेकिन अपनी अभिनय क्षमता से भारतीय फिल्मों को समृद्ध कर गए । 


5 comments:

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-07-2021को चर्चा – 4,119 में दिया गया है।
आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क

Subodh Sinha said...

संजीव कुमार के कई अनसुने पहलूओं से रूबरू कराना अच्छा लगा .. आपके आलेख में एक कमी जोर की खली .. उनकी फ़िल्म "आँधी" की ज़िक्र .. शायद ...

Anuradha chauhan said...

संजीव कुमार वाकई में बेहतरीन अभिनेता थे..बहुत सुंदर प्रस्तुति।

उषा किरण said...

बहुत भावपूर्ण अभिनय होता था…सटीक आलेख!

Umashankar Verma Kolkata said...

Bahut Sunder jaankari. Anant Bhai ko Dhanyavad