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Tuesday, May 17, 2011

गांधी को भुनाने की कोशिश

कुछ दिनों पहले ही हिंदी-अंग्रेजी में एक साथ प्रकाशित बेवसाइट फेस एंड फैक्ट्स के प्रबंध संपादक जय प्रकाश पांडे का बेहद गुस्से में फोन आया । उन्होंने बताया कि न्यूयॉर्क टाइम्स के पूर्व कार्यकारी संपादक जोसेफे लेलीवेल्ड ने महात्मा गांधी का अपमान करते हुए एक किताब लिखी है -ग्रेट सोल- महात्मा गांधी एंड हिज स्ट्रगल विद इंडिया- जिसमें गांधी को समलैंगिक करार दिया है । जब मैंने उनसे पूछा कि उन्हें यह बात कहां से पता चली तो उन्होंने कहा कि ब्रिटेन के अखबार डेली मेल ने एक लेख छापा है जिसका शीर्षक है - गांधी लेफ्ट हिज वाइफ टू लिव विद मेल लवर । यह लेख जोसेफ लेलीवेल्ड की नई किताब के हवाले से छापी गई थी । उन्होंने तत्काल मुझसे प्रतिक्रिया मांगी ताकि उसको प्रकाशित किया जा सके । चूंकि मैंने ना तो किताब पढ़ी थी और ना ही डेली मेल का लेख पढ़ा था इसलिए मैंने गांधी से जुड़ी एक कहानी सुना दी-एक बार गांधी जी ट्रेन से सफर कर रहे थे, किसी स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो गांधी ने देखा कि एक आदमी उनसे मिलने की कोशिश कर रहा है और उनके समर्थक उसे रोक रहे हैं वो लगातार मिन्नतें कर रहा था लेकिन लोग उनको गांधी तक पहुंचने नहीं दे रहे थे । गांधी ने जब यह देखा तो उन्होंने अपने पास के लोगों से मामले की जानकारी चाही । गांधी को बताया गया कि जो आदमी उनसे मिलने की जिद कर रहा है, दरअसल वह एक लेखक है और उसने गांधी को केंद्र में रखकर एक किताब- ROGUE OF INDIA - लिखी है । वह उस किताब पर गांधी जी के दस्तखत चाहता है । लोगों को लग रहा था जिस किताब का शीर्ष की इतना अपमानित करनेवाला है उसमें भीतर तो और भी विषवमन होगा । इस वजह से उसे गांधी से मिलने से रोका जा रहा था । गांधी को जब पूरी बात पता चली तो उन्होंने उस वयक्ति को अपने पास बुलाया, प्यार से बिठाया और हाल-चाल पूछने के बाद उसकी लिखी किताब पर अपने हस्ताक्षर कर उसको वापस लौटा दिया । उसके जाने के बाद गुस्साए गांधी के समर्थकों ने बापू से पूछा कि उन्होंने उस वयक्ति की किताब पर हस्ताक्षर क्यों किए जो आपको ROGUE OF INDIA बता रहा है । गांधी जी ने मुस्कुराते हुए जबाव दिया कि सबको अपनी राय बनाने और उसे व्यक्त करने का हक है । यह कहानी सुनाकर तो मैं उस वक्त निकल गया लेकिन मेरे मन में गांधी पर लिखी लेलीवेल्ड की किताब पढ़ने की इच्छा बढ़ने लगी । दो तीन किताब की दुकानों पर फोन करने पर पता चला कि यह किताब अभी भारत में उपलब्ध नहीं है । फिर मैंने डेली मेल का लेख पढ़ा । उसको पढ़ने के बाद पूरा तो नहीं लेकिन माजरा कुछ-कुछ समझ में आने लगा । इस बीच मुंबई के एक अखबार ने डेली मेल के लेख के हवाले से यह खबर छाप दी कि एक जर्मन व्यक्ति गांधी का 'सेक्रेट लव' था । इस लेख के छपने के बाद बवाल मचना था सो मचा । बगैर पढ़े-देखे आनन-फानन में गुजरात विधानसभा ने सूबे में किताब पर पाबंदी लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी । महाराष्ट्र में भी ऐसी ही मांग उठी कि लेलीवेल्ड की किताब पर बैन लगा दिया जाए । केंद्र सरकार के मंत्री भी इसमें राष्ट्रपिता का अपमान देखने लगे । यह सबकुछ सिर्फ एक लेख की बिना पर होने लगा, बगैर किताब पढ़े । लेकिन अब यह किताब भारत में उपलब्ध है । मुझे