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Thursday, October 9, 2014

जनाकांक्षा बढ़ाते मोदी

लोकसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में शानदार सफलता हासिल की थी तो यह कहा गया कि मोदी सपनों के सौदागर हैं । उन्होंने महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त भारत के मध्यवर्ग के बीच अपनी एक ऐसी छवि पेश की जो कि उनकी समस्याओं का हल कर सकता है । चुनावी नारों से लेकर मोदी की चुनावी रणनीति को इस तरह से डिजायन किया गया कि मोदी की यह छवि जनता के दिलो दिमाग पर छा जाए । अपने चुनावी भाषणों में नरेन्द्र मोदी ने अपनी शानदार वकतृत्व कला के बूते अपनी इस छवि को और गाढा़ किया । आसमान छूती महंगाई और भ्रष्टाचार के घटाटोप अंधेरे की बीच नरेन्द्र मोदी के रणनीतिकारों ने जो चुनावी नारे दिए उसने यह संदेश दिया कि भारत की सभी समस्याओं का अंत तुरंत । चुनाव के वक्त देश का जो माहौल था उसमें महंगाई और भ्रष्टाचार से देश की जनता परेशान थी । मोदी ने अपनी चुनावी रैलियों में महंगाई और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की बात करके जनता का भरोसा जीता था । इसके अलावा चुनाव के दौरान एक मुद्दा पाकिस्तान की तरफ से लगातार होनेवाली फायरिंग और चीन की घुसपैठ भी था । मनमोहन सरकार फैसले नहीं ले पा रही थी लिहाजा पॉलिसी पैरेलैसिस की वजह से फॉरेन इंवेस्टमेंट नहीं आ पा रहा था । इस तरह की परिस्थियों में नरेन्द्र मोदी ने अपना चुनावी कौशल दिखाया और परिस्थियों का लाभ उठाते हुए जनता के सामने विकल्प पेश कर प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल करने में कामयाब रहे । पद संभालने के पहले ही मोदी ने अपने पड़ोसी देशों की अहमियत का समझा और अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के नेताओं को आमंत्रण दिया । मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ समेत सभी सार्क देशों के पीएम और प्रेसिडेंट शामिल हुए । मोदी के काम काज संभालने के फौरन बाद ही केंद्र सरकार के कर्मचारियों की कार्यशैली में बदलाव दिखाई देने लगा । मंत्रालयों और दफ्तरों में कर्मचारी सही वक्त पर पहुंचने लगे और तय वक्त तक दफ्तर में मौजूद भी रहने लगे । जनता के सवालों और समस्याओं पर ध्यान देने लगे हैं । प्रधानमंत्री कार्यालय से जनता को उनके पत्रों के जवाब मिलने लगे हैं । यह पूर्ववर्ती यूपीए सरकार से उलट है । यूपीए सरकार के दौरान तो प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों को लिखे आम जनता के खतों को डस्टबिन में डाल दिया जाता था । एक पुरानी कहावत है कि सरकार तो राजा के इकबाल या फिर उसके हनक से चलती है । सो यहां भी मोदी की हनक से सरकार का कामकाज पटरी पर आते दिखने लगा । हनक और इकबाल के अलावा सुशासन का एक और पहलू है वह ये कि सरकार को जनता से संवाद करते दिखना चाहिए । जनता को यह भरोसा होना चाहिए कि सरकार के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति भी उसकी पहुंच में है । उसे यह भी भरोसा होना चाहिए कि अगर वो अपनी कोई समस्या लेकर प्रधानमंत्री तक जाएगा तो उसकी सुनवाई होगी । इन दोनों बातों को मोदी सरकार ने समझा है और उस दिशा में काम शुरू कर दिया है ।
हर समाज को सपनों में जीना अच्छा लगता है । स्वप्नलोक हमेशा से भारतीय समाज को लुभाता रहा है । नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम ने विकास का जो सपना भारतीयों को दिखाया उसके पीछे गुजरात में उनके किए गए कामों का ट्रैक रिकॉर्ड भी था । लिहाजा जनता उनके दावों और वादों को हवा हवाई नहीं मान सकती थी । जनता ने माना भी नहीं । मोदी को अभूतपूर्व समर्थन मिला । सरकार बनने के बाद महंगाई कम नहीं हुई । सीमापार से गोलीबारी कम नहीं हुई । चीनी घुसपैठ में कमी नहीं आई । भारतीय जनता पार्टी के नेता यह कहने लगे कि मोदी के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जो हर समस्या का फौरन हल कर लें । अब तो अपने सालाना दशहरा भाषण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख ने भी जादू की छड़ीवाली बात दोहरा दी है । इसका अर्थ यह है कि उनकी पार्टी और संघ दोनों प्रधानमंत्री को वक्त दिए जाने के पक्ष में है । जनता ने तो पांचसाल का वक्त दिया ही है ।
