अभी-अभी संविधान दिवस बीता है। जब भी संविधान दिवस (26 नवंबर) आता है या संविधान से जुड़ी बातों पर देशव्यापी विमर्श होता है तब वामपंथी धारा में बहने वाले लेखक और बौद्धिक बाबा साहेब आंबेडकर की कई बातों को संदर्भ से काटकर उद्धृत करते हैं। आंबेडकर के विचारों की आड़ में वो भारत और भारतीयता के साथ साथ हिंदू धर्म और दर्शन पर प्रहार करते हैं। उनके विचारों को इस तरह से पेश करते हैं जैसे कि आंबेडकर हिंदू धर्म के विरोधी थे। वो ये नहीं बताते हैं कि आंबेडकर हिंदू धर्म की कुरीतियों के विरोधी थे और उनका मत था कि इन कुरीतियों को दूर किया जाए। ऐसा करते हुए कम्युनिस्ट इस बात को भी छिपा ले जाते हैं कि उनको लेकर आंबेडकर के क्या विचार थे। मार्क्स और मार्क्सवाद से लेकर उनके अनुयायियों के बारे में बाबा साहेब की सोच क्या थी। 12 दिसंबर 1945 को नागपुर की एक सभा में आंबेडकर ने देशवासियों को कम्युनिस्टों से बचकर रहने की सलाह दी थी। आंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि ‘मैं आप लोगों को आगाह करना चाहता हूं कि आप कम्युनिस्टों से बच कर रहिए क्योंकि अपने पिछले कुछ सालों के कार्यों से वो कामगारों का नुकसान कर रहे हैं। वे उनके (कामगारों) दुश्मन हैं, इस बात का मुझे पूरा यकीन हो गया है। कम्युनिस्ट कहते हैं कि कांग्रेस पूंजीपतियों की संस्था है। साथ ही वे कामगारों को उसमें जाने की सलाह भी देते हैं। हिन्दुस्तान के कम्युनिस्टों की अपनी कोई नीति नहीं है, उन्हें सारी चेतना रूस से मिलती है।‘ अपने इस कथन से आंबेडकर ने स्पष्ट कर दिया था कि अपने देश के कम्युनिस्टों की चेतना का आधार रूस से आयातित विचार है और वो कामगारों या मजदूरों को भ्रमित कर कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं। आंबेडकर की ये बातें स्वाधीनता के बाद भी सही साबित हुई। कम्युनिस्टों को जब भी मौका मिला उन्होंने कांग्रेस का समर्थन किया, सरकार बनाने से लेकर देश में इमरजेंसी लगाने तक में। आज भी कर रहे हैं। आज जब कम्यनिस्ट पार्टियां अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं तो उनको कांग्रेस में ही अपना भविष्य नजर आ रहा है। कम्युनिस्ट विचारधारा के अनुयायी लगातार कांग्रेस को मजबूत करने की बात इंटरनेट मीडिया के अलग अलग मंचों पर लिख रहे हैं।
आंबेडकर ने नागपुर की ही सभा में देश के दलितों को भी कम्युनिस्टों से आगाह किया था। आंबेडकर ने कम्युनिस्टों के बारे में कहा था कि ‘वे अब हमारे संगठन में घुसकर अपनी हरकतें करने लगे हैं। इसलिए मैं आपलोगों से यही कहना चाहता हूं कि आपलोग कम्यनिस्टों से बचकर रहिए। उन्हें अपने शेड्यूल कास्ट फेडरेशन का उपयोग अपने प्रचार के लिए मत करने दीजिए।‘ अब 1945 में कहे गए बाबा साहेब के शब्दों पर गौर करें तो स्थिति और स्पष्ट होती है। उनको इस बात की आशंका थी कि अगर कम्युनिस्ट उनके संगठन में घुस गए तो संगठन कमजोर होगा लिहाजा इसलिए वो सार्वजनिक रूप से शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के कार्यकर्ताओं को कम्युनिस्टों की ‘हरकतों’ से बचकर रहने की सलाह दे रहे थे। आंबेडकर की इन बातों की चर्चा कभी भी कम्युनिस्ट नहीं करते हैं। अपने बौद्धिक विमर्शों में भी अंबेडकर की आलोचना पर ध्यान नहीं देते हैं। बाद के दिनों में या आंबेडकर के निधन के बात तो वो समानता के सिद्धांत के आधार पर उनको भी वामपंथी विचारधारा के करीब दिखाने और प्रचारित करने की कोशिश करते रहते हैं। वामपंथी कभी भी इस बात की चर्चा नहीं करते हैं कि आंबेडकर की राय मार्क्स या उनके सिद्धांतों को लेकर क्या थी। 