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Sunday, June 5, 2011

प्रकाशकों को चुनौती

हिंदी में इस बात को लेकर हाल के दिनों में लागतार चिंता प्रकट की जा रही है कि इंटरनेट और सूचना क्रांति के विस्फोट में छपी हुई किताबों की महत्ता या यों कहें उनका वर्तमान स्वरूप खत्म हो जाएगा । इस चिंता ने हिंदी में एक नई बहस को जन्म दिया था कि क्या हिंदी से छपी हुई किताबें खत्म हो जाएंगी। इसके पक्ष और विपक्ष में कई तरह के विचार आए हैं और इसपर पत्रिकाओं, अखबारों और खुद इंटरनेट और ब्लॉग पर जोरदार बहस जारी है। लेकिन अभी अमेरिका से आई एक खबर ने हिंदी साहित्य की चिंता और बढ़ा दी है और छपी हुई किताबों के पक्ष में बात करने वालों की पेशानी पर बल पड़ गए हैं और विरोधियों के हौसले बुलंद हो गए हैं। इंटरनेट के जरिए किताबों का कारोबार करनेवाली कंपनी अमेजन ने ऐलान किया है कि उसकी बेवसाइट पर छपी हुई किताबों को ई बुक्स ने बिक्री के लिहाज से मात दे दी है । अमेजन के मुताबिक अगर छपी हुई सौ किताबें बिक रही हैं तो ई बुक्स एक सौ पांच की संख्या में बिक रही हैं। ई बुक्स पढ़ने की सबसे मशहूर और लोकप्रिय डिवाइस किंडल बुक्स की छपी पुस्तकों की बिक्री को पीछे छोड़ना एक ऐतिहासिक घटना के तौर पर रेखांकित की जा रही है । दरअसल चार साल पहले ही अमेजन ने अपने बेवसाइट पर किंडल के जरिए ई बुक्स की बिक्री का अनूठा प्रयोग शुरू किया था । चार महीने पहले ही किंडल एडिशन ने पेपरबैक किताबों की बिक्री को पीछे छोड़ दिया था और अब समग्रता में उसने यह सफलता हासिल की है । अमेरिकी बेवसाइट अमेजन के मुताबिक यह हालत तो तब है जबकि कई पुस्तकों के किंडल संस्करण बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं हैं । अमेजन के सीईओ जेफ बेजोस को भी पाठकों की रुचि में इस तरह के बदलाब की अपेक्षा तो थी पर यह इतनी जल्दी घटित हो जाएगा इसका अमुमान उन्हें नहीं था । दरअसल टेबलेट कंप्यूटर आने की वजह से लोगों के बीच ई बुक्स की लोकप्रियता काफी बढ़ी हैं और अब तो एप्पल के आई पैड की वजह से भी इसकी बिक्री को पंख लग सकते हैं ।
सवाल यह उठता है कि क्या आनेवाले दिनों में छपी हुई किताबों का भविष्य खत्म हो जाएगा । छपी किताबों का कारोबार करनेवाले प्रकाशकों पर संकट आनेवाला है। क्या अबतक कंप्यूटर पर लिखनेवाले लेखक भी ई बुक्स के ही जरिए पाठकों के बीच जाएंगे । कई उत्साही लोग तो इन सारे प्रश्नों के सकारात्मक जबाव दे रहे हैं । संभव है कि पश्चिम के विकसित देशों में यह बात आंशिक रूप से सच भी हो । आंशिक इस वजह से कि पश्चिमी देशों में सूचना के संजाल के तमाम विकास के बावजूद अब भी लाखों में किताबें बिक रही हैं । चाहे वो जोनाथन फ्रेंजन की फ्रीडम हो या टोनी ब्लेयर की आत्मकथा- अ जर्नी । इन सबने किताबों की बिक्री के पिछले सारे रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया । अमेजन ने भले ही यह ऐलान किया है कि ई बुक्स ने किताबों की बिक्री को पीछे छोड़ दिया है लेकिन उसने बिक्री का कोई ठोस आंकड़ा पेश नहीं किया, उसने सिर्फ तुलनात्मक आंकड़ों के आधार पर ई बुक्स को ज्यादा लोकप्रिय बताया है । ना ही अमेजन ने इस बात का ऐलान किया कि बिक्री का यह आंकड़ा किस और कितनी अवधि का है । दूसरा अहम प्रश्न जो अमेजन की इस घोषणा के बाद मन