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Thursday, May 26, 2011

कुंठा @ प्रेम डॉट कॉम

विमल कुमार हिंदी पाठकों के बीच एक जाना पहचाना नाम है । लिक्खाड़ पत्रकार हैं, तमाम पत्र-पत्रिकाओं में साहित्य और साहित्येतर विषयों पर लेख और टिप्पणियां प्रकाशित होती रहती है । अच्छे कवि भी हैं और कविता के लिए 1987 में ही भारत भूषण पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं । इसके अलावा हिंदी अकादमी भी उनको पुरस्कृत कर चुकी है लेकिन अपने उसूलों की खातिर वो पुरस्कार ठुकरा भी चुके हैं । पत्रकारिता और कविता लेखन के अलावा व्यंग्य और कहानियां भी लिखते हैं और कई संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं । अब उनका नया उपन्यास आया है,जिसका शीर्षक उत्तर आधुनिक है – चांद@ आसमान डॉट कॉम । इस उपन्यास के शीर्षक से ये भ्रम होता है कि यह तकनीक की दुनिया में आ रही क्रांति और बदलाव को केंद्र में रखकर लिखी गई कृति होगी लेकिन उपन्यास पढ़ने के बाद यह भ्रम टूट जाता है । इस उपन्यास के ब्लर्ब पर लिखा है - चांद@ आसमान डॉट कॉम का रूपक कल्पना और यथार्थ के बीच मनुष्य की आवाजाही का रूपक है जहां मनुष्य अपने लिए कुछ हासिल कर भी कुछ हासिल कर नहीं पाता है । वह त्रिशंकु की तरह फंसा रहता है । विमल कुमार ने अपने इस उपन्यास में प्रेम की गहरी तड़प के जरिए मनुष्य की इस त्रिशंकु स्थिति को अपने वक्त के आइने में ढूंढने की कोशिश की है । यह एक प्रेमकथा ही नहीं बल्कि अपने समय की एक त्रासद कथा भी है । ब्लर्ब में मैं सिर्फ यह जोड़ना चाहता हूं कि विमल कुमार का यह उपन्यास प्रेम में असफल होने की कुंठा कथा है और इसे समय की त्रासद कथा बनाने की लेखक ने जो कोशिश की है, उसमें वो सफलता प्राप्त नहीं कर पाया है । इस उपन्यास का केंद्रीय पात्र मिहिर में साहस का घोर अभाव है । पत्नी और बच्चों के घर में होते हुए वह प्रेम की तलाश में भटकता रहता है लेकिन प्रेम को परणिति तक पहुंचाने का साहस उसमें नहीं है । उसकी पत्नी नंदिता का एक वाक्य उसके पूरे व्यक्तित्व को परिभाषित कर देता है – मिहिर तुम्हारे साथ सबसे बड़ी बात यह है कि तुम कल्पना में जीते हो। यह क्यों नहीं देखते कि तुम्हारे पांवों के नीचे कोई जमीन है या नहीं । यह पूरा वाक्य इस उपन्यास पर भी लागू होता है जहां कल्पना के आधार पर बगैर किसी जमीन के सिर्फ व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर कथा कहने की कोशिश की गई है ।
दरअसल इस उपन्यास की कथा इसके केंद्रीय पात्र मिहिर उसकी पत्नी नंदिता और उसकी प्रेमिका सुगन्धा के इर्द-गिर्द चलती है । उपन्यास में बहुधा यह लगता है रहता है कि मिहिर के बहाने लेखक अपनी बात कह रहा है, अपने जीवनानुभवों को बांट रहा है । इस उपन्यास में लेखक ने पत्र या डायरी के अंशों का इस्तेमाल करके पाठकों को एक नए तरह के कथास्वाद देने की कोशिश की है । यह माना जाता है कि पत्र और डायरी की जो प्रकृति होती है वह लेखक की आत्मकथा की तरह की ही होती है । पत्र और डायरी अपने स्वभाव से ही निजी होते हैं और वो ज्यादातर अपने बेहद करीबियों को ही संबोधित किए जाते हैं । पत्रों में कोई भी व्यक्ति अपनी भावनाओं और विचारों को बगैर किसी लाग-लपेट के अभिवयक्त करता है जिसके केंद्र में वह स्वंय होता है । उपन्यास में जब इस टूल का इस्तेमाल किया जाता है तो लेखक की कोशिश या मंशा यह होती है कि खुद को नेपथ्य में रखकर पत्र तथा डायरी के माध्यम से अपनी बात पाठकों के सामने रखे । पत्रों और डायरी का इस्तेमाल इस तरह से करता है कि पाठकों से एक कनेक्ट स्थापित हो सके । विमल कुमार ने भी अपने इस उपन्यास में अपनी बात डायरी और पत्रों के माध्यम से बखूबी कहने का प्रयास किया है । कुछ बेहद रूमानी पत्र इस उपन्यास में हैं ।
एक दूसरी बात जो इस उपन्यास की उल्लेखनीय है वह यह कि विमल कुमार लिखते वक्त बेहद अंतरंग क्षणों में भी राजनीति के प्रसंगों को ले आते हैं । उदाहरण के तौर पर जब वो उनकी प्रेमिका सुंगंधा की बांहों में होते हैं और उनके दिमाग में राजनीति की सौदेबाजी या आज की भाषा में कहें तो व्यावहारिकता का एक जबरदस्त द्वंद चलता है । लेखक या यों कहें कि उपन्यास के नायक का यह द्वंद उन अंतरंग क्षणों भी उसे शिबू सोरेन और भाजपा की सौदेबाजी की ही याद दिलाता है । दूसरे जब वह अपनी पत्नी के साथ विस्तर पर होते हैं तो भी उनके दिमाग में रूमानियत के बजाए संसद की बहस का ही स्मरण होता है । आखिर पच्चीस साल से पत्रकारिता कर रहे लेखक का कल्पना लोक भी उसे आसपास के वातावरण के इर्द गिर्द ही रहेगा। कुल मिलाकर अगर हम विमल कुमार के इस उपन्यास चांद@ आसमान डॉट कॉम पर विचार करें तो लगता है कि लेखक ने एक नए तरीके से आत्मकथा कहने का प्रयास अवश्य किया है जिसमें डायरी और पत्रों का प्रयत्नपूर्वक इस्तेमाल किया है । लेकिन नई शैली के बावजूद यह उपन्यास महानगरीय जीवन की एक बेहद साधारण कहानी भर बन कर रह गई है जो एक पत्रकार की असफल प्रेम कहानी जैसी लगती है । जिस प्रेम को लेकर खुद लेखक ही आश्वस्त नहीं है ।

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