अब अगर हम नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद के उनके कार्यकाल का मूल्यांकन करें तो इतना तो साफ तौर पर दिखता है कि जनता का उनमें भरोसा जरा भी कम नहीं हुआ है । यह अलहदा बात है कि लोकसभा चुनाव के बाद हुए उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी की चमक थोड़ी फीकी हुई है लेकिन उपचुनावों के नतीजों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी या मोदी से लोगों का मोहभंग होने लगा है। दो राज्यों के नतीजों से इस बारे में कुछ संकेत मिल सकते हैं । इन सबसे बेफिक्र प्रधानमंत्री मोदी भारत के लोगों की आकांक्षाओं को लगातार पंख लगा रहे हैं । विश्वशक्ति से लेकर स्वच्छ भारत तक का । उनकी यह खासियत है कि वो अपने किसी भी काम का स्केल इतना बड़ा कर देते हैं कि जनता उससे खासा प्रभावित होती है । इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी को संवाद की ताकत का एहसास भी है । अपने किसी भी काम के लिए वो जनता से सीधे संवाद करते हैं । उन्होंने संवाद के सभी आधुनिक तरीकों का बेहतरीन इस्तेमाल किया है । इसका एक फायदा तो यह होता है कि जनता को लगता है कि उनका प्रधानमंत्री उनको हर बड़े कदम में शामिल करता है । देश की जनता ने पिछले दस सालों में एक ऐसा प्रधानमंत्री देखा था जो कि किसी भी मसले पर बोलता ही नहीं था । अब उसी देश में एक मुखर प्रधानमंत्री आया है ।
नरेन्द्र मोदी को अब कांग्रेस के लोग सपनों का सौदागर, मार्केटिंग गुरू और जाने किन विशेषणों से नवाजने लगे हैं । कांग्रेस के नेता नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाने में जल्दबाजी कर रहे हैं । उन्हें अभी इंतजार करना चाहिए वर्ना इस वक्त उनके आरोपों में एक खास किस्म की खिसियाहट दिखाई देती है । इतना अवश्य है कि मोदी भारत की जनता की आकांक्षाओं को लगातार बढ़ाते जा रहे हैं । परंपरागत तरीके से राजनीति का विश्लेषण करनेवालों का मानना है कि चुनाव के पहले किए गए वादों को सरकार में आने के बाद पूरा करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए । उनके पास इस तर्क के समर्थन में विश्व के कई देशों के उदाहरण भी मौजूद होते हैं जहां कि सरकार बनते ही चुनावी वादों पर अमल शुरू हो जाता है । ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री मोदी को इस परंपरागत राजनीतिक फॉर्मूले में यकीन नहीं है । अगर ऐसा होता तो अबतक सरकार महंगाई को रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रही होती । महंगाई को रोकने के लिए एक ही बार कदम उठाए गए । नतीजा सबके सामने है । आज बाजार में आलू तीस से चालीस रुपए के बीच बिक रहा है लेकिन जनता को यह बात अखर नहीं रही है क्योंकि प्रधानमंत्री उनको बेहतर सपने दिखा रहे हैं । वो देश के लिए बड़ा लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं । वो चाहते हैं कि 2022 तक हर देशवासी के सर पर छत हो यानि सबके पास अपना घर हो, वो चाहते हैं कि पूरा भारत साफ रहे. वो चाहते हैं कि भारत से मानव संसाधन का निर्यात हो, वो चाहते हैं कि पूरे विश्व के कल कारखाने भारत में लगे और उनपर मेक इन इंडिया की मोहर हो । सवाल फिर वही कि सपनीली सड़क पर आंकांक्षा की ये दौड़ कहां जाकर खत्म होगी या ये दौड़ सरपट जारी रहेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही बढ़ती हुई जनाकांक्षा ही है जो वो खुद ही बढ़ा रहे हैं । सालभऱ के बाद इन सपनों का हिसाब किताब शुरू होगा तब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री उसको कैसे हैंडल करते हैं ।

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