लग रहा था कि गांधी के बारे में इस किताब में कुछ नया खुलासा होगा लेकिन पढ़ने के बाद निराशा हुई और लगा कि डेली मेल का लेख बेहद सनसनीखेज और सत्य से परे था । दरअसल पश्चिमी देशों में किताब को हिट कराने का यह घिसा पिटा फॉर्मूला है । किताब के बाजार में आते ही उसके बारे में उत्सुकता का एक ऐसा वातावरण तैयार किया गया और प्रकाशक या फिर लेखक के रणनीतिकारों ने बिक्री बढ़ाने के लिए गांधी की इस जीवनी के कुछ चुनिंदा अंश लीक किए ताकि मीडिया में खबर बन सके और वो लोग ऐसा करने में कामयाब भी हो गए । गांधी और हरमन कैलेनबाख के संबंध के बारे में गांधी के कुछ पत्रों को इस तरह से प्रचारित किया गया कि लेखक लेलीवेल्ड ने कुछ महान खोज कर डाली हो । गांधी के बारे में कुछ ऐसा सत्य उद्घाटित कर दिया हो जो पहले से ज्ञात नहीं था । जबकि गांधी के जिन पत्रों को आधार बनाकर लेलीवेल्ड ने कुछ बातें की है वो पत्र सालों से राष्ट्रीय अभिलेखागार में और साबरमती आश्रम में मौजूद हैं । जब गांधी और कैलेनबाख के संबंधों को आधार बनाकर अखबारों में लेख और समीक्षाएं छपी तो दुनियाभर में गांधी के प्रशंसको ने इसका विरोध शुरू कर दिया । यह विरोध जितना तीव्र होता गया किताब की बिक्री उतनी ही ज्यादा बढ़ती चली गई ।
आधुनिक भारत के इतिहास में या यों कहें कि बीसवीं शताब्दी के विश्व इतिहास में महात्मा गांधी एक ऐसी शख्सियत है जिसके व्यक्तित्व की गुत्थी सुलझाना विद्वानों के लिए एक बड़ी चुनौती है । महात्मा गांधी के व्यक्तित्व के इतने आयाम हैं कि एक को पकड़ो तो दूसरा छूट जाता है । गांधी विश्व के इकलौते ऐसे शख्स हैं जिनकी मृत्यु के साठ साल बाद भी उनपर और उनके विचारों और लेखन पर लगातार शोध और लेखन हो रहा है । न्यूयॉर्क टाइम्स के पूर्व कार्यकारी संपादक ने भी गांधी और उनके व्यक्तित्व को अपने तरीके से उद्धाटित करने का असफल प्रयास किया है । साठ के दशक में लेलीवेल्ड भारत में न्यूयॉर्क टाइम्स के प्रतिनिधि थे । चूंकि वो भारत को नजदीक से देख समझ चुके थे इसलिए उनसे गांधी को और उनके पत्रों के आधार पर इस तरह के सनसनीखेज निष्कर्षों की उम्मीद नहीं थी । अब हम जोसेफ लेलीवेल्ड की किताबों के कुछ अंश पर नजर डालते हैं जिससे लेखक की मंसा साफ हो जाती है -गांधी अगर प्रेम में नहीं थे तो भी वो आर्किटेक्ट हरमन कैलेनबाख के प्रति आकर्षित थे । 1909 में लंदन से भेजे एक पत्र में गांधी ने कैलेनबाख को लिखा था- तुम्हारी तस्वीर मेरे शयनकक्ष में मैंटलपीस पर रखी है जो मेरे बिस्तर के ठीक सामने है । फिर वो आगे लिखते हैं कि रुई के फाहे और वैसलीन नियमित तौर पर याद दिलाते हैं । इसके आगे गांधी ने लिखा कि मुद्दा तुम्हें और मुझे यह दिखाने का है कि तुमने कितनी पूर्णता से मेरे शरीऱ पर कब्जा कर लिया है, यह एक प्रतिशोधपूर्ण गुलामी है (पृ-89)” अब हम कब्जा शब्द का क्या अर्थ निकालें या फिर पेट्रोलियम जेली के इस्तेमाल का क्या अर्थ निकालें जो आज की तरह उस वक्त भी किसी भी काम के लिए मरहम के तौर पर उपयोग में आता था । विश्वसनीय अनुमान तो यह हो सकता है कि लंदन के होटल के कमरे में वैसलीन एनीमा के लिए रही होगी जो गांधी की नियमित दिनचर्या में शामिल था या फिर फिर यह किसी और उमंग के पहले की छाया रहा हो जो उत्साह गांधी ने बूढे होने पर मालिश के लिए दिखाया था । मालिश के प्रति गांधी का लगाव सर्वज्ञात था और देश भर के दौरों के बीच वो महिलाओं से मालिश करवाने में रुचि रखते थे । मालिश की भी उनके जीवनकाल में काफी चर्चा होती थी और वह चर्चा कभी खत्म नहीं हुई ।
