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Tuesday, August 3, 2010

'छिनाल' और 'लफंगे' से शर्मसार हिंदी साहित्य

पिछले वर्षों में हमारे यहां जो स्त्री विमर्श हुआ है वह मुख्यरूप से शरीर केंद्रित है । यह भी कह सकते हैं कि वह विमर्श बेवफाई के विराट उत्सव की तरह है । लेखिकाओं में होड़ लगी है यह साबित करने के लिए कि उनसे बड़ी छिनाल कोई नहीं है । मुझे लगता है कि इधर प्रकाशित एक बहु प्रमोटेड और ओवर रेटेड लेखिका की आत्मकथा का शीर्षक कितनी बिस्तरों पर कितनी बार हो सकता है । इस तरह के उदाहरण बहुत सी लेखिकाओं में मिल जाएंगे - यह कहना है महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय का । विभूति का यह विवादास्पद साक्षात्कार भारतीय ज्ञानपीठ की मासिक पत्रिका नया ज्ञानोदय में प्रकाशित हुआ है । तकरीबन हफ्तेभर पहले जब पत्रिका का अंक बाजार में आया तो हिंदी के लेखकों के बीच इस साक्षात्कार को लेकर कानाफूसी शुरू हो गई थी लेकिन खुला विरोध नहीं हो रहा था । अचानक से एक दिन दिल्ली से प्रकाशित एक अंग्रेजी दैनिक ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित कर विवाद खड़ा कर दिया । अंग्रेजी अखबार के नादान संवाददाता ने छिनाल शब्द का अंग्रेजी अनुवाद प्रोस्टीट्यूट कर दिया । जिससे अर्थ का अनर्थ हो गया । दरअसल छिनाल शब्द भोजपुरी के छिनार शब्द का परिष्कृत रूप है । यह एक आंचलिक शब्द है जिसका प्रयोग बिहार और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में किया जाता है । छिनाल उन स्त्रियों को कहा जाता है जो कुलटा होती हैं या फिर स्त्रियोचित मर्यादा को भंग कर अपनी मर्जी से कई पुरुषों से संबंध बनाती है । लेकिन वो किसी भी हाल में वेश्या नहीं होती । बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के भोजपुरी इलाकों में शादी ब्याह के मौके पर गाए जानेवाले लोकगीतों में महिला और पुरुष दोनों को छिनाल या छिनार कहा जाता है । शादी ब्याह के मौके पर जब महिलाएं मंगलगीत गाती हैं तो उसमें दूल्हे की मां और मौसी और फूआ को गाली दी जाती है तो उनमें छिनार शब्द का प्रयोग किया जाता है । तो यह शब्द बिल्कुल आपत्तिजनक है लेकिन वेश्या जितना अपमानजनक नहीं है । यह गाली है और किसी भी लेखक को अपनी बिरादरी की महिलाओं के लिए इस शब्द के प्रयोग की इजाजत नहीं दी जा सकती है ।
जैसा कि उपर संकेत दिया जा चुका है कि यह इंटरव्यू लगभग हफ्तेभर से छपकर विवादित नहीं हो पा रहा था क्योंकि हिंदी सत्ता की भाषा नहीं है, सत्ता की भाषा तो अंग्रेजी है । और अंग्रेजी अखबार के गैर जिम्मेदाराना अनुवाद ने आग में घी का काम किया और विरोध की चिंगारी को भड़ा दिया । लेखिलाओं का जितना अपमान विभूति नारायण राय ने किया उससे ज्यादा बड़ा अपमान तो अंग्रेजी के वो अखबार कर रहे हैं जो लगातार लेखिकाओं को वेश्या बता रहे हैं । न्यूज चैनलों को भी इस मसालेदार खबर में संभावना दिखी और एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में उन्होंने छिनाल और वेश्या के अंतर को मिटा दिया। किसी ने भी यह जांचने –परखने की कोशिश नहीं की कि दोनों में क्या अंतर है । मीडिया में इसके उछलने के बाद विभूति नारायण राय पर चौतरफा हमला शुरू हो गया । हिंदी के लेखकों के अलावा कई महिला संगठनों ने महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति को लेखिकाओं के खिलाफ इस अमर्यादित टिप्पणी को लेकर कठघरे में खड़ा किया और उनके इस्तीफे और बर्खास्तगी की मांग होने लगी। मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल और राष्ट्रीय महिला आयोग तक भी ये मामाला पहुंच गया । लगभग मृतप्राय लेखक संगठनों में भी जान आ गई और उन्होंने भी विभूति नारायण राय के खिलाफ एक निंदा बयान जारी कर दिया । राय ने लेखिकाओं के खिलाफ बेहद अपमानजनक और अर्मायदित टिप्पणी की है । इस बात के लिए उनको लेखिकाओं से खेद प्रकट करना ही चाहिए ।
