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Saturday, November 6, 2010

फासीवाद का दर्शन

चीन से एक दिल दहला देनेवाली खबर आई है । कानून का जबरदस्ती और कड़ाई से पालन करवाने की कई खबरें चीन से आती ही रहती हैं लेकिन अभी जो खबर बाहर निकल कर आई है वो एक विकसित राष्ट्र और शासन करनेवाली पार्टी की विचारधारा पर कलंक की तरह है । चीन के पूर्वी तट के पास सीमिंग में एक छत्तीस वर्षीय महिला ने एक बच्चे के रहते दूसरे संतान को जन्म देने का इरादा किया और गर्भवती हो गई । जब उसका गर्भ आठ महीने का हो गया तो सरकारी अधिकारियों को इस बात का पता चला । इस जानकारी के बाद तकरीबन दो दर्जन सरकारी चीनी अधिकारियों ने उस महिला के घर पर धावा बोल दिया । आठ माह की गर्भवती पर सरकारी अधिकारियों ने लात-घूंसों की बरसात कर दी । उसके दोनों हाथ पीछे बांधकर उसके सिर को दीवार से टकराया और पेट पर कई प्रहार किए ताकि गर्भपात हो जाए । जब वो कामयाब नहीं हुए तो सरकारी अधिकारियों ने आईयिंग नाम की उस महिला को घसीट कर अस्पताल में भर्ती करवाया और गर्भपात का इंजेक्शन लगवा कर जबरन आठ माह के गर्भ को गिरवा दिया ।
बच्चा पेट में इतना बड़ा हो गया था कि गर्भपात के बावजूद उसके कुछ अंश पेट में रह गए थे जिसको निकालने के लिए आईयिंग की मंजूरी के बगैर ऑपरेशन भी करना पड़ा, एक ऐसा ऑपरेशन जिसमें उसकी जान भी जा सकती थी। इंसानियत को शर्मसार कर देनेवाली यह घटना चीन में होने वाली अन्य ज्यादतियों की तरह दबकर रह जाती । लेकिन उस महिला ने अस्पताल में अपने फोटो खींचने की इजाजत दे दी । नतीजा यह हुआ कि उसी दास्तां और चोट के निशान वाले फोटोग्राफ इंटनेट के जरिए सारी दुनिया के सामने आ गए ।
दरअसल चीन ने बढ़ती जनसंख्या का पर काबू करने के लिए एक संतान नीति लागू किया हुआ है । वहां जुड़वां बच्चों के अपवाद को छोड़कर दूसरी संतान पैदा करने पर पूरी तरह से पाबंदी है। इस नीति का उल्लंघन करनेवाले को भारी जुर्माना चुकाना पड़ता है । इस कानून की आड़ में ही कानून का पालन करवाने की जिम्मेदारीवाले सरकारी अफसरों ने हैवानियत का नंगा नाच किया । चीन के उन सरकारी अधिकारियों को ना तो उस महिला का दर्द समझ में आया , ना ही उस महिला के पति की भवानाओं को समझने की कोशिश की और ना ही उनपर उस महिला के दस साल की बच्ची की गुहार काम आई जो पिछले आठ महीने से अपने घर में छोटे भाई बहन की राह देख रही थी । चीन में जिस विचारधारा के आधार पर वहां का शासन चल रहा है वहां ना तो भावनाओं की कद्र है ना ही संवेदना के लिए कोई जगह है । वहां तो दबाई जाती है सिर्फ आवाज । थ्येनमान चौक पर छात्रों को टैंक से कुचले जाने की घटना अब भी लोगों के जेहन में है ।
हाल ही में प्रकाशित एमनेस्टी इंटरनेशनल की रुपोर्ट के मुताबिक चीन में अब भी पांच लाख लोग बगैर किसी गंभीर इल्जाम के जेल की हवा खा रहे हैं । वहां बगैर किसी जुर्म के घर में कैद कर देना, लोगों की व्यक्तिगत आजादी पर सरकारी निगरानी, आम आदमी की आवाज को दबाने के लिए पुलिस फोर्स का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल आम बात है । चीन की जेल में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ता ली जियाबो को जब शांति का नोबल पुरस्कार दिया गया तो उसके बाद वहां की सरकार की भौंहे तन गई । चीनी सरकार को लगा कि ली जियाबो को नोबल पुरस्कार मिलने से देश में मानवाधिकार के लिए काम करनेवाले लोगों की सक्रियता बढ़ सकती है लिहाजा ली के नजदीकी लोगों की निगरानी तेज कर दी गई । बगैर किसी शक या संदेह के हफ्तेभर में तकरीबन चालीस लोगों को हाउस अरेस्ट कर दिया गया । ली के समर्थक संगठनों पर जबरदस्ती शुरू कर दी गई । ली जियाबो से नजदीकी के शक में शंघाई के एक हाउस चर्च पर पहले निगरानी शुरू की गई फिर कई दिनों तक पुलिस ने उसे अपने घेर में ले लिया । चर्च के नेता झू योंग और उनकी पत्नी के घर से निकलने पर ना केवल पाबंदी लगा दी गई बल्कि घर का जरूरी सामान खरीदने के लिए पुलिस के घेरे में निकलने पर मजबूर किया गया । जनता की सरकार और लोगों के बीच समानता के सिद्धांत की वकालत करनेवाली इस विचारधारा के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यहां कहा कुछ जाता है और किया कुछ जाता है । दरअसल ऐसा सिर्फ चीन में नहीं होता है जहां भी इस विचारधारा का बोलबाला है वहां ऐसी ही तानाशाही पूर्ण रवैया देखने को मिलता है ।
