कानपुर में दस साल की लड़की दिव्या के साथ कक्षा में ही बलात्कार की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है । दस साल की मासूम के साथ पहले कक्षा में दरिंदों ने बलात्कार किया । इस वारदात के बाद स्कूल प्रशासन ने उसके कपड़े बदलवाकर घर भिजवा दिया । स्कूल में हुए इस वहशियाना हरकत से को वो मासूम झेल नहीं पाई और बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई । इस घटना में स्कूल प्रशासन की संवेदनहीनता और स्थनीय पुलिस की लापरवाही से पूरी इंसानियत शर्मसार हो गई है । दस साल की स्कूली छात्रा से विद्या के मंदिर में ऐसा घिनौना खेल खेला गया जिससे एक बार फिर से बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं । हाल के दिनों में स्कूलों में बच्चों के यौन शोषण की घटनाएं बढ़ी हैं ।इन बढ़ती घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कानून की आवश्यकता है । जब भी कोई ऐसी वारदात सामने आती है और मीडिया में इस पर हंगामा मचता है तो केंद्र सरकार चिंता जताती है लेकिन फिर सो जाती है । स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर कड़े कानून बनाने के सवाल पर संबद्ध मंत्रालय की ढिलाई से सरकार भी कठघरे में आ जाती है । दिल्ली में एक कैब ड्राइवर की बच्चों के यौन शोषण की करतूत का पर्दाफाश हुआ था तब भी महिला और बाल विकास मंत्रालय ने इस तरह की वारदातों को रोकने के लिए कठोर कानून बनाने का आश्वासन दिया था । अब संसद का शीतकालीन सत्र आनेवाला है तो प्रस्तावित कानून को लेकर मंत्रालय की सक्रियता सामने नहीं आ रही है ।
कुछ दिनों पहले मद्रास हाईकोर्ट ने एक फिजिकल ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर की निचली अदालत द्वारा दी गई दस साल की सजा बरकरार रखी थी । इंस्ट्रक्टर ने चौथी कक्षा में पढ़नेवाली एक छात्रा का बलात्कार किया था । आरोप साबित होने पर निचली अदालत ने उस दस साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी । अपने फैसले के दौरान मद्रास हाईकोर्ट के विद्वान न्यायाधीश ने कहा था कि हमारे समाज में बच्चों की बढ़ती यौन शोषण की घटनाओं के खिलाफ राज्य और केंद्र सरकार के अलावा गैर सरकारी संस्थाएं सक्रिय हैं और उसपर काबू पाने के लिए कई तरह के उपाय किए जा रहे हैं । कानून मंत्रालय ने इस दिशा में कठोर कानून बनाने की दिशा में पहल भी की है लेकिन समाज में इस तरह के बढ़ते खतरे पर लगाम लगाने के लिए एक बेहद ही कड़े कानून की आवश्यकता है । इस तरह की घटनाओं में जो मुजरिम होता है वह छात्रों और उसके परिवारवालों के विश्वास की हत्या करता है । स्कूली बच्चों के यौन शोषण के अपराधियों से जबतक कड़ाई से नहीं निबटा जाएगा तबतक इसी वारदातों पर काबू पाना मुश्किल है ।
दरअसल यौन शोषण या रेप के केस में अदालती कार्रवाई में होनेवाली देरी और कानूनी उलझनों और पेचीदिगियों से मामला उलझ जाता है और कानून की खामियों का फायदा उठाकर आरोपी बच निकलते हैं । स्कूल में घटी वारदातों में स्कूल प्रशासन आमतौर पर मामले को दबाना चाहता है जिससे न्याय की उम्मीद और धूमिल हो जाती है । चाहे कानपुर का केस हो या फिर चेन्नई के स्कूल में चौथी कक्षा की छात्रा से रेप का मामला हो दोनों जगह यह देखा गया कि शुरुआत में स्कूल मामले को हल्के में लेकर दबाने की कोशिश करते हैं । इससे केस कमजोर होता है, अदालती प्रक्रिया में देरी होती है । हमारे देश में रेप को लेकर जो कानून हैं उसमें जल्दी न्याय मिलना मुश्किल होता है । चेन्नई रेप केस में चौथी की बच्ची को इंसाफ मिलने में तकरीबन आठ साल लगे । यह तो उसी बच्ची के परिवारवालों की हिम्मत थी जिसकी वजह से मुजरिम को सजा मिली । इस तरह के केस में जरूरत इस बात की है कि कानूनन त्वरित कार्रवाई हो, मुजरिमों को सख्त से सख्त सजा मिले । इसके अलावा कानून में इस बात का भी प्रावधान हो कि अगर स्कूल इस तरह के मामले को दबाने की कार्रवाई करता है तो स्कूल प्रबंधन को भी सजा हो ।
इस तरह के मामले में सख्त कानून के अलावा स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर एक राष्ट्रीय नीति की भी जरूरत है । जिसमें स्कूलों के अलावा विभिन्न शिक्षा बोर्डों को भी शामिल किया जाए । अभी अलग अलग शिक्षा बोर्ड और अलग अलग सूबों में इस तरह के केस के लिए अलग-अलग गाइडलाइंस है । एकीकृत गाइडलाइंस में स्कूलों को यह निर्देश दिए जाएं कि वो अपने यहां होनेवाली शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई करे । स्कूल प्रबंधन के लिए यह अनिवार्य करने की आवश्यकता है कि ऐसे मामलों में फौरन पुलिस को इत्तला करे और मुजरिमों को पकड़ने में पुलिस का सहयोग करने के अलावा जांच में भी सहयोग करे । अगर स्कूल ऐसा नहीं करता है तो संस्थान को बंद करने तक का कानूनी प्रावधान होने चाहिए । अगर ऐसा हो पाता है तो देश के भविष्य इन बच्चों का भविष्य नर्क बनने से बच जाएगा ।
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