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Saturday, April 12, 2025

साहित्यिक बाजार में नया कारोबार


कुछ दिनों पूर्व मेरे एक मित्र का फोन आया। इधर-उधर की बातें करने के बाद बोला कि यार! मैं कविताएं लिखना चाहता हूं। मुझे लगा ये सनक गया है या मजाक कर रहा है। हमाररी मित्रता लंबे समय से है उसने कभी इस तरह की बातें नहीं की। बात टालने के लिए मैंने कहा कविताएं लिखना तुम्हारे वश में नहीं है। तुम अपने करियर में अच्छा कर रहे हो वहीं ध्यान दो। उसने बहुत प्यार से उत्तर दिया। कहा मैं इस बात से सहमत हूं कि कविता लिखना कठिन है। पर सोचो अगर अनामिका जी जैसी सिद्धहस्त कवयित्री कविता लेखन की बारीकियां सिखाएंगीं तो मेरे जैसा व्यक्ति भी कविता लिख लेगा। अब मैं थोड़ा घबराया कि वो मुझे इस बात के लिए कहेगा कि मैं अनामिका जी से उसको समय दिला दूं। उसको टालने के लिए मैंने कहा कि अनामिका जी बहुत व्यस्त रहती हैं। उनका अपना लेखन है, कालेज की व्यस्तता है और पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियां हैं, वो समय नहीं दे पाएंगी। उसने तपाक से उत्तर दिया कि मुझे तो अनामिका जी का समय मिल गया है। वो हमें कविता लेखन की बारीकियां सिखाएंगी। मैंने आश्चर्य से उसकी ओर देखा। उसने मेरे मनोभाव को समझकर पूरी बात बताई कि साहित्यिक पत्रिका नईधारा ने कविता लेखन वर्कशाप का आयोजन किया है। इस वर्कशाप का विज्ञापन उसने फेसबुक पर देखा था। विज्ञापन में वकर्शाप में भाग लेने की पूरी प्रक्रिया थी। उसने प्रक्रिया पूरी की और निर्धारित शुल्क जमाकर वो निश्चिंत हो गया था। इस बात से प्रसन्न भी कि अनामिका जी से वो कविता लेखन की बारीकियां सीखने जा रहा है। 

हमारी बातचीत समाप्त हो गई लेकिन बाद में मैं सोचने लगा कि चार घंटे के वर्कशाप में कोई कविता लेखन की बारीकियां कैसे सीख सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि अनामिका जी कविता लेखन पर विस्तार से बात कर सकती हैं। कविता का स्ट्रक्चर बता सकती हैं। हिंदी-अंग्रेजी कविता की सुदीर्घ और समृद्ध परंपरा पर बात कर सकती हैं। पर कोई किसी वर्कशाप में बारीकियां सीख कर कवि कैसे बन सकता है। कविता की उन परिभाषाओं का क्या होगा जो विभिन्न भाषाओं में प्रचलित है। हम तो बचपन से सुनते आए हैं कि वियोगी होगा पहला वो कवि आह से उपजा होगा गान। अगर वर्कशाप से कविता लिखना सीख जाएगा तो फिर न तो वियोग की आवश्यकता होगी और न ही आह की। विलियम वर्ड्सवर्थ की उस उक्ति का क्या होगा जिसमें वो कहते हैं, पोएट्री इज द स्पांटेनियस ओवरफ्लो आफ पावरफुल फीलिंग्स, इट टेक्स इट्स आरिजन फ्राम इमोशंस रिकलेक्टेड इन ट्रैंक्विलिटि। वर्ड्सवर्थ भी पावरफुल फीलिंग्स की बात कर रहे हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल का एक लंबा लेख है कविता क्या है? उसमें एक जगह शुक्ल कहते हैं, जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है उसी प्रकार ह्रदय की मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। ह्रदय की इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे कविता कहते हैं। विचार करने की बात है कि कुछ घंटों में ह्रदय की मुक्ति साधना के लिए शब्द विधान सीखा जा सकता है। इन प्रश्नों के बारे में विचार किया जाना चाहिए। वरिष्ठ कवियों की नियमित संगति कविता से, उसकी लेखन पद्धति से हमें परिचित करवा सकती है पर लिखना तो अलग ही बात है। इन दिनों कविता छंद आदि से भी दूर हो गई है तो कह सकते हैं कि बारीकियां तो बची नहीं। छंद, मीटर आदि की आवश्यकता रही नहीं। 