हमारे देश में भी वामपंथी विचारधारा को माननेवाले हमेशा से तानाशाही और फासीवाद के विरोध करते रहे हैं । उनका यह विरोध सिर्फ दिखावे के लिए और अपने हित में उसका उपयोग करने के लिए होता है । चीन में हुई उस मार्मिक घटना के बारे में जानते ही जेहन में कौंध गई प्रख्यात कवि और शायर कैफी आजमी की बेगम शौकत कैफी की किताब- याद की रहगुजर- का एक प्रसंग। कैफी के एक साल के लड़के खैयाम की असायमयिक मौत हो गई थी जिसने उनको और उनकी पत्नी शौकत को अंदर से तोड़कर रख दिया था । हर वक्त, हर पल अपने पहले संतान की मौत का गम झेल रही शौकत और उनके पति कैफी दोनों वामपंथी विचारधारा से जुड़े संगठन भारतीय जन नाट्य संघ यानि इप्टा में सक्रिय थे । जलसे, जुलूस, प्रदर्शन रोज के काम थे । लेकिन जब बेटे का गम लिए शौकत अपने कॉमरेडों के पास जाती तो उनके साथी कन्नी काट जाते थे, साथियों की संवेदनहीनता से शौकत को बेहद दुख पहुंचा । अपनी किताब में शौकत ने इस दर्द को बयां करते हुए लिखा- अहिस्ता अहिस्ता मुझे एहसास होने लगा कि लोग गमजदा लोगों से घबराने लगते हैं और चुपचाप उठकर चले जाते हैं । मैंने यह सोचकर अपने गम पर काबू पाने की कोशिश शुरू की ।
लेकिन पूरा मामला यहीं खत्म नहीं होता है । संवेदनहीनता की पराकाष्ठा पर पहुंचना अभी बाकी था । कुछ दिनों बाद शौकत आजमी फिर से गर्भवती हुई । अपने पहले बच्चे की मौत का गम भुलाने की कोशिश में लगी शौकत के लिए यब सुकून देनेवाला पल था । लेकिन अपना सबकुछ पार्टी पर न्योछावर करने के लिए उनकी पार्टी ने क्या हुक्म सुनाया आप शौकत की ही जुबानी सुनिए- शबाना होने को थी । क्योंकि मेरा पहला बच्चा गुजर गया था इसलिए मैं तो बहुत खुश थी लेकिन पार्टी को यह बात पसंद नहीं आई । ऑर्डर हुआ एबॉर्शन करवा दिया जाए । क्योंकि कैफी अंडर-ग्राउंड हैं । मैं बेरोजगार हूं । बच्चे की जिम्मेदारी कौन लेगा । मुझे बेहद तकलीफ पहुंची । यह आपबीती है एक ऐसे कॉमरेड की और एक ऐसे पार्टी की जो जनपक्षधरता और वयक्तिगत आजादी का सबसे ज्यादा शोर मचाती है, जो तानाशाही के खिलाफ होने का लगातार दंभ भरती है । लेकिन वक्त पड़ने पर इस विचारधारा का पालन करने और करवानेवाले सबसे बड़े तानाशाह के तौर पर उभरते हैं।
अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब पार्टी की बात नहीं माने जाने पर सीपीएम ने अपने वरिष्ठ सदस्य सोमनाथ चटर्जी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया । अगर सोमनाथ चटर्जी की मानें तो इस निष्कासन के पहले ना तो उन्हें कोई नोटिस दिया गया और ना ही पार्टी की नीति निर्धारण करनेवाली सर्वोच्च समिति पोलित ब्यूरो के सभी सत्रह सदस्यों की सहमति ली गई । सिर्फ पांच सदस्यों ने महासचिव के इशारे पर आनन फानन में सोमनाथ चटर्जी जैसे पार्टी के कद्दावर नेता को बाहर का दरवाजा दिखा दिया । अपनी किताब -–कीपिंग द फेथ- मेमॉयर ऑफ अ पार्लियामेंटेरियन में यह दावा किया है उनका निष्कासन पार्टी के संविधान के खिलाफ और अलोकतांत्रिक था । पार्टी संविधा तो दूर की बात है, राजनीति में एक सामान्य परंपरा है कि नोटिस देने के बाद पार्टी से निष्कासन होता है । लेकिन सोमनाथ के मामले में सीपीएम ने इस सामान्य से नियम का भी पालन नहीं किया । ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो उस विचारधारा से जुड़े लोगों, संगठन और सरकार के हैं जो सबसे ज्यादा जनपक्षधरता,सबसे ज्यादा लोकतांत्रिक प्रक्रिया, नागरिक स्वतंत्रता, समान अधिकार, समान अवसर आदि के बारे में दुहाई देते हैं । कथनी और करनी के इसी फर्क ने इस विचारधारा की बुनियाद पर टिकी कई शक्तिशाली व्यवस्थाओं से लोगों का मोहभंग कर दिया । नतीजा यह हुआ कि किसी जमाने में विश्व में एक वैकल्पिक विचारधारा के रूप में देखे जानेवाली यह व्यवस्था अब चीन और कुछ अन्य देशों में सरकार के सहारे अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं ।

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