आज से करीब छह दशक पहले एक फिल्म आई थी तीसरी मंजिल, जो मर्डर मिस्ट्री थी। इसमें एक लड़की की मौत होती है जिसे आत्महत्या समझा जाता है। कहानी में कई दिलचस्प और रोमांचक मोड़ आते हैं और अंत में मौत का भेद खुलता है। इस फिल्म में शम्मी कपूर और आशा पारेख थीं और निर्देशक विजय आनंद और निर्माता नासिर हुसैन। फिल्म बेहद सफल रही थी। इसमें कलाकारों ने बेहद सधा हुआ अभिनय किया था। इसके साथ कई संयोग जुड़े हुए बताए जाते हैं। इस फिल्म के बाद नासिर हुसैन और विजय आनंद ने कभी साथ काम नहीं किया। शम्मी और नासिर ने भी इस फिल्म के बाद साथ नहीं आए। इस फिल्म के गीतों ने भी ऐसी धूम मचाई थी कि छह दशक बाद भी उसके बोल युवाओं की जुबां पर है। ये वो समय था जब लता मंगेशकर अपनी गायकी की शीर्ष पर थीं और फिल्म में उनके गाने का मतलब फिल्म का हिट होना माना जाता था। लता मंगेशकर की लोकप्रियता के बीच हिंदी फिल्मों की दुनिया में एक ऐसी आवाज आई जिसे संगीतकार राहुल देब बर्मन के हुनर ने वो ऊंचाई दी जो आजतक बनी हुई है। तीसरी मंजिल में आशा भोंसले और मोहम्मद रफी के गाए युगल गीत अमर हो गए। चाहे ओ मेरे सोना रे सोना हो या ऐ हसीना जुल्फों वाली हो या आ जा आ जा मैं हूं प्यार तेरा। आज भी वेलेंटाइन डे पर तीसरी मंजिल फिल्म के ये गीत बजते ही बजते हैं। ये पहली बार नहीं था कि आशा ने आर डी बर्मन के धुनों पर गीत गाए थे। इसके पहले तीसरा कौन में भी दो गाने रिकार्ड किए गए थे, अच्छा सनम कर ले सितम और ओ दिलरुबा। लेकिन न तो फिल्म चली और ना ही गाने को अपेक्षित सफलता मिली। इसके पहले आशा भोंसले को फिल्म नया दौर के गानों से गायिका के तौर पर पहचान मिल चुकी थी।
जब तीसरी मंजिल प्रर्दर्शित हुई और आशा भोंसले के गाए गीत बेहद लोकप्रिय हो गए तो लता और आशा के बीच तुलना होने लगी थी। तरह तरह की चर्चाओं ने भी जोर पकड़ा था। फिल्मी दुनिया से जुड़े कुछ लोग आशा और लता के बीच होड़ की बात भी फैलाने रहे थे। कुछ तो बात रही होगी कि दोनों बहनों के बीच दूरी या खिंचाव की खबरें आम होने लगी थीं। आशा की गनपत भोंसले के साथ शादी को लता ने पसंद नहीं किया था और मनभेद नहीं से आरंभ हो गए थे। पहले पति को छोड़कर जब आशा भोंसले अपने गले में संगितकार ओ पी नय्यर की फोटो लगी लाकेट पहनने लगी थी तो ये भी लता जी को पसंद नहीं आया था। काफी दिनों तक दोनों बहनों के बीच ये चलता रहा। एक सम्मान समारोह में दोनों ने अपनी भावनाओं का प्रदर्शन भी कर दिया था। कार्यक्रम में जब लता मंगेशकर थोड़ी देर से पहुंची थीं तो आशा ने कहा था आप जानबूझकर मेरे कार्यक्रमों में देर से आती हैं ताकि आपको मेरे गाने न सुनने पड़ें। तब लता जी ने अपने चिरपरिचित अंदाज में उत्तर दिया था कि आशा तुमने मुझे बहुत सताया है। बात हंसी मजाक में कही गई थी लेकिन दोनों ने संकेत तो दे ही दिए थे। दरअसल हुआ ये था कि 1950 से 60 के दशक को फिल्म संगीत का स्वर्णिम काल माना जाता है और जब भी इस कालखंड की बात होती थी तो सिर्फ लता का नाम लिया जाता था। संभव है कि आशा जी को ये बात अखरती हो। जबकि बाद के दिनों में आशा भोंसले को श्रोताओं का खूब प्यार मिला। ना सिर्फ गाने बल्कि जब मुजफ्फर अली की फिल्म में आशा भोंसले के गाए गजल गाए भी सुपर हिट रहे। दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए या इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं या ये क्या जगह है दोस्तों ये कौन सी दयार है को सुनते हुए ऐसा लगता है जाने आशा के कंठ से किशोर वय की गायिका की आवाज निकल रही हो। इस फिल्म में किशोरवय की पात्र अमीरन जब गाती है तो आशा की आवाज एक जादुई वातावरण का निर्माण करती है। आज जब आशा भोंसले नब्बे वर्ष की अवस्था को पार कर चुकी हैं तो लोग ये पूछने लगे हैं कि आशा के बाद कौन? यही प्रश्न लता मंगेशकर के गाना छोड़ने के बाद भी किया जाता था। इस प्रश्न का उत्तर कठिन है लेकिन इन दोनों बहनों ने भारतीय संगीत की दुनिया को इतना समृद्ध किया है कि जब भी पार्श्व गायकी की बात होगी लता और आशा शीर्ष पर होंगी।
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