20 नवंबर 1956 को आंबेडकर का नेपाल में दिया गया एक भाषण है जिसमें उन्होंने बुद्ध और कार्ल मार्क्स पर विचार किया था। अपने उस भाषण में आंबेडकर ने मार्क्सवाद की तुलना में बौद्ध दर्शन को श्रेष्ठ और स्थायी माना है। आंबेडकर ने साम्यवादी जीवन मार्ग और बौद्ध जीवन मार्ग को लेकर अपने विचार रखे थे। उसमें आंबेडकर कहते हैं कि जो जीवनमार्ग अल्पजीवी होगा, गुमराह करनेवाला होगा या अराजकता की ओर ले जानेवाला होगा ऐसे जीवन मार्ग का समर्थन करना उचित नहीं होगा। साफ है कि वो साम्यवादी जीवन मार्ग का निषेध कर रहे थे। उनके इस कथन को नागपुर में कम्युनिस्टों पर व्यक्त किए गए उनके विचारों से जोड़कर देखते हैं तो यह साफ हो जाता है कि कि साम्यवाद के बारे में उनकी राय एक अराजक विचारधारा की रही है और उसको वो भारत के लिए उपयुक्त नहीं मानते थे।
आंबेडकर ने मार्सवादी सोच को व्याख्यायित करते हुए कहा था कि ‘ साम्यवादी विचारधारा का मूल सूत्र यह है कि दुनिया में शोषण है। यहां अमीरों की ओर से गरीबों का शोषण हो रहा है क्योंकि धनवानों में धन बटोरने की होड़ लगी हुई है। इसी होड़ की वजह से पूंजीपति लोग मेहनतकश वर्ग को गुलाम बना रहे हैं और इसी प्रकार की गुलामी दरिद्रता और निर्धनता का कारण बनती है। कार्ल मार्क्स ने गरीबों के संबंध में या मजदूरों के शोषण के संबंध में सवाल उपस्थित कर अपने साम्यवाद की नींव रखी।‘ लेकिन आंबेडकर इसके सूत्र की तलाश में बौद्ध दर्शन में जाते हैं और वहां से अपनी बात उठाते हैं। उनका मानना है कि बुद्ध दुनिया में दुख की बात करते हैं और बुद्ध ने भी शोषण से पैदा हुए दुख और दरिद्रता के आधार पर अपने दर्शन की नींव रखी। यहां आंबेडकर बहुत स्पष्ट रूप से मानते हैं कि मार्क्स कुछ नया प्रतिपादित नहीं करते हैं बल्कि उनके सिद्धांत के सैकड़ों साल पहले बुद्ध ऐसा कह चुके हैं और इससे मुक्ति का मार्ग भी सुझा चुके हैं। अंबेडकर बुद्ध और मार्क्स के सुझाए मुक्ति के मार्ग के बुनियादी अंतर को भी बहुत साफगोई से जनता के सामने रखते हैं। उनका मानना है कि साम्यवाद की स्थापना के लिए मार्क्सवादियों का रास्ता हिंसा का है और वो अपने विरोधियों को नष्ट कर लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं। बुद्ध का रास्ता इससे बिल्कुल अलग है। आंबेडकर के शब्दों को देखते हैं, ‘बुद्धिज्म की स्थापना के लिए लोगों के दिलो दिमाग को परिवर्तित करना यही बुद्ध का संवैधानिक रास्ता है। बुद्ध अपने विरोधियों को डरा धमका कर या सत्ता के बल पर पराजित करना नहीं बल्कि प्यार और अपनत्व की भावना से अपना बना लेना है।‘
बाबा साहेब साम्यवाद के गैर संवैधानिक तरीकों को रेखांकित करते हैं और कहते हैं कि साम्यवादी मनुष्य को खत्म करने के सिद्धांत पर अमल करना चाहते हैं लेकिन अगर मनुष्य ही नहीं रहेगा तो न तो कोई प्रतिकार कर पाएगा न ही विरोध तो ऐसी सफलता तो सिर्फ दिखावा बन कर रह जाती है।‘ आंबेडकर ने साम्यवादियों के ‘मजदूरों की तानाशाही’ ( डिक्टेटरशिप आफ प्लोरेतेरियत) और उसको स्थापित करने के खूनी क्रांति के सिद्धांत को भी कठघरे में खड़ा करते हैं। आंबेडकर के प्रश्नों का उत्तर वामपंथियों के पास नहीं है लिहाजा वो संदर्भ से काटकर सिर्फ ये कहते हैं कि अंबेडकर ने मार्क्स और बुद्द के सिद्धांतों में कई समानताएं थीं। पर इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं कि लक्ष्य तक पहुंचने का दोनों का रास्ता बिल्कुल अलग है। बाबा साहेब ने हमेशा ही साम्यवादियों के रास्तों को खारिज किया, उसके लिए वो बुद्ध के सिद्दांतों को अपनी वैचारिकी का आधार बनाते हैं। अंबेडकर ने साम्यवाद के विदेशी दर्शन पर भारतीय दर्शन या भारतीय सिद्धांतों को प्राथमिकता दी। आज जब हम स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की देश की माटी से उपजे विचारों को समग्रता में एक बार फिर से देश की जनता के सामने लाना चाहिए।