लेकिन इस इंटरव्यू और उसके बाद उसपर उठे विवाद ने एक बार फिर से हिंदी साहित्य में लेखिकाओं के आत्मकथाओं में अश्लील प्रसंगों की बहुतायत पर बहस का एक व्यापक आधार तैयार कर दिया है । पिछले दिनों कई लेखिकाओं की आत्मकथा प्रकाशित हुई जिसमें मैत्रेयी पुष्पा की – गुड़िया भीतर गुड़िया, प्रभा खेतान की अन्या से अनन्या , मन्नू भंडारी की एक कहानी यह भी के अलावा कृष्णा अग्निहोत्री की लगता नहीं है दिल मेरा और ....और और औरत प्रमुख हैं । मन्नू जी की आत्मकथा को छोड़कर इन आत्मकथाओं में सेक्स प्रसंगों का उल्लेख मिलता है । विभूति नारायण राय जैसे हिंदी के शुद्धतावादियों को इन सेक्स प्रसंगों पर एतराज है और उन्हें लगता है कि ये जबरदस्ती ठूंसे और गढ़े गए हैं ताकि किताबों को चर्चा और पाठक दोनों मिले । ये लोग अपने तर्कों के समर्थन में जॉर्ज बर्नाड शॉ के एक प्रसिद्ध लेख का सहारा लेते हैं जिस लेख में उन्होंने आत्मकथाओं को झूठ का पुलिंदा बताया है । “ऑटोबॉयोग्राफिज़ आर लाइज़” में बर्नाड शा ने कई तर्कों और प्रस्थापनाओं से ये साबित करने की कोशिश की है कि आत्मकथा झूठ से भरे होते हैं । कुछ हद तक बर्नाड शॉ सही हो सकते हैं लेकिन ये कहना कि आत्मकथा तो झूठ का ही पुलिंदा होते हैं, पूरी तरह गले नहीं उतरती । बर्नाड शॉ के अपने तर्क हो सकते हैं लेकिन विश्व साहित्य में कई ऐसे आत्मकथा हैं जिसमें कूट-कूट कर सच्चाई भरी होती है । हिंदी में भी कई ऐसे आत्मकथा हैं जो सचाई के करीब हैं और झूठ का सिर्फ झौंक लगाया गया है । हो सकता है कि इन एतराज में सचाई हो लेकिन लेखक क्या लिखेगा यह तो वही तय करेगा । शुद्धतावादियों और आलोचक तो ये तय नहीं करेंगे । कुछ आलोचकों का तर्क है कि महिला लेखिकाओं की आत्मकथाएं भी दलित लेखकों की आत्मकथाओं की तरह टाइप्ड होती जा रही हैं- जहां कि समाज के दबंग, लेखकों के परिवार की महिलाओं के साथ लगातार बदसलूकी करते हैं । इस तर्क में कुछ दम हो सकता है लेकिन दलित और महिलाओं की जो स्थिति भारतीय समाज में है उसमें यौन शोषण की स्थितियां भी तो सामान्य हैं । इन दोनों पक्षों के तर्कों पर साहित्य में एक लंबे और गंभीर विमर्श की गुंजाइश है ।
दूसरा बड़ा सवाल जो यह इंटरव्यू खड़ा करती है वो यह कि किसी भी पत्रिका के संपादक का क्या दायित्व होता है । अगर छिनाल शब्द कहने पर विभूति नारायण राय की चौतरफा आलोचना हो रही है तो उतनी ही तीव्रता से नया ज्ञानोदय के संपादक रवीन्द्र कालिया को भी विरोध होना चाहिए । किसी भी पत्रिका में क्या छपे और क्या नहीं छपे इसकी जिम्मेदारी तो पूरे तौर पर संपादक की होती है । विभूति ने लेखिकाओं के लिए जो आपत्तिजनक शब्द कहे उसे रवीन्द्र कालिया को संपादित कर देना चाहिए था । अगर उन्होंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया तो उनकी मंशा इस साक्षात्कार को विवादित करने और नया ज्ञानोदय के उक्त अंक को चर्चित करने की थी । अगर संपादक की यह मंशा नहीं थी और असावधानीवश वो शब्द छूट गया तो विभूति के साथ-साथ उन्हें भी खेद प्रकट करना चाहिए ।
अंत में विनम्रतापूर्वक इतना कहना चाहूंगा कि हिंदी साहित्य में विमर्श के स्तर को इतना नहीं गिराइये जहां कोई लेखक अपनी साथी लेखिकाओं को छिनाल कहे और कोई लेखिका अपने साथ के लेखकों को लफंगा । गुस्से में या जानबूझकर दोनों ही स्थितियों में मर्यादा की लक्ष्मण रेखा को लांघना अनुचित है ।
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4 comments:

Anshu Mali Rastogi said...

हालांकि इस शब्द के विरोध में मैं भी हूं, पर यह बात मन में बार-बार आ रही है कि जिन्हें आज इस शब्द पर घोर एतराज है, उनका यह विरोध तब कहां चला जाता है, जब सरेआम या घरों में महिलाओं के प्रति ऐसे शब्द प्रयोग में लाए जाते हैं।
हकीकत यह है कि शब्दों की गरिमा को हम खुद ही खो चुके हैं।

माधव( Madhav) said...

मुझे ऐतराज है

Abhinash said...

Peta legao kahan se iss sabd ka janm hua,or ush desh ko paramanu bam dal do.Me odisha se hun.Mujhe ye sabd bura legta hai,Iss sabd ka purn gyan chahiye mere man ki shanti keliye.pls

Abhinash said...

Bilkul thik kahan Kya Iska sahi uttar aapke paas hai to betaye pls.