तकरीबन दो बर्ष बाद विनोदी स्वभाव के गांधी ने अपने दोस्त से समझौते के लिए एक अर्ध-सहमति पत्र बनाया था जिसमें वैसे नामों का प्रयोग किया गया था जिसे हम मजाकिया कह सकते हैं । उम्र में अपने से दो वर्ष छोटे कैलेनबाख को लोअर हाउस और खुद को अपर हाउस कहते थे ।.....कैलेनबाख के यूरोप दौरे के पहले 29 जुलाई 1911 को आपसी सहमति पत्र में अपर हाउस ने लोअर हाउस से यह वादा करवाया था कि उनकी गैरहाजिरी में कोई विवाह नहीं करेगा और ना ही किसी महिला की ओर ललचाई नजरों से देखेगा । इसके बाद दोनों हाउसों ने आपस में ज्यादा प्रेम और फिर और ज्यादा प्रेम का वादा किया । यह उस वक्त की बात है जब 1908 में गांधी की जेल यात्राओं और 1909 में उनकी लंदन यात्रा की अवधि को छोड़कर साथ रहते हुए तकरीबन तीन बर्ष बीत चुके थे । यहां यह बात स्मरणीय है कि हमारे पास सिर्फ गांधी के पत्र हैं जो हमेशा से डियर लोअर हाउस से शुरू होते हैं । हम अगर गांधी के पत्रों में लिखे गए अन्य संदर्भों और घटनाओं को छोड़ दें तो उससे ही दोनों के बीच के प्रेम के सूत्र निकलते हैं । पत्रों की व्याख्या हमेशा से दो तरह से की जा सकती है - एक तो हम अनुमानों के समंदर में डूब उतरा सकते हैं और दूसरा तरीका यह हो सकता है कि यह देखें कि दो व्यक्ति अपनी यौन इच्छाओं ते दमन के लिए अपने प्रयासों के बारे में क्या कहते सोचते हैं ।
जोसेफ लेलीवेल्ड ने इन्हीं पत्रों को आधार बनाकर गांधी के सेक्स जीवन के बारे में लिखा है लेकिन लिखते वक्त लेलीवेल्ड यह भूल गए कि गांधी में अपनी कामुकता को लेकर सार्वजनिक रूप से बात करने का अद्वितीय साहस था । 1906 में गांधी ने बह्मचर्य को अपना लिया था और उसके बाद से वो अपनी कामेच्छाओं के बारे में खुलकर लिखते बोलते थे और अपनी निजता का त्याग कर चुके थे । मालिश कराने के उनके शौक को लेलीविल्ड ने कामेच्छा से जोड़ने की कोशिश की है । लेकिन उन्हें यह याद दिलाने की जरूरत है कि मालिश कराना और एनीमा लेना गांधी की दिनचर्या में उनकी जिंदगी के आखिर तक बना रहा । सिर्फ इन बातों को आधार बनाकर गांधी के सेक्स जीवन की इस गलीज व्याख्या के लिए जोसेफ लेलीवेल्ड को जीवनी लिखने की जरूरत नहीं थी । अगर गांधी पर लिखी जीवनियों से इस किताब की तुलना करें तो यह एक बेहद कमजोर कृति है । दरअसल यह कृति गांधी की सही मायने में जीवनी भी नहीं है और ना ही गांधी के बारे में जानने की इच्छा रखनेवाले शुरुआती पाठकों के लिए उपयोगी किताब है । इस पूरी किताब में पढ़ते वक्त यह महसूस होता है कि लेखक यह मानकर चल रहा है कि पाठक को गांधी के बारे में उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी है और अपनी इसी आग्रह के बिनाह पर किताब चलती रहती है । अंत में सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि जोसेफ लेलीवेल्ड ने अपने तरीके से गांधी के पुरुष मित्रों के संबंध को व्याख्यायित किया है और इसका उन्हें हक भी है । किताब पर पाबंदी लगाने या देश भर इसे प्रतिबंधित करने की कोई आवश्यकता नहीं है । खुद गांधी भी अगर जीवित होते तो इसपर पाबंदी के खिलाफ होते ।

3 comments:

Anonymous said...

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