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Tuesday, July 22, 2014

इतिहास बोध की अज्ञानता

वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार वेद प्रताप वैदिक की मुंबई हमले के मास्टरमाइंड आतंकवादी हाफिज सईद से मुलाकात पर दो दिनों तक संसद से लेकर सड़क तक हंगामा मचा रहा । खबरिया चैनलों के स्टूडियो में भी गर्मागर्म बहसें हुई । वेदप्रताप वैदिक पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाने से लेकर उनकी गिरफ्तारी की मांग हुई । वेदप्रताप वैदिक लगातार कहते रहे कि उन्होंने आतंकवादी हाफिज सईद से एक पत्रकार के तौर पर मुलाकात की लेकिन खोजी पत्रकारों की टोली इस मुलाकात के पीछे सरकार से लेकर ट्रैक टू डिप्लोमेसी सूंघने को बेचैन रही । हद तो तब हो गई जब संसद में कांग्रेस के नेताओं ने सरकार से इस व्यक्तिगत मुलाकात पर सफाई पेश करने को कहा । विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस मसले पर सफाई दी कि सरकार का वैदिक-हाफिज मुलाकात से कोई लेना देना नहीं है । सरकार की संसद में सफाई के बावजूद कांग्रेस के नेताओं को इसमें कोई गेम नजर आ रहा था । कांग्रेस के युवराज ने तो वैदिक को राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ा बताकर संघ को भी सवालों के कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की । दरअसल वैदिक की मुलाकात पर हंगामा मचाकर देश की राजनीतिक जमात ने अपने दिवालियापन का सबूत दे दिया । वैदिक पर सवाल उठानेवाले कांग्रेस के नेता यह भूल गए कि हमारे देश के कई नामचीन पत्रकार समय समय पर आतंकवादियों से लेकर नक्सलियों तक से मुलाकात करते रहे हैं । कई पत्रकारों ने तो अपनी जान को खतरे में डालकर नगा विद्रोहियों से बात की थी । यब परंपरा सिर्फ भारकत में ही नहीं है विश्व के कई देशों में पत्रकार वहां के अपराधियों और वांटेड शख्सियतों से मुलाकात के लिए महीनों तक श्रम करते रहते हैं । कइयों को सफलता मिलती है तो कइयों को सालों तक सफलता नहीं मिलती है । क्या हमारे देश के पत्रकारों ने दाऊद इब्राहिम से लेकर अन्य अंडरवर्लेड सरगनाओं से बात नहीं की है । क्या देश के पत्रकारों ने उन नक्सली नेताओं से बात नहीं की जो सपरक्षा बलों के जवानों से लेकर आम जनता की मौत के जिम्मेदार रहे हैं । क्या पंजाब और कश्मीर के अलगाववादियों से बातचीत को इस देश ने नहीं देखा, पढ़ा है । तो वैदिक की हाफिज सईद से मुलाकात पर इतना हंगामा करने और उस मुलाकात को अलग सियासी रंग देने के पीछे की मंशा क्या है । दरअसल लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस से रणनीतिक तौर पर लगातार गलतियां हो रही हैं । वो हर छोटे बड़े मुद्दे पर सराकार को घेरने की कोशिश करने में लगे हैं । कांग्रेस के अलग अलग नेता एक ही मुद्दे पर अलग अलग राय रखते और प्रकट करते हैं । हमें तो चंद उन पत्रकारो की सोच पर भी क्षोभ होता है जो इस मुलाकात को राष्ट्रद्रोह की तरह देखते हैं । क्या हम पत्रकारों की जमात का इतिहासबोध एकदम से खत्म हो गया है । क्या अब वो ये चाहते हैं कि कोई भी पत्रकार किसी आतंकवादी, नक्सली, चरमपंथी , अलगाववादी या फिर अपराधियों से मिलने के पहले सरकार से इजाजत ले या सरकार को बताकर इंटरव्यू करे । वैदिक से यह सवाल अवश्य पूछा जाना चाहिए कि उनके मुलाकात के दौरान बातचीत को वो सार्वजनिक करें । अगर वैदिक की आतंकवादी हाफिज सईद से मुलाकात के बाद इस तरह का कोई संकेत भी जाता है तो वह पत्रकारिता के लिए काला दिन होगा ।

रही बात कांग्रेस की तो इस पार्टी के नेता यह भूल गए कि कांग्रेस के शासन के दौरान देश ने श्रीलंका के चरमपंथी संगठन लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम के सुप्रीमो प्रभाकरण की खातिरदारी भी देखी है । उस दौर में दिल्ली में पत्रकारिता करनेवालों को पता है कि किस तरह से प्रभाकरण को दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में रखा जाता था, उनकी खातिरदारी की जाती थी । प्रभाकरण से दोस्ती और उस खातिरदारी का हश्र देश को भगुतना पड़ा जब राजीव गांधी की हत्या कर दी गई । कांग्रेस पार्टी इस वक्त एक ऐसे दौर से गुजर रही हैं जहां उनके नेताओं को गहरे आत्ममंथन की आवश्यकता है । आरोप प्रत्यारोप की राजनीति से उपर उठकर कांग्रेस को जनता से जुड़े ठोस मुद्दे उठाने होंगे और एक रचनात्मक विपक्ष के तौर पर अपनी भूमिका को साबित करना होगा । पहले नेता विपक्ष के पद को लेकर फिर प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव की नियुक्ति का मुद्दा उठाकर कांग्रेस अपनी भद पिटवा चुकी है । वैदिक हाफिज की मुलाकात पर हंगामा खड़ा कर कांग्रेस ने बढ़ती महंगाई पर सरकार को घेरने का मौका गंवा दिया । संसद में बजाए इस मुद्दे पर हंगामा करने के कांग्रेस ने बेवजह वैदिक को लेकर हंगामा किया । आश्चर्य तो इस बात पर हुआ जब आमतौर पर मीडिया से बात करने में कतराने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष ने संसद भवन परिसर में इस मसले पर पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए और वैदिक को संघ से जुड़ा बता दिया । राहुल गांधी के इस बयान के बाद तो कांग्रेस के अन्य नेताओं की कल्पना को पंख लग गए और वो निहायत ही उलजलूल आरोप हवा में उछालने लगे । दरअसल कांग्रेस संघ फोबिया से ग्रस्त है और हर घटना का जिम्मेदार संघ को ठहराने की जुगत में रहती है , ठीक उसी तरह जिस तरह से अस्सी के दशक में हर घचना के पीछे विदेशी हाथ होने की बात की जाती थी । कांग्रेस नेताओं को समझना चाहिए कि वक्त और संघ दोनों बदल चुके हैं । 

1 comment:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज गुरुवार २४ जुलाई २०१४ की बुलेटिन -- बढ़ो मौन तोड़ने के लिए– ब्लॉग बुलेटिन -- में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार!