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Sunday, October 19, 2014

साधन की पहचान जरूरी

अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब राष्ट्रपति बराक ओबामा को गांधी की गीता भेंट की तो महात्मा गांधी के लेखन को लेकर वैश्विक स्तर पर एक उत्सुकता का वातावरण बना । इसके पहले उन्होंने जापान के प्रधानमंत्री को भी गीता भेंट की थी । वैश्विक स्तर पर गांधी साहित्य को लेकर बने इस उत्सुकता के वातावरण को भांपते हुए ई कामर्स साइट्स पर गांधी के गीता की बिक्री का प्रमोशन शुरू हो गया । गांधी की गीता पर आकर्षक छूट के अलावा कैश ऑन डिलीवरी की सुविधा भी दी गई । इंटरनेट पर भी गांधी के साहित्य की खोज होने लगी। उत्सकुकता के इस वातावरण और तकनीक के साथ आगे बढ़नेवाली नई पीढ़ी तक गांधी साहित्य को पहुंचाने के लिए नवजीन ट्रस्ट ने गांधी के लेखन तो ई फॉर्मेट में सामने लाने का उपक्रम शुरू कर दिया है । नवजीवन ट्रस्ट की योजना के मुताबिक  गांधी की किताबों को ई बुक्स के रूप में पेश किया जाएगा । इस योजना पर काम भी शुरू कर दिया गया है । नवजीवन ट्रस्ट की योजना के मुताबिक महात्मा गांधी की सारी किताबों के अलावा उनपर लिखी गई किताबों को भी ई बुक्स के रूप में लाया जाएगा । इस कड़ी में पहले गांधी की किताबों को ई बुक्स के फॉर्म में तैयार किया जाएगा । उसके बाद उनपर लिखी किताबों का नंबर आएगा । नवजीवन ट्रस्ट महात्मा गांधी और उनसे संबंधित करीब साढे आठ सौ किताबों का प्रकाशन और वितरण करता है । ये किताबें मुख्य रूप से हिंदी, गुजराती और अंग्रेजी में प्रकाशित हैं । महात्मा गांधी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग अब तक सत्रह भाषाओं में अनुदित हो चुकी है ।गांधी जी अपने जीवनकाल में हमेशा से साधन की महत्ता पर जोर देते थे । सत्रह सितंबर 1933 को अमृत बाजार पत्रिका में गांधी ने लिखा था- ध्येय की सबसे बड़ी स्पष्ट व्याख्या और उसकी कद्रदानी से भी हम उस ध्येय तक नहीं पहुंच सकेंगे, अगर हमें उसे प्राप्त करने के साधन मालूम नहीं होंगे और हम उनका उपयोग नहीं करेंगे । इसलिए मुझे तो मुख्य चिंता साधनों की रक्षा और उनके आधिकारिक उपयोग की है । मैं जानता हूं कि अगर हम साधनों की चिंता रख सके तो ध्येय की प्राप्ति निश्चित है । मैं यह भी अनुभव करता हूं कि ध्येय की ओर हमारी प्रगति ठीक उतनी ही होगी जितने हमारे साधन शुद्ध होंगे । यह तरीका लंबा, शायद हद से ज्यादा लंबा दिखाई दे, परंतु मुझे पक्का विश्वास है कि ये सबसे छोटा है ।“  तो इस तरह से अगर हम देखें तो गांधी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए साधन को आवश्यक मानते थे । नवजीवन ने गांधी के सिद्धातों को अपनाते हुए नए पाठकों तक पहुंचने के लिए नए साधन का सहारा लिया है ।
महात्मा गांधी ने विपुल लेखन किया है । गांधी जी की हर मसले पर स्पष्ट राय होती थी जिसे वो बेबाकी के साथ सार्वजनिक करते थे । साहित्य में उठे विवादों पर भी वो अपनी राय प्रकट करते थे । साहित्य में जब समलैंगिकता का विवाद उठा था तो भी गांधी ने हस्तक्षेप किया था । गांधी पर लिखी जानेवाली किताबों की संख्या हजारों में है । दुनियाभर के विद्वान महात्मा गांधी के लेखन और उनके व्यक्तित्व को नए सिरे से उद्घाटित करने के लिए लगातार लेखन कर रहे हैं । ज्यादातर गांधी साहित्य को उनके द्वारा स्थापित नवजीवन ट्रस्ट ने छापा है । कॉपीराइट से मुक्त होने के बाद गांधी की किताबों को नए सिरे से छापने का उपक्रम कई अन्य प्रकाशकों ने भी किया । तकनीक के फैलाव के इस दौर में नवजीवन से छपी गांधी की किताबें वैश्विक मांग को पूरा करने में पिछड़ रही है । छपाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अक्षर पुराने हैं और उसकी बाइंडिंग वगैरह भी समय के साथ चलने में पिछड़ जा रहे हैं । लेकिन यह भी तथ्य है कि नवजीवन बेहद कम कीमत पर गांधी साहित्य उपलब्ध करवा रहा है ।नवजीवन ट्रस्ट के मुताबिक गांधी साहित्य की करीब डेढ सौ से दो सौ किताबों का ई संस्करण तैयार कर लिया गया है और बाकी बची किताबों को अगले दो साल में पूरा कर लिया जाएगा । गांधी के विचारों को उनके किताबों के माध्यम से पूरी दुनिया की नई पीढ़ी तक पहुंचाने में इस योजना की बड़ी भूमिका हो सकती है । ई प्लेटफॉर्म पर गांधी की किताबें उपलब्ध होने से हमारे देश के नौजवान भी उनके साहित्य के परिचित हो सकेंगे । दुनिया की मशहूर कंपनी प्राइसवाटरहाउस कूपर्स (पीडब्ल्यूसी) ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि दो हजार अठारह तक दुनिया में ई बुक्स की बिक्री छपी हुई किताबों से ज्यादा हो जाएगी । उनके अनुमान के मुताबिक ई बुक्स के कारोबार में दो सौ पचास फीसदी की बढ़तोरी मुमकिन होगी । एजेंसी की इस रिपोर्ट के मुताबिक दो हजार अठारह तक इंगलैंड के किताबों के आधे बाजार पर ईबुक्स पर कब्जा होगा । दरअसल जैसे जैसे इंटरनेट का घनत्व बढ़ेगा वैसे वैसे डिजीटल फॉर्मेट की मांग बढ़ती जाएगी ।  
गांधी के तमाम सिद्धांत और उनका लेखन आज भी उतना ही मौजूं है जितना वो अपने लिखे जाने के वक्त था । मार्केटिंग गुरुओं के कंज्यूमर इज किंग के जुमले के बहुत पहले गांधी जी ने ग्राहकों की महत्ता पर अपने उद्गार व्यक्त किए थे । ई बुक्स के माध्यम से गांधी के विचार देश विदेश के तमाम मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के छात्रों के लिए भी उपलब्ध होगा और फिर उनके विचारों पर नए सिरे से विचार और शोध संभव होगा । गांधी ने हरिजन पत्रिका में तीस अप्रैल उन्नीस सौ तैंतीस को लिखा था- मेरे लेखों का अध्ययन करनेवालों और उनमें दिलचस्पी लेनेवालों को मैं यह कहना चाहता हूं कि मुझे हमेशा एक ही रूप में दिखाई देने की कोई परवाह नहीं है । सत्य की अपनी खोज में मैंने बहुत से विचारों को छोड़ा है और अनेक नई बातें मैं सीखा भी हूं । उमर में भले ही मैं बूढा हो गया हूं लेकिन मुझे नहीं लगता कि मेरा आंतरिक विकास होना बंद हो गया है या देह छूटने के बाद मेरा विकास बंद हो जाएगा । गांधी ने साफ तौर पर कहा कि जब किसी पाठक को मेरे दो लेखों में विरोध जैसा लगे, तब अगर उसको मेरी समझदारी में विश्वास हो तो वह एक ही विषय पर लिखे दो लेखों में से मेरे बाद के लेख को प्रमाणभृत माने । इस तरह साफगोई से बात करनेवाले विचारक कम ही मिलते हैं । दुनिया को सत्य और अहिंसा का सिद्धांत अपनाकर उदाहरण प्रस्तुत करनेवाले गांधी के विचारों को जानने के लिए ई बुक्स का प्लेटफॉर्म बहुत ही बेहतर साबित हो सकता है ।  इस तरह से अगर हम देखें तो गांधी के विचारों को आभासी दुनिया में ले जाने के इस उपक्रम से भारत के इस महान सपूत के विचारों पर पुनर्विचार शुरू हो सकेगा ।