इन दिनों होता ये है कि जैसे ही आप फेसबुक पर कोई एक विषय सर्च करते हैं तो उसी से संबंधित पोस्ट आपकी टाइमलाइन पर आने लग जाती है। चूंकि मैंने नईधारा का विज्ञापन उनकी पोस्ट पर जाकर देखा था। विज्ञापन के नीचे लिखे विवरण को पढ़ा भी था। इसका परिणाम यह हुआ कि मेरी टाइमलाइन पर विभिन्न प्रकार के साहित्य लेखन सिखानेवाले पोस्ट आने लग गए। उनमें से तो कई लेखक ऐसे हैं जो उपन्यास और गद्य लिखना सिखा रहे हैं। उनकी अच्छी खासी फीस है। सिखानेवाले भी इस तरह के लेखक हैं जिनको अभी लेखक के तौर पर स्वयं को स्थापित करना है। स्वयं शुद्ध हिंदी लिखना सीखना है। वाक्य विन्यास ठीक हो इसपर मेहनत करने की आवश्यकता है। इन सबको देखकर मैं इस सोच में पड़ गया कि हिंदी साहित्य कितना विविधरंगी हो गया है। जो हिंदी साहित्य कभी बाजार के विरुद्ध चीखता नहीं थकता था आज उसी हिंदी साहित्य में लिखना सिखाना कारोबार हो गया है। साहित्य का बाजार सज चुका है। आकांक्षी लेखकों के लिए तरह-तरह की दुकानें हैं जिनपर विभिन्न विधाओं के बोर्ड लगे हुए हैं। उन बोर्ड को देखिए और अपनी पसंद की विधा का चयन कीजिए। भुगतान करिए और लेखक बनने की राह पर आगे बढ़ जाइए। कविता लिखना सीखिए, उपन्यास लेखन करिए, कहानियां लिखना सीखिए जो चाहें वो सीख सकते हैं। और अब तो आनलाइन के इस युग में सीखना भी आसान हो गया है। आप गाड़ी चलाते हुए सीख सकते हैं, जिम करते हुए सीख सकते हैं। 

प्रश्न ये है कि लेखन सिखाने की ये दुकानें क्यों खुल रही हैं और उनको पैसे देकर सीखने वाले मिल कहां से रहे हैं। ये जानने के लिए मैंने अपने मित्र को ही फोन मिलाया। मैंने उससे वर्कशाप के बारे में तो नहीं पूछा लेकिन कहा कि आप कवि बनकर क्या हासिल करना चाहते हैं। उन्होंने चहकते हुए कहा कि दोस्त तुम पता नहीं क्यों, समझना नहीं चाहते हो? अगर कविताएं लिखने लग गया तो रोज लिखूंगा। फेसबुक पर डालता रहूंगा। लाइक्स आदि तो मिल ही जाएंगे। सौ दिन में सौ कविताएं लिख दूंगा। आजकल दर्जनों ऐसे प्रकाशक हैं जो पैसे लेकर पुस्तकें छाप दे रहे हैं। उनसे अपनी कविताओं का संकलन छपवा लूंगा। सौ दो सौ प्रतियां बांट दूंगा। हो गया कवि। लिटरेचर फेस्टिवल में बुलाया जाने लगूंगा। कविता पाठ करने लग जाऊंगा। समाज में एक प्रतिष्ठा बन जाएगी। 

इसके बाद मैंने एक दूसरे आकांक्षी लेखक को फोन किया। उसने पिछले साल उपन्यास लेखन की वर्कशाप की थी। उसने बताया कि कहानी लिखना तो बहुत ही आसान है। आप किसी घटना को जैसे देखते हैं लिख दीजिए। अधिक से अधिक 1000 शब्द में। दस-बीस कहानी हो गई तो संग्रह प्रकाशित करवा लीजिए। एक प्रकाशक के पास पैकेज है, सिल्वर, गोल्ड और डायमंड। अगर आप डायमंड पैकेज लेते हैं तो वो आपकी पुस्तक और आपको प्रमोट करेगा, लिट फेस्ट में भी भेजने की व्यवस्था करेगा। ऐसे कई कथित उपन्यासकार या कहानीकार समकालीन हिंदी साहित्य की दुनिया में विचरण कर रहे हैं। और तो और ऐसे ही एक उपन्यासकार कहानी लिखना सिखाने की कार्यशाला का आयोजन भी करने जा रहे हैं। दरअसल साहित्य की दुनिया पिछले दिनों इतनी ग्लैमरस हो गई है कि हर कोई उस दुनिया में जाना चाहता है। वहां मंच है, सेल्फी है, सेल्फ प्रमोशन है, नेटवर्किंग का अवसर है, गासिप है। कहना ना होगा कि वहां हर चीज है जो ग्लैमरस दुनिया में होनी चाहिए। पर सबको ये समझना होगा कि साहित्य रचना एक लंबी तपस्या है जिसके बाद ही कोई विधा सधती है। ये कोई इंस्टैंट नुडल नहीं है कि झट डाला पट तैयार। 


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