में उठता है वह यह है कि अमेजन तक कितने लोगों की पहुंच है । अमेजन पर खरीद बिक्री वही लोग कर सकते हैं जिनते पास इंटरनेट हो या फिर जिन्हें इंटरनेट का एक्सेस हो । बेवसाइट के जरिए होनेवाले कारोबार में ग्राहकों की संख्या अवश्य बढ़ी है लेकिन अभी उस माध्यम के आधार पर कोई निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी । जल्दबाजी इस वजह से क्योंकि यह पूरे ग्राहक वर्ग के मूड और स्वभाव का प्रतिनिधित्व नहीं करता है । इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि ई बुक्स बिक्री और लोकप्रियता में किताबों को पटखनी दे देगा ।
लेकिन इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव और पहुंच को लेकर कुछ लोग साहित्य पर भी संकट देखने लगे हैं । उनका तर्क है सूचना संजाल के विस्तार से साहित्य नष्ट हो जाएगा । ऐसा नहीं है कि इस तरह के तर्क देनेवाले लोग नए हैं । इस तरह के लोग हर युग और काल में पाए जाते हैं । कुछ दशक पहले भारत में जब सिनेमा काफी लोकप्रिय होने लगा और पूरे देश में आम लोगों की जुबान पर इसकी चर्चा हुई तो उसमें भी साहित्य का दुश्मन माना गया और उसके खिलाफ मुकम्मल अभियान भी चला। उसके बाद भारत में टेलीविजन का अभ्युदय हुआ तो उसमें भी साहित्य के अंत का दु:स्वपन देखा गया । नतीजा यह हुआ कि साहित्यकारों की एक पूरी जमात टेलीविजन के खिलाफ खड़ी हो गई और जबरदस्त तरीके से उसको खारिज करने की कोशिश की गई । टेलीविजन कैमरा का विकास हुआ तो यथार्थवादी रचनाकारों को यह लगने लगा कि उनका भोगा हुआ यथार्थ जिन्हें वो अपनी रचनाओं के माध्यम से पाठकों के सामने लाते हैं उसे कैमरा सीधे पाठकों को दिखा देगा । उसी खतरे को भांपते हुए और बगैर माध्यम को समझे कैमरे का विरोध शुरू हो गया । लेकिन उस विरोध का कोई असर नहीं दिखा और टेलीविजन की लोकप्रियता और विस्तार इतना हुआ कि आज घर घर में टेलीविजन लगे हैं । टेलीविजन के बाद जब कंप्यूटर आया तो बकायदा उसके खिलाफ वैचारिक आंदेलन शुरू किया गया । कई कवियों ने अपनी कविता में कंप्यूटर को दानव कहते हुए उसका मजाक उड़ाया । लेकिन अब वही कवि और लेखक कंप्यूटर पर काम करते हुए अपने को सहज महसूस करते हैं । उन्हें अब ना तो उस माध्यम से कोई परहेज हैं और ना ही विरोध । दरअसल चाहे वो सिनेमा हो,टेलीविजन हो या फिर कंप्यूटर हो या फिर कोई अन्य तकनीकी या वैज्ञानिक अविष्कार, उनका मूल उद्देश्य मानव समाज की बेहतरी ही होता है। किसी भी बेहतर तकनीक का मुकाबला बेहतरीन तकनीक से ही किया जा सकता है ना कि पुरातन और समय के पीछे रह गए तकनीक से । जो लोग भी नई और बेहतर तकनीक का मुकाबला पुरानी तकनीक से करना चाहते हैं, इतिहास गवाह है कि वो हमेशा मुंह की ही खाते रहे हैं ।
किताबों के बरक्श ई बुक्स को खड़ा करनेवाले लोग चाहे अनचाहे किताबों की अंतरवस्तु को हाशिए पर धकेलते हैं।दोनों माध्यमों के बीच संघर्ष को रेखांकित करनेवाले लोग दरअसल यह भूल जाते हैं कि दोनों की अपनी अलग महत्ता है और अंतत वह महत्ता उसके अंतर्वस्तु को लेकर है उसके माध्यम को लेकर नहीं । किताबों में जो लेख, कहानी, उपन्यास या फिर कविता है, लोकप्रियता उसकी होती है । फिर चाहें वो कागज पर छपी हो या फिर वो कंप्यूटर पर मौजूद हो है तो वो रचना ही।

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