पूरी दुनिया में इंटरनेट के फैलाव और वर्तमान सरकार के डिजीटल इंडिया की योजना से यह साफ हो गया है छपी हुई किताबों को भी इस प्लेटफ़ॉर्म पर आने का प्रयास करना चाहिए । आज की युवा पीढ़ी सबकुछ ऑन द मूव चाहती है । युवाओं की इस रुचि को ध्यान में रखते हुए तमाम मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनियां फोन का स्क्रीन बड़ा कर रही हैं । अब तो मशहूर कंपनी एप्पल ने भी अपने प्रोडक्ट का स्क्रीन साइज बढ़ा दिया है । खबरें और खबरों की दुनिया भी मुट्ठी में सिमटती जा रही हैं । तमाम न्यूज संस्थान डिजीटल हो चुके हैं सबके सब इस आबासी दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने या अपनी उपस्थिति मजबूत करने में लगे हैं । इसी पन्ने पर हमने तकरीबन दो साल पहले हमने हिंदी के प्रकाशकों की बुक्स के प्रति उदासीनता को रेखांकित किया था । ई बुक्स के रूप में हिंदी को एक ऐसा प्लेटफॉर्म हासिल हो सकता है जिसकी कल्पना नहीं की गई है । भारत के बाजार की ताकत को भांपते हुए दुनिया के कई देशों के लोग हिंदी सीख रहे हैं । हिंदी का फैलाव हो रहा है । वर्तमान सरकार भी हिंदी के विकास के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे रही है । तो क्या हिंदी का हमारा प्रकाशन जगत अब भी छपे हुए पन्नों के साथ ही चलना पसंद करेगा या छपे हुए पन्नों के साथ साथ ई फॉर्मेट में भी प्रयोग करेगा । वक्त की मांग यही है । अगर हिंदी साहित्य को युवाओं तक पहुंचाना है तो प्रकाशकों को ई फॉर्मेट में जाना ही पड़ेगा । इसी तरह से हिंदी के लेखकों को भी अपने लेखन को विशाल पाठक वर्ग तक पहुंचाने के लिए इंटरनेट का बेहतर इस्तेमाल करना होगा । लेखक और प्रकाशक के संयुक्त प्रयास से ही हिंदी साहित्य को युवाओं से जोड़ने के काम में सफलता मिल सकती है । जरूरत इस बात की होगी कि दोनों के प्रयास वक्त की मांग के अनुरूप हो । गांधी ने कहा ही है कि ध्येय की प्राप्ति के लिए साधन का अधिकाधिक उपयोग आवश्यक है । साधन हिंदी के प्रकाशकों के सामने मौजूद है, आवश्यकता उसके उपयोग को कारोबार की सफलता के लिए करने की है । 

2 comments:

रेणु मिश्रा said...

अनंत जी...मैंने आपका लेख " साधन की पहचान ज़रूरी" पढ़ा। समय की धारा के साथ बहते हुए आज के प्रकाशकों को नयी तकनीक का प्रयोग करते हुए...ना केवल गांधी साहित्य को बल्कि अन्य बड़े बड़े साहित्यकारों की रचनाओं को भी E-फॉर्मेट में करके सहेज लेना चाहिए। जिससे आज के E पाठकों के लिए तो आसानी होगी ही साथ ही में आगे की पीढ़ी को थाती स्वरुप देने के लिए हमारे पास ये बहुमूल्य निधियाँ पास होंगी।
इस ज्ञानवर्धक लेख के लिए....आपको 🍫

रेणु मिश्रा said...

अनंत जी...मैंने आपका लेख " साधन की पहचान ज़रूरी" पढ़ा। समय की धारा के साथ बहते हुए आज के प्रकाशकों को नयी तकनीक का प्रयोग करते हुए...ना केवल गांधी साहित्य को बल्कि अन्य बड़े बड़े साहित्यकारों की रचनाओं को भी E-फॉर्मेट में करके सहेज लेना चाहिए। जिससे आज के E पाठकों के लिए तो आसानी होगी ही साथ ही में आगे की पीढ़ी को थाती स्वरुप देने के लिए हमारे पास ये बहुमूल्य निधियाँ पास होंगी।
इस ज्ञानवर्धक लेख के लिए....आपको बधाई🍫